Report
उद्धव ठाकरे द्वारा पत्रकारों से की गई आश्वासन मदद कहां है?
पिछले जून, भारत में कोविड-19 की पहली लहर के दौरान महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री ने घोषणा की थी कि राज्य में कोविड की वजह से मरने वाले पत्रकारों को सरकार की तरफ से 50 लाख रुपए का दुर्घटना बीमा दिया जाएगा. जिसका अर्थ था कि, पत्रकारों को भी महामारी के दौरान फ्रंटलाइन कर्मचारियों की श्रेणी में रखा जाएगा.
परंतु एक वर्ष बाद भी महाराष्ट्र के पत्रकार आश्वासित सुविधा पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. पिछले 8 महीनों में, मराठी पत्रकार परिषद के अनुसार राज्य में 126 पत्रकार कोविड की वजह से जान गंवा चुके हैं, जिनमें से 52 की मृत्यु महामारी पर रिपोर्ट करते हुए अप्रैल के महीने में ही हुई. मराठी पत्रकार परिषद राज्य की सबसे पुरानी पत्रकार यूनियनों में से एक है.
बहुत से पत्रकारों और उनके परिवार के सदस्यों ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि उन्हें उद्धव ठाकरे सरकार से सहायता ले पाने में दिक्कतें आ रही हैं.
सितंबर में 42 वर्षीय पत्रकार पांडुरंग रायकर, जो टीवी-9 मराठी में काम करते थे कोविड से संक्रमित पाए जाने के बाद गुज़र गए. ऐसा बताया जा रहा था कि पांडुरंग को एक कार्डियक एंबुलेंस मिलने में देरी हुई, जिसके बाद उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने जांच की घोषणा की. आठ महीने बाद, इस आश्वासित जांच में कोई प्रगति नहीं हुई है.
पांडुरंग की पत्नी, 36 वर्षीय शीतल रायकर कहती हैं, "एक जांच के आदेश हुए थे लेकिन अभी तक कुछ हुआ नहीं है. स्वास्थ्य मंत्री टोपे साहब ने 50 लाख रुपए के कवर की घोषणा की थी लेकिन वह वादा निभाया नहीं गया. सुप्रिया सुले मैम ने मुझे बोला था कि वह शिक्षा विभाग में एक नौकरी दिलाएंगी, लेकिन अभी तक ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है." सुप्रिया सुले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की सदस्य हैं और बारामती से सांसद हैं.
शीतल आगे कहती हैं, "अगर वह मदद नहीं करना चाहते तो उन्हें वादा नहीं करना चाहिए. हम उनसे व्यक्तिगत तौर पर कुछ देने की आशा नहीं रखते, लेकिन सरकार के तौर पर उन्हें पत्रकारों के लिए कुछ करना चाहिए, क्योंकि बहुत से पत्रकार कोविड-19 के दौरान अपना काम करते हुए जान गंवा चुके हैं."
शीतल और उनके दो बच्चे जिनकी उम्र 5 और 3 वर्ष है, अहमदनगर जिले के कोपरगांव में रहते हैं. 6 जनवरी को उन्होंने महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से स्वास्थ्य मंत्री टोपे जी की घोषणा के अनुसार, 50 लाख रुपए अनुदान स्वरूप दिए जाने के लिए संपर्क किया.
वे बताती हैं, "राज्यपाल ने मेरी प्रार्थना को सुना और उनके दफ्तर से टोपे साहब के दफ्तर, सही कदम उठाने के लिए एक चिट्ठी भेजी गई. उस चिट्ठी को गए एक महीने से ऊपर हो गया है लेकिन अभी तक स्वास्थ्य मंत्री की तरफ से मुझे कोई जवाब नहीं मिला है. मुझे आर्थिक मदद, पत्रकारों और भाजपा व शिवसेना के नेताओं से व्यक्तिगत तौर पर मिली है, लेकिन कोई मेरी मदद हमेशा तो नहीं करेगा. मुझे अपनी परेशानियों का सामना खुद ही करना पड़ेगा और गुजारा करने के लिए संघर्ष करना होगा." आर्थिक मदद भाजपा के नेता प्रवीण डरेकर और महेश लांडगे और शिवसेना की नेता नीलम गोर्हे की तरफ से की गई.
शीतल आगे जोड़ती हैं कि पत्रकार महामारी के दौरान रिपोर्ट करते हुए खतरे उठाते हैं और उन्हें मदद की जरूरत है. वे कहती हैं, "कोविड संबंधी पत्रकारिता करते समय कई युवा पत्रकारों की जान चली गई. उनके मां-बाप और पत्नियां भी वही परेशानियां झेल रहे होंगे जो मैं झेल रही हूं." यह त्रासदी झेलने वाली शीतल अकेली नहीं हैं.
3 मई को 58 वर्षीय राजू भिसे, जो एक पत्रकार के नाते लोकमत, आपला महानगर और रायगढ़ जिले के नागौथाना में कई और स्थानीय अखबारों के लिए लिखते थे, की कोविड संबंधित कारणों से मृत्यु हो गई.
