Opinion
मानवता विरोधी है वैक्सीन राष्ट्रवाद और उपनिवेशवाद
कोरोना महामारी के टीके को लेकर जो रवैया धनी पश्चिमी देश अपना रहे हैं, उसे चार्ल्स डिकेंस के ‘अ टेल ऑफ़ टू सिटीज़’ की इन मशहूर शुरुआती पंक्तियों से ही इंगित किया जा सकता है- ‘वह बेहतरीन दौर था, वह सबसे बुरा दौर था, वह बुद्धि का दौर था, वह मूढ़ता का युग था… वह रौशन मौसम था, वह अंधेरे का मौसम था, वह उम्मीद का वसंत था, वह निराशा का ठंडा मौसम था..’ एक ओर दुनिया के कई देशों (ख़ासकर अफ़्रीका में) या तो टीका पहुंचा नहीं है या फिर खुराक की मामूली आपूर्ति हुई है, वहीं धनी देशों ने टीके का ज़ख़ीरा जमा कर लिया है. फ़रवरी मध्य तक 130 देशों में एक भी खुराक नहीं दी गयी थी, लेकिन अमेरिका के पास अपनी आबादी का तीन गुना टीका उपलब्ध है. ब्रिटेन अपने टीकाकरण पर 12 अरब डॉलर ख़र्च कर चुका है, जबकि अमेरिका का वैक्सीन बजट 10 अरब डॉलर का है. इनकी तुलना में यूरोपीय संघ ने खुराक ख़रीदने के लिए 3.2 अरब डॉलर का बजट रखा है.
यूरोप में धीमे टीकाकरण के अनेक कारण हैं, लेकिन जिन देशों में पर्याप्त खुराक है और तेज़ी से टीका लगाया जा रहा है, उसका सबसे बड़ा कारण धन है. इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतनयाहू ने अपने देश में तेज़ टीकाकरण की एक वजह यह बतायी है कि उन्होंने टीके के दाम को लेकर कोई हील-हवाल नहीं किया. मार्च के शुरुआती दिनों में ख़बर आयी थी कि धनी देश जहां एक सेकेंड में एक व्यक्ति को टीका दे रहे हैं, वहीं सबसे ग़रीब अधिकतर देशों में लोगों को एक खुराक भी नहीं मिली है. पिछले साल सितंबर में बाज़ार में टीका आने से पहले ही दुनिया की 13 फ़ीसदी आबादी वाले धनी देशों ने आधे से अधिक टीके की अग्रिम ख़रीद कर ली थी. संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंतोनियो गुतेरेस ने इस साल फ़रवरी में बताया था कि केवल 10 देशों में दुनियाभर का 75 फ़ीसदी टीकाकरण हुआ था, जबकि सबसे गंभीर मानवीय संकटों से जूझ रहे 32 देशों में एक फ़ीसदी से भी कम खुराक दी जा सकी थी. विश्व स्वास्थ्य संगठन का आकलन है कि ग़रीब देशों में रहने वाली सबसे कमज़ोर 20 फ़ीसदी आबादी को टीका मुहैया कराने के लिए सिर्फ़ इसी साल कम-से-कम पांच अरब डॉलर की ज़रूरत होगी.
ऐसी स्थिति में गुतेरेस की यह बात बहुत महत्वपूर्ण है कि इस समय वैश्विक समुदाय के सामने सबसे बड़ी नैतिक परीक्षा टीका समता है. बहरहाल, विभिन्न संगठनों और देशों के साझेदारी में बने कोवैक्स के ज़रिये अब तक 98 देशों में 3.80 करोड़ खुराक मुहैया करायी गयी है. इस समूह को उम्मीद है कि एक साल के भीतर 190 देशों में दो अरब खुराक पहुंचा दी जायेगी. इस कोशिश में धनी देशों द्वारा पैसा देने और उनके पास जमा टीके का कुछ हिस्सा ग़रीब देशों को देने की घोषणा से कुछ राहत मिल सकती है.
इस संकट के समय यह आशा भी की जा सकती है कि धनी देश वैक्सीन को लेकर वर्चस्व की कूटनीति और कॉर्पोरेट मुनाफ़ा बनाने से परहेज़ करेंगे. दुनियाभर के 175 पूर्व राष्ट्राध्यक्षों, शासनाध्यक्षों और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित गणमान्य लोगों ने एक साझे पत्र में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से अनुरोध किया है कि वे कोविड वैक्सीन से संबंधित पेटेंटों को कुछ समय के लिए स्थगित कर दें. ऐसा करने से बहुत सारे देशों में टीके के उत्पादन का रास्ता खुल जायेगा और अविकसित व विकासशील देश सस्ते में खुराक हासिल कर सकेंगे. इस पत्र में यह बेहद अहम बात रेखांकित की गयी है कि ऐसा करने से उत्पादन पर एकाधिकार के कारण पैदा हुई टीकों की आपूर्ति की वर्तमान कृत्रिम कमी को दूर करने में मदद मिलेगी तथा वैक्सीन विषमता को दूर किये बिना वैश्विक अर्थव्यवस्था को नहीं सुधारा जा सकता है.
