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एनएल एक्सक्लूसिव: ‘हमारी मजबूरी की रोटियां खाईं मीडिया वालों ने’
“देश के खिलाफ जासूसी, हनी ट्रैप, दुश्मन देश को गोपनीय जानकारी देना” आदि कुछ ऐसे आरोप हैं जो किसी पर लगे तो जीवन भर समाज उसे गलत नजर से देखता है. फिर चाहे उन आरोपों में कोई सच्चाई हो या नहीं.
इंदौर जिले के महू तहसील के गवली पलासिया गांव की लक्ष्मी विहार कॉलोनी में रहने वाली 62 वर्षीय हदीजा आबिद अपनी दो बेटियों के साथ रहती हैं. 19 मई को पुलिस की गाड़ियां उनके घर पहुंचीं. पुलिस ने उनकी बेटियों से पाकिस्तानी युवक से बातचीत करने को लेकर सवाल-जवाब किए. क्राइम ब्रांच ने यह कार्रवाई इंटेलिजेंस एजेंसियों से मिले इनपुट के आधार पर की. कथित तौर पर आरोप थे कि लड़कियां जासूसी, हनी ट्रैप, विदेशी फंडिंग, आईएसआई के संपर्क में थीं. उसी के आधार पर पुलिस पूछताछ कर रही थी.
अगले 10 दिनों तक पूरे परिवार को घर में ही नज़रबंद रखा गया और घर के बाहर पुलिस का पहरा लगा दिया गया.
जांच के दौरान इंदौर के डीआईजी मनीष कपूरिया ने मीडिया को बताया, “कुछ व्यक्तियों के अवैध गतिविधियों में लिप्त पाए जाने की सूचना मिली थी. जिसका सत्यापन करने के लिए कार्यवाही की जा रही है.”
पुलिस और इंटेलिजेंस के अधिकारी अभी अपनी जांच कर ही रहे थे कि दूसरी ओर मीडिया ने अपुष्ट जानकारियों और सूत्रों के हवाले से आरोपित लड़कियों और उनके परिवार का ट्रायल करना शुरू कर दिया. 19 मई को जांच की शुरुआत होने के बाद मीडिया ने इस ख़बर को प्राथमिकता से प्रकाशित किया. अखबार, टीवी के अलावा कई ऑनलाइन संस्थानों ने भी इस खबर को प्रकाशित किया. इन खबरों में जासूसी के आरोपों में जांच करने, पाकिस्तानी सेना, नेवी और आईएसआई एजेंटों के संपर्क में होने और सैन्य अफसरों के साथ हनी ट्रैप की साजिश की आशंका जैसी आधारहीन बातें लिखी और बताई गईं.
यह मामला महू के सैन्य क्षेत्र का बताकर प्रचारित किया गया. ये आरोप भी लगे कि लड़कियां महू छावनी की जानकारी पाकिस्तान पहुंचा रही थीं. मीडिया ने इस मामले को दोनों हाथों से लपका. इस दौरान इन लड़कियों के निजता की धज्जी उड़ाई गई. लड़कियों के नाम उजागर कर दिए गए, उनके बारे में तमाम जानकारियां सार्वजनिक की गईं और एक अखबार ने तो एक लड़की की फोटो भी प्रकाशित कर दी.
इस दौड़ में हर बड़ा-छोटा अख़बार शामिल था. ज्यादातर अख़बारों ने इन लड़कियों की जो छवि पेश की उससे इन्हें लगभग जासूस होने का तमगा मिल गया. स्थानीय स्तर पर सोशल मीडिया में उनके बारे में तरह-तरह की बातें की जाने लगीं.
इन ख़बरों पर पुलिस अधिकारियों के बयान प्रकाशित होते थे जो खुद कभी लड़कियों के नाम तो नहीं लेते थे लेकिन मीडिया द्वारा ऐसा किये जाने पर उन्होंने कोई आपत्ति नहीं की.
कोरोना संक्रमण की खबरों के बीच मीडिया के हाथ यह सनसनीखेज मामला लग गया था. व्हाट्सएप पर भी इन लड़कियों को लेकर तमाम ख़बरें प्रसारित हो रहीं थीं और आश्चर्यजनक रूप से इस जानकारी से प्रेरित समाचार अगले दिन अख़बारों में प्रकाशित हो रहे थे.
