Opinion
जलवायु परिवर्तन: हम जितनी देर करेंगे, हालात उतने ही अधिक बिगड़ने वाले हैं
आम तौर पर ठंडा रहने वाला कनाडा और संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के पश्चिमी हिस्से भयंकर गर्मी की चपेट में हैं. तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच चुका है और हमें चेता रहा है कि जलवायु परिवर्तन की शुरुआत हो चुकी है और हालात और बदतर होने वाले हैं. इस बार, गर्मी इतनी असहनीय और अनुमान से परे थी कि इसने कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में अनुमानित 500 लोगों की जान ले ली. इसके बाद बारी आती है जानवरों एवं अन्य जीवों को हुए भारी नुकसान की. इस गर्मी से जंगलों में आग लग रही है जिससे जान माल का भारी नुकसान होता है. यूरोप में भी हीटवेव जैसे हालात बने हुए हैं और अनुमान है कि इस साल का तापमान अबतक का सर्वाधिक होने वाला है. एक और साल जब हमने पिछले साल के गर्मी के रिकॉर्ड को तोड़ा है.
यह साबित हो चुका है कि यह हीटवेव आकस्मिक नहीं है. वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन नामक संस्था के साथ काम करने वाले वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि मानव-जनित जलवायु परिवर्तन के बिना यह हीटवेव "लगभग असंभव था". वे बताते हैं कि तापमान इस स्तर पर कभी नहीं पहुंचा. वे निष्कर्ष निकालते हैं कि तापमान में वृद्धि के साथ 1,000 वर्ष में एक बार होने वाली इस घटना की आवृत्ति में वृद्धि होगी, और जब दुनिया पूर्व-औद्योगिक युग में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि को छूती है, तो यह पांच से 10 साल की घटना बन जाएगी.
तो दो बातें स्पष्ट हैं- एक, जलवायु परिवर्तन अपेक्षा से अधिक तेजी से हो रहा है और हम निश्चित रूप से इसके लिए तैयार नहीं हैं. दो, जलवायु परिवर्तन किसी को नहीं छोड़ने वाला- अत्यधिक और परिवर्तनशील बारिश, उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की बढ़ी हुई आवृत्ति और गर्मी और ठंड दुनिया की सबसे गरीब आबादी को अपनी चपेट में ले रही हैं. इस तरह की हर घटना उन्हें और भी पंगु और कमजोर बनाकर हाशिए पर डाल देती है. लेकिन अमीर भी कुदरत के इस कहर से अछूते नहीं हैं. कनाडा में लू से लोगों की मौत हमें उस त्रासदी की याद दिलाती रहनी चाहिए जो सभी का इंतजार कर रही है. मैं पहले भी कई बार दोहरा चुकी हूं (मेरे पाठक मुझे माफ करेंगे) कि हमने हालात का असली अंदाजा नहीं हुआ है. हमारे कार्य अभी भी हमारे शब्दों से मेल नहीं खाते. जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए प्रौद्योगिकियां उपलब्ध हैं, लेकिन उन्हें विघटनकारी और परिवर्तनकारी पैमाने पर लगाने की आवश्यकता है. यहीं हम मात खा रहे हैं.
मैं ऐसा इसलिए कह रही हूं क्योंकि हम जितनी देर करेंगे, हालात उतने ही अधिक बिगड़ने वाले हैं. तापमान वृद्धि का ही उदाहरण लें. सम-शीतोष्ण क्षेत्र में रहने वाले अमीर लोग भी अब अपने घरों को ठंडा करने के लिए एयर कंडीशनर जैसे उपकरणों में निवेश करेंगे. यह, बदले में, ऊर्जा की मांग में वृद्धि करेगा और, यह देखते हुए कि देश अभी भी जीवाश्म ईंधन-आधारित बिजली का प्रयोग कर रहे हैं, यह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि करेगा. हम जानते हैं कि हीटिंग और कूलिंग डिवाइस आज हमारे शहरों में बिजली की खपत का सबसे बड़ा कारण हैं. दिल्ली में, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) में मेरे सहयोगियों द्वारा किए गए शोध से पता चलता है कि जैसे ही तापमान 27-28 डिग्री सेल्सियस को पार करता है, शीतलन की मांग तेजी से बढ़ जाती है- तापमान में हर डिग्री वृद्धि पर बिजली की मांग 190 मेगावाट बढ़ जाती है. अधिक बिजली उत्पादन के साथ, अधिक उत्सर्जन होगा, जिससे तापमान और भी अधिक बढ़ जाएगा. जल्द ही यश दुष्चक्र नियंत्रण से बाहर हो जाएगा.
गर्मी और ऊर्जा के बीच इस सीधे संबंध का एक और आयाम है- थर्मल आराम या बेचैनी. यह केवल तापमान पर आधारित न होकर इस बात पर भी निर्भर करता है कि हमारे रहने की जगह कितनी अच्छी तरह से डिजाइन और हवादार है. पंखा एयर कंडीशनर को अधिक असरदार बनाता है क्योंकि यह हमारे शरीर से नमी को वाष्पित करता है. कूलिंग के साथ-साथ डिजाइन भी उतना ही महत्वपूर्ण है. जरा गौर करें कि पारंपरिक इमारतों को गर्मी से बचाने के लिए कैसे डिजाइन किया गया था; सूरज और हवा के लिए डिजाइन करके, न कि प्रकृति के खिलाफ. वे खिड़की पर ओरीएन्टेशन और शेड इस्तेमाल किया करते थे. जिसे अब हम निष्क्रिय वास्तुकला कहते हैं. यह सुनिश्चित करने के लिए कि इमारतें धूप में न पड़ें. ;वे वेंटिलेशन के लिए आंगनों और खुली खिड़कियों का इस्तेमाल करते थे. पेड़ अन्य पर्यावरणीय लाभों के साथ-साथ छाया भी प्रदान करते हैं. अफसोस की बात है कि कांच के फसाड और एयर कूलिंग के लिए बंद जगहों पर निर्मित आधुनिक वास्तुकला ने इस ज्ञान को अनावश्यक और पिछड़ा हुआ बताकर खारिज कर दिया है.
इसके अलावा अधिक गर्मी पानी से संबंधित तनाव को बढ़ाएगी. सिंचाई के लिए, पीने के लिए और जंगल की आग से लड़ने के लिए. जैसे-जैसे हम जमीन से अधिक पानी पंप करेंगे या पानी के परिवहन के लिए बिजली का उपयोग करेंगे, वैसे-वैसे, हमें और अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होगी- जिससे अंततः यह दुष्चक्र और भी अधिक मजबूत होगा. यही कारण है कि हमें स्थानीय जल संसाधनों के अनुकूलन के तरीके खोजने होंगे. वर्षा के जल का संचय भूजल पर हमारी निर्भरता को कम कर सकता है जिसे सतह तक लाने में ऊर्जा की आवश्यकता होती है.
लगातार गर्म हो रही धरती पर ऊर्जा पदचिह्न को बढ़ाए बिना अत्यधिक गर्मी और ठंड के साथ रहने का यह ज्ञान महत्वपूर्ण होगा. इसलिए हमें जीवाश्म ईंधन का प्रयोग कम करने के साथ-साथ अपनी ऊर्जा की खपत को भी कम करने की आवश्यकता है और यही जलवायु परिवर्तन की पहली चुनौती भी है. हमारी झुलसी हुई धरती हमें कम से कम यह तो सिखा ही सकती है.
(साभार- डाउन टू अर्थ)
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