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किसान आंदोलन: टिकरी बॉर्डर पर किसानों ने किया बैसाखी मेले का आयोजन

तीन कृषि कानूनों के विरोध में पिछले चार महीनों से किसान दिल्ली के पास बॉर्डरों पर अपनी दिन-रात गुज़ार रहे हैं. इस आंदोलन के बीच किसानों ने टिकरी बॉर्डर पर बैसाखी मेले का आयोजन किया. मेले मे बुज़ुर्ग और महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. किसानों ने कई अलग-अलग तरह के खेलों जैसे वॉलीबॉल, कुश्ती, कबड्डी और रस्साकशी का भी आयोजन किया. खेलों के साथ ही युवाओं ने मुख्य स्टेज पर पंजाब का नृत्य भांगड़ा और गिद्दा किया. इस दौरान टिकरी बॉर्डर पर बने शहीदों के स्मारक पर पुष्पांजलि कार्यक्रम भी किया गया.

"किसान पिछले चार महीनों से बॉर्डर पर बैठे हुए हैं. हमने सोचा कुछ मनोरंजक किया जाए ताकि माहौल उत्साहित बने. इसलिए किसानों ने मिलकर बैसाखी के अवसर पर कई प्रतियोगिताओं का आयोजन किया." हरविंदर बताते हैं.

हरविंदर सिंह (35) पठानकोट के रहने वाले हैं. गांव मे उनकी दस एकड़ ज़मीन है जिसपर वो मौसमी की खेती करते हैं. हरविंदर आगे कहते हैं, “बैसाखी का दिन किसानों के लिए बहुत अहम होता है और बैसाखी के दिन फसल काटकर सबसे पहले गुरुद्वारे में ले जायी जाती है जहां किसान अपने गुरुओं का आशीर्वाद लेते हैं”

मनप्रीत सिंह (40) दल्ला गांव, जालंधर के रहने वाले हैं और नवंबर से टिकरी बॉर्डर पर किसान आंदोलन में हिस्सा ले रहे हैं. वो बताते हैं, “गिद्दा, गटका और पंजाबी बोलियां उनके कल्चर का हिस्सा हैं. बैसाखी का त्यौहार किसानों के लिए ख़ास महत्त्व रखता है. इस दिन देश के कई हिस्सों में फसलों की कटाई शुरू होती है और इसलिए इसे कृषि पर्व के रूप में भी मनाया जाता है. बैसाखी पंजाब और हरियाणा के लिए काफी महत्वपूर्ण पर्व है. इस समय तक फसलें पककर तैयार हो चुकी होती हैं और इनकी कटाई होती है. शाम के समय किसान आग जलाकर नई फसल की खुशियां मनाते हैं. बैसाखी एक अन्य कारण से भी पंजाब में प्रसिद्ध है.”

सन् 1699 में बैसाखी के ही दिन सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ने अन्याय के खिलाफ खालसा पंथ की स्थापना की थी.

खेल प्रतियोगिताओं में महिलाएं रहीं सबसे आगे

टिकरी बॉर्डर पर आयोजित प्रतियोगिताओं में महिलाओं ने जमकर हिस्सा लिया. महिलों ने भटिंडा और संगरूर ज़िले के हिसाब से दो टीमें बनाई और रस्साकशी की प्रतियोगिता मे भाग लिया. महिलाओं ने कुश्ती और कबड्डी भी खेली. इसके अलावा बुज़ुर्ग महिलाओं ने मटका रेस (दौड़) और निम्बू रेस (दौड़) मे भाग लिया. वंत कौर (80) के चहरे पर ख़ुशी नज़र आ रही थी. उन्हें अच्छा लग रहा था कि उनके जैसी कई बुज़ुर्ग औरतें दौड़ और रस्साकशी जैसे खेलों मे भाग ले रही हैं, "मुझे देखकर ख़ुशी हो रही है कि मेरी दोस्तें और बेटियां दौड़ में हिस्सा ले रही हैं. मेरे पैरों में सूजन है, घुटने दर्द कर रहे हैं इसलिए केवल देख सकती हूं. अगर स्वस्थ होती तो मैं भी दौड़ती," भाटीवाल कलां (संगरूर) की वंत कहती हैं.

“गांव में बैसाखी के दिन खाली मैदान मे बहुत बड़ा मेला लगता है. मैदान में झूले लगते हैं. दो गावों के बीच क्रिकेट खेला जाता था. बच्चे सुबह से नए कपड़े पहनकर घर से बाहर निकल जाते थे. मैं अपने नाती-पोतों को बैसाखी पर कुछ पैसे भी दिया करती हूं. इस बार दिल्ली के बॉर्डर पर बैसाखी मनाना मेरे लिए हमेशा यादगार रहेगा. साथ ही यह देखकर अच्छा लग रहा है कि भावी पीढ़ी घर पर नहीं होने के बावजूद हमारी संस्कृति को नहीं भूली है, "वंत कहती हैं.

एक नाम की दो महिलाओं को बैसाखी मेले ने बनाया पक्का दोस्त

मुख्त्यार कौर (80) और मुख्त्यार कौर (62) बैसाखी मेले मे आयोजित दौड़ में भाग लेने आईं थीं. कोई जीत तो नहीं पाई लेकिन जब पता चला दोनों का नाम एक है तो दोनों दोस्त बन गईं. मुख्त्यार (80) मानसा के बीर खुर्द गांव से टिकरी बॉर्डर पर किसान आंदोलन में हिस्सा ले रही हैं. वहीं मुख्त्यार (62) भटिंडा के पास रैया गांव से हैं वह दिहाड़ी मज़दूर हैं. दोनों बुज़ुर्ग हैं लेकिन बैसाखी के दिन बॉर्डर पर आयोजित मेले में न केवल दोनों शामिल हुईं, बल्कि दोनों ने खेलों मे भाग भी लिया जब उन्हें पता चला दोनों के नाम एक हैंं, इसके बाद दोनों ने मटका रेस (दौड़) और लेमन रेस (दौड़) में साथ हिस्सा लिया. दौड़ के बाद दोनों साथ बैठकर आइसक्रीम का लुफ़्त उठाने लगीं.