नाम प्रकाशित न करने के अनुरोध पर इंदौर के एक बड़े अख़बार से जुड़े एक पत्रकार बताते हैं, “शेयर बाज़ार में एक कहावत होती है कि ‘बाय द रूमर एंड सेल द न्यूज़’ लेकिन स्थानीय अख़बारों ने यहां इस लाइन के उलट काम किया. उन्होंने अफ़वाहों को समाचार बनाकर जनता को बेचा.”
पीड़िता का पक्ष
लड़कियों के पिता भारतीय सेना से रिटायर नायक रहे है. 24 साल देश की सेवा करने के बाद 2017 में उनकी मौत हो गई. सेना के पूर्व नायक के परिवार पर ही मीडिया ने देश के खिलाफ जासूसी जैसे संगीन आरोप लगा दिए.
28 वर्षीय आरोपिता सायरा कहती हैं, “19 तारीख को रिश्तेदार के यहां ईद मनाने के बाद मैं भोपाल से इंदौर आई ही थी कि पुलिस हमारे घर पर आ गई और पूछताछ करने लगी. मुझे कुछ समझ ही नहीं आया कि यह लोग क्यों आए हैं. मैंने पूछा तो क्राइम ब्रांच ने कहा कि, इंटरनेशनल कॉल करने की वजह से हम आए हैं. इसके बाद फोन चेक करने पर मेरे मोबाइल से उन्हें पाकिस्तान का एक नंबर मिल गया.”
सायरा आगे कहती हैं, “मोहसिन अली खान नाम के एक पाकिस्तानी लड़के से मेरी दोस्ती फेसबुक पर हुई थी. मेरी उससे शादी की बात चल रही थी. इसलिए हम दोनों व्हाट्सएप पर बात करते थे. मोहसिन सियालकोट का रहने वाला है, उसके घर पर सभी को शादी के बारे में पता है. हालांकि मेरी मां ने अभी तक शादी को लेकर हां नहीं किया है.”
“मेरी आज तक फोन पर बात नहीं हुई है. जो भी बात हुई है सिर्फ व्हाट्सएप के जरिए ही हुई है. पुलिस वालों ने कहा कि हमें थोड़ी इंक्वायरी करनी है उसके बाद हम आप को छोड़ देंगे. हम नहीं चाहते कि आप की इज्जत खराब हो इसलिए जो हम पूछ रहे हैं वह बता दो. पुलिस हमारे मोबाइल जब्त कर अपने साथ ले गई.” सायरा ने हमें बताया.
दोनों लड़कियों की मां 62 वर्षीय हदीजा कहती हैं, “घर की माली हालत ठीक नहीं है इसलिए मेरी बच्चियां नौकरी भी करती हैं और पढ़ाई भी. मैंने मना किया था कि पाकिस्तान से ऐसे किसी लड़के से बात मत करो, पता नहीं कुछ हो गया तो? लेकिन लड़कियां कहती थीं कि किसी से बात करना जुर्म नहीं है. 19 मई से पुलिस ने हमारे घर पर पूछताछ शुरू की. तब से लेकर अभी तक हम घर से बाहर नहीं निकले हैं.”
26 वर्षीय रुबीना की फेसबुक पर कोई आईडी नहीं है. वह सोशल मीडिया में सिर्फ व्हाट्सएप ही चलाती हैं. जो उन्होंने पिछले साल ऑनलाइन पढ़ाई के लिए इस्तेमाल करना शुरू किया था. मिलिट्री साइंस में एमए कर रही रुबीना को लेकर मीडिया में कहा गया कि वह छावनी इलाके के फोटो खींचकर पाकिस्तान भेजती है और काम के दौरान कई घंटों मोबाइल पर काम छोड़कर बात करती है.
इन आरोपों पर रुबीना कहती हैं, “एमए सेकेंड ईयर में होने के कारण मुझे प्रोजेक्ट बनाना था. मैंने आर्मी से जुड़ा हुआ प्रोजेक्ट बनाने के लिए छावनी की कुछ तस्वीरे ली थीं. साथ ही भीमराव आंबेडकर की जन्मस्थली का भी जिक्र मैंने अपने प्रोजेक्ट में किया. 40 पन्नों के इस प्रोजेक्ट के लिए जो तस्वीरें मैंने खींची उसे मीडिया वालों ने गलत तरीके से ले लिया.”
रुबीना स्थानीय बिजली दफ़्तर में काम करती थीं. मीडिया में लिखा गया कि उन्हें काम से इसलिए निकाल दिया गया क्योंकि वे बार-बार अपने फोन पर बात करती थीं. इस पर रुबीना कहती हैं, “काम के दौरान भी ऑनलाइन पढ़ाई जारी थी. इस बीच कॉलेज के दोस्तों और कई बार घर से भी फोन आता था. उनसे बात करने के लिए मैं अपनी एचआर मैडम से पूछकर बाहर जाकर बात करती थी. कई बार कॉलेज के कुछ जरूरी काम होते थे इसलिए मुझे वह फोन उठाने पड़ते थे.”
