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ज़ोमैटो, स्विगी के डिलीवरी वर्कर्स- "हमें कंपनी ने गुलाम बना रखा है"
ज़ोमैटो के डिलीवरी वर्कर्स के लिए अपनी वेबसाइट के विरोधाभासों को नजरअंदाज़ कर पाना कठिन है. 'राइड विथ प्राइड' के आश्वासन के साथ उनकी वेबसाइट 'एक लाख से अधिक हैप्पी पार्टनर्स' होने और '10 करोड़ से अधिक हैप्पी डिलीवरी' करने का दावा करती है.
वह भी ऐसे समय में जब देश भर में 'डिलीवरी पार्टनर्स' खुश नहीं हैं.
पिछले दो हफ्तों से ज़ोमैटो और स्विगी के डिलीवरी कर्मचारियों ने सोशल मीडिया पर दोनों कंपनियों की कथित शोषणकारी नीतियों के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. हालांकि इस विरोध की पृष्ठभूमि बहुत पहले से तैयार हो रही थी.
इसकी शुरुआत दो डिलीवरी कर्मचारियों, SwiggyDE और DeliveryBhoy, ने गुमनाम रूप से ट्वीट करके की, कि कैसे डिलीवरी कंपनियां उनका शोषण कर रही हैं. इसके बाद ही कई अन्य स्विगी और ज़ोमैटो डिलीवरी पार्टनर्स भी उनके साथ आ गए.
डिलीवरी कर्मचारी लंबे समय से नौकरी की असुरक्षा, कम वेतन, लंबी दूरी के रिटर्न बोनस में कमी और 'फर्स्ट माइल पे' की कथित अनुपस्थिति से जूझ रहे हैं. वहीं महामारी के दौरान ईंधन की बढ़ती कीमतों, प्रोत्साहनों में असंगति, और खर्चों के लिए पैसे कम पड़ने के कारण उनमें से कुछ अपनी चुप्पी तोड़ने के लिए मजबूर हो रहे हैं.
गुजरात में स्विगी और ज़ोमैटो दोनों के लिए काम करने वाले 43 वर्षीय जमशेद कहते हैं, "वह हमें पार्टनर कहते हैं लेकिन हमारे साथ ऐसा व्यवहार नहीं करते. हम उनके लिए ग़ुलाम हैं. हम उनके लिए कर्मचारी नहीं मज़दूर हैं, इसलिए वह हमसे आवाज़ उठाने या सवाल पूछने की उम्मीद नहीं करते. लेकिन बिना नौकरी की सुरक्षा के हमारा गुज़ारा कैसे चलेगा?"
जमशेद की बातों में उन तमाम डिलीवरी कर्मचारियों की भावनाएं झलकती हैं जिन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि कैसे वह कम, परिवर्तनीय आय के लिए दिन में 12 से 14 घंटे काम करते हैं.
ज़ोमैटो के अनुसार, कर्मचारियों के लिए कोई निर्धारित औसत आधारभूत वेतन नहीं है; यह रोजगार के क्षेत्र और शहर पर निर्भर करता है.
ज़ोमैटो के प्रवक्ता ने दावा किया कि डिलीवरी वर्कर्स का प्रति ऑर्डर औसत वेतन पिछले एक साल में 20 प्रतिशत बढ़ गया है. जबकि ज़ोमैटो के डिलीवरी वर्कर्स ने हमें बताया कि उन्हें चार किलोमीटर के भीतर डिलीवरी के लिए लगभग 20 रुपए मिलते हैं, जिसके बाद उन्हें पांच रुपए प्रति किमी मिलते हैं.
वहीं स्विगी के प्रवक्ता ने कहा कि एक डिलीवरी वर्कर की कमाई में तीन मुख्य घटक शामिल होते हैं: प्रति ऑर्डर पेआउट- जो तय की गई दूरी और उसमें लगने वाले समय आदि पर निर्भर होता है. सर्ज पे (व्यस्ततम समय के दौरान काम करने के लाभ स्वरूप) और इंसेंटिव पे (प्रोत्साहन के तौर पर मिला वेतन). स्विगी ने यह भी कहा कि जुलाई 2021 में उनके डिलीवरी कर्मचारियों की कमाई जनवरी 2020 की तुलना में 20 प्रतिशत बढ़ गई.
