Ground Report Videos
कोविड की चपेट में आने से पहले अस्पताल की लापरवाही से मर रहे हैं मरीज़
गोरखपुर और सिद्धार्थ नगर में अस्पताल प्रशासन की बड़ी लापरवाही से कई कोविड मरीज़ों की जान चली गई. गोरखपुर सदर अस्पताल में भर्ती भानु प्रताप मिश्रा की हालत नाज़ुक थी लेकिन वार्ड में कोई डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ़ मौजूद नहीं था. वहीं सिद्धार्थ नगर के जिला अस्पताल में आधे घंटे के लिए ऑक्सीजन सप्लाई रुकने से चार मरीज़ों की मौके पर ही मौत हो गई. उत्तर प्रदेश में अब भी कई स्वास्थय केंद्रों पर ताला लगा हुआ है जिस कारण वहां पहुंचे मरीज़ों की जांच नहीं हो सकी और गेट के बाहर ही दम तोड़ दिया.
मिश्रा के पिता भानु प्रताप मिश्रा को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी. तीन मई से उनकी तबीयत बिगड़नी शुरू हुई. उनकी सांस फूल रही थी. मनोज तुरंत अपने पिता को गोरखपुर सदर अस्पताल लेकर दौड़े लेकिन उनकी कोविड रिपोर्ट नेगेटिव निकली. इमरजेंसी में एक भी बेड खाली नहीं था. मनोज अपने पिता को घर ले आये. बहुत ढूंढ़ने पर भी उन्हें ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं मिल पाया. उनके पिता की तबीयत अब ज़्यादा बिगड़ने लगी. कई बार कॉल करने के बाद एम्बुलेंस उनके घर आई. रात को साढ़े दस बजे मनोज अपने पिता को लेकर सदर अस्पताल पहुंचे लेकिन बेड की कमी के कारण उनके पिता को बेड देने से मना कर दिया गया. न्यूज़लॉन्ड्री की टीम जब सदर अस्पताल पहुंची तब मनोज के पिता कोविड इमरजेंसी वार्ड में गंभीर अवस्था में लेटे हुए थे. उन्हें सांस लेने में बहुत तकलीफ हो रही थी. मनोज ने बताया, "रात को दस बजे से अस्पताल के बाहर बैठे रहे. पिताजी से सांस नहीं ली जा रही थी. सब तमाशा देखते रहे लेकिन कोई भर्ती करने वाला नहीं था. दो घंटे बाद रात साढ़े बारह बजे जैसे-तैसे बेड मिला,"
मनोज आगे कहते हैं, "रात को डॉक्टर और पूरा स्टाफ़ सो गया. मेरे पिता को कम से कम 10 लीटर ऑक्सीजन की आवश्यकता थी. ढाई लीटर ऑक्सीजन चढ़ाकर स्टाफ़ रात को गायब हो गया. मैं रोता रहा कहीं पिताजी को कुछ हो गया तो किसे बुलाऊंगा. नर्स और डॉक्टर दोनों कोविड वार्ड से गायब थे. सब सो रहे थे."
उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री के साथ कुछ वीडियो भी साझा किये हैं जिनमे साफ़ दिखाई दे रहा है कि रात को अस्पताल में मेडिकल स्टाफ गायब था. मनोज कहते हैं कि जब वो अपने पिता को अस्पताल लाए तो उनके पिता का ऑक्सीजन लेवल चेक करने के लिए अस्पताल के पास ऑक्सीमीटर भी नहीं था. अस्पताल बार-बार मनोज पर पिता को बीआरडी मेडिकल कॉलेज ले जाने का दबाव बना रहा था.
मनोज मेडिकल स्टाफ़ की लापरवाही से तंग आकर चार मई की सुबह वो सीएमओ सुधाकर पांडेय के घर उनसे मिलने पहुंच गए. मनोज ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "सुधाकर पांडेय से जब उन्होंने अस्पताल प्रशासन की शिकायत की तो उल्टा सुधाकर पांडेय ने कहा कि अगर प्रशासन ऑक्सीमीटर नहीं दे रहा तो जाकर खुद खरीद लें."
