Report
किसान नेताओं में चुनाव लड़ने को लेकर दो मत, आंदोलन में पड़ सकती है दरार
"इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा की हार होने पर किसानों की मांगें पूरी की जाएंगी. सिस्टम को बदलने का एकमात्र तरीका यह है कि किसान यूनिय आगामी पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ें, सरकार बनाए और एक वैकल्पिक मॉडल पेश करे.”
यह कहना है भारतीय किसान संघ (हरियाणा) के नेता गुरनाम सिंह चढूनी का.
कुछ दिन पहले किसान आंदोलन के नामी नेता गुरनाम सिंह चढूनी के इस बयान ने आगामी चुनावों में संयुक्त मोर्चे की भूमिका पर सवाल खड़े कर दिए. चढूनी 'मिशन पंजाब' की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, "हम व्यवस्था को बदलना चाहते हैं, लेकिन ऐसा करने के लिए क्या करना होगा इस पर पर्याप्त विचार नहीं करते. भाजपा और कांग्रेस व्यवस्था को नहीं बदल पाए. अगर हमें व्यवस्था बदलनी है, तो हमें एक योजना बनानी होगी और वह योजना 'मिशन पंजाब' होनी चाहिए."
न्यूज़लॉन्ड्री ने गुरनाम सिंह चढूनी से उनके 'मिशन पंजाब' पर बात की. चढूनी कहते हैं, "ये सभी पार्टियां 'वोट लूटेरे गिरोह' हैं. जब तक आप इन गिरोहों को वोट देते रहेंगे, ये लूटते रहेंगे. यह ज़रूरी है कि आम जनता के बीच से वो उम्मीदवार जो आपके लिए संघर्ष करता है उसे आगे लाएं. उनके सत्ता में आने से बदलाव आएगा, न की पूंजीपतियों के सरकार में रहने से. यह मेरा व्यक्तिगत विचार है जिस पर पंजाब के बुद्धिजीवी और जनता सोचे और अपनी राय रखे.”
चढूनी आगे कहते हैं, "भ्रष्टाचार फैला हुआ है. पूरा देश कॉर्पोरेट के हाथों में देने की तैयारी है इसलिए सरकार इन तीन कानूनों को लेकर आई है. अगर हम इस मॉडल को तोड़कर नया मॉडल खड़ा करके दिखाएं तब लोग मानेंगे."
हालांकि यह बयान गुरनाम सिंह चढूनी पर भारी पड़ गया और उन्हें इसके चलते एक सप्ताह के लिए निलंबित होना पड़ा है. भारतीय किसान मंच के अध्यक्ष बूटा सिंह शादीपुर ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “संयुक्त मोर्चे ने बुधवार को मीटिंग में गुरनाम सिंह चढूनी को एक हफ्ते के लिए निलंबित कर दिया है. अभी वो समय नहीं है कि चुनाव की बात की जाए. आंदोलन की जीत सबसे अहम है, इसलिए संयुक्त मोर्चे ने चढूनी को एक हफ्ते के लिए निलंबित करने का फैसला लिया है."
क्या चुनाव लड़ेंगे किसान?
अगले साल 2022 में पंजाब में चुनाव है. कृषि कानून रद्द करने की मांग को लेकर अलग- अलग बॉर्डरों पर चल रहे किसानों के धरने को सात महीने हो गए हैं. इस बीच किसानों व सरकार के बीच 11 दौर की बातचीत हो चुकी है. गृहमंत्री अमित शाह भी किसानों से वार्ता कर चुके हैं. इसके बावजूद कोई हल नहीं निकल सका और अब पांच महीने से बातचीत भी बंद है.
बता दें कि बीते दिनों किसान बंगाल चुनाव में भाजपा के खिलाफ प्रचार करते नज़र आये. ऐसे में हर कोई किसानों की राजनीतिक योजना जानने को उत्सुक है. न्यूज़लॉन्ड्री ने संयुक्त मोर्चे में शामिल कई जत्थेबंदियों से उनकी आगे की रणनीति को समझने की कोशिश की.