कोरोना महामारी की रोकथाम से जुड़े मेडिकल उत्पादों पर से पेटेंट और बौद्धिक संपदा अधिकारों को अस्थायी तौर पर हटाने का अनुरोध पहली बार भारत और दक्षिण अफ़्रीका ने पिछले साल अक्टूबर में विश्व व्यापार संगठन से किया था. इस प्रस्ताव को लगभग 60 देशों का समर्थन मिल चुका है, लेकिन अनेक धनी देशों समेत वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां इसका विरोध कर रही हैं. भले ही वे इससे अन्वेषण में बाधा पहुंचने का तर्क दे रहे हों, पर असल में वे अपने एकाधिकार और मुनाफ़े को नहीं छोड़ना चाहते हैं.
भारत ने इस साल मार्च में भी धनी देशों की आलोचना करते हुए संगठन से आग्रह किया था कि इस मुद्दे पर जल्दी फ़ैसला लिया जाना चाहिए. जैसा कि अर्थशास्त्री जोसेफ़ स्टिगलिज़ ने रेखांकित किया है, विश्व व्यापार संगठन के समझौते में विशेष परिस्थितियों में पेटेंट नियमन से छूट का प्रावधान है, पर विभिन्न देश कूटनीतिक कारणों से उनका इस्तेमाल करने में हिचकते हैं क्योंकि बौद्धिक संपदा अधिकार के नाम पर अमेरिका अक्सर पाबंदियों की चेतावनी देता रहता है. ख़ैर, बाइडेन प्रशासन के इस बयान से कुछ उम्मीद बंधी है कि अमेरिका इस मुद्दे पर विचार कर रहा है. राष्ट्रपति जो बाइडेन ने महामारी से निपटने को अपनी पहली प्राथमिकता बनाया है और वे पेटेंट कानूनों में थोड़े समय की छूट देकर दुनिया की बड़ी मदद कर सकते हैं. इससे अमेरिका को भी फ़ायदा होगा. विश्व नेताओं और सम्मानित व्यक्तियों ने अपने पत्र में लिखा है कि महामारी के कारण वैश्विक आपूर्ति प्रक्रिया में बाधा पहुंचने से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भी नुकसान हो रहा है. यह मुद्दा जितना आर्थिक है, उससे कहीं अधिक राजनीतिक और नैतिक है.
यदि वैक्सीन के व्यापक उत्पादन का रास्ता खुलता है, महामारी पर जल्दी क़ाबू पाया जा सकता है तथा भविष्य की तैयारियों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है. कई देशों में वैक्सीन फैक्ट्रियां ख़ाली पड़ी हैं. टीके की कमी का अंदाज़ा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि सामान्य स्थिति में विभिन्न रोगों के लिए दुनिया को क़रीब 60 फ़ीसदी टीका मुहैया कराने वाले भारत को आज कोरोना टीकों का आयात करना पड़ रहा है, जबकि बीते महीनों में भारत ने कई देशों को खुराक भेजी थी, पर भयावह दूसरी लहर ने हिसाब बिगाड़ दिया है और टीके की भारी किल्लत हो गयी है. जनवरी से मार्च के बीच भारत ने 6.40 करोड़ खुराक विदेश भेजा था, पर मध्य अप्रैल तक यह आंकड़ा केवल 12 लाख रहा है.
कुछ देशों को छोड़ दें, तो भारत समेत बहुत सारे देशों में कई कारणों से स्थिति ख़राब हुई है. इनमें से एक वजह विवेकपूर्ण दृष्टि का अभाव और प्रशासनिक लापरवाही रही है. इसकी ज़िम्मेदारी सरकारों को लेनी चाहिए. लेकिन अब नयी समझ से और अंतरराष्ट्रीय सहयोग से महामारी का मुक़ाबला किया जाना चाहिए. दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो रहा है. अकिन ओल्ला ने लिखा है कि पुराने औपनिवेशिक तौर-तरीकों को फिर से थोपा जा रहा है. टीकों की जमाख़ोरी और उत्पादन पर एकाधिकार के अलावा धनी देशों का एक और रवैया चिंताजनक है. अमेरिकी मीडिया में ऐसे लेख लिखे जा रहे हैं कि अमेरिका के पास अपना वैश्विक वर्चस्व फिर से हासिल करने का मौक़ा है और ऐसा वह अपने टीकाकरण अभियान के बाद बची हुई करोड़ों खुराक विभिन्न देशों को देकर कर सकता है.
Also Read
-
WhatsApp university blames foreign investors for the rupee’s slide – like blaming fever on a thermometer
-
Let Me Explain: How the Sangh mobilised Thiruparankundram unrest
-
TV Newsance 325 | Indigo delays, primetime 'dissent' and Vande Mataram marathon
-
The 2019 rule change that accelerated Indian aviation’s growth journey, helped fuel IndiGo’s supremacy
-
You can rebook an Indigo flight. You can’t rebook your lungs