Ground Report

अलीगढ़ शराब कांड: “मेरे लिए अब हमेशा रात है”

45 वर्षीय पप्पू कुमार बघेल का हाथ पकड़ कर कुछ लोग कमरे में लाते हैं. खाट पर लेटकर वे एकटक ऊपर ताकते हुए रोने लगते हैं. पास में ही बैठीं उनकी पत्नी सत्यवती कहती हैं, ‘‘अरे रो क्यों रहे हैं, डॉक्टर ने रोने को मना किया है. नमक रोटी खाकर जी लेंगे. रोइए मत.’’ इतना कहने के बाद सत्यवती देवी सुबकने लगती हैं.

अलीगढ़ शहर से 14 किलोमीटर दूर करसुआ गांव के रहने वाले पप्पू नौ दिन बाद अस्पताल से इलाज कराकर लौटे हैं. उनकी दोनों आंखों से दिखना बंद हो गया है. जबकि 26 मई तक वे सबकुछ ठीक-ठीक देख पाते थे.

पप्पू अपने छोटे भाई 26 वर्षीय राजू बघेल के साथ गांव में ही बने गैस प्लांट के सामने चाय की दूकान लगाते थे. चाय की टपरी के पास एक देशी शराब का ठेका था. दिनभर चाय बेचने के बाद शाम को इसी ठेके से दोनों भाई शराब खरीदकर पीते थे.

बाकी दिनों की तरह 26 मई की शाम ठेके से दोनों ने शराब ली, लेकिन बघेल परिवार के लिए उस रोज शराब पीना काफी महंगा पड़ गया. राजू की मौत हो गई और पप्पू की दोनों आंखों की रोशनी चली गई. डॉक्टरों की माने तो उनकी रोशनी अब कभी वापस नहीं आएगी.

अपने परिजनों के साथ पप्पू बघेल

करसुआ गांव के प्रधान के चाचा रामकुमार शर्मा बताते हैं, ‘‘हमारे गांव में दो दिन 27 और 28 तारीख में 10 लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से हो गई. यहां पर इंडेन का एक बहुत बड़ा गैस प्लांट है, जहां सैकड़ों की संख्या में ट्रक वाले रोजाना आते हैं. हमारी जानकारी में उनमें से 12 लोगों की मौत हो गई. जो यहां मरें हैं. कई ड्राइवर तो शराब लेकर आगे चले गए होंगे. रास्ते में पीने के लिए. उनकी उधर ही मौत हुई होगी.’’

शर्मा आगे कहते हैं, ‘‘जिस दिन हमारे गांव के लोगों की मौत हुई उसी दिन ड्राइवरों की भी मौत हुई. यहां सैकड़ों की संख्या में ड्राइवर अपनी बारी का पांच-पांच दिन तक इंतज़ार करते हैं. इस दौरान वे ट्रक में ही सोते हैं. खाते-पीते हैं. घटना के बाद यहां के मैनेजर ने अलग-अलग ट्रकों में जाकर नहीं देखा. यह लापरवाही थी क्योंकि सबको पता है कि ज़्यादातर ड्राइवर पीते हैं. दो दिन बाद दो शव और मिले. दरअसल ट्रक ड्राइवर शराब पीकर अपनी गाड़ी में ही मर गए थे. उन्हें इलाज भी नहीं मिला.’’

जहरीली शराब ने कुछ लोगों की आंखों की रोशनी छीन ली तो कई पेट की बीमारी से ग्रसित हो गए. ऐसा सिर्फ करसुआ गांव में ही नहीं हुआ बल्कि अलीगढ़ के अलग-अलग गांवों में देशी शराब पीने से लोगों की मौतें हुई हैं. मौतें सरकारी आंकड़ों से काफी ज़्यादा हैं.

इस शराब कांड मामले में अब तक 20 एफआईआर दर्ज हुई हैं. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए अलीगढ़ के जिलाधिकारी चन्द्र भूषण सिंह कहते हैं, ‘‘पुलिस ने अब तक करीब 20 एफआईआर दर्ज कर 60 से ज़्यादा लोग गिरफ्तार किए हैं. इस मामले में जितने मुख्य आरोपी थे उन सभी को गिरफ्तार किया जा चुका है.’’

‘पीने के बाद उल्टी हुई, आंखों से दिखना बंद हुआ, शरीर नीला पड़ा और मौत हो गई’

न्यूजलॉन्ड्री ने अलीगढ़ के अलग-अलग गांवों में जाकर कई मृतकों के परिजनों और जिंदगी की जंग जीतकर लौटे लोगों से मुलाकात की. हर मृतक के परिजनों की एक ही कहानी है, शराब पीने के बाद उन्हें उल्टी शुरू हुई. थोड़ी देर बाद आंखों की रोशनी चली गई. अस्पताल लेकर भागे, लेकिन रास्ते में शरीर नीला पड़ गया और मौत हो गई.

अलीगढ़ में सरकारी ठेके से देशी शराब खरीदकर पीने से मरने का सिलसिला 26 मई से शुरू हुआ जो पांच जून तक जारी रहा. शुरूआती दिनों में मृतकों की संख्या काफी ज़्यादा रही. एक दिन में किसी गांव में सात तो किसी में आठ लोगों की मौत हुई.

शनिवार दोपहर के दो बज रहे हैं. आज राजू बघेल की दसवीं है जिसमें गांव के लोगों को खाने के लिए बुलाया गया है. घर के सामने छोटे बच्चे खाने बैठे हुए थे. वहीं एक पोस्टर लगा है जिसपर ‘हमारी मांगे पूरी करो, मृतकों के परिजनों को पचास लाख रुपए और सरकारी नौकरी दो.’ लिखा हुआ है.

