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पेगासस स्पाइवेयर से की जा रही थी 40 भारतीय पत्रकारों के फोन की जासूसी

पत्रकारों से जुड़ी एक रिपोर्ट ने मीडिया जगत में खलबली पैदा कर दी है. द वायर की रिपोर्ट के अनुसार साल 2017 से 2019 के बीच भारत में 40 से अधिक पत्रकारों पर निगरानी रखी गई. पेगासस स्पाइवेयर का उपयोग कर, एक इजरायली कंपनी द्वारा इन पत्रकारों की जासूसी की गई. इस सूची में कई बड़े पत्रकारों और नामी मीडिया संस्थानों के नाम शामिल हैं.

द वायर के अनुसार लीक हुए डेटा में हिन्दुस्तान टाइम्स, इंडियन एक्सप्रेस, द हिन्दू, नेटवर्क18 जैसे तमाम बड़े मीडिया घरानों से कम से कम एक पत्रकार का नाम शामिल है जिसका फोन संभवतः हैक किया गया. इनमें हिन्दुस्तान टाइम्स के कार्यकारी संपादक शिशिर गुप्ता समेत द वायर के दो संस्थापक संपादकों, तीन पत्रकारों, दो नियमित लेखकों के नाम हैं.

बता दें लीक डेटाबेस को पेरिस स्थित गैर-लाभकारी मीडिया फॉरबिडन स्टोरीज़ और एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा एक्सेस किया गया था. इन दो समूहों के पास 50,000 से अधिक फोन नंबरों की सूची थी. इसे एक प्रोजेक्ट के अंतर्गत द वायर, ल मोंद, द गार्जियन, वाशिंगटन पोस्ट, सुडडोईच ज़ाईटुंग और 10 अन्य मैक्सिकन, अरब और यूरोपीय समाचार संगठनों के साथ साझा किया गया. इस सूची में पहचाने गए अधिकांश नाम 10 देशों में मौजूद हैं. यह दस देश भारत, अजरबैजान, बहरीन, हंगरी, कजाकिस्तान, मैक्सिको, मोरक्को, रवांडा, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात हैं. इस इन्वेस्टीगेशन प्रोजेक्ट को 'पेगासस प्रोजेक्ट' नाम दिया गया.

पिछले कई महीनों में, इन्वेस्टीगेशन में शामिल पत्रकारों ने फोन नंबरों के मालिकों की पहचान जानने का प्रयास किया और यह जानने की कोशिश की क्या उनके फोन एनएसओ के पेगासस स्पाइवेयर के साथ लगाए गए थे या नहीं. द वायर की इस रिपोर्ट की मानें तो लीक डेटाबेस के अनुसार एनएसओ द्वारा करीब 300 भारतीय वेरिफ़िएड नम्बरों की निगरानी की गई हो सकती है. जिनमे संभवतः मंत्रियों, विपक्षी दल के नेता, पत्रकारों, कानूनी समुदाय, उद्योपतियों, सरकारी अधिकारी, वैज्ञानिक, कार्यकर्ताओं आदि के नाम शामिल हैं.

सूची में शामिल 67 फोन नम्बरों की जांच की गई. इस डेटा का एमनेस्टी इंटरनेशनल की सिक्योरिटी लैब द्वारा फोरेंसिक रूप से विश्लेषण किया गया था. उनमें से 37 ने पेगासस घुसपैठ की कोशिश या एक सफल हैक के सबूत दिखाए. फोरेंसिक परीक्षण में पाया गया कि निशाना बनाए गए इन 37 फोन नम्बरों में से10 भारतीय नम्बर थे. हालांकि बिना तकनीकी विश्लेषण या तकनीकी जांच के यह बता पाना मुश्किल है कि साइबर अटैक हुआ या नहीं. बता दें एनएसओ ग्रुप इज़राइल में स्थित एक निजी कंपनी है जो पेगासस स्पाइवेयर की निर्माता है. पेगासस आई फोन और एंड्रॉइड उपकरणों में सेंध लगाने के लिए डिज़ाइन किया गया. यह कंपनी 2010 में स्थापित हुई जिसके 40 देशों में 60 सरकारी ग्राहक हैं.

द वायर के अनुसार भारत में कई पत्रकारों पर निगरानी रखने के लिए पेगासस का इस्तेमाल किया गया. इस सूची में पूर्व ब्यूरो चीफ प्रशांत झा, रक्षा संवाददाता राहुल सिंह, कांग्रेस कवर करने वाले पूर्व राजनीतिक संवाददाता औरंगजेब नक्शबंदी और इसी समूह के अख़बार मिंट के एक रिपोर्टर शामिल हैं. इनके अलावा कई बड़े नाम भी इस सूची का हिस्सा हैं. इंडियन एक्सप्रेस की ऋतिका चोपड़ा (जो शिक्षा और चुनाव आयोग कवर करती हैं), इंडिया टुडे के संदीप उन्नीथन (जो रक्षा और सेना संबंधी रिपोर्टिंग करते हैं), टीवी 18 के मनोज गुप्ता (इन्वेस्टिगेशन और सुरक्षा मामलों के संपादक हैं), द हिंदू की विजेता सिंह (गृह मंत्रालय कवर करती हैं), वरिष्ठ पत्रकार प्रेमशंकर झा का नंबर भी रिकॉर्ड्स में मिला है. इन लोगों के फोन में पेगासस डालने की कोशिश की गई ऐसे सबूत मिले हैं. द वायर के स्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और एमके वेणु के फोन की फॉरेंसिक जांच में पेगासस होने के प्रमाण मिले हैं.

