Report
बंगाल चुनाव: मोदी और योगी की रैलियों वाले चुनाव क्षेत्रों में बीजेपी का प्रदर्शन?
“2 मई दीदी गई… दीदी... ओ दीदी... लव जिहाद रोकेंगे… 2 मई के बाद बंगाल में टीएमसी के गुंडे अपनी जान की भीख मांगेंगे… जो राम का द्रोही, वो काम का नहीं…”
ऐसे और भी भड़काऊ और सांप्रदायिक भाषण हमने पश्चिम बंगाल चुनावों के दौरान सुना और देखा. वैसे तो हमारे देश में चुनावी प्रकिया के दौरान इस तरह के भाषण अब सामान्य हो चुके हैं लेकिन पश्चिम बंगाल के लिए यह एकदम नया था क्योंकि पहली बार विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने अपना लगभग सबकुछ झोंक दिया था.
पश्चिम बंगाल का चुनाव जीतने के लिए बीजेपी ने वह हर कोशिश की जिससे चुनाव जीता जाता है. बीजेपी ने अपने सर्वोच्च नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत हर उस नेता की ज्यादा से ज्यादा रैलियां आयोजित कराई जिनसे पार्टी को उम्मीद रहती है. सांप्रदायिक रंग देने के लिए योगी आदित्यनाथ और अन्य नेता थे, वहीं विकास की बात करने के लिए पीएम मोदी.
इन चुनावों में बीजेपी ने 77 सीट पर जीत हासिल की. 2016 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के पास मात्र 3 सीटें थी. यानी की उसे कुल 74 सीटों का फायदा हुआ. ना सिर्फ सीटों का, बल्कि वोट प्रतिशत में बीजेपी को बड़ा फायदा हुआ है. 2016 में पार्टी को 10.36 प्रतिशत वोट मिला था वहीं 2021 के चुनावों में उसे 38.1 प्रतिशत वोट मिला है.
इतना अच्छा प्रदर्शन भी उसे सत्ता में लाने के लिए नाकाफी साबित हुआ. असल में जिस तरह से 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने बंगाल में जीत हासिल की थी तभी से वह विधानसभा चुनावों को टारगेट कर रही थी, ऐसा लग रहा था कि बीजेपी आज़ादी के बाद शायद पहली बार बंगाल में अपनी सरकार बना ले लेकिन वह सपना पूरा नहीं हो सका.
पीएम नरेंद्र मोदी की रैलियां
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विकास और डबल इंजन सरकार की बात इन चुनावों में कर रहे थे. साथ में वो ममता बनर्जी के गुंडाराज की भी दुहाई देते थे. लेकिन यह जगजाहिर है कि बीजेपी का असली हथियार हिंदुत्व ही था. जय श्रीराम को उसने पूरी तरह से बंगाल का चुनावी नारा बना दिया था. प्रधानमंत्री ने धर्म के आधार पर भेदभाव की बात की और धर्म को लेकर टीएमसी और अन्य पार्टियों पर निशाना साधा.
प्रधानमंत्री ने पश्चिम बंगाल के रण में बीजेपी को जिताने के लिए कुल 18 रैलियां की. वैसे तो उनके लिए कुल 20 रैलियां प्रस्तावित थी लेकिन आखिरी चरण में कोरोना महामारी को लेकर चारों तरफ आलोचनाओं से घिरने और चुनाव आयोग द्वारा रैलियों में 500 लोगों की संख्या सीमित करने के बाद सातवें और आठवें चरण में पीएम की रैलियां स्थगित हो गईं.
हमने पीएम मोदी की सभी रैलियों को जिलेवार बांटकर उन सभी जिलों की विधानसभा सीटों का जीत का प्रतिशत निकाला. प्रधानमंत्री ने कुल 18 रैलियों के जरिए 14 जिलों को कवर किया. इन 14 जिलों की सभी सीटों को मिला दे तो कुल 214 विधानसभा सीटें होती है. यानी की बीजेपी ने पीएम की रैलियों के जरिए 200 से अधिक विधानसभा सीटों को कवर किया. बीजेपी को उम्मीद थी कि पीएम की शख्सियत का फायदा उसे बंगाल में मिलेगा जैसा अन्य प्रदेशों में देखने को मिला था.