उनके बेटे 20 वर्षीय अर्चित भिसे ने बताया कि उनके पिता लगातार काम कर रहे थे और अपनी मृत्यु से पहले रोज रिपोर्टिंग कर रहे थे.
अर्चित ने बताया, "वह कोविड से 12 दिन तक लड़े. पहले वे यहां के कॉविड सेंटर में 4 दिन तक थे, फिर उन्हें रोहा सिविल अस्पताल में स्थानांतरित किया गया क्योंकि उनका ऑक्सीजन का स्तर गिर गया था. जब उनकी हालत और बिगड़ी तो उन्हें मनगांव भेजा गया. वहां उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया लेकिन वह नहीं बचे."
राजू एक स्ट्रिंगर थे और इसलिए उन्हें नियमित तनख्वाह नहीं मिलती थी. अर्चित बताते हैं, "उन्हें 5-6 महीने में एक या दो बार ही पैसे मिलते थे."
भारत में वे स्ट्रिंगर जो किसी मीडिया संस्थान में कार्यरत नहीं होते, अक्सर कठिन परिस्थितियों में काम करते हैं और उसके लिए उन्हें उचित धन भी अक्सर नहीं मिलता. अर्चित ने बताया कि उनके पिता को उन अखबारों से कोई मदद नहीं मिली जिनके लिए वह काम करते थे.
अर्चित कहते हैं, "कम से कम पत्रकारों की मदद के लिए सरकार को आगे आना चाहिए. मेरे पिता अपने को वैक्सीन भी नहीं लगा सके. वे रायगढ़ में कोविड की परिस्थितियों पर रिपोर्ट करने के लिए रोज़ घूमते थे. इन कहानियों को बाहर लाने के लिए उन्होंने अपनी जान दांव पर लगाई. सरकार को उन्हें एक फ्रंटलाइन कर्मचारी मानकर और उन्हें स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराई जाएं व इसके साथ पत्रकारों के परिवारों को भी कुछ आर्थिक मदद मिलनी चाहिए. किसी तरह की सुरक्षा तो होनी ही चाहिए."
पिछले कुछ दिनों में अनेक राज्यों ने पत्रकारों को फ्रंटलाइन कर्मचारी घोषित कर दिया है, इनमें तमिलनाडु, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, गोवा, ओडिशा, मध्य प्रदेश और बिहार शामिल हैं.
अभी तक महाराष्ट्र ने ऐसा नहीं किया है. 5 मई को राज्य के राजस्व मंत्री बालासाहेब थोराट ने पत्रकारों को बताया कि उन्होंने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को ऐसा करने की अपील करते हुए चिट्ठी लिखी है. उन्होंने कहा, "उन्हें फ्रंटलाइन कर्मचारी मानकर वैक्सीन लगवाया जाना आवश्यक है." इस सब के दौरान राज्य में पत्रकारों के परिवार हताश हैं.
'पत्रकार जनता के लिए रिपोर्ट करते हैं'
25 वर्षीय मल्हार पवार ने पिछले साल 9 सितंबर को माथेरान में अपने पत्रकार पिता को खो दिया था. संतोष पवार 1993 से पत्रकारिता कर रहे थे और उन्होंने मराठी दैनिक साकाल के लिए दो दशक तक काम किया. 2017 से वह अपना ही एक न्यूज़ पोर्टल चला रहे थे.
मल्हार कहते हैं, "उन्हें उसके एक रात पहले शरीर में दर्द था और 9 सितंबर को उन्हें सांस लेने में दिक्कत महसूस होने लगी. हम उन्हें कर्जत के उप जिला अस्पताल में ले गए. उनका ऑक्सीजन का स्तर तेजी से नीचे गिर गया था लेकिन वहां पर कोई वेंटिलेटर उपलब्ध नहीं था."
लाचार होकर परिवार ने संतोष को 42 किलोमीटर दूर, नवी मुंबई के डीवाई पाटिल अस्पताल ले जाने का प्रयास किया. मल्हार ने बताया, "हम एक एंबुलेंस लाए. लेकिन वह कार्डियक एम्बुलेंस नहीं थी. जब तक हम अस्पताल पहुंचे, वे मर चुके थे."
मल्हार बताते हैं, राजेश टोपे के द्वारा पत्रकारों के लिए दुर्घटना की परिस्थिति में 50 लाख रुपए के अनुदान की घोषणा कुछ महीने पहले किए जाने के बावजूद भी उन्हें सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिली.
उन्होंने कहा, "सरकार अब यू-टर्न लेने की कोशिश कर रही है. पत्रकार अपने संपादकों के द्वारा कहे जाने के बाद जमीन पर काम करते हैं, यह उनका काम है और वे जाने से मना नहीं कर सकते. बाहर रिपोर्ट करते हुए कई युवा पत्रकार अपनी जान गंवा चुके हैं. सरकार पत्रकारों के लिए कुछ नहीं कर रही है. उन्हें समझना चाहिए कि यह काम बहुत ज़रूरी है और पत्रकार अपनी जान दांव पर लगा रहे हैं."