इसलिए एक पूर्णकालिक डिलीवरी ब्वॉय, जो दिन में कम से कम 12 घंटे काम करता है, वह प्रतिदिन 700 से 1,000 रुपए कमा सकता है. लेकिन फिर उसे मुंबई जैसे शहर में ईंधन पर कम से कम 400 रुपए खर्च करने पड़ते हैं.
एक डिलीवरी ब्वॉय के अनुसार, अगर वे एक दिन में कम से कम 575 रुपए कमाते हैं तो ज़ोमैटो उन्हें लगभग 200 रुपए प्रोत्साहन के रूप में देता है. वहीं एक पार्ट टाइम वर्कर को 275 रुपये की न्यूनतम कमाई के लिए 100 रुपए मिलते हैं.
अधिकांश डिलीवरी कर्मचारी ज़ोमैटो और स्विगी से यह सोचकर जुड़ते हैं कि वह अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं. लेकिन उन्हें कम आधारभूत वेतन जैसी कई समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है. बिना किसी फायदे के अपनी जेब से पैसे खर्च करने पड़ते हैं, लक्ष्यों को पूरा करने और इंसेंटिव प्राप्त करने के लिए अस्वस्थ होने के दौरान भी काम करना पड़ता है. इसके बाद उनकी कमाई की सीमा तय होती है.
डिलीवरी कर्मचारियों को अपने वाहनों का उपयोग करना होता है और उसके ईंधन, मरम्मत और रखरखाव का खर्च भी वहन करना होता है. साथ ही फोन, डेटा प्लान, और कंपनी के सामान जैसे टी-शर्ट, फोन स्टैंड और फोन कवर आदि के लिए भी पैसे देने पड़ते हैं.
इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि उन्हें प्रतिदिन कितने ऑर्डर मिल सकते हैं; मुंबई में एक डिलीवरी ब्वॉय ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "वह औसतन दिन में 20 ऑर्डर डिलीवर करते हैं."
वहीं अहमदाबाद के एक डिलीवरी ब्वॉय ने कहा, "वह पूरे दिन ऐप में लॉग इन होने के बावजूद उन्हें प्रतिदिन केवल पांच ऑर्डर मिलते हैं."
यह पहली बार नहीं है जब ज़ोमैटो और स्विगी के डिलीवरी कर्मचारी विरोध कर रहे हैं. पिछले साल महामारी के दौरान स्विगी द्वारा चार शहरों में डिलीवरी वर्कर्स के भुगतानों में कटौती के बाद भी उन्होंने आंदोलन किया था.
तब कारवां ने एक रिपोर्ट में बताया था कि इन विरोधों के परिणामस्वरूप स्विगी ने पार्टनर्स को निलंबित करने की धमकी दी थी. इसी तरह का विरोध 2019 में ज़ोमैटो के डिलीवरी वर्कर्स द्वारा उनके प्रोत्साहन वेतन में कटौती के बाद किया गया था.
भारत में वैसे भी गिग वर्कर्स के लिए कोई औपचारिक सुरक्षा नहीं है. हांलांकि सरकार ने सामाजिक सुरक्षा संहिता के तहत श्रम कानून सुधारों के मसौदे में गिग वर्कर्स को शामिल किया है, लेकिन उन्हें मजदूरी, नौकरी की सुरक्षा और औद्योगिक संबंधों आदि से संबंधित प्रावधानों में जगह नहीं दी गई है.