अस्पताल में इलाज कराकर पांच मई को वापस लौटे पप्पू की आंखों की रोशनी ही नहीं गई बल्कि उनसे ठीक से बोला भी नहीं जा रहा है. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए पप्पू कहते हैं, ‘‘ऐसा नहीं है कि मैं उस रोज पहली बार पी रहा था. पहले भी पीता रहा हूं. उस दिन पता नहीं उसमें क्या था. पीने के बाद ही घबराहट शुरू हो गई. उल्टी होने लगीं. पास के ही डॉक्टर से दवाई लेकर खाई तो थोड़ी सी राहत मिली. जिसके बाद एक रोटी खा पाया. रात को चार बजे के करीब मेरे छोटे भाई की तबीयत खराब हुई. वो भी मेरे साथ ही रहता था. उसे घबराहट हुई. तो मैंने बड़े भाई से उसे अस्पताल ले जाने के लिए बोला. वो उसे लेकर निकले, लेकिन पहुंच नहीं पाए. वो रास्ते में ही ख़त्म हो गया.’’

एक तरफ पप्पू के छोटे भाई की मौत हो चुकी थी, वहीं दूसरी तरफ उन्हें आंखों से दिखना बंद हो गया था. वो आगे कहते हैं, ‘‘मुझे दिखना बंद हो गया था. मेरे चाचा का लड़का आया तो मैंने उससे अस्पताल ले चलने के लिए बोला. इसके बाद वे मुझे एक निजी अस्पताल लेकर गए. वहां भर्ती तो किया, लेकिन बोले की ऑक्सीजन का इंतज़ाम हमारे पास नहीं है. फिर वहां से मेडिकल ले गए. उसके बाद मुझे कुछ याद नहीं है. मैं अपना होश खो बैठा था. अब मुझे कुछ भी नहीं दिख रहा है. मेरे लिए अब हमेशा रात है.’’

पप्पू ने जिस ठेके से शराब ली थी उसे पुलिस जमींदोज कर चुकी है. हालांकि जो तकलीफ ठेके से बघेल परिवार को मिली है वो शायद ही कभी खत्म हो पाए. पप्पू की पत्नी सत्यवती अपने तीन छोटे-छोटे बच्चों की तरफ इशारा करते हुए कहती हैं, ‘‘सरकार अगर हमारी मदद कर देती तो मैं अपने बच्चों को पढ़ा पाती.’’

पप्पू बघेल के दरवाजे के सामने ही सड़क की दूसरी तरफ महेश सिंह का घर है. शराब पीने से ही 28 मई को 40 वर्षीय महेश सिंह की मौत हो गई थी. उनके परिवार में पत्नी और पांच बच्चे हैं. सिंह के असमय गुजर जाने से परिवार पर संकट का पहाड़ टूट गया. मौत के आठ दिन गुजर जाने के बाद भी पत्नी बात करने की स्थिति में नहीं है.

मृतक सिंह के छोटे भाई रिंकू सिंह न्यूजलॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘मेरे बड़े भाई ने 27 मई की शाम को सरकारी ठेके से शराब ली थी. शराब लेकर वो घर आए और यहीं पिए. उसके बाद खाना खाए जिसके बाद उन्हें बेचैनी शुरू हुई. शरीर में दर्द और उल्टियां शुरू हो गईं. हम उन्हें अस्पताल लेकर भागे, लेकिन अस्पताल पहुंचते उससे पहले ही उनकी मौत हो गई. उनके पांच बच्चे हैं. सबका गुजरा वे बुग्गी (भैंसा गाड़ी) चलाकर करते थे. इससे किसी की मिट्टी डालते थे तो किसी का भूसा. जिससे वे दिन में 100-200 रुपए कमाते थे.’’

मृतक महेश सिंह की तस्वीर दिखाते उनके भाई रिंकू सिंह

सत्यवती की तरह रिंकू भी मदद की गुहार लगाते हैं. न्यूज़लॉन्ड्री के जरिए वे प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ से हाथ जोड़कर कहते हैं, ‘‘इन बच्चों की तरफ ध्यान कर आप कुछ कृपा करें.’’

पप्पू के घर से महज चार सौ मीटर की दूरी पर सुनील सिंह का घर है. 28 वर्षीय सिंह की मौत भी जहरीली शराब पीने से हो गई. गलियों से होते हुए हम उनके घर पहुंचे जहां सुनील की मां सीमा देवी अपने कुछ महिला रिश्तेदारों के साथ सो रही थीं. जहरीली शराब ने तो सीमा देवी का आखिरी सहारा भी छीन लिया.

दरअसल सालों पहले इनके पति का निधन हो गया था. वो कहती हैं, ‘‘पति के निधन के बाद कुछ बचता नहीं है. लेकिन दो बेटे और एक बेटी थी. सोचा इनके साथ ही बाकी जिंदगी काट दूंगी, लेकिन कुछ साल पहले छोटे बेटे का बीमारी से निधन हो गया. बेटी की शादी कर दी. सुनील और हम रहते थे. गुरुवार 27 मई को वो भी अकेला छोड़ गया.’’ इतना कहने के बाद सीमा रोने लगती हैं.

अपने मृत बेटे की तस्वीर दिखातीं सीमा देवी

सुनील सिंह के चाचा प्रताप सिंह न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘सुनील राजमिस्त्री का काम कर परिवार की देखभाल करता था. उस रोज उसने पास के ठेके से शराब लेकर पी. रात में उसे बेचैनी हुई. हम मेडिकल लेकर भागे, लेकिन तब तक उसकी मौत हो गई. उसका शरीर नीला पड़ गया था. आंखों से दिखना बंद हो गया था.’’

