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बांग्लादेश में समुद्र के बढ़ते जलस्तर से डूब सकते हैं लाखों लोग!
दुनिया भर में जिस तरह तापमान में वृद्धि हो रही है उसके नित नए परिणाम सामने आ रहे हैं उन्हीं में से एक है समुद्रों का बढ़ता जलस्तर, जो तटों और उसके आसपास रहने वाले लोगों के लिए एक बड़ी समस्या है. जिस तरह से तापमान में वृद्धि हो रही है और समुद्र गर्म हो रहे हैं उसके चलते समुद्र का जल स्तर बढ़ता जा रहा है साथ ही अधिक शक्तिशाली चक्रवाती तूफानों का खतरा भी बढ़ता जा रहा है.
इसके चलते दुनिया भर में तटीय क्षेत्रों में रहने वाले करीब 68 करोड़ लोगों के जीवन पर असर पड़ रहा है वहीं अनुमान है कि 2050 तक यह आंकड़ा बढ़कर 100 करोड़ के पार चला जाएगा. जिसके चलते बड़ी संख्या में लोगों को अपने घरों को छोड़ कर जाना पड़ेगा.
बांग्लादेश भी इससे अछूता नहीं है अनुमान है कि 2050 तक इस कारण होने वाले प्रवासन का असर वहां रहने वाले 13 लाख लोगों के जीवन पर पड़ेगा. यदि बांग्लादेश की स्थिति को देखें तो यह समुद्र के बढ़ते जलस्तर के लिए अतिसंवेदनशील है, क्योंकि यहां की भूमि काफी निम्न है. साथ ही इस देश में जगह-जगह नदियां हैं. पहले ही मानसून के दौरान यहां लगातार बाढ़ आती रहती हैं.
बंगाल की खाड़ी के किनारे-किनारे इसकी तटरेखा करीब 580 किलोमीटर लम्बी है, जिसका बड़ा हिस्सा गंगा नदी के डेल्टा में है. यहां रहने वाले 16.3 करोड़ लोगों में से करीब 41 फीसदी लोग समुद्र तल से 10 मीटर या उससे कम ऊंचाई पर रहते हैं. वहीं 28 फीसदी आबादी तटों पर रहती है.
ऐसे में यह समझना जरुरी है कि इस तरह का प्रवासन किस तरह से लोगों के जीवन को प्रभावित करेगा. इसे समझने के लिए एनवाईयू टंडन स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन किया है जोकि जर्नल अर्थ फ्यूचर में प्रकाशित हुआ है.
इसे समझने के लिए शोधकर्ताओं ने एक गणितीय मॉडल की मदद ली है जो न केवल आर्थिक कारकों बल्कि मानव व्यवहार पर भी विचार करता है. जिसके अनुसार चाहे लोगों की इच्छा हो या न हो, या फिर वो अपना घर छोड़ कर जाने में असमर्थ हो, या ऐसा भी हो सकता है कि वो एक बार जाने के बाद फिर से स्थिति सामान्य होने पर वापस अपने घरों को लौट आते हैं, शोध में इन सभी को शामिल किया गया है. साथ ही यह प्रवासन के व्यापक प्रभावों पर भी विचार करता है. कई बार प्रवासी नए अवसरों की तलाश में बार-बार आते हैं जिसके कारण वहां के मूल निवासी विस्थापित हो जाते हैं.
बांग्लादेश के सभी 64 जिलों पर पड़ेगा पलायन का असर
इस नए मॉडल के अनुसार बंगाल की खाड़ी के साथ दक्षिण के जिले सबसे पहले समुद्र के बढ़ते जलस्तर से प्रभावित होंगे. इसके कारण जो पलायन होगा उसका असर देश के सभी 64 जिलों पर पड़ेगा. कुछ प्रवासियों को मौजूदा निवासी स्वीकार नहीं करेंगे, जिसके चलते उन्हें फिर से विस्थापित होना पड़ेगा. हालांकि इसके चलते शुरुवात में राजधानी ढाका की आबादी में वृद्धि होगी पर लोगों की इस बाढ़ के कारण यहां की आबादी एक बार फिर से इसे छोड़ने पर मजबूर हो जाएगी.
यह शोध 2020 में किए एक अन्य शोध को ही आगे बढ़ाता है जिसमें समुद्र के बढ़ते जलस्तर के चलते बांग्लादेश में आबादी के पलायन की जांच की गई थी. जिसमें सूचना के कुछ विशिष्ट सिद्धांतों की मदद से स्थानीय स्तर पर इसे समझने का प्रयास किया गया था.
इन्हीं आंकड़ों के आधार पर पहले के प्रवासन सम्बन्धी मॉडल ने भविष्यवाणी की थी कि बांग्लादेश के केंद्रीय क्षेत्र, जिसमें उसकी राजधानी ढाका भी शामिल है, में प्रवासियों की आबादी काफी बढ़ जाएगी. इस नए अध्ययन में इस बात को स्वीकार किया गया है पर उसके अनुसार प्रवास के चलते जो लोगों की भारी आबादी ढाका में आएगी उसके कारण लोग राजधानी को छोड़ने पर मजबूर हो जाएंगें, जिससे वहां की जनसंख्या में गिरावट आ जाएगी.
इस नए शोध से जुड़े शोधकर्ताओं का मानना है कि इस नए गणितीय मॉडल का प्रयोग किसी भी देश में किसी भी आपदा जैसे सूखा, भूकंप या जंगल की आग और उसके कारण होने वाले प्रवासन का अध्ययन करने के लिए किया जा सकता है. उनके अनुसार यह अपेक्षाकृत सरल है और कम आंकड़ों के आधार पर विश्वसनीय भविष्यवाणियां कर सकता है.
इस शोध से जुड़े शोधकर्ता मौरिजियो पोर्फिरी के अनुसार यह गणितीय मॉडल पर्यावरण सम्बन्धी आपदाओं के चलते होने वाले प्रवासन का बेहतर अनुमान लगाने में मदद कर सकता है. जिसकी मदद से हम भविष्य के लिए प्रवासन से जुड़े पैटर्न को लेकर हमारी तैयारियों को बेहतर बना सकते हैं. साथ ही यह उससे जुड़ी नीतियां के निर्माण में भी यह हमारी मदद कर सकता है.
कुछ ऐसी ही राय अन्य शोधकर्ता डी लेलिस की भी है जिनके अनुसार इस मॉडल से प्राप्त जानकारी सरकार को योजना बनाने में मदद कर सकती है. साथ ही जिन क्षेत्रों पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ने की आशंका है वहां संसाधनों को आवंटित करके इस तरह की आपदाओं से बचने के लिए प्रभावी रूप से तैयार की जा सकती है. साथ ही यह व्यवस्था की जा सकती है कि इस तरह के प्रवास से निपटने के लिए शहर पूरी तरह से तैयार रह सकें. उनके अनुसार चाहे पर्यावरण से जुड़ी आपदाएं हो या राजनीतिक तनाव, प्रवास किसी भी कारण से हो सकते हैं, पर जरुरी यह है कि अंत में विज्ञान की मदद से इससे जुड़े सही निर्णय लिए जाएं.
(डाउन टू अर्थ से साभार)
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