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तालिबान से क्यों डरती हैं भारत में रह रहीं अफगानिस्तान की महिलायें?

अफगानिस्तान में तालिबानियों के आने के बाद 15 अगस्त को पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी ने बिना किसी चेतावनी के देश छोड़ दिया. वो अपने साथ देश की महिलाओं की आज़ादी भी ले गए. विशेष रूप उनकी जो शिक्षित और मुखर हैं.

हाल ही में अफगानिस्तान की महिला पत्रकारों ने कहा है कि तालिबान द्वारा उन्हें काम करने से रोका जा रहा है. आरटीए (रेडियो टेलीविजन अफगानिस्तान) की एक एंकर शबनम खान दावरान को तालिबान ने उनके दफ्तर में नहीं घुसने दिया. वहीं अफगानिस्तान की पहली और सबसे कम उम्र की महिला मेयर जरीफा गफारी को तालिबान लगातार मारने की धमकी दे रहा है.

न्यूज़लॉन्ड्री ने जरीफा गफारी से बात की है. उन्होंने बताया, "मैं अपनी और अपने परिवार की जान बचाने की जल्दी में हूं. हम बहुत कठिन स्थिति में हैं. दोस्त हमारी सुरक्षा के लिए चीजों का इंतज़ाम कर रहे हैं. मैं मौत से नहीं डरती लेकिन यह मेरे परिवार की सुरक्षा के लिए है."

तालिबान की बर्बरता का शिकार हुईं कई महिलायें कुछ साल पहले अफगानिस्तान से भारत भाग आई थीं. न्यूज़लॉन्ड्री ने इन महिलाओं से बात की है.

यह सभी महिलायें दिल्ली के भोगल मार्किट क्षेत्र में रहती हैं. 35 वर्षीय परवीन भोगल में सिलाई की दुकान पर काम करती हैं. उनके दो छोटे बच्चे हैं. पांच साल पहले तालिबानियों ने उनके पति की काबुल में हत्या कर दी थी. जिसके बाद से परवीन भारत आकर रहने लगी. लेकिन उनके परिवार के सभी सदस्य- उनकी बहन, ननद, मां और भाई अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में ही रहते हैं. परवीन पिछले दो दिन से अपने परिवार से संपर्क नहीं कर पा रही हैं क्योंकि काबुल में बिजली और इंटरनेट बंद है. आखिरी बार उनकी बात उनके भाई से हुई थी.

परवीन बताती हैं, “तालिबान का दौर महिलाओं के लिए बहुत क्रूर है. मेरे परिवार ने बताया कि वहां फायरिंग हो रही है. बच्चों को मार रहे हैं. लोग अपने घरों से बाहर नहीं निकल रहे. खुद को बचाने के लिए लोग एयरपोर्ट की दीवारों से कूद रहे हैं. महिलाओं को घर से निकालकर उनसे जबरन शादी कर रहे हैं. मैंने देखा है वो महिलाओं पर ज़ुल्म करते हैं."

उन्होंने आगे बताया, “तालिबान के आने से कई लोग अफगानिस्तान में फंस गए हैं जिसके चलते उनका भारत आना मुश्किल होगा. मेरा परिवार अफगानिस्तान से आर्थिक सहायता भेजा करता था अब वो भी रुक जाएगी. पहले अफगान लोगों के आते-जाते रहने से मैं उनकी आवभगत किया करती थी लेकिन अब हमारी आर्थिक हालत पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.”

40 वर्षीय अनीसा परवानी का परिवार अफगानिस्तान में अलग-अलग हिस्सों में रहता है. आखिरी बार तीन दिन पहले उनकी बात उनकी ननद के बेटे से हुई थी. फ़ोन पर हुई इस बातचीत को अनीसा ने हमसे साझा किया है. वह बताती हैं, "जो मीडिया में दिखाई दे रहा है वो बहुत कम है. अफगानिस्तान के हालात बहुत खराब हैं. तालिबानियों ने जगह-जगह धमाके किए जिसके कारण बिजली के खंभे और तार टूट गए. वहां बिजली नहीं है जिसके चलते मोबाइल और इंटरनेट भी बंद हो गया है. अब परिवार से संपर्क करना मुश्किल हो गया है."

अनीसा 20 साल अफगानिस्तान में रही हैं. वो तालिबान द्वारा महिलाओं पर अत्याचार की कहानी दोहराती हैं. अनीसा कहती हैं, "तालिबान के लोग माता-पिता के सामने बेटियों को घर से अगवा कर ले जाते हैं और उनसे ज़बरदस्ती शादी करते हैं. अगर कोई महिला अपने भाई के साथ घूम रही हो तो उसे सड़क पर मारते हैं. हम चाहते हैं यूएनएचआरसी इसका संज्ञान ले और महिलाओं के बारे में सोचे."