करसुआ गांव के रहने वाले 28 वर्षीय ट्रक चालक अजय ठाकुर, 46 वर्षीय दिनेश सिंह, सतीश कुमार शर्मा, 45 वर्षीय रामचरण सिंह, 50 वर्षीय संतोष सिंह और 55 वर्षीय ओमप्रकाश की मौत भी जहरीली शराब पीने से हो गई. इसमें से ज़्यादातर मज़दूरी करते थे. इस गांव में सबका पोस्टमार्टम हुआ है.

‘शराब पीकर सोए और जग ही नहीं पाए!’

अलीगढ़ से 22 किलोमीटर दूर राइट गांव पड़ता है. यह मुस्लिम बाहुल्य गांव है. यहां 28 और 29 मई को छह मुस्लिम और दो दलित की मौत शराब पीने से हो गई. यहां कुछ लोगों ने पचपेड़ा के शराब ठेका से शराब खरीदी थी तो कुछ ने गांव के ही 50 वर्षीय ताहिर से.

ताहिर की मौत हैरान करने वाली है. दरअसल गांव में पहले दिन जब चार लोगों की मौत हुई तो ताहिर पर लोगों ने खराब शराब बेंचने का आरोप लगाया. उनकी बेटी रेशमा बताती है, ‘‘जब उनपर गांव वालों ने आरोप लगाया तो उन्होंने इसे झूठ बताते हुए कहा कि ऐसे कैसे कोई मर सकता है. मैं खुद शराब पीकर देखता हूं. उन्होंने शाम में पास के सरकारी स्कूल में जाकर शराब पी. रात में उनकी तबीयत बिगड़ गई और उनका शरीर नीला पड़ता गया.’’

ताहिर को उनके परिजन सुबह-सुबह मेडिकल कॉलेज लेकर गए. दिनभर अस्पताल में इलाज कराने के बाद देर शाम पांच बजे उनका निधन हो गया. उनके भाई की पत्नी सीमा बताती हैं, ‘‘गांव वालों ने उन्हें मार दिया. चुनाव के बाद वे शराब बेचना बंद ही कर दिए थे. शराब बनाकर तो बेचते नहीं थे. सरकारी ठेके से ही लाकर बेचते थे. ऐसे में उनपर आरोप लगाना गलत था. खुद को सच्चा साबित करने गए लेकिन उनकी भी मौत हो गई.’’

मृतक ताहिर की तस्वीर दिखातीं उनकी बेटी

राइट गांव में सबसे पहली मौत अंग्रेज खान की हुई. 35 वर्षीय अंग्रेज की जिस रोज मौत हुई उसी दिन उनकी बेटी आशिया की शादी थी. खान शराब पीकर सोए और फिर कभी उठ नहीं पाए.

आशिया अपनी उम्र 18 साल बताती हैं, लेकिन वो कम की लगती है. आसपास के लोगों की माने तो उनकी शादी जल्दी की गई है. आशिया बताती हैं, ‘‘शाम छह बजे वे शराब पीकर आए. वो रोज ही पीते थे. रात में तबीयत खराब हुई. पेट में दर्द हुआ और आंखों से कम दिखने लगा. दर्द कम ज़्यादा हो रहा था. हमें लगा की सुबह तक नशा टूट जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. अगले दिन सुबह जब अम्मी जगाने गई तो वो मरे पड़े थे.’’

अंग्रेज अपने परिवार में कमाने वाले इकलौते शख्स थे. वे घर पर ही खत्म हो गए. गांव में जहरीली शराब से यह पहली मौत थी. ऐसे में परिजनों को लगा नहीं की शराब पीने से ही मौत हुई है. खान का पोस्टमार्टम नहीं हुआ. आशिया बताती हैं, ‘‘वो घर पर ही खत्म हो गए थे. ऐसे में उन्हें अस्पताल ले जाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी. हमने यहीं कब्रिस्तान में उनको मिट्टी दे दी.’’

आशिया की शादी के दिन हो गई थी उसके पिता की मौत

राइट गांव में ऐसे ही 37 वर्षीय वाहिद खां, 40 वर्षीय मुनीर, 35 वर्षीय हारून, 55 वर्षीय आश मोहम्मद, 42 वर्षीय सुरेश कुमार और 40 वर्षीय मुकेश कुमार की मौत जहरीली शराब पीने से हो गई.

इस गांव में दो दिन में आठ लोगों की मौत हुई जिसमें से सिर्फ तीन लोगों का पोस्टमार्टम हो पाया. कुछ लोगों ने धार्मिक कारणों से पोस्टमार्टम नहीं कराया तो कुछ को पता ही नहीं चला की उसके अपने की मौत शराब पीने से हुई है. जिन लोगों का पोस्टमार्टम हुआ उसमें से एक सुरेश कुमार भी हैं.

न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए सुरेश कुमार के बड़े भाई राकेश कुमार बताते हैं, ‘‘मेरा भाई चिनाई का काम करता था. 28 मई को हमारे यहां एक शादी थी. उसमें सुरेश शराब पीकर खूब नाचा. वहां से देर रात को लौटकर वो सो गया. सुबह-सुबह उसके पेट में जलन शुरू हुई. आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा. हम उसे खुर्जा लेकर भागे. वहां करीब 12 बजे मेडिकल के लिए रेफर कर दिया. हम मेडिकल लेकर भागे वहां एक घंटे तक इलाज हुआ होगा तब तक उसने दम तोड़ दिया.’’

