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ऑनलाइन मीडिया संस्थान को प्रेस और किताब कानून के तहत भेजा नोटिस

अंडमान और निकोबार में प्रशासन द्वारा मीडिया को परेशान करने का एक बेहद दिलचस्प मामल सामने आया है.

यहां के साउथ अंडमान जिले के एडिशनल डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने स्थानीय डिजिटल मीडिया पोर्टल निकोबार टाइम्स को एक शो कॉज नोटिस भेजा है.

नोटिस में कहा गया हैं कि “निकोबार टाइम्स बिना जिला प्रशासन की मंजूरी लिए खबरें प्रकाशित कर रहा है, जो कि द प्रेस और रजिस्ट्रेशन ऑफ बुक एक्ट 1867 के सेक्शन 4 का उल्लंघन है.”

नोटिस में आगे लिखा गया हैं, “नोटिस जारी होने से तीन दिनों के भीतर अपना जवाब दाखिल करें अन्यथा माना जाएगा की आप को इस मामले पर कुछ नहीं कहना है और मेरिट के आधार पर आगे कार्रवाई की जाएगी.”

नोटिस

यहां गौर करने वाली बात यह है कि निकोबार टाइम्स ना कोई अखबार और ना ही वह प्रिटिंग करता है. वह एक डिजिटल मीडिया संस्थान है जो वेबसाइट और अपने एप के जरिए खबरें प्रकाशित करता है. तो जिला प्रशासन ने एक ऑनलाइन संस्थान को एक ऐसे एक्ट के तहत नोटिस भेज दिया जो अखबार और किताब से जुड़ा हुआ है.

इस नोटिस पर निकोबार टाइम्स के संपादक तरुण कार्तिख न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में कहते हैं, “हम एक डिजिटल मीडिया संस्थान जो वेबसाइट और एप के जरिए खबरें प्रकाशित करते हैं. हमारा कोई अखबार नहीं है. फिर भी पीआरपी के एक्ट 1867 के तहत नोटिस भेजना समझ से बाहर है.”

तरुण आगे बताते हैं, “नोटिस में तारीख 8 जुलाई की लिखी हुई है लेकिन मुझे यह 16 जुलाई को पोस्ट के जरिए मिला. मैंने अपना जवाब तैयार कर लिया है जो मैं उन्हें भेज दूंगा.”

न्यूज़लॉन्ड्री के साथ साझा किए गए जवाब में निकोबार टाइम्स ने एक बार फिर से साफ किया है कि, “वह ऑनलाइन मीडिया संस्थान है ना की कोई अखबार. जहां तक प्रेस और रजिस्ट्रेशन ऑफ बुक एक्ट 1867 की बात है तो हमने कभी भी कोई अखबार प्रकाशित नहीं किया है.”

निकोबार टाइम्स का जवाब

प्रशासन को भेजे जवाब में निकोबार टाइम्स ने लिखा हैं, “वह नए आईटी नियमों का पालन करता है. साथ ही वह देश के डिजिटल मीडिया संस्थानों के संगठन ‘डिजीपब न्यूज इंडिया फाउंडेशन’ का सदस्य है. जिसमें स्व नियमन के लिए एक आंतरिम कमेटी बनाई गई है. जिसके सदस्य सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड पूर्व न्यायाधीश मदन बी लोकुर, प्रज्ञा ट्रस्ट के संस्थापक और निदेशक स्वर्ण राजगोपालन, सफाई कर्मचारी आंदोलन के संस्थापक बेजवाड़ा विल्सन और प्रसार भारती के पूर्व सीईओ और संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के पूर्व सचिव जवाहर सरकार शामिल हैं.”

आखिर प्रशासन ने क्यों नोटिस जारी किया होगा? इस पर तरुण कहते हैं, “कारण बताना तो बहुत मुश्किल है लेकिन हम उन लोगों को आवाज बनते हैं जिनकी बातें कहीं नहीं होती हैं. यहां के ज्यादातर अखबार, प्रशासन द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति को अपने यहां स्थान देते हैं, लेकिन हम दूरस्थ इलाकों में रहने वाले लोगों की परेशानियों को प्रमुखता से उठाते हैं.”