स्वंतत्र पत्रकारों को भी निशाना बनाया गया. स्वाति चतुर्वेदी और रोहिणी सिंह का नाम भी इनमे शामिल है. टू-जी घोटाले का भंडाफोड़ करने वाले द पायनियर के इनवेस्टिगेटिव रिपोर्टर जे. गोपीकृष्णन का नाम भी शामिल है. पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा रिपोर्टर सैकत दत्ता, ईपीडब्ल्यू के पूर्व संपादक परंजॉय गुहा ठाकुरता, टीवी 18 की पूर्व एंकर और द ट्रिब्यून की डिप्लोमैटिक रिपोर्टर स्मिता शर्मा, आउटलुक के पूर्व पत्रकार एसएनएम अब्दी और पूर्व डीएनए रिपोर्टर इफ्तिखार गिलानी का नाम शामिल है.

केवल बड़े शहरों के पत्रकार ही नहीं बल्कि देश के अलग- अलग राज्यों में काम कर रहे पत्रकारों पर निगरानी रखी गई. द वायर की माने तो उत्तर-पूर्व की मनोरंजना गुप्ता, जो फ्रंटियर टीवी की प्रधान संपादक हैं, बिहार के संजय श्याम,पंजाबी दैनिक रोज़ाना पहरेदार के प्रधान संपादक हेरन लुधियाना और जसपाल सिंह हेरन के नाम शामिल हैं.

क्या कहता है एनएसओ

द वायर में प्रकाशित एनएसओ के बयान में इस दावे का खंडन किया है. रिपोर्ट में लिखा गया, "द वायर और पेगासस प्रोजेक्ट के साझेदारों को भेजे गए पत्र में कंपनी ने शुरुआत में कहा कि उसके पास इस बात पर ‘यकीन करने की पर्याप्त वजह है’ कि लीक हुआ डेटा ‘पेगासस का उपयोग करने वाली सरकारों द्वारा निशाना बनाए गए नंबरों की सूची नहीं’ है, बल्कि ‘एक बड़ी लिस्ट का हिस्सा हो सकता है, जिसे एनएसओ के ग्राहकों द्वारा किसी अन्य उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया गया.”

यह पूछे जाने पर कि ये "अन्य उद्देश्य" क्या हो सकते हैं, कंपनी ने रुख बदल दिया और दावा किया कि लीक हुए रिकॉर्ड "सार्वजनिक रूप से सुलभ, एचएलआर लुकअप सेवा जैसे खुले स्रोतों" पर आधारित थे - और इसका "ग्राहकों की सूची पर कोई असर नहीं था."

क्या कहता है भारत का कानून?

भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी एक्ट) उन प्रक्रियाओं और कानूनों को निर्धारित करता है जिनका वैध अवरोधन के लिए पालन किया जाना चाहिए. अलग-अलग देशों में अलग-अलग कानून हैं लेकिन भारत में किसी भी व्यक्ति, निजी या अधिकारी पर निगरानी के लिए स्पाइवेयर से हैकिंग का उपयोग आईटी अधिनियम के तहत अपराध है.

द वायर के अनुसार डेटाबेस में 40 से अधिक पत्रकार, तीन प्रमुख विपक्षी हस्तियां, सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा जज, नरेंद्र मोदी सरकार में दो सेवारत मंत्री, सुरक्षा संगठनों के वर्तमान और पूर्व प्रमुख और अधिकारी और कई उद्योगपति शामिल हैं जिन पर पेगासस द्वारा निगरानी रखी गई. इन सभी नामों का खुलासा अगले चार दिन में हो सकता है.

इस इन्वेस्टीगेशन में भारत सरकार की भूमिका को समझने की आवश्यकता है. क्योंकि एनएसओ सरकार के लिए काम करती है, संभावना है कि भारतीय सरकार ने निगरानी के आदेश दिए हों. यदि ऐसा नहीं है, तो भारत सरकार को एनएसओ के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए.

सरकार ने क्या जवाब दिया?

इस हफ्ते की शुरुआत में पेगासस प्रोजेक्ट पार्टनर्स द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजे गए विस्तृत सवालों के जवाब में, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने कहा, "भारत एक मजबूत लोकतंत्र है जो अपने सभी नागरिकों को निजता का अधिकार सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है. विशिष्ट लोगों पर सरकारी निगरानी के आरोपों का कोई ठोस आधार या इससे जुड़ा कोई आरोप सच नहीं है.

विशेष रूप से इनकार किए बिना कि सरकार द्वारा पेगासस का उपयोग किया जा रहा है, मंत्रालय ने कहा, "अवरोधन, निगरानी और डिक्रिप्शन के प्रत्येक मामले को सक्षम प्राधिकारी द्वारा अनुमोदित किया जाता है. इसलिए ऐसी कोई भी गतिविधि किसी भी कंप्यूटर संसाधन से कानून की उचित प्रक्रिया के साथ ही की जाती है."

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