सुरेश के बेटे राहुल कुमार अपने पिता की आखिरी तस्वीर दिखाते हुए कहते हैं, ‘‘पिताजी का शरीर एकदम नीला हो गया था. जब हम उन्हें घर से लेकर निकले तभी उनकी आंखों से दिखना बंद हो गया था. उनकी आवाज़ नहीं निकल रही थी. शराब में शायद इन्होंने जहर मिलाकर बेचा था.’’

सुरेश के पड़ोसी देवकरण भी जहरीली शराब की चपेट में आ गए थे लेकिन इलाज के बाद वे बच गए. हालांकि उनकी आंखों से अब भी धुधंला दिख रहा है. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए देवकरण कहते हैं, ‘‘ऐसा लगता है कि मेरा नया जन्म हुआ है. तीन अलग-अलग अस्पतालों में इलाज कराने के बाद मैं बच गया लेकिन पेट में जलन अब भी है. आंखों से अब भी धुंधला दिखता है.’’

देवकरण भी जहरीली शराब की चपेट में आ गए थे लेकिन इलाज के बाद वे बच गए. हालांकि उनकी आंखों से अब भी धुधंला दिख रहा है.

राइट गांव में मौतों का सिलसिला तो रुक गया लेकिन यहां लोग दहशत में अब भी हैं. पचपड़ा में बने शराब के ठेके को पुलिस ने तोड़ दिया है.

राइट गांव से दो किलोमीटर दूर सुरजापुर पड़ता है. इस गांव के रहने वाले 20 वर्षीय बच्चू और 45 वर्षीय छोटेलाल का घर आमने-सामने हैं. 28 मई को कुछ घंटों के अंतराल के बाद दोनों की मौत हो गई. इन्होंने भी पचपड़ा के ठेके से ही शराब खरीदी थी. दोनों ही अस्पताल नहीं जा पाए ऐसे में पोस्टमाटर्म नहीं हुआ.

बच्चू की शादी नहीं हुई थी. पढ़ाई छोड़ वो मज़दूरी करने लगा था. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते बच्चू के भाई गजराज सिंह बताते हैं, ‘‘27 की शाम को उन्होंने शराब पी थी. रात में उसके पेट में दर्द हुआ. उसे खून की उल्टी होने लगीं. कुछ देर बाद आंखों से दिखना बंद हो गया. हम लोग अस्पताल लेकर जा पाते उससे पहले ही देर रात चार बजे उसकी मौत हो गई. फिर हमने अंतिम संस्कार कर दिया. हमें पता ही नहीं चला की उसकी शराब पीने से ही मौत हुई है. हमें लगा की किसी और बीमारी से उसकी मौत हो गई.’’

छोटेलाल की शादी हो गई थी. उनकी एक लड़की हैं. उनके बड़े भाई नाहर सिंह बताते हैं, ‘‘हमें अस्पताल ले जाने का समय ही नहीं मिला. बच्चू जिस परेशानी से गुजरा था वो सब छोटेलाल के साथ भी हुआ. बस छोटे को खून की उल्टी नहीं हुई. बाकी जो कुछ खाया था सब पलटी कर दिया. शाम के चार बजे उसकी मौत हो गई.’’

अपने छोटे भाई को खोने वाले नाहर सिंह

सुरजपुर से दो किलोमीटर की दूरी पर कोरे रुस्तमपुर गांव है. इस गांव में भी चार लोगों की मौत शराब पीने से हो गई. यहां के लोगों ने भी पचपड़ा के ठेके से ही शराब ली थी. जहां से सूरजपुर और राइट गांव के लोग शराब लाए थे. यहां मौतें 28 और 29 मई को हुई. हैरानी की बात यह है कि जब 26 मई से मौतों का सिलसिला शुरू हो गया था तो आखिर प्रशासन ने ठेके बंद कराने में इतना समय क्यों लिया. ठेके बंद तो ज़रूर हुए लेकिन तब तक कई लोगों की मौत हो चुकी थीं.

जहरीली शराब पीने से कोरे रुस्तमपुर गांव के रहने वाले 32 वर्षीय संजय कुमार, 25 वर्षीय देवेन्द सिंह, 40 वर्षीय उमेश कुमार सिंह और 55 वर्षीय अशोक कुमार की मौत हो गई. इसमें अशोक कुमार पास के ही हाईवे पर एक छोटा सा ढाबा चलाते थे बाकी लोग मज़दूरी करते थे.

अशोक कुमार के सबसे बड़े बेटे कपिल से जब हम मिले तो वे ढाबा बंद कर सोने की तैयारी में थे. रात के आठ बज चुके थे. कपिल की माता जी का कुछ साल पहले ढाबे के सामने एक्सीडेंट हो गया था जिसमें उनकी मौत हो गई थी. उसके बाद उनके पिता का शराब पीना ज़्यादा हो गया था.

न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कपिल बताते हैं, ‘‘हमारे ढाबे के सामने एक पेट्रोल पंप हुआ करता था. पंप तो बंद हो गया, लेकिन उनका कुछ सामान यहां है जिसकी रक्षा के लिए एक गार्ड तैनात रहते हैं. वे और पिताजी अक्सर शाम में साथ ही शराब पीते थे. उस दिन भी साथ में ही पी थी. पिताजी को बेचैनी तो हो रही थी लेकिन वे कह नहीं रहे थे. सुबह-सुबह उस गार्ड का फोन आया कि तुम्हारे पापा कैसे हैं? मैं उनसे पूछा तो उन्होंने खुद को सही बताया, लेकिन हमने देखा की ये थोड़ी -थोड़ी देर में करवट बदल रहे थे. हम उनको अस्पताल लेकर गए, लेकिन वहां जाकर उनकी मौत हो गई.’’

