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थोड़ी सी बारिश में क्यों आई भीषण बाढ़?
उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड क्षेत्र करीब महीने भर पहले भीषण सूखे की आहट से सहमा हुआ था, लेकिन अब यहां के ज्यादातर जिले बाढ़ की चपेट में हैं. हमीरपुर और जालौन में हालात ज्यादा खराब हैं. जालौन जिले के करीब 100 गांव बाढ़ की चपेट में हैं.
10 अगस्त को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जालौन जिले का हवाई निरीक्षण किया और माना कि जिले के पंचनद क्षेत्र में आई बाढ़ कोटा बैराज से छोड़े गए पानी के कारण गंभीर हुई. कोटा बैराज से 3 अगस्त को 2.25 लाख क्यूसेक पानी चंबल में छोड़ा गया था.
जालौन के माधौगढ़ तहसील के पंचनद क्षेत्र में यमुना, चंबल, सिंध, क्वारी और पहुज नदी का संगम होता है. ये नदियां राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों के बारिश का पानी बहाकर लाती हैं. इन राज्यों में पिछले कुछ हफ्तों से भारी बारिश हो रही है. इससे ये नदियां पहले से उफान पर थीं.
बारिश के अलावा बांधों से छोड़ा गया पानी जालौन में बाढ़ का पर्याय बन गया. वैसे जालौन में ज्यादा बारिश नहीं हुई है. मौसम विभाग के आंकड़े बताते हैं कि यहां अब तक 413.9 मिलीमीटर ही बारिश हुई है जो सामान्य बारिश 419.2 एमएम से कम ही है.
इस मानसून सीजन में केवल दो बार ही जालौन में सामान्य से अधिक बारिश हुई है. 10 से 16 जून के बीच सर्वाधिक 406 प्रतिशत अधिक बारिश दर्ज की थी. वहीं 2-8 अगस्त के बीच 212 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है. शेष 9 हफ्तों में सामान्य से कम बारिश ही हुई है. इसके बावजूद जिला ऐतिहासिक बाढ़ की चपेट में है. ग्रामीण बाढ़ के लिए नदियों में बांध से छोड़े गए पानी को जिम्मेदार ठहराते हैं.
जालौन के पंचनद क्षेत्र में स्थित मीगनी गांव के निवासी माताप्रसाद तिवारी बताते हैं, "उन्होंने 1995 के बाद इतनी भीषण बाढ़ देखी है. बाढ़ से पूरे गांव की फसलें तबाह हो गई हैं और मध्य प्रदेश से गांव का संपर्क टूट गया है. ऊंचाई पर बसा होने के बावजूद गांव के बहुत से घरों में पानी घुस गया है."
माधौगढ़ ब्लॉक निवासी शिवमंगल प्रसाद बताते हैं, "नदियों में अचानक पानी आने के कारण लोगों को संभलने का मौका नहीं मिला. पानी का प्रवाह इतना तेज था कि लोग सुरक्षित स्थानों पर नहीं पहुंच पाए. 3 अगस्त को केवल रातभर में बाढ़ के पानी ने अधिकांश गांवों में अपनी जद में ले लिया. किसी तरह लोग सामान छोड़कर जान बचाकर भागे."
गांव के सरपंच राजेश कुमार बताते हैं, "गांव के करीब 20 घर गिर गए हैं. कम से कम 300 एकड़ जमीन में लगी फसल पूरी तरह खराब हो गई है. 3 अगस्त को गांव में बाढ़ का पानी घुसा और करीब हफ्ते भर कहर बरपाता रहा. बाढ़ की ऐसी विभीषिका 1990 के दशक में देखी थी."
जालौन के कालपी में रहने वाले राम सिंह ने भी अपने क्षेत्र में ऐसी बाढ़ 1976 में देखी थी. उनका कहना है कि पिछले दो दिन से बाढ़ का पानी कुछ कम हुआ है लेकिन अब बीमारियां फैलने का खतरा बढ़ गया है.
क्यों डूबा हमीरपुर?
जालौन की तरह ही हमीरपुर भी भीषण बाढ़ की चपेट में है. हमीरपुर में यमुना और बेतवा नदी का संगम होता है. ललितपुर में बने माताटीला बांध से पहले से खतरे के निशान से ऊपर बह रही बेतवा में 3 अगस्त को 3 लाख क्यूसेक पानी छोड़ दिया गया. उधर यमुना भी खतरे के निशान से ऊपर बह रही थी. दोनों नदियों के पानी ने हमीरपुर में मिलकर जिले में जल प्रलय ला दी.
हमीरपुर के मुंडेरा गांव निवासी नफीस ने बताया, "9 अगस्त को जिले में इस मॉनसून की सबसे ज्यादा बारिश हुई थी. इस दिन करीब 80 एमएम बारिश दर्ज की गई. यानी साल में होने वाली बारिश का 10 प्रतिशत हिस्सा इस एक दिन में बरस गया. इसके अतिरिक्त इस मौसम के तीसरे सप्ताह (10-16 जून 2021) 1,241 प्रतिशत अधिक बारिश दर्ज की गई थी. यह इस सीजन की सबसे अधिक साप्ताहिक बारिश थी. जिले में इस दिन हुई भारी से भारी बारिश की वजह से ही मौसम विभाग के आंकड़ों में कुल बारिश 42 प्रतिशत अधिक दिखाई दे रही है. इस एक सप्ताह को छोड़कर जिले में लगभग सामान्य बारिश ही हुई है."
हमीरपुर के कुंडेरा गांव निवासी बृजेश बताते हैं, "हमीरपुर में हर दूसरे साल बाढ़ आती है लेकिन इस साल जैसी बाढ़ पिछले 10 साल से नहीं आई है. इस बाढ़ ने जिले के करीब 200 गांवों को प्रभावित किया है. आमतौर पर बेतवा नदी में बाढ़ नहीं आती लेकिन इस साल आई बाढ़ मुख्य रूप से बेतवा की देन है. इसके लिए बेतवा में बांध से छोड़ा गया पानी ही जिम्मेदार है."
(डाउन टू अर्थ से साभार)
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