आरोप गलत हैं!
गांव के पूर्व सरपंच और इनके पड़ोसी यदुनंदन पाटीदार कहते हैं, “यह लोग बहुत गरीब हैं. इस तरह उन पर शक करना ठीक नहीं है. मैं इन दोनों बच्चियों को बचपन से जानता हूं. मुसलमान होने के बावजूद वह जब भी मिलती थीं राम-राम और श्याम-श्याम बोलती थीं. जब उन पर जासूसी के आरोप लगे तब हमें लगा की ऑनलाइन बात करने के दौरान उन्होंने पाकिस्तान के किसी व्यक्ति से बात की होगी लेकिन जानबूझ कर उन्होंने पाकिस्तानी लोगों से बात की होगी ऐसा हमें शुरू से नहीं लगता था.”
यदुंनदन कहते हैं, “इस तरह के काम करने वाले व्यक्ति का रहन सहन, आर्थिक स्थिति और ऐसी बहुत सी चीजें देखने में आ जाती है जिससे शक हो जाता है कि वह कुछ गलत काम कर रहा है लेकिन ये लड़कियां गरीब परिवार से हैं, अपनी आजीविका चलाने के लिए वह पढ़ाई के साथ-साथ काम भी करती हैं.”
जिस बहन का कोई लेना-देना नहीं उसे मीडिया ने बना दिया जासूस
इस पूरे मामले में सबसे बड़ी बहन 32 वर्षीय गौहर को जबरन घसीटा गया. गौहर बताती हैं कि वे भारतीय जनता पार्टी की कार्यकर्ता हैं और नज़दीक ही अपने पति और 12 साल के बेटे के साथ रहती हैं. दोनों पति-पत्नी आजीविका चलाने के लिए काम करते हैं.
गौहर का नाम और उनकी तस्वीर इंदौर से नए-नए शुरू हुए खुलासा फर्स्ट अखबार ने 22 मई को बेहद सनसनीखेज़ तरीके से प्रकाशित की. इस तरह की ख़बर प्रकाशित होने की जानकारी गौहर को दो दिन बाद मिली जब उनका बेटा दूध लेने के लिए गया था और उसे किसी ने यह अख़बार दिया.
अखबार के संपादक अंकुर जायसवाल न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में कहते है, “अन्य अखबारों में पीड़िता का नाम और फोटो छपने के बाद हमने उनका फोटो और नाम अपने अखबार में छापा था.”
जिस बहन का इस पूरे मामले में कोई लेना देना नहीं था उसका फोटो और नाम छापने के सवाल पर अंकुर कहते है, “हम करेक्शन छापेगें. इस मामले में अभी पुलिस का कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है इसलिए हमने नहीं छापा.” हमने पूछा कब तक आप करेक्शन छापेगें तो वह कहते हैं “जैसे पुलिस बयान जारी करेगी हम छाप देगें.”
दैनिक भास्कर द्वारा इस मामले पर की गई रिपोर्टिंग पर भास्कर इंदौर के संपादक अमित मंडलोई कहते है, “जो जांच एजेंसियों द्वारा बताया जा रहा था वह हमने अपने अखबार में छापा था. और यही सब अन्य अखबारों में भी छापा जा रहा था. उस समय जो जानकारियां निकल कर आ रही थीं उसके हिसाब से यह बहुत बड़ी खबर थी. इसलिए हमने इसे प्रमुखता से छापा. जहां तक पीड़िता का नाम छापने की बात है तो, जो पुलिस अधिकारियों द्वारा हमें बताया जा रहा था हमने उसी आधार पर उनका नाम भी प्रकाशित किया.”
मीडिया में फोटो प्रकाशित होने पर गौहर कहती हैं, “मैं पास ही में अपने पति और बच्चों के साथ रहती हूं. मेरा इस पूरे घटनाक्रम में कोई लेना देना नहीं है फिर भी मीडिया ने मेरा नाम और चेहरा अखबार में छाप दिया.”
गौहर एक शॉपिंग सेंटर में काम करती थीं लेकिन इसके बाद उनकी नौकरी चली गई. उनके पति भवन निर्माण के लिए लोहा बांधने का काम करते थे लेकिन इस पूरे मामले के बाद अब उनके पास भी काम नहीं है.