शराब की खाली बोतल, इसी शराब को पीकर हुई लोगों की मौत

आखिर शराब में क्या मिला था जिसने इतने लोगों की जान ले ली इस सवाल के जवाब में जिलाधिकारी चन्द्र भूषण सिंह बताते हैं, ‘‘शराब में मिथाइल मिला था इसकी पुष्टि हो गई है. मिथाइल विजेंद्र कपूर के यहां से गया था. पुलिस ने उस फैक्ट्री में लोगों को पकड़ा जहां यह शराब बनाई जा रही थी. वहां भी मिथाइल मौजूद था. जिस दुकान पर बिक्री हो रही थी वहां भी पुष्टि हुई है.’’

अगर किसी के शरीर में मिथाइल मिल जाए तो उसे क्या-क्या परेशानी हो सकती है. ये सवाल हमने अलीगढ़ के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ. भानु प्रताप सिंह कल्याणी से पूछा तो उनका कहना था, ‘‘शराब में अगर मिथाइल अल्कोहल मिला हो तो समान्यत: पेट में दर्द, जलन, उल्टी की परेशानी आती है. आंखों की रोशनी पर फर्क पड़ता है. शरीर में अम्लता बढ़ जाती है. खून अम्लीय (एसिडिक) हो जाता है. इसको कम करने के लिए हम डायलिसिस करते हैं. कई बार रिकवरी हो जाती है.’’

क्या मौत के आंकड़ें छुपा रहा प्रशासन?

अलीगढ़ प्रशासन पर मौतों के आंकड़ें छुपाने का आरोप लग रहा है. स्थानीय ग्रामीण और पत्रकार बता रहे हैं कि प्रशासन के आंकड़ें से दो से तीन गुना ज़्यादा लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से हुई है. न्यूज़लॉन्ड्री की टीम ने सात गांवों के 45 मृतकों के परिजनों से मुलाकात की. सबकी मौत की वजह एक जैसी ही है.

अलीगढ़ प्रशासन अभी सिर्फ 35 लोगों की शराब से मौत की बात कर रहा है. सीएमओ कल्याणी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, ‘‘अभी तक हमने शराब से संबंधित 106 पोस्टमाटर्म किए हैं. ये सभी संदिग्ध हैं. इनका विसरा जांच के लिए भेजा गया है. जहां तक रही कंफर्म मौतों की बात तो हमारे डॉक्टर्स ने 35 लोगों में अल्कोहल की स्मेल पाई तो उसमें उन्होंने ज़्यादा संभवाना मानते हुए उनकी शराब से मौत मान लिया. इन 35 लोगों का भी विसरा लैब में भेजा जाएगा. वहीं से इनकी भी पुष्टि होगी.’’

डॉक्टर कल्याणी आगे कहते हैं, ‘‘हमारे यहां 12 लोग ऐसे आए थे जिनकी आंखों की रोशनी चली गई थी. उसमें से 10 लोगों की रोशनी वापस आ गई है. वहीं बाकियों की रोशनी वापस आने की संभावना शून्य है.’’

लेकिन जैसे कि ऊपर जिक्र किया गया है कई लोग ऐसे थे जो अस्पताल पहुंच ही नहीं पाए. उनका पोस्टमाटर्म नहीं हुआ. ऐसे में सवाल उठता है कि जिनका पोस्टमाटर्म नहीं हुआ उनकी मौत क्या शराब पीने वालों में नहीं गिनी जाएगी? जबकि जिनकी भी मौत हुई उनको एक ही तरह की परेशानी आई है.

शराब पीने के बाद जिला मेडिकल कॉलेज में इलाज करा रहे दो पीड़ित मरीज

जहरीली शराब के कारण अपने पिता को खोने वाले कपिल कुमार न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘प्रशासन

आंकड़ें छुपा रहा है. यहां कम से कम 200 लोग मरे हैं. मेरे गांव के आसपास ही 50 से ज़्यादा लोगों की मौत हुई है. सबके एक जैसे ही लक्षण थे. पेट में बेचैनी हुई, उल्टी हुई. आंखों से दिखना कम हो गया और मौत हो गई. एक ही गांव में जिसका पोस्टमार्टम हुआ उसे शराब से मरा बता रहे हैं, जिसका नहीं हुआ उसे गिन तक नहीं रहे हैं.’’

अलीगढ़ से दो बार समाजवादी पार्टी से विधायक रहे हाजी जमीरउल्लाह भी प्रशासन पर मौत के आंकड़ें कम बताने का आरोप लगाते हैं. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए जमीरउल्लाह कहते हैं, ‘‘अभी तक करीब 125 लोगों की मरने की खबर आ चुकी है. अगर ठीक से इसकी जांच की जाए तो मैं समझता हूं की कम से कम 150 से 200 का आंकड़ा पहुंच जाएगा. इससे कम आंकड़ा नहीं पहुंचेगा. कई ट्रक ड्राइवर यहां से शराब खरीद हरियाणा या दूसरे जगह चले गए. उन्होंने जहां पी होगी वहीं उनकी मौत हो गई होगी. प्रशासन तो इसको छुपा रहा है.’’

अलीगढ़ से दो बार समाजवादी पार्टी से विधायक रहे हाजी जमीरउल्लाह

प्रशासन के मुताबिक जिन लोगों का पोस्टमार्टम हुआ है उन्हें ही मुआवजा दिया जाएगा. ऐसे में उन मृतकों के परिजन चिंतित हैं जिनका इकलौता कमाने वाला इस दुनिया से चला गया और अब उन्हें सरकारी मदद मिलने की उम्मीद तक नहीं है. हालांकि घटना के करीब 15 दिन गुजर जाने के बाद भी किसी पीड़ित को सरकार की तरफ से एक रुपए की आर्थिक मदद नहीं दी गई है. इसकी घोषणा ज़रूर हो गई है.

