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अमर उजाला के स्थापना दिवस पर बीजेपी विधायकों और सांसदों का शुभकामनाओं वाला विज्ञापन
24 जून को हिंदी अख़बार अमर उजाला के अयोध्या संस्करण में रुदौली से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के विधायक रामचंद्र यादव का पहले पेज पर विज्ञापन छपा. पूरे पेज पर छपे इस विज्ञापन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, बीजेपी के राष्ट्रीय और प्रदेश अध्यक्ष, प्रदेश के दोनों उपमुख्यमंत्रियों की तस्वीरों के नीचे लिखा है, ‘‘अमर उजाला के 13 वें स्थापना दिवस पर समस्त पाठकों और क्षेत्रवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं.’’
अमर उजाला के स्थापना दिवस पर बीजेपी विधायक ने शुभकामनाएं देने के बाद अपने क्षेत्र रुदौली में किए गए कामों को भी गिनवाया है.
इसके अगले दिन यानी 25 जून को पहले पेज पर अयोध्या के विधायक वेद प्रकाश गुप्ता का भी विज्ञापन छपा. पूरे पेज के इस विज्ञापन में अमर उजाला के 13 वें स्थापना दिवस पर समस्त पाठकों और क्षेत्रवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं, देते हुए विधायक ने अयोध्या में योगी सरकार द्वारा कराए काम गिनाए हैं. इस बार तस्वीरों में पीएम और सीएम के साथ गृहमंत्री अमित शाह और सुनील बंसल जुड़ गए. बंसल बीजेपी के संगठन महामंत्री हैं.
दरअसल यह विज्ञापन अमर उजाला के लखनऊ संस्करण के 13 वर्ष पूरे होने पर छपे थे. सत्ता पक्ष के नेताओं द्वारा एक अख़बार के स्थापना दिवस पर इस तरह विज्ञापन देना कई सवाल खड़े करता है.
फैज़ाबाद में अमर उजाला का प्रसार 15 हज़ार के करीब है. यहां विज्ञापन विभाग के एक कर्मचारी से हमने राजनीतिक विज्ञापन की कीमतों को लेकर सवाल किया तो वह नाम नहीं बताने की शर्त पर कहते हैं, ‘‘हाल में बीते पंचायत चुनाव में पहले पेज के विज्ञापन की कीमत 80 हज़ार रुपए, आधे पन्ने का विज्ञापन 45 हज़ार और क्वार्टर पेज के विज्ञापन का 35 हज़ार लगता है.’’ यही कीमत लखनऊ के आसपास के जिलों में भी है.
अयोध्या संस्करण से गायब रामजन्मभूमि जमीन खरीद का मामला
अमर उजाला, हर जिले में माय सिटी नाम से परिशिष्ट निकालता है. जिसमें उस जिले की खबरें होती है.
13 जून को आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह और समाजवादी पार्टी के पवन पांडेय ने रामजन्मभूमि ट्रस्ट द्वारा जमीन खरीद के मामले में धांधली का आरोप लगाया. इसी दिन मंदिर निर्माण समिति के प्रमुख नृपेंद्र मिश्रा भी अयोध्या में मौजूद थे. उन्होंने ट्रस्ट के लोगों के साथ बैठक की. जमीन खरीद के आरोप को अख़बार ने अपने मुख्य संस्करण के पहले पेज पर जगह दी थी. वहीं माय सिटी के पहले पन्ने पर ट्रस्ट की मीटिंग को पहली खबर के रूप प्रकाशित किया. उसके नीचे पवन पांडेय के आरोपों को जगह दी.
उसके अगले दिन 14 जून को इस आरोप से जुड़ी खबरें माय सिटी से गायब हो गईं. 15 जून को माय सिटी के पहले पेज पर ‘थ्री-लेन रोड से श्रद्धालु पहुंचेगे राममंदिर’ शीर्षक से खबर छपी. यह खबर भी नृपेंद्र मिश्रा की बैठक से ही निकली थी.