214 विधानसभा सीटों में से बीजेपी मात्र 52 सीटें जीत पाई. यानी की उनकी जीत का प्रतिशत 24.3 रहा. वहीं टीएमसी ने 161 सीटों पर जीत दर्ज की. एक सीट पर अन्य पार्टी ने जीत दर्ज की. इन 14 जिलों में पीएम ने दो जिले, साउथ 24 परगना और नॉर्थ 24 परगना मुस्लिम बहुल इलाके हैं. इन दोनों जिलों की 64 सीटों में बीजेपी मात्र 5 सीटों पर जीत दर्ज कर पाई. वहीं टीएमसी 58 और एक सीट पर अन्य ने जीत दर्ज की.
एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा होता है कि क्या बीजेपी के हिन्दू ध्रुवीकरण ने मुस्लिमों का काउंटर ध्रुवीकरण कर दिया, जिसके कारण टीएमसी ने इन इलाकों में एकतरफा जीत हासिल की. इस पर चुनाव विश्लेषक और रिसर्चर आशीष रंजन कहते हैं, “बीजेपी के हिंदू ध्रुवीकरण से मुस्लिम एकजुट हुए हैं, यह पूरी तरह से सही है, अगर आप देखें तो 2019 लोकसभा चुनावों में 70 प्रतिशत मुस्लिम वोट टीएमसी को मिले थे लेकिन इस बार वह बढ़कर 75 प्रतिशत हो गया, यानी की मुसलमानों ने एकतरफा वोट टीएमसी को दिया है.”
क्या कांग्रेस और लेफ्ट के परंपरागत वोट बैंक मुस्लिम उनसे दूर हो गया है. इस पर आशीष कहते हैं, “यह तो चुनाव परिणामों में साफ दिख रहा है कि कांग्रेस को सिर्फ 2.93 प्रतिशत वोट मिला, जबकि लेफ्ट को कुल 5 प्रतिशत के करीब. लेकिन 2016 विधानसभा चुनावों के परिणाम को देखें तो लेफ्ट और कांग्रेस का साझा वोट करीब 32 प्रतिशत था. यानी की दोनों की पार्टियों का वोट बैंक खिसक चुका है जो बीजेपी की तरफ शिफ्ट हो गया है.”
प्रधानमंत्री की रैली को अगर विधानसभा सीटों के अनुसार देखे तो कुल 18 विधानसभा में से 7 सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की है. यहां ध्यान देने वाली बात यह हैं कि पीएम ने कोलकाता में दो और हुगली में दो रैलियां की थी. वहीं एक रैली आसनसोल में की थी. वहां का परिणाम हमने नहीं जोड़ा है.
आशीष बताते हैं, “विधानसभा वार जीत से आप समझ पाएंगे की पीएम की रैलियों का कितना प्रभाव पड़ा है.” आशीष खुद भी बंगाल में चुनावी मूड को समझने के लिए वहां गए थे. वह कहते हैं, “ऐसा कई बार होता हैं कि प्रधानमंत्री और बड़े नेताओं की रैलियों में प्रदेश के हर हिस्से से लोग आते है, इसका मतलब है कि उनकी रैलियों का प्रभाव हर सीट पर होता है. लेकिन जिस विधानसभा सीट पर वह रैली करते हैं उसका ज्यादा महत्व होता है.”
