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संसदीय पैनल ने कोविड-19 की दूसरी लहर का अनुमान नवंबर में ही लगा लिया था

पूरे देश में हाहाकार मचाती हुई कोरोना की लहर के बीच जनता दो बड़े प्रश्न पूछ रही है. सरकार कितनी तैयार थी? क्या सरकार को आने वाली आपदा के सर्वव्यापी प्रकोप का अनुमान था?

पता चला है कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण की संसदीय कार्यकारी समिति में एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें उन्होंने एक SWOT - अर्थात मजबूरियां, कमजोरियां, अवसर व खतरों की समीक्षा नवंबर 2020 में की थी, जिसमें उन्होंने आने वाली बहुत बड़ी दूसरी लहर का अंदाजा लगाया था. रिपोर्ट में कोविड-19 की पहली लहर के दौरान ऑक्सीजन और दवाइयों की कमी को देखते हुए यह स्पष्ट कर दिया था कि अगर इन कमियों को दूर नहीं किया गया तो कोहराम मच सकता है. और हुआ भी वही उन कमियों को दूर नहीं किया गया जिसके नतीजे अब कुछ महीनों बाद हमारे सामने हैं.

31 सांसदों की इस समिति का नेतृत्व समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव कर रहे थे. समिति की रिपोर्ट जिसका शीर्षक "कोविड-19 महामारी और उसका प्रबंधन" है, को स्पीकर के कार्यालय में 25 नवंबर को दाखिल कर दिया गया और संसद के दोनों सदन, राज्यसभा और लोकसभा में इस वर्ष बजट सत्र के दौरान इसे पेश किया गया.

खतरे और कमियां

समीक्षा के "खतरे" और "कमजोरियों" वाले वर्गों में कमेटी इस निष्कर्ष पर पहुंची, “भारत में महामारी अप्रत्याशित तौर पर फैल सकती है, जिसमें यूरोप जैसी दूसरी लहर की संभावना भी है, क्योंकि कोविड के मामलों में बढ़त अभी भी ग्रस्त इलाकों में देखी जा सकती है और भारत अभी मरीजों की संख्या में अपने चरम पर नहीं पहुंचा है."

जिस दिन यह रिपोर्ट राज्यसभा के सभापति के सामने प्रस्तुत की गई, उस दिन भारत में कोविड-19 के 45,301 नए मामले आए थे और मरीजों की कुल संख्या 90 लाख को पार कर गई थी.

सोर्स- Covid19india.org

27 अप्रैल 2021 तक कोविड-19 के मरीजों की संख्या एक करोड़ 79 लाख तक पहुंच गई है और 3.5 लाख से ज्यादा नए मरीज मिले हैं.

कमेटी ने इस बात को भी इंगित किया, "प्रशासन के द्वारा बड़ी संख्या में लोगों के इकट्ठे होने पर ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे." रिपोर्ट कहती है, "भारत को आने वाली कोरोना की संभावित दूसरी लहर से लड़ने के लिए खासतौर पर मौजूदा सर्दियों के मौसम और उसके बाद आने वाले, महामारी को फैलाने के सक्षम त्योहारों आयोजनों के दौरान तैयार रहना चाहिए."

इन चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया गया. मार्च में मुंबई से गोरखपुर तक लोग बड़ी संख्या में होली मनाने के लिए इकट्ठा हुए. इसमें उत्तराखंड के हरिद्वार में आयोजित कुंभ मेला भी शामिल है जहां 27 अप्रैल को आखिरी शाही स्नान में भी बड़ी भीड़ एकत्रित हुई. इतना ही नहीं उत्तराखंड ने कर्फ्यू लगाने के लिए आखिरी स्नान तक इंतजार किया.

संसदीय समिति ने इस बात पर भी ध्यान दिलाया कि, "आंकड़े एकत्रित करने वाला तंत्र नए टेस्ट कराने वाले लोगों, आरटी पीसीआर का दूसरी जांच से अनुपात, कोविड-19 से संबंधित मौतें, अतिरिक्त बीमारियां, प्रतिरोधक क्षमता जांच के शोध और अस्पतालों में बिस्तरों की उपलब्धता की सटीक और पूरी जानकारी सही समय पर नहीं दे रहा है." रिपोर्ट में यह भी टिप्पणी की कि "केंद्र और राज्यों के बीच सामंजस्य में देरी एक खतरा है."

