Media
क्या मोदी सरकार ने मीडिया विज्ञापनों पर संसद को किया गुमराह?
इस साल फरवरी में विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय या डीएवीपी ने नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा मीडिया में विज्ञापन के खर्च के आंकड़े जारी किए.
इसमें दर्शाया गया है कि अंग्रेजी भाषा के दो सबसे ज्यादा देखे जाने वाले चैनल रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाउ को न्यूज़ एक्स, इंडिया टुडे और बीटीवीआई के मुकाबले कम विज्ञापन मिले हैं. इसी तरह हिंदी न्यूज़ सेगमेंट में न्यूज़ नेशन और इंडिया न्यूज़ को जी न्यूज़ और इंडिया टीवी के मुकाबले सरकार के विज्ञापन कोष से अधिक विज्ञापन मिले हैं.
हालांकि ये आंकड़े उन आकंड़ों से मेल नहीं खाते जो मोदी सरकार द्वारा आरटीआई के तहत उपलब्ध कराए गए हैं और न ही इन न्यूज़ चैनल्स के अपने आकंड़ों से मेल खाते हैं.
डीएवीपी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की मीडिया यूनिट है जिसका काम, इसके अपने शब्दों में, "केंद्र की समस्त सरकारी संस्थाओं की पेड पब्लिसिटी की जरूरतों का निपटारा करना है."
इस साल फरवरी में यह आंकड़ा तब जारी किया गया जब सांसद नुसरत जहां ने सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से अखबारों, टीवी चैनलों, मैगज़ीन्स और डिजिटल मीडिया को पिछले तीन सालों में "मिलने वाले सरकारी विज्ञापनों की कुल तादाद" के बारे में पूछा था.
इस पर जावड़ेकर ने उत्तर दिया, "अखबारों, मैगज़ीन्स, टीवी और डिजिटल मीडिया को पिछले तीन सालों में जारी किये गए विज्ञापनों की कुल तादाद ब्यूरो ऑफ आउटरीच एंड कम्युनिकेशन की वेबसाइट, यानी www.davp.nic.in पर उपलब्ध हैं."
इस वेबसाइट पर नजर आने वाले आंकड़ें बहुत दिलचस्प हैं. इसमें दर्शाया गया है कि अंग्रेजी चैनलों में न्यूज़ एक्स ने साल 2017 से 2020 के बीच सरकार से सबसे ज्यादा 2.7 करोड़ रुपये की विज्ञापन राशि प्राप्त की है. इंडिया टुडे और सीएनएन न्यूज़ 18 को क्रमशः 1.59 करोड़ रुपये और 1.55 करोड़ रुपये की विज्ञापन राशि मिली है. जिस बीटीवीआई ने सितंबर, 2019 में प्रसारण रोक दिया था उसे 1.16 करोड़ रुपये की विज्ञापन राशि मिली थी.
मई 2017 में लॉन्च हुए रिपब्लिक टीवी को 74.3 लाख रुपये मिले थे. वहीं 27 लाख रुपये की विज्ञापन राशि पाने वाले एनडीटीवी 24×7 से भी कहीं कम केवल 14.9 लाख रुपये की मामूली सी रकम टाइम्स नाउ को मिली है.
अंग्रेजी टीवी न्यूज चैनलों पर केंद्र सरकार का विज्ञापन खर्च
आजतक को किसी भी हिंदी न्यूज़ चैनल से ज्यादा 12.6 करोड़ की विज्ञापन राशि मिली है. न्यूज़ नेशन को 11.7 करोड़ रुपये और न्यूज़ एक्स के सहयोगी चैनल इंडिया न्यूज़ को 11 करोड़ रुपये मिले हैं. एबीपी न्यूज़ को 9.9 करोड़ रुपये, न्यूज़18 इंडिया को 8.6 करोड़ रुपये, जी न्यूज को 7.1 करोड़ रुपये, इंडिया टीवी को 7.06 करोड़ रुपये की विज्ञापन राशि प्राप्त हुई है. वहीं एनडीटीवी को किसी भी हिंदी चैनल से कम मात्र 1.55 लाख रुपये की विज्ञापन राशि मिली है.
2019 की शुरुआत में लॉन्च हुए रिपब्लिक भारत ने साल 2019-20 में 71.06 लाख रुपये की कीमत के विज्ञापन प्राप्त किए हैं.