हालांकि अख़बार के मुख्य संस्करण के पहले पेज पर ‘अयोध्या में जमीन सौदे को लेकर ट्रस्ट पर सियासी हमले तेज’ शीर्षक से खबर छापी. दूसरे पेज पर धर्मेंद्र सिंह की बाइलाइन से लिखी एक खबर छपी जो ट्रस्ट को बचाव करती नजर आती है. इस खबर का शीर्षक ‘मंदिर ट्रस्ट ने 18.5 में खरीदी, आज जमीन की कीमत इससे दोगुने से अधिक.’ यह खबर ट्रस्ट के महासचिव चपत राय के हवाले से छपी.
इस खबर में रिपोर्टर धर्मेंद्र सिंह ने गलत जानकारी साझा की. खबर में वे ज़मीन के पूर्व में हुए अनुबंध का जिक्र करते हुए लिखते हैं, ‘‘2017 में इस जमीन का अनुबंध बसपा नेता जितेंद्र कुमार सिंह बब्लू और उनके पिता इक्छाराम के पक्ष में 2.16 करोड़ रुपए में कराया. लेकिन ये तय समय में जमीन नहीं ले पाए तो पैसे वापस कर दिए गए. इसी जमीन का एग्रीमेंट सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी ने अपने पक्ष में कराया. बाद में इन्हीं लोगों ने जमीन को ट्रस्ट को देने के लिए एग्रीमेंट किया.
अमर उजाला की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में जो एग्रीमेंट हुआ था वो पाठक दंपति का सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी के बीच हुआ था. यह दावा गलत है. न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद दस्तावेज के मुताबिक रवि मोहन तिवारी एग्रीमेंट में पक्षकार नहीं, गवाह थे.
अमर उजाला अपनी खबर में यह तथ्य भी छुपा ले गया कि 2019 का एग्रीमेंट 18 मार्च को खत्म कर दिया. न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद दस्तावेज के मुताबिक 2019 में जो कॉन्ट्रैक्ट हुआ था, वो पांच गट्टे ( 242/1, 242/2, 243, 244 और 246) को लेकर था. इस पांच गट्टे में से तीन हिस्से (243, 244 और और 246), कुल 1.208 हेक्टेयर को पाठक दंपति ने अंसारी और तिवारी को पहले दो करोड़ में बेचा और फिर इन्होंने 18.5 करोड़ रुपए में ट्रस्ट को बेच दिया. इसी जमीन के दो गट्टा 242/1, 242/2, कुल 1.03 हेक्टेयर पाठक दंपति ने सीधे ट्रस्ट को आठ करोड़ में बेच दिए. इसमें से बचे जमीन के एक टुकड़े को पाठक दंपति ने अपने ड्राइवर रविन्द्र कुमार दुबे को दान कर दिया. जिसका सर्किल रेट 42 लाख रुपए है.
अमर उजाला अगर यह जानकारी साझा करता तो इस खबर का शीर्षक ‘मंदिर ट्रस्ट ने 18.5 करोड़ रुपए में खरीदी, आज जमीन की कीमत इससे दोगुने से अधिक.’ नहीं बन पाता क्योंकि उसी रोज जमीन का एक हिस्सा सस्ते दर में ट्रस्ट ने खरीदा था.
इसी दिन अयोध्या के मेयर और बीजेपी नेता ऋषिकेश उपाध्याय का भी एक बयान छपा जिसका शीर्षक, ‘जमीन खरीद में गवाह रहा हूं, पैसे ऑनलाइन ट्रांसफर हुए.’ इस खबर में वही बातें दोहराई जा रही हैं. हालांकि ऋषिकेश उपाध्याय 18 मार्च को हुए तीन खरीद बिक्री में गवाह हैं. ऐसे में उनका कहना कि लम्बे समय से एग्रीमेंट चल रहा था. यह गलत है. अमर उजाला ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया.