गौहर कहती हैं, “अखबार में फोटो छपने के कारण मैं घर से बाहर नहीं जा पा रही हूं. किसी का डर नहीं है लेकिन शर्मिंदगी के कारण नहीं जा रही हूं. इस फोटो के कारण मुझे नौकरी से निकाल दिया गया. कंपनी के लोग कहते हैं कि वह देश के खिलाफ काम करने वाले लोगों को काम नहीं देते.” ये कहते हुए गौहर रोने लगती हैं.
वे आगे कहती हैं, “पाकिस्तान के लिए जासूसी तो छोड़िए मैं कभी पाकिस्तान की तरफ मुंह करके भी नहीं सोई हूं. मेरे पिता ने कहा था बेटा देश के लिए मरना, देश के लिए जीना. मेरे पिता ने देश की सेना में 24 साल तक सेवा की, लेकिन हम पर इस तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं.”
पुलिस की क्लीन चिट
करीब 10 दिनों तक घर में नज़रबंद करने के बाद 28 मई की शाम को इंदौर पुलिस की क्राइम ब्रांच ने दोनों लड़कियों को वापस फोन दे दिया. साथ ही उसी दिन उन्हें जांच से भी छूट मिल गई. सायरा कहती हैं, “28 की शाम को क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने हमारे फोन हमें वापस देते हुए कहा कि आप लोग अब से फ्री हैं. लेकिन आगे से ऐसा कुछ मत करना.”
हालांकि इन बहनों को अब तक नहीं पता कि उन्होंने ऐसा क्या किया था जो उन्हें नज़रबंद रखा गया, उनके घर के बाहर लगातार पुलिस बैठी रही और मीडिया उनके बारे में उल-जुलूल जानकारी सूत्रों से मिलकर लोगों को बताता रहा.
परिवार के मुताबिक पुलिस ने उनसे कमोबेश अच्छा सुलूक किया. इनकी शिकायत मीडिया से है. जिन्होंने उनके मामले में बेहद गैर जिम्मेदाराना रवैया दिखाया.
क्लीन चिट मिलने की ख़बर को अख़बारों ने उस अहमियत के साथ प्रकाशित नहीं किया जैसा कि उन्होंने इस मामले की शुरुआत में किया था. इसके बाद मामले में मीडिया की दिलचस्पी ख़त्म हो गई.
इस घटना के बाद इन बहनों की जिंदगी पूरी तरह बदल गई. वे अपने घरों से बाहर शर्मिंदगी के कारण नहीं निकल रही हैं और अब घर में किसी के भी पास नौकरी भी नहीं है. घर का खर्च पिता की पेंशन से जैसे-तैसे चल रहा है.
क्लीन चिट देने के फैसले पर इंदौर के आईजी हरिनारायणचारी मिश्र ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “हमें जानकारी मिली थी जिसके आधार पर जांच की गई. लेकिन अभी तक हमें कोई ठोस सबूत नहीं मिला है. इसलिए लड़कियों के खिलाफ जांच बंद कर दी गई है. फिलहाल लड़कियों के खिलाफ कोई जांच नहीं होगी.”
मीडिया रिपोर्टिंग पर कानून के जानकार
बार काउंसिल महू के पूर्व अध्यक्ष, रवि आर्य इस मामले पर कहते हैं, “बिना किसी जांच और सबूत के ही मीडिया ट्रायल शुरू हो गया. पुलिस अधिकारियों ने “जासूस” और “देशद्रोही” शब्द उपयोग कर संबोधित किया और मीडिया ने नाम और फोटो छाप दिया. सुप्रीम कोर्ट कहता है कि मीडिया ट्रायल तब तक आप नहीं कर सकते जब तक ठोस सबूत न हों. लेकिन इस मामले में बिना किसी सबूत के ही उन्हें आरोपी बनाया जाने लगा. शर्मिंदगी तो प्रशासन को तब उठानी पड़ी जब उन्हें क्लीन चिट दे दी गई.”
ना जाने कितनी बार सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया ट्रायल को लेकर नाराजगी व्यक्त की है. ना सिर्फ कोर्ट बल्कि कई संगठनों ने भी पुलिस जांच या कोर्ट ट्रायल के आधार पर कुछ भी लिखने, दिखाने के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की है. लेकिन इसके बावजूद बेहद संवेदनशील मामलों तक पर मीडिया का ट्रायल बदस्तूर जारी है.
(इस खबर में गोपनीयता के कारण पीड़ित परिवार के सदस्यों के नाम बदल दिए गए हैं.)
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