वहीं 19 वर्षीय अलमा सदफ कहती हैं, "मेरी नानी अफगानिस्तान के बाघलान में रहती हैं. तालिबानी कहते हैं कि महिलाओं को स्कूल जाने दिया जाएगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ है. वहां सभी महिलाओं को सख्ती से चादरी (बुर्का) करने को कहा गया है. सभी महिलायें डर से बाहर नहीं जा रही हैं. तालिबान मीडिया के सामने कुछ और बोलता है लेकिन असलियत में वो महिला विरोधी है. चार महीने पहले तक हालात अच्छे थे. काबुल में महिलायें काम पर जाती थीं. उन्हें कुछ भी पहनने की आज़ादी थी. अब सख्त निर्देश हैं कि महिलायें बिना बुर्का पहने बाहर नहीं जा सकती हैं."

सात वर्षीय मरियम के पिता अफगानिस्तान के मज़ार-ए-शरीफ में हैं. उनकी आखिरी बार अपने पिता से बात दो दिन पहले हुई थी उसके बाद से उनके पिता का फोन नहीं लग रहा है. मरियम को डर है कि उनके पिता ज़िंदा भी हैं या नहीं. मरियम कहती हैं, "मेरे पिता ने मुझसे कहा था कि सभी लोग अपने घरों में बंद हैं. बहुत मुश्किल से फोन रिचार्ज कराया है. तब बात हो पा रही है. उन्होंने मुझे वहां बुलाने से मना कर दिया यह कहकर कि वो जगह महिलाओं के लिए अच्छी नहीं है. तालिबानी बड़ी-बड़ी गाड़ियों से घूम रहे हैं. महिलाओं को रोड पर देखते ही उन्हें जान से मार देंगे. इतना कहकर पिता जी का फोन कट गया. उसके बाद से हमारा उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा है."

मरियम ने आगे बताया कि तालिबान पर मीडिया रिपोर्ट्स देखकर भविष्य की सोचकर वो और उनकी मां बेचैन हो जाते हैं. "पहली बार जब मैंने सुना कि तालिबान अफगानिस्तान में घुस आया है, तब घबराहट के कारण मुझसे सांस नहीं ली गई. मैं बेहोश हो गई. मेरी मां ने मेरे मुंह पर पानी फेंका तब होश आया. मेरी मां मेरे सामने पिता जी या अफगानिस्तान में हमारे रिश्तेदारों से कॉल पर बात नहीं करती लेकिन मैंने दूसरे कमरे से उनकी बाते सुनी हैं. वो कहती हैं कि उन्हें अपने और मेरे भविष्य की चिंता है. अगर पिता जी को कुछ हो गया तो हमारे पास कमाने का कोई साधन नहीं बचेगा." उन्होंने कहा.

नाम ना छापने की शर्त पर एक महिला ने तालिबान द्वारा हज़ारा समाज की महिलाओं पर हो रहे अत्याचार की कहानी सुनाई. 27 वर्षीय यह महिला पश्चिमी काबुल में रहती थीं. तीन साल पहले तालिबान की बर्बरता के चलते वो अफगानिस्तान छोड़कर भारत आ गईं. वह बताती हैं, "तालिबान को लगता है कि हज़ारा समाज की महिलायें उनके लिए काफ़िर हैं. वो हमें ढूंढ-ढूंढ़कर निशाना बनाते हैं. वो अपने आप को 'मॉडर्न तालिबान' कहते हैं, लेकिन वो पिछड़ी मानसिकता के हैं. वो महिलाओं को बिना बुर्के के बाहर नहीं निकलने देते. उन्हें सेक्स के लिए गुलाम बनाकर रखते हैं. ख़ास तौर से हज़ारा समाज की महिलाओं को. उनके आ जाने के बाद हज़ारा समाज की सभी महिलाओं की मौत तय है. हम बिलकुल नहीं चाहते कि अफगानिस्तान एक बार फिर तालिबान के हाथों चला जाए."

साल 2001 में अमेरिका ने अफगानिस्तान पर आक्रमण कर तालिबान सरकार को गिरा दिया था. तब राष्ट्रपति रहे जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने अफगानिस्तान की महिलाओं और बच्चों की सहायता के लिए आर्थिक मदद देने का वादा किया था. वहीं उनकी पत्नी, लौरा बुश, महिला अधिकारों के इस प्रयास में विशेष रूप से मुखर हो गईं. लौरा बुश ने कहा था कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई महिलाओं के अधिकारों और सम्मान की लड़ाई है. उस वक्त तालिबानी राज ख़त्म होने के बाद नए कानून बनाए गए जिसने अफगानिस्तान की महिलाओं को सशक्त बनाने में मदद की.

बता दें कि साल 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान पर तालिबान का शासन था. लड़कियां स्कूल नहीं जा सकती थीं, मनोरंजन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और बात ना मानने के लिए महिलाओं को क्रूर दंड दिया जाता था. लेकिन 2001 के बाद से महिलाओं की दशा में सुधार दिखने लगा. अफगानिस्तान में महिलाएं स्कूल जाने के साथ-साथ नौकरी में भी पुरुषों का हाथ बंटाने लगीं. माना जा रहा है कि 20 साल बाद तालिबान के आने के साथ ही एक बार फिर महिलाओं की स्वतंत्रता पर पाबंदियों का दौर शुरू हो गया है.

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