पूर्व विधायक जमीरउल्लाह बताते हैं, ‘‘अभी मैं दो-तीन ही गांव जा पाया हूं वहां मुझे ऐसे 12 लोग मिले जिनका पोस्टमाटर्म नहीं हुआ था. यह सिर्फ दो-तीन गांवों की बात मैं बता रहा हूं. मैंने वो लिस्ट डीएम साहब को दी और उन्हें बोला की जो बाकियों को मुआवजा मिल रहा है वो इन्हें भी दिया जाए. हकीकत यह है कि वो शराब पीकर मरा है. इसके लिए चाहें तो पुलिस से जांच करा लें या प्रधान से जानकारी ले लें. अगर सरकार मुआवजा दे रही है तो इन्हें भी मुआवजा दें. यह लीपापोती सही नहीं है. आंकड़े छुपाने के लिए लोगों को मुआवजे से वंचित न करें.’’

अलीगढ़-खैर रोड पर अंडला गांव पड़ता है. इस गांव के पांच लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से हुई. इसमें से सिर्फ दो लोगों का पोस्टमार्टम हो पाया. जिन लोगों का पोस्टमाटर्म नहीं हो पाया उसमें से एक 26 वर्षीय देवेश कुमार भी है.

खेती करने वाले देवेश ने आखिरी सांस तो मेडिकल कॉलेज में ली लेकिन वहां उनका पोस्टमाटर्म नहीं हुआ. उनकी एक सात साल की बेटी है. कुमार के चाचा राजेश कुमार, जो पेशे से शिक्षक हैं वो राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन से बेहद खफा नजर आते हैं.

न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए राजेश कहते हैं, ‘‘इस जहरीली शराब के कारण मैंने अपने भतीजे को खोया है. प्रदेश में इतनी अराजकता है कि इतने लोगों की मौत हो गई, लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक शब्द भी नहीं बोला. इस पूरी घटना के लिए डीएम साहब जिम्मेदार हैं. यहां केवल लीपापोती चल रही है. इस घटना को दबाया जा रहा है. किसी पर रासुका नहीं लगी है. किसी छुटभैये पर बाद में रासुका लगा देंगे. मेरे गांव के ठेके को देखें आप? वो ड्यूबेल में चल रहा था. जबकि ठेका ककोला गांव के लिए मंजूर है, लेकिन अंडाला गांव में चल रहा है. ढाई पेटी बेंचने की मंज़ूरी है लेकिन छह पेटी बेचा जाता है.’’

अपने मृतक भतीजे की तस्वीर दिखाते राजेश कुमार

नाराज़ राजेश कहते हैं, ‘‘शराब माफिया हर महीने तीन करोड़ रुपए कमाते थे. उसमें से डीएम साहब को भी हिस्सा जाता होगा. यह मेरा सीधा आरोप है. चार साल से यहां जमे हुए है. सरकारको भी कम आंकड़ें भेजकर गुमराह कर रहे हैं. सत्य को छुपा रहे हैं.’’

आंकड़ें छुपाने का एक और तरीका स्थानीय प्रशासन ने इजाद किया है. दरअसल मौत की जांच के लिए विसरा भेजा जा रहा है. पीड़ितों का कहना है कि ऐसा करके प्रशासन बस आंकड़ों को कम दिखाने की कोशिश कर रहा है. विसरा रिपोर्ट आने में वक़्त लगता है तब तक लोग इसे भूल जाएंगे.

हालांकि जिलाधिकारी चन्द्र भूषण सिंह आंकड़ें छुपाए जाने के दावे से इंकार करते हैं. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कुमार कहते हैं, ‘‘मौत की पुष्टि डॉक्टर करते हैं. 35 लोगों के पोस्टमाटर्म में डॉक्टर ने अल्कोहल पाया तो हमने 35 मान लिया. बाकियों का विसरा सुरक्षित कर लिया. अब विसरा की रिपोर्ट जब आएगी तभी पुष्टि होगी की मौत शराब से हुई है या नहीं. लोग अनावश्यक रूप से खबर बना रहे हैं. पुलिस जल्द ही विसरा रिपोर्ट मनाएगी तभी तो वो चार्जशीट जमा करेगी.’’

बीजेपी से पीड़ितों के परिजन क्यों नाराज़ हैं ?

अंडाला गांव के रहने वाले विशाल पाठक बेहद नाराज़ होकर कहते हैं, ‘‘जब हमारे गांव में लोग मर रहे थे तो कोई भी बीजेपी वाला नहीं आया. एक दिन यहां के सांसद सतीश गौतम सड़क पर आए और चले गए. किसी पीड़ित से मिले तक नहीं. वहीं नूरपुर में जाकर भाषण देकर आए थे. मेरा पूरा गांव बीजेपी का वोटर रहा है लेकिन अबकी बार इनको सबक सिखाएंगे.’’

छेरत गांव ठाकुर बाहुल्य गांव हैं. यहां आठ लोगों की शराब पीने से मौत हुई. यहां एक दिन में पांच लोगों की मौत हो गई थी. लेकिन यहां किसी भी पीड़ित के घर कोई भी बीजेपी के नेता नहीं पहुंचे. 28 मई को यहां के मनोज चौहान की मौत भी शराब पीने से हो गई थी.