अपने नफरती शोज़ के लिए जाने जाना वाला सुदर्शन न्यूज़ पिछले तीन सालों में सरकार के विज्ञापनों से 2.01 करोड़ रुपये कमा चुका है.
हिंदी टीवी न्यूज चैनलों पर केंद्र सरकार का विज्ञापन खर्च
संसद में पेश किए गए आंकड़े बनाम आरटीआई के जवाब में दिये गए आंकड़े
संसद में पेश किये गए आंकड़े पिछले तीन वित्त वर्षों 2017-18, 2018-19, 2019-20 में विज्ञापन पर कुल किये गए खर्च का योग है.
पिछले 15 महीनों में यह दूसरी बार है जब सरकार ने विज्ञापन पर हुए खर्च के आंकड़े जारी किये हैं. दिसंबर 2019 में आईआईटी दिल्ली में एसोसिएट प्रोफेसर रीतिका खेरा और स्वतंत्र शोधार्थी अनमोल सोमांची ने भी सरकार द्वारा न्यूज़ चैनलों पर विज्ञापनों के खर्च के आंकड़े सूचना के अधिकार अधिनियम से प्राप्त किये हैं. उन आंकड़ों को डीएवीपी ने भी संकलित किया है.
हालांकि संसद में पेश किये गए आंकड़े आरटीआई के जवाब में दिए गये आंकड़ों से भिन्न हैं. अगर हम यह मान भी लें कि साल 2018-19 के संदर्भ में आरटीआई के जवाब में दिये गए आंकड़ें अभी अस्थायी हैं तो ऐसे में साल 2017-18 के संदर्भ में दो अलग-अलग जगहों संसद और आरटीआई में उपलब्ध कराये गए आंकड़ों की तुलना करके देख सकते हैं.
उदाहरण के लिए संसद में जारी आंकड़ों के अनुसार साल 2017-18 में आजतक ने विज्ञापन राशि के रूप में 3.7 करोड़ रुपये प्राप्त किये जबकि आरटीआई में पेश किये गए आंकड़ों के अनुसार इस चैनल ने 2.4 करोड़ रुपये प्राप्त किये हैं.
संसद के आंकड़ों के अनुसार न्यूज़ नेशन ने विज्ञापन राशि के तौर पर 3.4 करोड़ रुपये प्राप्त किये जबकि आरटीआई के आंकड़ों के अनुसार इसे मात्र 2.09 करोड़ रुपये ही मिले हैं.
इसी तरह संसद के आंकड़ों के अनुसार इंडिया टीवी ने 1.9 करोड़ रुपये जुटाये वहीं आरटीआई के अनुसार इसने केवल 74.8 लाख रुपये ही प्राप्त किये हैं.
2017-18 में विज्ञापनों पर खर्च: संसद बनाम आरटीआई
कुछ चैनलों के मामले में यह भी देखने को मिला है कि आरटीआई के अनुसार प्राप्त की गयी कुल विज्ञापन राशि संसदीय आंकड़े में पेश किये गए योग से अधिक है. डीएवीपी द्वारा संसद को दिये गए आंकड़ों के अनुसार हिंदी चैनल एनडीटीवी इंडिया को विज्ञापनों से साल 2017-18 में 1.5 लाख रुपये प्राप्त हुए. लेकिन आरटीआई के अनुसार यह आंकड़ा 1.16 करोड़ रुपये की ऊंचाई तक पहुंच जाता है. इसी तरह अंग्रेजी न्यूज़ चैनल सीएनएन न्यूज़18 को संसदीय आंकड़ों के अनुसार 58 लाख रुपये तो वहीं आरटीआई के अनुसार 85 लाख रुपये बतौर विज्ञापन राशि मिले हैं.
शोधार्थी सोमांची ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि आंकड़ों के दोनों सेट में सीधे तौर पर ओवर रिपोर्टिंग या अंडर रिपोर्टिंग की प्रवृत्ति देखने को नहीं मिलती. उन्होंने गौर किया है, "वाकई यह बहुत आश्चर्यजनक है कि विज्ञापनों पर खर्च के संदर्भ में हमारे आरटीआई के जवाब में दिये गए आंकड़े संसद में पेश किये गए आंकड़ों से भिन्न हैं. आरटीआई के जवाब में कुछ चैनलों पर विज्ञापन का खर्च अधिक बताया गया है जबकि कुछ चैनलों पर कम."