वह कहते हैं, “अंडमान और निकोबार प्रशासन के खिलाफ बोलने पर पुलिस कार्रवाई और अन्य तरीकों से आप की आवाज को काफी समय से दबाया जाता रहा है. हाल ही में इंटरनेट की गति तेज होने के कारण अब लोग सोशल मीडिया पर खबरें ज्यादा पढ़ रहे हैं और प्रशासन से सवाल पूछती हमारी खबरें लोगों तक पहुंच रही हैं इसलिए हो सकता हैं कि यह कार्रवाई हमारी आवाज दबाने की कोशिश है.”

निकोबार टाइम्स ने 16 और 17 जून को ऑनलाइन ई पेपर प्रकाशित किया था, क्या इसको लेकर नोटिस जारी किया होगा? इस सवाल पर वह कहते हैं, “हमने वेबसाइट पर प्रकाशित हुई खबरों को ही सिर्फ एक पीडीएफ के रुप में प्रकाशित किया था, वो भी सिर्फ दो दिन. कोई अखबार प्रकाशित नहीं किया. दूरस्थ इलाकों में जहां इंटरनेट सही से नहीं चलता उन इलाकों के लिए पीडीएफ के रूप में खबरें पहुंचाने के उद्देश्य से किया था. लेकिन स्थानीय पत्रकार संघ के अध्यक्ष ने फोन कर ई पेपर पर आपत्ति जताई जिसके बाद हमने ई पेपर बंद कर दिया.”

निकोबार टाइम्स को पीआरबी एक्ट के तहत भेजे गए नोटिस पर मीडिया मामलों के वकील और भरुचा एंड पार्टनर से जुड़े कौशिक मोइत्रा कहते हैं, “पीआरबी अधिनियम 1867 प्रकाशित और प्रसारित होने वाले पत्र और पत्रिकाओं के लिए है यह डिजिटल समाचार प्लेटफॉर्म को नियंत्रित नहीं करता है. इसलिए इस नोटिस का कोई आधार नहीं है.”

कौशिक ई-पेपर को लेकर कहते हैं, “हमारे देश में ई पेपर की जो समझ है वह यह है कि अगर कोई अखबार प्रकाशित होता है और वह उसी को ही ऑनलाइन छापता है तो उसे ई पेपर कहा जाता है. लेकिन निकोबार टाइम्स तो एक डिजिटल मीडिया संस्थान है. जिसका कोई अखबार नहीं छपता. इसलिए इसका पीआरबी एक्ट से कोई लेना देना नहीं है.”

“इस तरह के नोटिस का कोई कानूनी आधार नहीं है. ऐसा प्रतित हो रहा हैं जैसे कोई बदले की कार्रवाई के तहत यह नोटिस भेजा गया है.”

नोटिस पर हमने साउथ अंडमान जिले के एडीएम हरि कालीकट से बातचीत की कोशिश की थी लेकिन कोई जवाब नहीं आया. हमने उन्हें सवाल मेल किया है, जवाब आने पर खबर में अपडेट कर दिया जाएगा.

क्या हैं पीआरबी एक्ट 1867

करीब 150 साल पुराना प्रेस एंड रजिस्ट्रेनश ऑफ बुक्स एक्ट, (पीआरबी) के तहत देश में प्रिंटिंग प्रेस और देश में प्रकाशित होने वाले अखबारों का नियमन होता है. जरूरत के अनुसार इसमें समय-समय पर संशोधन किए गए. लेकिन अंग्रेजों के जमाने से इस कानून में व्यापक बदलाव के लिए 16 दिंसबर 2011 में एक बिल पेश किया था.

इस बिल में सबसे महत्वपूर्ण था कि पीआरबी का नाम बदल कर द प्रेस एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ बुक्स एंड पब्लिकेशन बिल 2011 किया जाना था. इस बिल को 2012 में स्टैंडिग कमेटी को भेजा गया. फिर साल 2013 में एक बार फिर से इस बिल को पेश किया गया जिसमें थोड़ा बहुत संशोधन किया गया. लेकिन यह बिल कभी कानून नहीं बन पाया.

पीआरबी एक्ट 1867, का उद्देश्य ब्रिटिश सरकार द्वारा ‘1857 के विद्रोह’ में प्रेस की भूमिका पर अंकुश लगाने का था.

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