आंदोलन में कई अलग- अलग विचारधारों के संगठन (जथेबंदियां) जुड़े हैं. इनमें बड़े से लेकर छोटे सभी तरह के संगठन शामिल हैं. सभी देश के विभिन्न राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं. ऐसे में यह लाज़मी है कि चुनाव को लेकर सबकी अपनी सोच है.
बीकेयू एकता (डकौंदा) के महासचिव जगमोहन सिंह कहते हैं, "हमने वोट डालने से किसी को भी नहीं रोका है. जो भी किसान आंदोलन का भाग बना है वो अपने मनचाहे उम्मीदवार को वोट दे सकता है. मगर जिसको भी चुनाव लड़ना है उसे जत्थेबंदी से इस्तीफ़ा देना पड़ेगा. 40 से ज़्यादा जत्थेबंदियां इस आंदोलन में भाग ले रही हैं. इनमें ऐसे कई नेता हैं जो पहले चुनाव लड़ चुके हैं या किसी पार्टी विशेष के समर्थक रहे हैं. इनमें से कई लोग होंगे जो चुनाव लड़ना चाहेंगे. 2022 चुनाव को लेकर संयुक्त मोर्चे में आपसी मतभेद हैं. लेकिन यह तय है कि संयुक्त मोर्चा चुनाव लड़ने का कभी समर्थन नहीं करेगा."
आंदोलन में पड़ सकती है दरार
डॉ. दर्शनपाल आंदोलन के दिग्गज नेता हैं. वो मानते हैं कि इस समय आंदोलन की कामयाबी ज़रूरी है. हालांकि उत्तर प्रदेश और पंजाब चुनाव के लिए किसान अलग योजना तैयार करेंगे. दर्शनपाल कहते हैं, "किसानों के राजनीति में आने की बात तब की जा रही है जब किसान आंदोलन में हैं. किसानों के राजनीति में आने से पहले इन तीन मांगों को पूरा करना पड़ेगा. कांग्रेस जैसी विपक्षी पार्टियां चाहती तो इन कानूनों को रोक सकती थीं. हमने आंदोलन किया क्योंकि विपक्षी पार्टियां कानून को पास होने से रोक नहीं सकीं. किसानों को फिलहाल आंदोलन की सफलता पर ध्यान देना चाहिए. अगर कोई भी आंदोलन से हटकर राजनीति, चुनाव और समर्थन की बात सोचेगा तो आंदोलन में दरार आ जाएगी.”
“चढूनी जी का विचार ठीक नहीं है. उनका व्यक्तिगत और बेसोचा- समझा विचार है. अभी संघर्ष को मज़बूत बनाने की ज़रूरत है. आंदोलन को एकजुट रखने के लिए इस तरह के विचारों को दूर रखना चाहिए. 2022 से पहले आंदोलन की जीत हुई तो कोई चुनाव लड़े, जीते या हारे यह किसानों की मर्ज़ी पर निर्भर करेगा. आंदोलन के बाद किसान मिलकर चुनाव लड़ेंगे या नहीं यह उनकी मर्ज़ी है." दर्शन पाल आगे कहते हैं.
किसानों के लिए चुनाव में भाग लेना कोई बड़ी बात नहीं
इस मामले में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत से हमने बात की और चुनाव को लेकर उनकी राय जानने की कोशिश की. टिकैत कहते हैं, "किसान अगर चुनाव लड़ते हैं तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है. हर किसी को चुनाव में खड़े होने की आज़ादी है. राजनीति में किसानों का भी हक़ है. फिलहाल संयुक्त मोर्चा जो निर्णय लेगा सभी जत्थेबंदियों को वो स्वीकार है. यदि संयुक्त मोर्चा चुनाव लड़ने के लिए कहता है तो चुनाव भी लड़ लेंगे. लेकिन इस समय केवल आंदोलन की जीत ज़्यादा ज़रूरी है. आंदोलन के बाद भी संयुक्त मोर्चा बना रहेगा क्योंकि कई छोटे संगठन भी इस से जुड़ गए हैं. पांच सितम्बर को मुज़्ज़फरनगर में महापंचायत का आयोजन किया जाएगा जिसमें आंदोलन के आगे की नीति तय करने के साथ ही चुनाव में किसानों की भूमिका पर भी विमर्श होगा, कि हम किसे समर्थन देंगे या खुद चुनाव लड़ेंगे. किसान कब तक सड़क पर बैठा रह सकता है. उसके बाद यहीं तरीका है कि किसान राजनीति में प्रवेश करे."