मनोज के छोटे भाई रामखिलवान चौहान बीजेपी सांसद सतीश गौतम पर शराब माफियाओं को बचाने का आरोप लगाते हैं. वे कहते हैं, ‘‘इस घटना के बाद जहां एक तरफ जिलाधिकारी आरोपियों पर कार्रवाई कर रहे हैं वहीं हमारे सांसद आरोपियों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. वे एक बार भी हम लोगों से मिलने नहीं आए जबकि यहां एक दिन में पांच लोगों की मौत हुई थी. चुनाव के बाद से अब तक वो हमारे गांव में आए ही नहीं हैं.’’

ऋषि मिश्रा के फार्म हाउस के बाहर लगा बोर्ड. जो उनके बीजेपी में होने की गवाही दे रहा है

लोगों का बीजेपी पर शक तब और बढ़ गया जब सांसद सतीश गौतम प्रशासन के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिए. उन्होंने जिलाधिकारी पर कई आरोप लगाए. ऐसा वो तब कर रहे थे जब प्रशासन आरोपियों पर कार्रवाई कर रहा था.

दरअसल जिला प्रशासन ने विजेंद्र कपूर नाम के एक व्यापारी को गिरफ्तार किया है. कपूर अवैध रूप से मिथाइल अल्कोहल का स्टैक रखे हुए थे. पुलिस ने जांच में पाया था कि शराब बनाने के लिए मिथाइल अल्कोहल कपूर की ही फैक्ट्री से गया था.

पुलिस द्वारा विजेंद्र कपूर को गिरफ्तार करने के बाद ही सांसद उनके बचाव में उतर आए. उन्होंने कहा, ‘‘अगर व्यापारी गलत है तो इसकी पूरी जांच की जाए. उसका उत्पीड़न न किया जाए. जिला प्रशासन अपनी तानाशाही चला रहा है. अपनी तानाशाही से किसी को दोषी नहीं बना सकते हैं. किसी निर्दोष व्यापारी का मैं उत्पीड़न सहन नहीं करूंगा और किसी निर्दोष को फंसने भी नहीं दूंगा. विजेंद्र कपूर सज्जन और खानदानी जमीदार आदमी हैं.’’

एक स्थानीय पत्रकार नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं कि सांसद और व्यवसायी विजेंद्र कपूर ना सिर्फ पड़ोसी हैं बल्कि कारोबारी पार्टनर भी हैं. जिस कारण सांसद उनके बचाव में उतर गए और जिलाधिकारी पर ही आरोप लगाने लगे. पुलिस ने कई लोगों को गिरफ्तार किया लेकिन विजेंद्र की गिरफ्तारी के खिलाफ सांसद क्यों खड़े हो गए? यह सवालों के घेरे में तो है. इन आरोपों पर न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए सांसद सतीश गौतम कहते हैं, ''मैंने विजेंद्र कपूर का बचाव नहीं किया था. हमने यह कहा कि किसी भी व्यवसायी को नाजायज नहीं फंसाया जाए. अगर दोषी है तो किसी को बख्शा न जाए.''

लेकिन आप एक सांसद है. पुलिस का आरोप है कि विजेंद्र कपूर के यहां से ही मिथाइल अल्कोहल लेकर शराब में मिलाया गया. ऐसे में उनका बचाव करना गलत नहीं है. इतने लोग गिरफ्तार हुए आपने सिर्फ कपूर के लिए आवाज़ क्यों उठाई. इस सवाल के जवाब में गौतम कहते हैं, ‘‘जिस सोसायटी में वीरेंद्र कपूर रहते हैं. उसी सोसायटी में मैं भी हूं. पड़ोसी होने के नाते उनके बच्चे और पत्नी मेरे पास आए. उन्होंने बताया कि वे निर्दोष है. ऐसे में मानवता के नाते मैंने बोला कि किसी निर्दोष को फंसाया न जाए. मेरी जगह होते तो आप क्या करते. योगी सरकार के शासन में प्रशासन में किसी की दखल नहीं होती है. जहां तक रही उनके साथ व्यवसाय की बात तो मेरा या मेरे परिवार का अलीगढ़ में कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है.’’

बीजेपी के नेता मृतकों के घर नहीं जा रहे इसका एक बड़ा कारण छेरत गांव के शराब ठेके पर लिखा ठेकेदार का नाम भी है. यह ठेका ममता शर्मा के नाम पर है. जो ऋषि शर्मा के परिवार से हैं. ऋषि आरएलडी नेता अनिल चौधरी और विपिन यादव के साथ इस मामले का मुख्य आरोपी है. आरएलडी नेता अनिल और विपिन को पुलिस ने शुरूआती दिनों में ही गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन ऋषि फरार था. पुलिस ने शर्मा के बेटे और भाई समेत कई लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. इसके बाद भी शर्मा पुलिस के सामने हाजिर नहीं हुए तो पुलिस ने उनपर एक लाख का इनाम रख दिया. छह जून को उन्हें पकड़ लिया गया.

छेरत गांव में ऋषि मिश्रा का ठेका

ऋषि शर्मा का परिवार पहले ब्याज पर पैसे देने का काम करता था. 90 के दशक में वे शराब के पेशे में आए और आज शराब के बड़े व्यापारी है. उनके पास करोड़ो की संपत्ति है. शर्मा को प्रधान और बीडीसी चुनाव में मात देने वाले अब्दुल चमन खां सिद्दीकी न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए बताते हैं, ‘‘ऋषि के दादा रामजी लाला और दादी गोपी पंडिताइन यहां ब्याज पर पैसे चलाने का काम करते थे. इस गांव में ही नहीं बल्कि आसपास के गांव में भी लोग उनसे ही पैसे लेते थे. साल 1990 के दशक में शराब के पेशे में आए. पहले इनके पास एकाध ठेका था, लेकिन अब इनके कई ठेके हैं.’’