एक तरफ जहां ट्रस्ट पर विपक्षी दल आरोप लगा रहे थे इसी बीच 16 जून को अमर उजाला ने माय सिटी के पहले पेज पर बड़ी हेडिंग के साथ खबर छापी कि 'जमीन तो खरीदें, पता चल जाएगी अयोध्या की सम्पन्नता'. यह खबर स्थानीय लोगों से बातचीत के बाद छापी गई. इस रोज जमीन के एक विक्रेता सुल्तान अंसारी से बातचीत के आधार पर खबर छपी जिसमें वो अग्रीमेंट की बात दोहराते हैं. वे कहते हैं कि वर्तमान में उस जमीन की कीमत 24 करोड़ है लेकिन हमारी राम में आस्था है इसलिए हमने कम पर बेच दिया.
17 जून को इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि पाठक दंपति से 18 मार्च को उसी जमीन का दो कट्टा सीधे ट्रस्ट ने खरीदा. यह जमीन 18.5 करोड़ वाली जमीन के आधी कीमत पर खरीदी गई थी. हालांकि अमर उजाला ने अयोध्या माय सिटी में रामालय ट्रस्ट के अविमुक्ततेश्वरानन्द के हवाले से खबर छापी कि जांच होने तक चम्पत राय और अनिल मिश्रा को हटाया जाए.
इंडियन एक्सप्रेस की इस खबर को अमर उजाला ने अगले दिन यानी 18 जून को फ्रंट पेज पर जगह दी. वहीं माय सिटी से जमीन से जुडी खबर गायब मिली.
अमर उजाला ने 19 अप्रैल को मुख्य अख़बार में अयोध्या जमीन विवाद पर तो कोई रिपोर्ट नहीं की लेकिन माय सिटी में इसको लेकर दो खबरें प्रकाशित की गईं. एक खबर में बताया गया कि आरएसएस के सह सर कार्यवाहक कृष्ण गोपाल ट्रस्ट से जमीन खरीद की तमाम जानकारी लेकर गए हैं. साथ में यह भी बताया कि निर्वाणी अखाड़े के प्रमुख धर्मदास चाहते हैं कि ट्रस्ट को भंग किया जाए. इसी रोज अख़बार ने हरीश पाठक के पूर्व के कारनामे को लेकर रिपोर्ट पब्लिश की. हालांकि न्यूज़लॉन्ड्री इसके बारे में 17 जून को ही बता चुका था.
19 जून को न्यूज़लॉन्ड्री ने अपनी एक एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में बताया कि अयोध्या मेयर और बीजेपी नेता ऋषिकेश उपाध्याय के भांजे दीप नारायण ने फरवरी 2021 में 20 लाख रुपए में एक जमीन खरीदी थी. जो तीन महीने बाद मई में 2.50 करोड़ रुपए में रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र को बेच दी. इस जमीन का सर्किल रेट 35.6 लाख रुपए है. इसके बाद कई चैनलों से इस खबर पर रिपोर्ट की लेकिन अमर उजाला ने 20 जून को अपने अख़बार में इस खरीद-बिक्री की कोई चर्चा नहीं की.
20 जून को अमर उजाला ने माय सिटी पेज पर एक रिपोर्ट छापी जिसका शीर्षक 'ट्रस्ट ने वेबसाइड पर डाला जमीन खरीद का ब्यौरा'. दरअसल यह खबर पुरानी थी. अख़बार ने जो जानकारी 20 जून को दी वो ट्रस्ट के महासचिव चम्पत राय 15 जून को ही ट्विटर के जरिए दे चुके थे. हैरानी की बात है कि इस जानकारी को अख़बार ने छह दिन बाद प्रकाशित करना क्यों ज़रूरी समझा?
मेयर के भांजे से ट्रस्ट ने जो जमीन खरीदी उसमें एक नया मोड़ तब आया जब आजतक की एक रिपोर्ट में सामने आया कि वो जमीन नजूल यानी सरकार की है. 21 जून को अमर उजाला ने अपने अख़बार के फ्रंट पेज पर इसको लेकर रिपोर्ट छापी जिसका शीर्षक मेयर के भांजे से नजूल की जमीन खरीदकर और फंस गया ट्रस्ट. वहीं माय सिटी में इसको लेकर कुछ भी नहीं छपा गया.