मराठी पत्रकार परिषद के प्रमुख एसएम देशमुख ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि यूनियन 4 महीने से मुख्यमंत्री ठाकरे से गुजारिश कर रही है, कि वे पत्रकारों को फ्रंटलाइन कर्मचारी घोषित कर दें.
वे बताते हैं, "हमारी मांगे बहुत जायज़ थीं. महाराष्ट्र में कई पत्रकार इसलिए गुजर गए क्योंकि उन्हें ऑक्सीजन या वेंटिलेटर नहीं मिल पाए. इसीलिए हमने यह मांग की कि अस्पतालों में दो बिस्तर पत्रकारों के लिए सुरक्षित किए जाएं."
मंत्री टोपे की 50 लाख बीमा की घोषणा पर देशमुख कहते हैं, "हम जानते हैं कि वह इस वादे को पूरा नहीं करेंगे. इसीलिए हमने 5 लाख के मुआवजे की मांग की (पत्रकारों के परिवारों के लिए). लेकिन सरकार वह भी देने को राजी नहीं है. हमारी आखिरी मांग पत्रकारों को वैक्सीन दिए जाने की थी. अब बताइए हमारी कौन सी मांग नाजायज है? सभी मांगे साधारण और वाजिब हैं जिन्हें सरकार आसानी से पूरा कर सकती है."
देशमुख यह भी बताते हैं कि महामारी के असर और आर्थिक मंदी की वजह से कई पत्रकार कम वेतन पर काम कर रहे हैं, "इनमें से बहुत से स्ट्रिंगर हैं जो जमीन पर काम करते हैं और उन्हें तनख्वाह भी नहीं मिलती. सरकार को इन सारे आयामों को ध्यान में रखकर पत्रकारों की सलामती के हित में निर्णय लेना चाहिए."
मुंबई में टीवी जर्नलिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष विनोद जगदाले ने कहा कि अगर दूसरे राज्य, पत्रकारों को फ्रंटलाइन कर्मचारियों या "कोविड योद्धाओं" में शामिल कर उन्हें वैक्सीन लगवाने में प्राथमिकता दे सकते हैं, तो महाराष्ट्र ऐसा क्यों नहीं कर सकता?
कोविड संबंधित पाबंदियों को लेकर वह कहते हैं, "मान्यता प्राप्त पत्रकार भी मुंबई की लोकल ट्रेनों में नहीं चल सकते. वे रिपोर्ट करने के लिए दुपहिया वाहनों पर लंबी दूरियां तय करते हैं. यह सरासर अन्याय है."
जगदाले ने यह भी कहा कि उद्धव ठाकरे खुद एक "पत्रकार और अच्छे फोटोग्राफर" हैं, और वे बाल ठाकरे के द्वारा शुरू किए गए मराठी अखबार सामना के प्रमुख भी हैं. वे पूछते हैं, "इसके बावजूद वह पत्रकारों के साथ ऐसा बर्ताव कैसे कर सकते हैं? पत्रकार जमीन पर काम करते हैं और फिर वह अपने घरों को वापस जाते हैं, जहां पर उनके बच्चे और परिवार वाले होते हैं. वे अपने परिवार वालों की जान खतरे में डालने से डर रहे हैं और अपना काम भी कर रहे हैं."
मुंबई की एक वरिष्ठ पत्रकार गीता सेषु ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि पत्रकार व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं बल्कि जनता के लिए रिपोर्ट करते हैं. "सरकार ने स्वास्थ्य कर्मचारियों, जन सुविधा कर्मचारियों और कानून व्यवस्था चलाने वालों को फ्रंटलाइन कर्मचारी की मान्यता दी है. उन्हें यह समझने की आवश्यकता है कि पत्रकार भी इस असाधारण परिस्थिति में एक सेवा ही प्रदान कर रहे हैं."
न्यूजलॉन्ड्री ने महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे को एक विस्तृत प्रश्नावली, पत्रकारों को 50 लाख रुपए के बीमा और उन्हें फ्रंटलाइन कर्मचारियों के रूप में मान्यता दिए जाने को लेकर भेजी. जिसका कोई जवाब नहीं आया है. उनकी तरफ से कोई भी जवाब आने पर उसे इस रिपोर्ट में जोड़ दिया जाएगा.
Also Read
-
‘They find our faces disturbing’: Acid attack survivor’s 16-year quest for justice and a home
-
From J&K statehood to BHU polls: 699 Parliamentary assurances the government never delivered
-
Let Me Explain: How the Sangh mobilised Thiruparankundram unrest
-
TV Newsance 325 | Indigo delays, primetime 'dissent' and Vande Mataram marathon
-
The 2019 rule change that accelerated Indian aviation’s growth journey, helped fuel IndiGo’s supremacy