Report
महामारी के साथ ही डूबती अर्थव्यवस्था को भी उबार सकती है वैक्सीन
कोविड-19 की वैक्सीन अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने और गरीबी को तेजी से कम करने में एक महत्वपूर्ण उत्पाद बनकर उभरी है. इस लिहाज से यह एक ऐसा शक्तिशाली उत्पाद बन चुकी है, जिस पर नियंत्रण के प्रयास किए जा रहे हैं. वैक्सीन, विकासशील देशों में पिछड़ेपन को दूर करने के लिए विषनाशक औषधि के तौर पर उभरी है. 90 फीसदी से ज्यादा देशों में कोरोना महामारी के चलते आर्थिक मंदी दर्ज की गई.
आज की तारीख में ऐसा लग रहा है कि कोविड-19 की वैक्सीन तक पहुंच और इसका वितरण किसी भी देश के लिए अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए जरूरी शर्त बन चुकी है. कोरोना के बाद की वैश्विक परिस्थितियों में वैक्सीन को वही दर्जा हासिल हो चुका है, जो किसी मंदी या बड़ी आर्थिक दुर्घटना के बाद पूंजी को हासिल होता है.
विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित ‘द ग्लोबल इकोनॉमिक प्रॉस्पेक्टस 2021’ का अनुमान है कि दुनिया की अर्थव्यवस्था ‘अप्रत्याशित तौर पर मजबूत’ रिकवरी की ओर बढ़ रही है. 2021 में दुनिया की अर्थव्यवस्था 5.6 फीसदी की दर से वृद्धि करेगी, जो पिछले 80 सालों में मंदी के बाद सबसे मजबूत वृद्धि होगी.
हालांकि इस अप्रत्याशित खबर के लक्षण संभावित ही हैं. यानी यह वृद्धि चंद विकसति देशों में ही दर्ज की जाएगी. भारत समेत दुनिया के अन्य विकासशील देशों को अपनी अर्थव्यवस्था को 2019 के स्तर पर लाने में कई साल लग जाएंगे. विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, "विकसित अर्थव्यवस्था वाले 90 फीसदी देशों के 2022 तक महामारी से पहले वाले प्रति व्यक्ति आय का स्तर पा लेने की उम्मीद है, जबकि उभरते बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्था वाले केवल एक तिहाई देशों के ऐसा करने के आसार है."
विश्व बैंक का विश्लेषण यह दर्शाता है कि जिन देशों में वैक्सीनेशन तेजी से हो रहा है, उनकी अर्थव्यवस्था भी तेजी से आगे बढ़ रही है. विकसित देशों में महामारी ढलान पर है और वैक्सीनेशन की गति काफी तेज है. जबकि दूसरी ओर विकासशील देशों में कोरोना का भयावह दौर जारी है और उनके भविष्य में नई लहरों से प्रभावति होने की आशंका भी बरकरार है. संयुक्त राष्ट्र के मुख्य अर्थशास्त्री इलियाट हैरिस के मुताबिक, "देशों और क्षे़त्रों के बीच वैक्सीन की असमानता पहले से असमान और नाजुक वैश्विक रिकवरी के लिए खतरनाक संकेत है."
उदाहरण के लिए अफ्रीका महाद्वीप में वैक्सीन की कवरेज दुनिया में सबसे कम है और वैक्सीन का डोज उपलब्ध न होने के चलते वहां वैक्सीनेशन रोकने की नौबत आ सकती है. दुनिया में जहां औसतन 11 फीसदी लोग वैक्सीन की पहली डोज ले चुके हैं, जबकि अफ्रीका के लिए यह संख्या केवल दो फीसदी है. इसलिए यह अप्रत्याशित नहीं है कि अफ्रीका महाद्वीप में सबसे धीमी आर्थिक रिकवरी दर्ज की जा रही है. इसकी भी आशंका है कि आगे उसे कोरोना की नई लहरों का सामना करना पड़ सकता है.
इसी तरह, उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से एक भारत में वैक्सीन अभियान के लड़खड़ाने के चलते रिकवरी भी सबसे धीमी दर्ज की जा रही है. विश्व बैंक के मुताबिक, "कम आय वाली अर्थव्यवस्थाओ में इस साल पिछले 20 सालों में सबसे धीमी वृद्धि की आशंका है, साल 2020 इसका अपवाद है. इन देशों में वैक्सिनेशन की गति भी बेहद कम है."
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व बैंक ने एक अनुमान लगाया कि महामारी से संबंधित आधारभूत ढांचे में निवेश के परिणाम कैसे होंगे, इसमें वैक्सीन को भी शामिल किया गया था. नतीजे में पाया गया कि इसमें आज 50 बिलियन डॉलर का निवेश करने से 2025 तक अतिरिक्त वैश्विक उत्पादन में कुल नौ ट्रिलियन डॉलर कमाए जा सकेंगे.
इससे पता चलता है कि वैक्सीन केवल महामारी से बचने के लिए ही नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में भी निर्णायक भूमिका निभाने जा रही है. वैक्सीन तक पहुंच ही बाकी सारे निर्णायक कारकों जैसे आर्थिक और प्राकृतिक पूंजी, मानव संसाधन और सामाजिक- राजनीतिक वातावरण को तय करेगी.
(डाउन टू अर्थ से साभार)
Also Read
-
In Pulwama’s ‘village of doctors’, shock over terror probe, ‘Doctor Doom’ headlines
-
6 great ideas to make Indian media more inclusive: The Media Rumble’s closing panel
-
Friends on a bike, pharmacist who left early: Those who never came home after Red Fort blast
-
‘They all wear Islamic topis…beard’: When reporting turns into profiling
-
Axis predicts NDA lead, but fewer seats for BJP this time