सरकार के रवैये पर निर्भर है चुनाव का निर्णय
बीकेयू दोआबा के महासचिव सतनाम सिंह साहनी का कहना है कि समर्थकों की तरफ से चुनाव लड़ने का दबाव हमेशा बना रहता है. वह कहते हैं, "आंदोलन का हल निकलने के बाद चुनाव की संभावना पर विचार किया जा सकता है. संयुक्त मोर्चा में भाग ले रहे सभी संगठनों की अपनी- अपनी विचारधारा है. लेकिन सभी तीनों कानूनों को वापस कराने के लिए एक हुए हैं. सब सरकार पर निर्भर करता है. किसानों का एक होकर रहना भी ज़रूरी है क्योंकि हर सरकार कॉर्पोरेट के इशारों पर चलती है. पंजाब के लोग और जनता चाहती है कि किसान चुनाव लड़ें. आंदोलन कर रहे किसान नेताओं पर चुनाव लड़ने का दबाव है. लेकिन फिलहाल जत्थेबंदियों का फैसला है कि चुनाव की बात न की जाए. अभी चुनाव के लिए सोचने का मतलब है आंदोलन की एकता को तोडना. किसान चुनाव लड़ेंगे या नहीं यह आंदोलन के नतीजे पर निर्भर करेगा. संभावनाओं के द्वार खुले हैं. अगर सरकार नहीं मानती तो हो सकता है चुनाव भी लड़ें."
जम्हूरी किसान सभा पंजाब के महासचिव कुलवंत सिंह संधू कहते हैं, “आंदोलन पहले नंबर पर है फिर राजनीति. हमारी बहुत सी जत्थेबंदियां राजनीती में जाती हैं. चुनाव लड़ती हैं. इसमें से कई चुनाव का बहिष्कार भी करने वाले हैं. कई राजनीतिक दलों से जुड़े हैं. इस आंदोलन में हर किस्म के लोग शामिल हैं. अगर आंदोलन सफल हो जाता है तो चुनाव लड़ने का सोच सकते हैं. फिलहाल आंदोलन हमारी प्राथमिकता है. अगर हम आंदोलन जीत जाए, उसके बाद चुनाव लड़ने के लिए संयुक्त मोर्चे से मंज़ूरी लेने की ज़रूरत नहीं है."
मानसून सेशन पर है किसानों का फोकस
ऑल इंडिया किसान सभा (पंजाब) के महासचिव मेजर सिंह पूनावाला कहते हैं, "चढूनी जी ने कई बार संयुक्त मोर्चे के आगे चुनाव लड़ने का प्रस्ताव रखा. हम यहां तीन कानूनों को रद्द कराने और एमएसपी पर कानून बनाने के लिए बैठे हैं. सरकार ने हम पर कई बार आरोप लगाया है कि हम किसान नहीं राजनीतिक लोग हैं. हमारे लिए कानून रद्द कराना ज़रूरी है न की चुनाव लड़ने जाना. सरकार कानून रद्द कर दे उसके बाद चुनाव की संभावनाओं पर विचार किया जाएगा. किसी एक के कहने से कुछ नहीं होता. संयुक्त मोर्चा क्या फैसला करता है सब इसपर निर्भर करेगा. मोर्चे में सब अपने अलग- अलग विचार रखते हैं फिर फैसला लिया जाता है. फिलहाल हमारा फोकस मानसून सेशन पर है जिसके लिए हम प्रोग्राम तैयार कर रहे हैं. संसद के बाहर विरोध प्रदर्शन करेंगे. रोज़ 200 लोग जाएंगे और संसद के बाहर बैठेंगे. संयुक्त मोर्चे की अगली मीटिंग में रूपरेखा बनाई जाएगी."