22 जून को ट्रस्ट द्वारा जमीन खरीद के विवाद से जुड़ी कोई खबर अमर उजाला में नहीं छपी. अयोध्या माय सिटी में अयोध्या के विकास कार्यों को लेकर खबरें छापी गईं जिसका शीर्षक ' सरयू किनारे उभारी जाएगी राम की यात्रा'. 23 जून को भी इस विवाद से जुड़ी कोई खबर प्रकाशित नहीं हुई. इस रोज भी अख़बार ने अयोध्या के विकास से जुड़ी खबर प्रकाशित की.
इसी बीच 22 जून को न्यूज़लॉन्ड्री ने अपनी एक एक्सक्लूसिव खबर के जरिए बताया कि, जिलाधिकारी ने एक जांच कमेटी बनाई थी जिसको पता करना था कि वह जमीन नजूल की है या नहीं. और इस जांच में सामने आया कि वह जमीन सरकारी है और उसे बेचा नहीं जा सकता.
इसके बाद लगातार अमर उजाला अयोध्या में निर्माण की खबरें छापता रहा.
अयोध्या के अलावा बाराबंकी और सीतापुर के एडिशन में भी नेताओं के इसी तरह के विज्ञापन छपे. बाराबंकी के दरियाबाद से बीजेपी विधायक सतीश वर्मा, सांसद उपेंद्र सिंह रावत, रामनगर से विधायक शरद अवस्थी का अमर उजाला के स्थापना दिवस पर बधाई देते हुए विज्ञापन छपा.
अयोध्या में जहां सिर्फ बीजेपी नेताओं का विज्ञापन छपा वहीं बाराबंकी में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के नेताओं ने भी अख़बार के स्थापना दिवस पर विज्ञापन दिया. समाजवादी पार्टी की तरफ से पूर्व केन्द्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा की पुत्रवधु रेनू वर्मा और पूर्व कारगार मंत्री राकेश वर्मा ने विज्ञापन दिया. वहीं कांग्रेस की तरफ से पीएल पुनिया के बेटे तनुज ने शुभकामनाएं देते हुए विज्ञापन दिया.
बाराबंकी में नेताओं ने एक कदम आगे बढ़कर बधाई देते हुए लिखा, ‘‘अमर उजाला के 13वें स्थापना दिवस पर उत्तम पत्रकरिता के लिए अमर उजला परिवार को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं.’’
मीडिया और राजनीतिक दल
इस पूरे मामले पर मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार तंज कसते हुए कहते हैं, ‘‘अमर उजाला ने एक तरह से ठीक ही किया. जो बात हम जनता को रिपोर्ट और रिसर्च पेपर के जरिए समझाने की कोशिश कर रहे थे. अख़बार ने यह विज्ञापन छापकर जनता के सामने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी.’’
विनीत कुमार आगे कहते हैं, “कोई भी सरकार या राजनीतिक पार्टी किसी अख़बार या चैनल के कितना भी खिलाफ हो लेकिन वो पब्लिक डोमेन में कभी इसका इजहार नहीं करते हैं. ऐसे ही कोई भी कारोबारी मीडिया किसी सरकार या राजनीतिक दल की कितनी भी खुशामदीद करें लेकिन पब्लिक डोमेन में नहीं बताते कि हम किसी राजनीतिक दल के साथ हैं. इस घटना से आने वाले समय में अमर उजाला की इस स्तर पर फजीहत होगी कि वो कह नहीं सकेंगे कि वो कांग्रेस, बीजेपी या सपा से अलग हैं.’’