योगी आदित्यनाथ की रैलियां
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी पूरे दमखम के साथ अपने ब्रांड के अनुरूप ही रैली की. अपने ब्रांड के अनुरूप से अर्थ हैं… तुष्टीकरण की राजनीति, गुंडों को सूली पर चढ़ाने वाला बयान और हिंदू-मुस्लिम आदि. योगी आदित्यनाथ की रैलियां मार्च में शुरू हुईं और अप्रैल के पहले सप्ताह तक ही उन्होंने बंगाल में रैलियां की. 8 अप्रैल को बंगाल में उनकी आखिरी रैली थी, जिसके कुछ समय बाद उन्हें कोरोना हो गया, उसके बाद वो बंगाल रैली करने नहीं गए. बीजेपी के ‘जय श्रीराम’ वाले नारे को पूरे बंगाल में योगी ने रफ्तार दी. शायद उन्हें इसी के लिए लाया गया था, ताकि वह राज्य में हिंदू वोटों को बीजेपी के तरफ खींच पाएं.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कुल 19 रैलियां बंगाल में की थी. अगर इन सभी रैलियों को जिलेवार बांट दें तो कुल 149 सीटें होती है. जिनमें से 37 सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की, टीएमसी ने 111 सीटों वहीं एक सीट पर अन्य ने जीत दर्ज की. अगर जीत के प्रतिशत की बात करे तो यह लगभग 24.8 होगा. योगी आदित्यनाथ ने 19 रैलियों के जरिए कुल 11 जिलों को कवर किया था.
इस दौरान उन्होंने हुगली में 6, हावड़ा में 3, पश्चिम मेदिनीपुर और साउथ 24 परगना में दो-दो रैलियां की. योगी आदित्यनाथ की रैलियों का प्रतिशत प्रधानमंत्री से थोड़ा ही बेहतर रहा.
योगी आदित्यनाथ की रैलियों पर बात करते हुए आशीष कहते है, “मैं उनके बारे में ज्यादा नहीं बात कर सकता. वह अपने राज्य में कानून व्यवस्था को संभाल नहीं पा रहे, वहां महिलाओं के साथ क्या हो रहा है उस पर कोई ध्यान नहीं है. लेकिन बंगाल में जाकर वह एंटी रोमियो स्कॉड, गुंडों को फांसी पर लटकाने और महिलाओं की सुरक्षा की बात करते हैं.”
हालांकि आशीष कहते हैं, "बीजेपी की हिंदू ध्रुवीकरण की जो कोशिश थी उसी का नतीजा है कि वह 77 सीटें जीत पाई. इसमें कोई संदेह नहीं हैं कि हिंदूओं ने बड़ी मात्रा में बीजेपी को वोट दिया है. लेकिन यह कहना सहीं नहीं हैं कि हिंदुओं ने टीएमसी को वोट नहीं दिया. टीएमसी को 48 प्रतिशत वोट मिला है जिसका मतलब हैं कि उसे सभी वर्गों से वोट मिला है."
वह कहते है, "बहुत से लोग यह बात कह रहे हैं कि बीजेपी के लिए यह जीत बहुत बड़ी है. लेकिन मैं इन लोगों से बिल्कुल भी सहमत नहीं हूं. इसका कारण है कि 2019 में हुए लोकसभा चुनावों को विधानसभा वार अगर देखे तो बीजेपी 128 सीटों पर आगे थी. वहीं टीएमसी 158 सीटों पर. इस लिहाज से बीजेपी 128 से घटकर 77 पर आ गई. वहीं 40 प्रतिशत वोट से घटकर 38 प्रतिशत पर आ गई यानी की दो प्रतिशत वोट का भी नुकसान हुआ है."