बहुत से राज्यों से ऐसी खबरें आ रही हैं कि किस प्रकार आंकड़ों का एकत्रीकरण बहुत गड़बड़ है और कुछ मामलों में राज्य जानबूझकर सही आंकड़े छुपा रहे हैं. कुछ अनुमान यह कहते हैं कि मरने वालों की सही संख्या, आधिकारिक संख्या से 10 से 15 गुना ज्यादा तक हो सकती है. इतना ही नहीं, इस दूसरी लहर में केंद्र और राज्य के सामंजस्य के पूरी तरह टूटने के उदाहरण हम देख चुके हैं जिनकी वजह से उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय को दखल देना पड़ा.

बड़े स्तर पर कमेटी ने "कोविड के लिए केंद्रीय बजट के बिना स्वास्थ्य सेवाओं पर अपर्याप्त खर्च" के साथ-साथ "बहुत सी जगहों पर अपर्याप्त प्राथमिक या बड़ी चिकित्सकीय व्यवस्था और कर्मचारियों की कमी को रेखांकित किया." रिपोर्ट यह भी कहती है कि, "व्यवस्थित नगरीय प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं की गैरमौजूदगी एक बड़ी कमजोरी रही है."

भारत का जन स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाला खर्च 2015-16 में सकल घरेलू उत्पाद के 0.9 प्रतिशत से बढ़कर 2020-21 मई 1.1 प्रतिशत हो गया है, लेकिन यह हमारे ही जैसे देशों से तुलना में बहुत कम है. पिछले 5 सालों में बजट का उपयोग 100 प्रतिशत से ज्यादा रहा है. इसके बावजूद 2020-21 के आर्थिक सर्वे ने दिखाया कि 189 देशों में से, सरकार के बजट में स्वास्थ्य सेवाओं को प्राथमिकता देने पर भारत 179वें स्थान पर है और सर्वे ने इस खर्चे में बढ़ोतरी की मांग की.

सुझाव

समिति ने अपनी रिपोर्ट में कई कदम, संभावित दूसरी लहर से निपटने के लिए सुझाए. रिपोर्ट कहती है, "समिति का यह मानना है कि खराब सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्थाओं वाले जिलों और राज्यों की पहचान प्राथमिकता से की जाए और उन्हें संक्रमित लोगों की पहचान, जांच और इलाज के लिए आवश्यक आर्थिक सहायता दी जाए."

ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य व्यवस्था की खस्ता हालत किसी से नहीं छुपी है और अगर दूसरी लहर गांव तक पहुंचती है तो इसके विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं. उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में कोरोनावायरस की जांच होने से पहले ही लोगों के सांस न ले पाने और बुखार से मरने की खबरें आ रही हैं.

एक और महत्वपूर्ण सुझाव मेडिकल ऑक्सीजन और अस्पतालों में बिस्तरों की कमी को लेकर था. "कोविड-19 महामारी की पहली लहर के हालातों को देखकर सांसदों ने कहा कि वह स्वास्थ्य व्यवस्था की खस्ता हालत को देखकर आहत हैं और सरकार को यह सुझाव देते हैं कि स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश बढ़ाया जाए और देश में स्वास्थ्य सेवाओं और व्यवस्थाओं के विकेंद्रीकरण के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं."

रिपोर्ट कहती है, "यह समिति इस बात का संज्ञान लेती है कि अस्पताल में बिस्तरों की कमी और जुगाड़ू वेंटिलेटरों की वजह से महामारी को रोक सकना, और भी जटिल है. जैसे-जैसे मामले बढ़ रहे हैं, एक खाली अस्पताल के बिस्तर को हड़बड़ाहट में ढूंढना भी काफी विचलित करने वाला काम हो गया है. अस्पताल के बाहर मरीजों को खाली बिस्तर ना होने की वजह से लौटा देना एक आम बात हो गई है. एम्स पटना में ऑक्सीजन सिलेंडर उठाए लोगों का इधर से उधर बिस्तर की तलाश में भागना ऐसा तथ्य है जो मानवता के दो फाड़ कर सकता है.

क्या आपको यह बात जानी पहचानी लगी? यह अभी भी हो रहा है लेकिन अब इसका प्रकोप कहीं ज्यादा और मारक है.

5 महीने पहले की 190 पन्नों की इस रिपोर्ट में कई और‌ अवलोकन, सीख और सुझाव हैं जो महामारी की आने वाली दूसरी लहर और सरकार को उसे रोकने के लिए क्या करना चाहिए, उल्लेखित है. आज की भयावह स्थिति को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि सरकार के किसी भी नीति निर्माता ने रिपोर्ट पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

सलिल आहूजा के सहयोग से.

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