भाजपा के खिलाफ प्रचार रहेगा जारी
इस मुद्दे पर बीकेयू (उग्राहां) के अध्यक्ष जोगिन्दर सिंह उग्राहां ने भी न्यूज़लॉन्ड्री से बात की. वह कहते हैं, "संयुक्त मोर्चे में ऐसे कई जत्थेबंदियां शामिल हैं जिनके अपने विभिन्न विचार हैं. चढूनी जी का अपना विचार हो सकता है लेकिन संयुक्त मोर्चे का ऐसा कोई प्लान नहीं है. चलते आंदोलन में यदि कोई मोर्चा छोड़कर जाने की बात करता है तो उससे बात की जाएगी कि वो ऐसा न करे. तीनों कानून वापस हो जाएं उसके बाद जो मर्ज़ी करें. इस बीच कोई अगर चुनाव की बात करता है इसका मतलब आंदोलन को 'फेल ' करने की बात है. 2022 आने में अभी समय है. अभी उसके लिए सोचना सही नहीं है. हम जगह- जगह जाकर लोगों को बताएंगे कि किसान 10 महीने से संघर्ष कर रहे हैं लेकिन भाजपा उनकी बात नहीं सुन रही. उनका जितना भी राजनीतिक नुक़सान हो सकता है वो हम कोशिश करेंगे. भाजपा के खिलाफ प्रचार जारी रहेगा."
यूपी और पंजाब चुनाव के लिए अलग नीति बनाएंगे किसान
डॉ. दर्शनपाल न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, “किसान भाजपा के खिलाफ प्रचार जारी रखेंगे. हालांकि यूपी, उत्तराखंड और पंजाब चुनावों के लिए तरीका बदला जाएगा. बंगाल चुनाव में हमारी भूमिका प्रत्यक्ष नहीं थी. लेकिन इस बार यूपी और पंजाब के चुनाव में किसान सीधे तौर पर हिस्सा ले रहे हैं. यहां हम स्टेकहोल्डर (हितभागी) हैं. इस बार हमें अलग तरह से सोचना होगा. मानसून सत्र के बाद ही उस पर विचार करेंगे."
वहीं मेजर सिंह पूनावाला ने न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में कहा, "हमने बंगाल में इतना ही बोला कि आज किसानों की हालत के लिए भाजपा ज़िम्मेदार है. बंगाल की जनता से अपील की कि भाजपा को वोट न दे. पंजाब, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के लिए भी रणनीति बनाएंगे. हम मानते हैं कि कांग्रेस और अकाली दल ने भी किसानों के साथ इंसाफ नहीं किया. अकाली दल ने संसद में कानून का साथ दिया था. जब किसानों ने सड़क पर आकर राजनीतिक तौर पर उसका विरोध किया तब अकाली दल ने अपनी दिशा मोड़ ली. हम किसी पार्टी से खुश या नखुश नहीं हैं. तीन क़ानून वापस हो जाएं और एमएसपी पर कानून बन जाए. उसके बाद भी किसानों की आत्महत्या और ज़मीन से जुडी कई और समस्याएं हैं. जिनके लिए संघर्ष जारी रहेगा.”
Also Read: कृषि: उत्पादन बढ़ा, किसान घटे
Also Read
-
‘They find our faces disturbing’: Acid attack survivor’s 16-year quest for justice and a home
-
From J&K statehood to BHU polls: 699 Parliamentary assurances the government never delivered
-
Let Me Explain: How the Sangh mobilised Thiruparankundram unrest
-
TV Newsance 325 | Indigo delays, primetime 'dissent' and Vande Mataram marathon
-
The 2019 rule change that accelerated Indian aviation’s growth journey, helped fuel IndiGo’s supremacy