चार मई को जब हमारी मुलाक़ात मनोज के पिता से हुई तब उस समय उनके पिता बेड पर लेटे थे लेकिन उन्हें सांस लेने में काफी तकलीफ हो रही थी. वो बेड पर बिलबिला रहे थे. उन्हें फेफड़ों में खिचाव था. लेकिन वार्ड में कोई डॉक्टर या स्वास्थ्यकर्मी मौजूद नहीं था. अफ़सोस चार मई रात दस बजे मनोज के पिता 85 वर्षीय भानु प्रताप मिश्रा की अस्पताल में ही मौत हो गई. मनोज ने अस्पताल प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए कहा, "प्रशासन मनमाने तरीक़े से इलाज कर रहा है. वो देख रहे हैं कौन मरीज़ मरे और बेड खाली हो. वे अस्पताल प्रशासन पर मुकदमा दायर करेंगे."
ये हाल केवल मनोज का ही नहीं है. गोरखपुर के दो बड़े अस्पताल बीआरडी मेडिकल कॉलेज और सदर अस्पताल में मरीज़ों को वेटिंग में नंबर लगाए जा रहे हैं. जिसकी वजह से मरीज़ को एक से दो घंटा अस्पताल के बाहर इंतज़ार करना पड़ रहा है. इस इंतज़ार के बीच मरीज़ की मौत हो जा रही है. 50 वर्षीय रामजीत के बेटे मुन्नू को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी. उनकी एम्बुलेंस एक घंटे से बीआरडी अस्पताल के बाहर अपने नंबर का इंतज़ार कर रही थी. रामजीत के बेटे को पांच दिन से तेज़ बुखार आ रहा था. फिर सांस लेने में दिक्कत होने लगी. उन्होंने तुरंत एम्बुलेंस को कुशीनगर बुलाया. दो घंटे का सफर तय कर जब एम्बुलेंस बीआरडी मेडिकल कॉलेज पहुंची तो उनको जगह नहीं मिली. एम्बुलेंस एक घंटे तक अस्पताल के बाहर खड़ी रही. मन्नू को किसी तरह एम्बुलेंस में रखे ऑक्सीजन सिलेंडर से ऑक्सीजन दी जा रही थी लेकिन उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा था. दो घंटे इंतज़ार और जब सिलेंडर में आधे घंटे का ऑक्सीजन ही बचा था तब जाकर मन्नू को एक बेड दिया गया.
स्वास्थय मंत्री के क्षेत्र में बंद पड़े हैं स्वास्थ्य केंद्र
आये दिन उत्तर प्रदेश से कई वीडियो वायरल हो रहे हैं. इनमे से एक वीडियो यूपी के स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह के क्षेत्र, सिद्धार्थ नगर से वायरल हुआ. इस वीडियो में रवि नाम का एक शख्स अस्पताल पर ऑक्सीजन सप्लाई बंद करने का आरोप लगाता दिखाई दे रहा है. घटना चार मई की है जब सिद्धार्थ नगर जिला अस्पताल में एक ही समय पर एक साथ चार कोविड मरीज़ों की मौत हो गई. प्रशासन की तरफ से जारी प्रेस विज्ञप्ति में ये दलील दी गई है कि इन मरीज़ों की मौत दिल की गति रुकने से हुई है.
न्यूज़लॉन्ड्री ने रवि से बात की. उन्होंने बताया, "उनकी मां फूलमती देवी को 29 अप्रैल को अस्पताल में भर्ती किया गया जिसके बाद से उनकी मां की तबीयत में सुधार आ रहा था लेकिन डॉक्टर और अन्य मेडिकल स्टाफ़ की लापरवाही ने उनकी मां की जान ले ली. मैं सुबह पांच बजे मां को देखने के लिए अस्पताल गया. वहां देखा चार लोग बेड पर मरे पड़े हुए हैं. कोई टॉयलेट में पड़ा हुआ है, कोई बेड पर सिकुड़ा पड़ा है तो किसी की गर्दन बेड से नीचे लटक रही है. उस समय वार्ड में कोई डॉक्टर नहीं था. मैं वीडियो बनाने लगा. उस समय तक भी कोई स्वास्थ्य कर्मचारी देखने नहीं आया कि मरीज़ किस स्थिति में पड़े हुए हैं. एक शख्स घंटों से टॉयलेट के अंदर मरा पड़ा हुआ था लेकिन कोई मेडिकल स्टाफ़ उन्हें देखने नहीं आया. वो वहीं पड़े रहे जब तक हमने जाकर शिकायत नहीं की."