"आप मुझे बताएं, क्या 20 रुपए के ऑर्डर के लिए मुझे जान जोखिम में डालनी चाहिए?" मुंबई के स्विगी डिलीवरी ब्वॉय प्रकाश ने पूछा. महामारी के कारण एक मॉल में ड्यूटी मैनेजर का पद गंवाने के बाद उन्होंने एक साल पहले यह नौकरी शुरू की थी. 20 रुपए प्रति डिलीवरी के आधार पर प्रकाश एक डिलीवरी के लिए औसतन लगभग 32 रुपए कमाते हैं जिसके लिए उन्हें छह किमी की यात्रा करनी पड़ती है.
"अगर हम 20 रुपए में यह नहीं करेंगे तो वह किसी ऐसे को खोज लेंगे जो 15 रुपए में यह करने को तैयार होगा," उन्होंने कहा.
स्विगी के प्रवक्ता ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "डिलीवरी कर्मचारी अपनी इच्छानुसार लॉग-इन और लॉग-ऑफ करने के लिए स्वतंत्र हैं. लेकिन यह पूरी तरह सही नहीं है."
यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स में पीएचडी स्कॉलर कावेरी मेडप्पा कालियांदा प्लेटफॉर्म-आधारित ड्राइवरों और डिलीवरी वर्कर्स की कार्य-स्थितियों का अध्ययन कर रही हैं. उन्होंने कहा, "यह दावा झूठ है कि वर्कर्स जब चाहें लॉग-इन और लॉग-ऑफ कर सकते हैं."
"स्वतंत्रता और नरमी बरतने के तमाम दावों के बावजूद वर्कर्स को 'लॉग-इन शिफ्ट', अनिवार्य पीक-टाइम लॉग-इन, सप्ताहांत कार्य और ऑर्डर रद्द करने पर बेहद सख्त दंड का पालन करना होता है," उन्होंने कहा. "वर्कर्स अपनी इच्छानुसार लॉग-इन और लॉग-ऑफ नहीं कर सकते, क्योंकि प्रोत्साहन वेतन इन सभी शर्तों को पूरा करने के साथ जुड़ा होता है."
डिलीवरी वर्कर्स को अपने मुद्दे सोशल मीडिया पर उठाने की भी मनाही है.
"उनका ध्यान सिर्फ पैसे कमाने पर है, निचले स्तर के राइडर्स को वह प्राथमिकता नहीं देते हैं," प्रकाश ने कहा. "अगर मैं अकेले आवाज़ उठाऊंगा तो वे मेरे विरुद्ध कार्रवाई करेंगे. लेकिन अगर हम सब एक साथ बोलें तो शायद कुछ हो सकता है."
एकरूपता का अभाव
DeliveryBhoy नामक ट्विटर अकाउंट को चलाने वाले डिलीवरी ब्वॉय, जिनके फॉलोवर्स एक हफ्ते में 20 से बढ़कर 2,000 हो गए हैं, अपने बारे में बहुत अधिक खुलासा न करने के लिए सतर्क हैं. उनका कहना है कि यदि कम्पनियां उनकी पहचान जान जाएंगी तो इसके परिणाम भयंकर होंगे.
"स्विगी और ज़ोमैटो द्वारा पार्टनर्स को दिए जाने वाले भुगतान में एकरूपता के अभाव का मतलब है कि सोशल मीडिया पर उनकी प्रतिक्रियाएं असत्य नहीं हैं," उन्होंने कहा. "प्रत्येक वर्कर को अलग भुगतान किया जाता है, और उसका अलग तरह से शोषण होता है. यह लगभग हास्यास्पद है कि कैसे वह हमारे साथ खुल्लम-खुल्ला बेईमानी करते हैं और हमारे पास कोई सबूत नहीं होता न कभी होगा."
