NL Tippani
आज तक की व्यावसायिक श्रद्धांजलि और डंकापति के कारनामे
इस हफ्ते धृतराष्ट्र-संजय संवाद की वापसी हो रही है. कोरोना का क़हर लगातार जारी है. बीते कुछ दिनों में मरने वालों में बड़ी तादात पत्रकारों की भी है. अप्रैल महीने में दूसरी वेव शुरू होने के बाद सिर्फ दो हफ्तों के भीतर 45 पत्रकारों की मौत कोविड के चलते हो चुकी है. इन तमाम पत्रकारों के परिजनों के प्रति हमारी संवेदना और मृतकों के प्रति हमारी श्रद्धांजलि है.
बीते हफ्ते आज तक के एंकर रोहित सरदाना की मौत भी कोविड के चलते हो गई. अपने करीबी दोस्तों, परिजनों की इस तरह की अकाल मौत का लोगों पर बुरा असर होता, अक्सर लोग इन परिस्थितियों में संयत व्यवहार नहीं कर पाते. लेकिन प्रोफेशनलिज्म का यानि पेशेवर जिम्मेदारियों का तकाजा होता है कि ऐसे मौकों पर अपनी भावनाओं को काबू में रखा जाय. अगर आपका काम खबरें देना है तो ख़बर को उसकी गरिमा और मर्यादा के साथ दें. लेकिन देश के सबसे तेज़ और सबसे बड़े चैनल आज तक ने रोहित सरदाना की मौत का विद्रूप बना दिया. ऑनएयर उन दो एंकराओं को बैठाया गया जो अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पायीं. पार्श्व संगीत, भावुक करने वाले विजुअल्स और सहयोगी एंकरों का रोना-बिलखना जमकर दिखाया गया.
आज तक न तो पेशेवर रवैया अख्तियार कर पाया न ही अपने एंकर की मौत की गरिमा को बनाए रख सका. गौरतलब बात ये रही कि शोक संतप्त स्टूडियो में यह कार्यक्रम कमर्शियल ब्रेक के बिना नहीं चला, बल्कि किसी भी रोज़मर्रा के कार्यक्रम की तरह ही इसकी व्यावसायिक संभावनाओं का भरपूर दोहन किया गया. सवाल उठता है कि प्रोफेशनलिज्म का तकाजा क्या है. इंसान भावनाओं से बनता है इसलिए प्रोफेशनलिज्म कोई किताबी सिद्धांत नहीं हो सकता. लेकिन इस तरह के अवसर पर हम अतीत से कुछ सीख सकते हैं. आपको सुरप्रीत कौर की कहानी जाननी चाहिए. सुरप्रीत आईबीसी 24 नामक एक चैनल में एंकरिंग करती हैं. 2017 में उन्होंने ऑनएयर अपने पति के दुखद देहांत की खबर दुनिया को सुनाई थी.
इस पूरे घटनाक्रम के बारे में सुरप्रीत ने बाद में एक इंटरव्यू में बताया कि उन्हें पता चल गया था लेकिन बुलेटिन पूरा करने के बाद वो उठीं और फिर स्टूडियो में ही फूट-फूट कर रोने लगीं. आज एक उदाहरण आज तक ने पेश किया है जिसमें कॉर्शियल संभावनाएं हैं लेकिन मरने वाले की गरिमा नदारद है.
इस हफ्ते हमने पाया कि सत्ताधारी दल के पाले में कुछ चैनल इस क़दर लोट रहे हैं कि बीजेपी प्रवक्ता एक के बाद एक झूठ बोलते हैं, तब ये चुप रहते हैं, और दूसरा कोई उसका जवाब दे तो उसको बोलने नहीं देते. सत्ता के इस चंगुल से मीडिया को निकालने का एक ही तरीका है आप मीडिया को सबस्क्राइब करें. न्यूज़लॉन्ड्री को आपका छोटा सा सपोर्ट आजाद पत्रकारिता की रीढ़ बन सकता है. हमें सब्सक्राइब करें और गर्व से कहें मेरे खर्च पर आज़ाद हैं खबरें.
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