ऋषि शर्मा के राजीतिक जुड़ाव को लेकर सिद्दीकी बताते हैं, ‘‘अभी वो बीजेपी से जुड़े हुए हैं. साल 2017 में उनकी पत्नी बीडीसी का चुनाव बीएसपी से जीती थीं. प्रदेश में सरकार बदलने के बाद वो बीजेपी में शामिल हो गए. तब से बीजेपी में ही हैं. उनका पूरा परिवार बीजेपी में ही है. उनके चाचा के लड़के ओमप्रकाश भारद्वाज उर्फ़ लालू बीजेपी के मंडल अध्यक्ष हैं. उनके चाचा के दूसरे लड़के ललित कुमार की पत्नी को बीजेपी ने हाल ही में किसान ग्रामीण बैंक का चुनाव जितवाया था. वे बीजेपी में थे. उनके कार्यक्रमों में जाते थे. यहां प्रचार करते थे.’’

बीएसपी से जुड़े सिद्दीकी बताते हैं कि पहले भी इनपर एकबार शिकायत हुई थी लेकिन इस तरह पुलिस पकड़ने नहीं आई थी. तब कोई कार्रवाई नहीं हुई थी.

जानकारों की माने तो ऋषि शर्मा बीएसपी सरकार में मंत्री रहे जयवीर सिंह के सहयोगी हैं. जब तक सिंह बीएसपी में थे शर्मा भी बीएसपी में रहे. जब 2017 में सिंह बीजेपी में शामिल हो गए तो उनके साथ शर्मा भी बीजेपी में शामिल हो गए. जवां गांव के रहने वाले ऋषि शर्मा भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हुए हैं. जिसकी तस्दीक उनके घर के आसपास लगे बोर्ड भी कर रहे हैं. भगवा और हरे रंग के बीजेपी के बोर्ड पर रैना शर्मा का नाम लिखा हुआ है. रैना शर्मा, ऋषि शर्मा की पत्नी हैं जो बीते चुनाव तक जवां ब्लॉक की पंचायत प्रमुख थी. ऋषि शर्मा की कई तस्वीरें बीजेपी नेताओं के साथ वायरल हुईं.

ऋषि शर्मा को बीजेपी में लाने का श्रेय लोग बीजेपी जिला महामंत्री शिवनारायण शर्मा को देते हैं. हालांकि शर्मा इस बात से इंकार करते हैं. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए शर्मा कहते हैं, ‘‘नहीं-नहीं ऋषि कभी बीजेपी में शामिल नहीं हुए हैं. हो सकता है कि मिस कॉल मारकर शामिल हुए हों. ऐसे तो कई लोग शामिल हुए हैं. वे कभी किसी पद पर नहीं रहे और ना ही बीजेपी के किसी कार्यक्रम में शामिल हैं. जहां तक रही उन्हें जानने की बात तो प्रमुख थे तो उनको सब जानते ही थे.’’

बीजेपी नेताओं का पीड़ितों के परिवार से मिलने के सवाल पर शर्मा कहते हैं, ‘‘ऐसा नहीं है. हमारे तमाम नेता, चाहे सांसद हो या विधायक. जिला अध्यक्ष हो या बाकी कोई भी नेता. सब पीड़ितों से मिले हैं. हमारी सरकार तमाम आरोपियों को गिरफ्तार कर रही है. उनकी संपत्ति जब्त कर रही है. जब बीजेपी की सरकार कार्रवाई कर रही है तो हम क्यों नहीं पीड़ितों से मिलेंगे.’’

जिला अस्पताल में एक मरीज को देखते डॉक्टर

एक तरफ जहां बीजेपी के नेता दावा कर रहे हैं कि ऋषि बीजेपी में शामिल नहीं हुआ था वहीं अलीगढ़ बीजेपी अध्यक्ष ऋषिपाल सिंह ने उसकी गिरफ्तारी के बाद पार्टी से निकाल दिया था. जब शामिल ही नहीं हुए थे तो निकाला क्यों. इस सवाल के जवाब में ऋषिपाल सिंह न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘मीडिया हमपर सवाल उठा रहा था. ऋषि किसी पद पर तो था नहीं. हो सकता है मिस कॉल मार कर सदस्य बना हो. करोड़ो लोग इसी तरह हमारे सदस्य बने हैं. हमने उसकी प्राथमिक सदस्यता रद्द कर दी है.’’’

जिलाधिकारी चन्द्र भूषण सिंह न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘इसका पूरा नेटवर्क हमने पता लगा लिया है. और जितने माफिया चिन्हित किये गए हैं उनपर कठोर कार्रवाई हो हो रही है.’’

लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि इतने बड़े स्तर पर शराब माफिया मिलावट का कारोबार कर रहे थे लेकिन स्थानीय प्रशासन की नींद तब खुली जब 100 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई.

स्थानीय सांसद सतीश गौतम भी इसी की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं, ‘‘आबकारी विभाग के बिना यह सब कैसे चल सकता है. आबकारी विभाग के अधिकारी रोज ठेके में जाकर रजिस्टर देखते हैं. उसका निरीक्षण करते हैं. तो कैसे नकली शराब बिक सकती है. बिना अधिकारीयों के मिले हुए. आबकारी विभाग 100 प्रतिशत मिला हुआ है. इतने लोगों की जान गई है. जहां तक रही जिलाधिकारी पर सवाल की बात तो अगर जिले में कुछ अच्छा होता है तो उसका क्रेडिट वो लेते हैं तो इसकी भी जिम्मेदारी उन्हें लेनी होगी, क्योंकि जिले के मालिक तो वो ही हैं.’’

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