अगर टीएमसी को देखें तो उसकी सीटें 158 से बढ़कर 213 हो गई. वोट प्रतिशत की बात करे तो 43.3 प्रतिशत से वह बढ़कर 47.9 प्रतिशत हो गया. योगी आदित्यनाथ की रैलियों के प्रभाव पर सीएसडीएस के संजय कुमार कहते हैं, "बीजेपी कोशिश करती है की चुनावों में हिंदू विचारधारा को मुख्य मुद्दा बना दिया जाए और फिर योगी आदित्यनाथ की रैलियों के द्वारा उसे अपने पक्ष में कर लिया जाए. लेकिन चुनावी मुद्दे कई तरह के होते हैं और जब मतदाता वोट देने जाता है तो वह सिर्फ हिंदू विचारधारा से प्रेरित होकर वोट नहीं देता है. उसके पास कई मुद्दे होते है. इस वजह से कई बार हमें यह देखने को मिलता है कि जहां योगी आदित्यनाथ ने रैलियां की वहां बीजेपी बहुत बड़ी जीत हासिल नहीं कर पाई."
योगी आदित्यनाथ की रैलियों को अगर विधानसभा सीटों के नजरिए से देखे तो 19 सीटों में से बीजेपी 7 सीटें जीती वहीं टीएमसी ने 12 सीटों पर जीत दर्ज की. पीएम की तरह ही योगी आदित्यनाथ ने भी मुस्लिम बहुल इलाकों में भी रैलियां की जैसी बांग्लादेश की सीमा से सटे मालदा में जहां निर्णायक संख्या में मुस्लिम जनसंख्या है. उत्तर दिनाजपुर और हावड़ा में भी योगी की रैलियां हुई हैं जहां बीजेपी ने हिंदू वोटों को एकजुट करने की कोशिश की लेकिन चुनाव परिणामों में वह नहीं दिखा.
संजय कुमार आगे कहते हैं, "योगी फ्लॉप हुए या नहीं या कहना ठीक नहीं है. क्योंकि बीजेपी के लोग योगी आदित्यनाथ से उम्मीदें बहुत ज्यादा करने लगे हैं. भाजपा में लोगों को लगने लगा है कि पीएम मोदी और योगी की रैलियों से चुनाव जीता जा सकता हैं. लेकिन ऐसा नहीं है."
वह कहते हैं, "साल 2014 के बाद से विधानसभा चुनावों में बीजेपी का वोट प्रतिशत हमेशा ही गिरा है. इसका कारण है कि विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी मतदाताओं को उतना नहीं आकर्षित कर पाते हैं जितना वह लोकसभा चुनाव में करते हैं. लोगों को भी लगता हैं कि यह देश का चुनाव नहीं है उनके लिए लोकल मुद्दे और राज्य के नेता महत्वपूर्ण होते हैं इसलिए विधानसभा चुनावों में मोदी मैजिक उतना नहीं चल पाता है."
बंगाल चुनावों में बीजेपी के हार और टीएमसी की जीत को लेकर वह कहते हैं, "इन चुनावों में बहुत साफ था कि टीएमसी ही जीतेगी. इसका कारण स्पष्ट है, क्योंकि यह हमेशा से ही रहा है कि बीजेपी का वोट प्रतिशत लोकसभा चुनावों के मुकाबले राज्य चुनावों में गिरता ही है, लोकसभा चुनावों के समय बीजेपी को 40 प्रतिशत वोट मिला था. जो इन चुनावों में गिरकर 38 प्रतिशत हो गया. टीएमसी का वोट प्रतिशत देखें तो वह हमेशा से ही 43 से 45 प्रतिशत के आस-पास रहा है. तो इससे साफ था कि टीएमसी ही जीतेगी क्योंकि दोनों पार्टियों में करीब 5 प्रतिशत वोटों का अंतर है जो हार-जीत तय करता है."
***
सुनिए न्यूज़लॉन्ड्री हिंदी का रोजाना खबरों का पॉडकास्ट: न्यूज़ पोटली
Also Read
-
Corruption, social media ban, and 19 deaths: How student movement turned into Nepal’s turning point
-
India’s health systems need to prepare better for rising climate risks
-
Muslim women in Parliament: Ranee Narah’s journey from sportswoman to politician
-
Adieu, Sankarshan Thakur: A rare shoe-leather journalist, newsroom’s voice of sanity
-
Mud bridges, night vigils: How Punjab is surviving its flood crisis