DeliverBhoy ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "धोखाधड़ी तय की गई दूरी और प्रतीक्षा समय जैसे कारकों के माध्यम से होती है. वह आपको 'फर्स्ट माइल' पर धोखा देते हैं. वह आपको 'रेड ज़ोन' (कई रेस्तरां के नज़दीक निर्दिष्ट स्थानों) में जाने के लिए कहते हैं, ताकि आप अपनी जेब से चार से पांच किमी के लिए ईंधन पर खर्च करें," उन्होंने बताया. "शुरुआत के तौर पर वर्कर्स को 'फर्स्ट माइल' के लिए भुगतान किया जाना चाहिए और मूलभूत वेतन दिया जाना चाहिए. मैंने पहले सप्ताह में ही यह जान लिया कि इन लोगों के पास धोखा देने के कई तरीके हैं. यह एक बहुत ही शोषणकारी काम है."
कावेरी के अनुसार, दरों में एकरूपता की कमी कर्मचारियों में फूट डालती है. जब वर्कर्स देखते हैं कि उनकी दरें और प्रोत्साहन वेतन उनके सहयोगियों की तरह नहीं हैं तो उनके बीच समानता की भावना समाप्त हो जाती है.
"वह उन्हें 'पार्टनर्स' का नाम देकर उनसे सभी प्रकार के श्रमिक अधिकार और निश्चित आय छीन लेते हैं; वह वर्कर्स को सम्मान नहीं देते," कावेरी ने कहा. "वह श्रमिकों की आय तय करने में निर्णायक नियंत्रण और शक्ति का प्रयोग करते हैं. वह अपनी इच्छानुसार दरों में कटौती करने और प्रोत्साहन वेतन को कम करने या पूरी तरह से वापस लेने का निर्णय करते हैं."
वर्कर्स के अनुसार, जब वह बहुत अधिक प्रश्न पूछते हैं तो उनकी आईडी सिस्टम पर ब्लॉक हो जाती है, जिसका अर्थ है कि वह अब ज़ोमैटो और स्विगी के लिए काम नहीं कर सकते हैं.
उदाहरण के लिए, जमशेद ने बताया कि उनके दो खाते ब्लॉक हो चुके हैं. उन्होंने अपने इलाके के हब मैनेजर के सामने कई मुद्दों उठाए थे जिसके कारण उनके खाते बंद हो गए. हब मैनेजर डिलीवरी वर्कर्स के लिए कंपनी से संपर्क की कड़ी है. जमशेद को अलग नाम से नई आईडी बनानी पड़ी.
जमशेद ने कहा, "वह हमें फुटबॉल की तरह ग्राहक सहायता टीम से लेकर हब मैनेजर तक इधर-उधर नचाते रहते हैं."
वहीं SwiggyDE_Mumbai नामक ट्विटर अकाउंट को चलाने वाले व्यक्ति तीन साल से मुंबई में डिलीवरी ब्वॉय का काम कर रहे हैं. वह दिन में 12 घंटे काम करते हैं और प्रति डिलीवरी औसतन 35 रुपए कमाते हैं. प्रतिदिन 20 डिलीवरी के लगभग 600 रुपए की इस कमाई में से रोजाना कम से कम 300 रुपए ईंधन पर खर्च हो जाते हैं.
"हम इस काम के लिए व्यर्थ ही इतनी मेहनत करते हैं," उन्होंने कहा. "इस आय से घर चलाना मुश्किल है लेकिन हम मजबूर हैं."
कावेरी के अनुसार, दरों को नियंत्रित करना आवश्यक है ताकि आय एक निश्चित बिंदु से नीचे न गिरे. इसके साथ ही काम के समय को भी नियंत्रित किया जाना चाहिए और वर्कर्स को एक निश्चित आय की गारंटी दी जानी चाहिए, जो ग्राहकों की मांगों से परे हो.
"वर्कर्स को सशक्त करना बेहद ज़रूरी है ताकि वह उन निर्णयों में समान भागीदार हों जो सीधे उनकी आजीविका को प्रभावित करते हैं," उन्होंने कहा. "प्लेटफॉर्म्स सब कुछ नियंत्रित करते हैं और उनकी शक्तियों की कोई सीमा नहीं है. यही समस्या की जड़ है."
पहचान छुपाने के लिए कुछ डिलीवरी कर्मचारियों के नाम बदल दिए गए हैं.
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