“राजनीतिक दलों से दूरी रखने से मीडिया की छवि बचती है. और राजनीतिक दलों के लिए मीडिया के खिलाफ जाने के बावजूद पब्लिक डोमेन में उसके साथ खड़े होने से उसकी छवि बनती है. इस प्रकरण से राजनीतिक दलों की छवि बनी और अख़बार की छवि ध्वस्त हुई है.” विनीत कुमार कहते है.
हालांकि भारतीय जनसंचार संस्थान दिल्ली के प्रोफेसर आनंद प्रधान इसे थोड़े बड़े स्तर पर देखते हैं. वे कहते हैं, ‘‘इस तरह की प्रक्रिया हम लम्बे समय से देख रहे हैं. अख़बार के ब्यूरो और रिपोर्टरों पर विज्ञापन लाने का दबाव होता है. बिहार और यूपी में व्यवसायिक प्रतिष्ठान बेहद कम हैं. ऐसे में अख़बार के कर्मचारी नेताओं से ही विज्ञापन लेते हैं. इसमें से उन्हें भी कमीशन मिलता है. ऐसे में पत्रकार की स्वतंत्रता खतरे में पड़ जाती है. जिन लोगों पर पत्रकार रिपोर्ट करते हैं उनसे अगर विज्ञापन लेने का दबाव होगा तो वो खबर कैसे करेंगे.’’
कारवां पत्रिका के संपादक विनोद के जोश अपने एक लेख में लिखते हैं, ‘‘वैसे तो प्रोत्साहित करना आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास पैदा करने के लिए अच्छी बात मानी जाती है, लेकिन जब यही तारीफ सत्ता के दलालों की तरफ से आती है तो आपको उसे संदेह की नजर से देखना चाहिए. आपको समझना चाहिए कि वे भी आपके साथ संबंध बनाने की फिराक में रहते हैं. इसलिए उन्हें तरजीह ना दें.’’
जोसेफ के अलावा भी कई संपादक/पत्रकार अक्सर ही पत्रकारों को सत्ता से जुड़े लोगों से एक दूरी बनाए रखने का सुझाव देते रहते हैं. मीडिया एथिक्स में ऐसी बातें पढ़ाई जाती हैं, लेकिन हकीकत यह है कि ज़्यादातर पत्रकार सत्ता के करीब होने पर गौरवान्वित महसूस करते हैं. हाल में देखा गया कि पीएम मोदी के ट्विटर पर फॉलो करने पर पत्रकारों ने जश्न मनाया तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा अनफॉलो करने पर पत्रकार दुखी नजर आए.
अमर उजाला फैज़ाबाद के ब्यूरो चीफ धीरेन्द्र सिंह न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘जैसे आप अपना जन्मदिन मनाते हैं. वैसे ही अख़बार अपना स्थापना दिवस मनाता है. इसमें मुख्यमंत्री की तरफ से बधाई विज्ञापन आता है, नगरपालिका से आता है, नगर निगम से आता है, विधायक देते हैं. हमारे विज्ञापन विभाग के लोग जाते हैं और बताते हैं कि स्थापना दिवस है. वो विज्ञापन क्यों नहीं दे सकते हैं. सबसे बड़ी बात है कि वे सरकारी धन नहीं देते हैं. अगर वे विधायक या सांसद निधि से देते तो गैरकानूनी होता. यहां वे अपने पास से पैसे दे रहे हैं. अमर उजाला के साथ-साथ वे अपने कार्यकर्ताओं को भी शुभकामाना देते हैं. उसमें वे अपना काम बताते हैं.’’
राम मंदिर विवाद की खबरें माय सिटी से गायब मिलीं. इस सवाल पर सिंह कहते हैं, ''नहीं, ऐसा नहीं है. दूसरे अख़बारों की तुलना में अमर उजाला ने इस विवाद पर ज़्यादा काम किया है. हमने बताया कि जो जमीन बेचीं गई वो नजूल की थी.'' हम और सवाल पूछते उससे पहले उन्होंने नाराज़ होकर फोन रख दिया.
Also Read: मीडिया के सामने अपनी साख बचाने का संकट!
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