वह इस बात की संभावनाओं से इनकार करते हैं कि मंत्रालय के बजट में संशोधन के कारण ही आंकड़ों पर प्रभाव पड़ा होगा और ये त्रुटिया. सामने आयी होंगी. "हालांकि इस बात के कुछ संकेत हैं कि ये आंकड़े मैन्यूअली संकलित किये गए हैं (उदाहरण के लिए आरटीआई के जवाब में 2011-12 के आंकड़ों के लिए बनायी गयी सारणी का शीर्षक गलती से 2011-13 हो गया था) और अगर ऐसा है तो फिर संकलन के चरण पर आकर भी त्रुटियां होने की संभावनाएं हैं." उन्होंने आगे जोड़ा. "किसी भी मामले में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के लिए यही बेहतर रहेगा कि वो स्पष्ट करे कि आखिर उसके अपने ही आंकड़ों में क्यों इतना अंतर है."
टिप्पणी के लिए न्यूज़लॉन्ड्री संबंधित मंत्रालय और डीएवीपी के पास भी गया था. अगर हमें कोई प्रतिक्रिया मिलती है तो इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जायेगा.
टाइम्स नाउ से ज्यादा विज्ञापन एनडीटीवी को
संसदीय आंकड़ों के अनुसार साल 2018-19 और 2019-20 में सरकार ने हिंदी न्यूज़ चैनल एनडीटीवी को कोई विज्ञापन नहीं दिये. इस चैनल पर सरकार ने अपना विज्ञापन खर्च शून्य दिखाया. लेकिन इसी न्यूज़ नेटवर्क के एक सूत्र ने इस बात की पुष्टि की कि पिछले दो सालों में चैनल द्वारा लाखों रुपये के विज्ञापन मोदी सरकार से प्राप्त किये गए हैं. इसी तरह रिपब्लिक नेटवर्क की विज्ञापन से संबंधित आय के बारे जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने पुष्टि की है कि सरकारी विज्ञापनों पर चैनल के आंकड़े और संसद में पेश किये गए आंकड़ों आपस में मेल नहीं खाते.
संसदीय आंकड़ों के अनुसार ब्रॉडकास्ट रिसर्च ऑडियंस काउंसिल के मुताबिक सर्वाधिक व्यूवरशिप वाले चैनल रिपब्लिक टीवी को इंडिया टीवी या सीएनएन न्यूज़18 जितने विज्ञापन नहीं मिलते. आमतौर पर व्यूवरशिप में दूसरे स्थान पर रहने वाले टाइम्स नाउ को एनडीटीवी 24×7 से भी कम विज्ञापन राशि मिलती है.
टीवी न्यूज इंडस्ट्री के कार्यकारी इस दिलचस्प प्रक्रिया का एक स्पष्टीकरण देते हैं. अपना नाम उजागर न करने की शर्त पर एक चैनल के कार्यकारी ने कहा, "ऐसा संभव है कि रिपब्लिक और टाइम्स नाउ को सरकार द्वारा उपलब्ध कराये जा रहे दामों के मुकाबले ओपन मार्केट में एड स्लॉट्स के बेहतर दाम मिलते हों." "सरकार एड स्लॉट्स के लिए एक तयशुदा दाम रखती है. लेकिन निजी क्षेत्र चार से छः गुना का अधिक भुगतान करने के लिए भी तैयार रहता है. तो ऐसे में यह सब इन चैनलों को सरकारी विज्ञापनों से दूर रखता है."
एक अन्य कार्यकारी ने दावा किया कि राज्य सरकारें न्यूज़ चैनलों पर केंद्र सरकार के मुकाबले ज्यादा प्रचार करती हैं. "डीएवीपी राज्यों द्वारा विज्ञापन पर किये गए खर्च को शामिल नहीं करती," उन्होंने गौर किया.
"हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश, दिल्ली और पंजाब मीडिया विज्ञापनों पर अच्छा-खासा खर्च कर रहे हैं."
Also Read
-
How Muslims struggle to buy property in Gujarat
-
A flurry of new voters? The curious case of Kamthi, where the Maha BJP chief won
-
I&B proposes to amend TV rating rules, invite more players besides BARC
-
Scapegoat vs systemic change: Why governments can’t just blame a top cop after a crisis
-
Delhi’s war on old cars: Great for headlines, not so much for anything else