रवि का कहना है, "रात को आधे घंटे के लिए ऑक्सीजन की सप्लाई रोक दी गई जिसके चलते उनकी मां फूलमती समेत कोविड वार्ड में भर्ती तीन अन्य मरीज़ मीना कुमारी, परशुराम और मुकेश की मौत हो गई."
फूलमती के पोते विनोद भी मेडिकल स्टाफ़ की तरह काम करते हैं. पिछले साल उन्होंने कई कोविड मरीज़ों की देख-रेख की जिसके लिए उन्हें 'कोविड वारियर' से सम्मानित भी किया गया. लेकिन अफ़सोस वो अपनी दादी की जान नहीं बचा सके.
"अस्पताल कई बार ऑक्सीजन सप्लाई बिना बताए रोक देता है. अस्पताल में कौन से डॉक्टर की किस समय ड्यूटी लगी है इसका भी किसी को हिसाब नहीं पता रहता. अस्पताल का मैनेजमेंट पूरा लापरवाही से चल रहा है. मेरी दादी भी कह रही थीं कि उनका अस्पताल में कोई ध्यान नहीं रख रहा और उन्हें यहां से ले चलो. दवा मरीज़ के सामने रख दी जाती है. रात का भोजन खिलाने वाला कोई नहीं है. डॉक्टर राउंड पर नहीं जा रहे कि मरीज़ की हालत कैसी है. केवल फ्री का वेतन ले रहे हैं," विनोद ने कहा.
इस हादसे में प्रीति और पूजा ने अपनी मां को खो दिया. उन्होंने बताया कि उनको मां की मौत की जानकारी फोन पर रवि ने दी. हादसे को हुए एक घंटा हो गया था लेकिन अस्पताल की तरफ से उन्हें सूचना देने के लिए कॉल नहीं किया गया. प्रीति बताती हैं, "सीएमओ और डीएम ने आश्वासन दिया था कि हादसे की पड़ताल करेंगे लेकिन अस्पताल के किसी भी कर्मचारी या डॉक्टर पर कोई कार्रवाई नहीं की गई. सीएमओ सर आए लेकिन बिना किसी पूछताछ के पीछे वाले दरवाज़े से ही चले गए. हमें कहा गया था कि अस्पताल के खिलाफ जांच की जाएगी लेकिन इसके विपरीत दलीलें देकर अस्पताल प्रशासन को बचाने का प्रयास किया जा रहा है,"
वहीं पूजा अस्पताल में डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मचारियों की लापरवाही के बारे में कहती हैं, "अस्पताल में कोई कॉल नहीं उठाता. हम बिस्कुट के पैकेट और जूस रखकर आये थे लेकिन कोई खिलाने वाला नहीं था. अगले दिन तक खाना यूं ही पड़ा रहता था."
शोहरतगढ़ स्वास्थ्य केंद्र में सोता रहा स्टाफ़, नहीं आए डॉक्टर
सिद्धार्थ नगर का शोहरतगढ़ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बार-बार अपने लापरवाह रवैये के लिए सुर्ख़ियों में आ रहा है. मड़वा गांव की सांवरी देवी अपने पति को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के बाहर लेकर बैठी रहीं, वह रोती और बिलकती रहीं लेकिन अस्पताल के गेट पर जो ताला लटका हुआ था उसे कोई खोलने नहीं आया. आसपास कोई गाड़ी या एम्बुलेंस नहीं थी न इतना समय कि वो अपने पति बाल मुकुंद दुबे को कहीं और इलाज के लिए ले जातीं. एम्बुलेंस वाला सांवरी देवी को अस्पताल उतारकर चला गया. सांवरी देवी मदद के लिए चिल्लाती रही लेकिन डॉक्टर नहीं आये और उनके पति की मौके पर ही मौत हो गई. न्यूज़लॉन्ड्री की टीम जब सांवरी देवी से मिलने मड़वा गांव पहुंची तब सांवरी देवी कुछ बोलने की हालत में नहीं थीं. हादसे ने उनकी मानसिक स्थिति पर असर डाला है. वो पूरा दिन पति को याद करके गाना गाती रहती हैं.
वहीं शोहरतगढ़ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का एक और वीडियो सामने आया है. इस वीडियो में अस्पताल का मेन गेट बंद होने के कारण इलाज कराने एंबुलेंस से पहुंचे सुशील की पत्नी की मेन गेट बंद व डॉक्टरों की गैरमौजूदगी के कारण एंबुलेंस में तड़प तड़प कर मौत हो गई.
"नौ मई को सुशील की पत्नी की तबीयत बिगड़ने लगी. घबराकर उन्होंने सुबह चार बजे एम्बुलेंस को कॉल किया. एम्बुलेंस डेढ़ घंटे बाद पहुंची. अस्पताल पहुंचे तो वहां डॉक्टर नहीं थे. स्टाफ सो रहा था. उन्हें लगातार कॉल किया गया. नींद खुली होगी, तब डॉक्टर आये. जांच से पहले कह रहे थे पीपीई किट नहीं है इसलिए मरीज़ को नहीं देखेंगे. बहुत अनुरोध के बाद डॉक्टर ने दूर से मेरी पत्नी की जांच की और कहा कि इन्हे नौगढ़ अस्पताल ले जाइए. इनकी सांसें रुक रही हैं. रेफेरल लेटर तैयार होता इस से पहले ही नीतू ने एम्बुलेंस में दम तोड़ दिया," सुशील ने बताया.
सभी परिवार वाले अस्पताल के खिलाफ सख्त कार्रवाई चाहते हैं. उनका मानना है कि एक तरफ उत्तर प्रदेश में ऑक्सीजन और बेड की कमी मरीज़ों की जान ले रही है दूसरी तरफ अस्पताल में प्रशानिक लापरवाही और मनमानी मरीज़ की हत्या की ज़िम्मेदार है. ऐसे में परिजन जल्द ही अदालत का रुख कर सकते हैं.
कोविड वार्ड में रिपोर्टिंग करने से पत्रकारों को रोक रहा है प्रशासन
पांच मई को न्यूज़लॉन्ड्री की एक टीम गोरखपुर के जिला अस्पताल रिपोर्टिंग करने पहुंची. उस समय इमरजेंसी के बाहर कई मरीज़ों का आना-जाना लगा हुआ था. बगल में टेस्टिंग चल रही थी. जब पुलिस ने देखा कि पत्रकार आये हैं, तब वे चौकन्ना हो गए और कहा कि अस्पताल में किसी भी कोविड मरीज़ का इलाज नहीं हो रहा और रिपोर्टिंग के लिए बीआरडी मेडिकल कॉलेज चले जाएं. रिपोर्टर शिवांगी जैसे तैसे इमरजेंसी कोविड वार्ड के अंदर पहुंचीं तब मरीज़ों के परिजन उनसे बात करने लगे. उस समय कोई मेडिकल स्टाफ़ या डॉक्टर वार्ड में मौजूद नहीं थे. अचानक एक नर्स ने आकर मोबाइल बंद करवा दिया. लेकिन जब रिपोर्टर दोबारा शूट करने लगीं तो उस समय मेडिकल स्टाफ के एक अन्य व्यक्ति ने उनके पास आकर चिल्लाना शुरू कर दिया. कहने लगे कि बिना मेडिकल अफसर की इजाज़त लिए यहां पर रिपोर्टिंग करने की अनुमति नहीं है, तुरंत वार्ड से बाहर निकलिए. उस समय मरीज़ों के परिजन आगे आये और रिपोर्टिंग के लिए मना कर रहे कर्मचारी को समझाने लगे.
***
सुनिए न्यूज़लॉन्ड्री हिंदी का रोजाना खबरों का पॉडकास्ट: न्यूज़ पोटली
Also Read
-
‘Not a Maoist, just a tribal student’: Who is the protester in the viral India Gate photo?
-
130 kmph tracks, 55 kmph speed: Why are Indian trains still this slow despite Mission Raftaar?
-
Supreme Court’s backlog crisis needs sustained action. Too ambitious to think CJI’s tenure can solve it
-
Malankara Society’s rise and its deepening financial ties with Boby Chemmanur’s firms
-
Govt is ‘judge, jury, and executioner’ with new digital rules, says Press Club of India