मनोरंजन के लिए किये सांस्कृतिक कार्यक्रम

बैसाखी के अवसर पर युवाओं ने मुख्य स्टेज पर मलवई गिद्दा प्रस्तुत किया. इनमे लड़के और लड़कियां दोनों शामिल थे. फतेहाबाद की तमन्ना (25) ने बताया, “उनकी नृत्य प्रस्तुति बॉर्डर पर संघर्ष कर रहे किसानों को समर्पित है. गिद्दा के दौरान हम बोलियां गाते हैं. आज गाई सभी बोलियां किसान संघर्ष और पंजाब- हरियाणा भाईचारे पर ख़ास लिखी गई हैं."

जालंधर के रहने वाले अमरजोत (27) शिक्षा क्षेत्र में काम कर रहे हैं. वो चार महीने से चल रहे किसान आंदोलन में भाग लेना चाहते थे. बैसाखी पर होने वाले कार्यक्रमों के बारे में जब उन्हें पता चला तो उन्होंने भी इसमें भाग लेने की सोची. अमरजोत ने अपने 18 अन्य साथियों के साथ स्टेज पर भांगड़ा किया. उनका कहना है, “उनके छोटे से प्रयास से यदि किसानों का मनोबल बढ़ता है तो उनके लिए यह गर्व की बात है. मैं जब स्टेज पर भांगड़ा कर रहा था तो मैं नीचे बैठे किसानों के चहरे पर मुस्कान देख पा रहा था. ये पिछले कई महीनों से सरकार के खिलाफ लम्बी लड़ाई लड़ रहे हैं. बॉर्डर पर लू चल रही है. बजाए इसके किसान खुले मैदान में बैठे हैं. इनका जज़्बा कोई सरकार नहीं हिला सकती. बैसाखी पंजाब की तरफ एक बड़े पर्व के रूप मे मनाया जाता है. मैंने भी आज भांगड़ा किया. नाच- गाने से उत्साह बना रहता है."

इन आयोजित खेलों में युवाओं ने गतका खेला. गतका सिख पारंपरिक मार्शल आर्ट है. इसमें कृपाण, खण्डा और जनदाद जैसे शस्त्रों का इस्तेमाल किया जाता है. इश्मीत कौर (18) ने बताया कि बैसाखी के दिन ख़ास तौर पर गतका खेला जाता है क्योंकि इस दिन खालसा पंत की नीव रखी गई थी. दिल्ली की रहने वाली इश्मीत पांच साल से गतका सीख रही हैं. उनका परिवार किसानों को खेती के लिए ज़मीन मुहैया कराता है.

फसल की कटाई में व्यस्त हैं किसान तो बॉर्डर पर कौन हैं?

इस समय जब किसान फसल की कटाई में व्यस्त हैं तो ऐसे में यह सवाल आता है कि बॉर्डर पर कौन बैठा है. मनप्रीत सिंह (40) पेशे से इंजीनियर हैं. उनके माता-पिता खेती-किसानी से जुड़े हुए हैं. उन्होंने बताया, “गांव में लोग आपसी मतभेद भूलकर एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं. गांव मे अब कोई किसी से लड़ता नहीं. गांवों के बीच जो लड़ाई रहती थी वो भी ख़त्म हो गई है. सब एक दूसरे की मदद कर रहे हैं. जो किसान आंदोलन में आये हैं उनके पीछे से खेतिहर मज़दूर और गांव में अन्य व्यवसायों जैसे टेलर, मिस्त्री, आदि से जुड़े लोग फसल कटाई कर रहे हैं."

वहीं कई गांवों में किसान रोटेशन के आधार पर अपने गांव आ-जा रहे हैंं. हरविंदर सिंह (35) पठानकोट से टिकरी बॉर्डर आए हैं. वो नवंबर से बॉर्डर पर हैं. उन्होंने बताया, “हर गांव से 'रोटेशन' पर किसान बॉर्डर आ-जा रहे हैं. "किसानों का एक गुट आता है. उनके पीछे से बाकी किसान अपनी फसल काटना शुरू कर देते हैं. फिर दो हफ्ते बाद ये किसान अपनी फसल कटाई के लिए गांव जाते हैं और गांव से अन्य किसानों का गुट बॉर्डर आता है."

यूके के रहने वाले रणधीर सिंह (48) ने इन खेलों का संचालन किया. उनका जन्म एक पंजाबी परिवार में हुआ जिसकी पुश्तें किसानी किया करती थीं. इन खेलों के आयोजन के बारे में उन्होंने बताया, “आम दिनों में बॉर्डर पर माहौल गंभीर और उदास हुआ करता है. गर्मी भी बढ़ गई है. ऐसे मे किसानों के उत्साह और मनोबल को बढ़ाने के लिए इन कार्यक्रमों का आयोजन करने के बारे में सोचा गया.”

वह आगे कहते हैं, "बैसाखी किसानों के लिए बड़ा त्यौहार है. हमने सोचा क्यों न इस दिन मनोरंजक प्रतियोगिताएं की जाएं. हमने गतका खेला. इसके अलावा यहां महिलाओं के लिए मटका रेस, लेमन रेस और रस्साकशी का आयोजन किया गया. लड़कों ने दो टीमें बनाकर वॉलीबॉल खेला. इन खेलों मे पुरुष, महिलाओं और बुज़ुर्गों सभी ने भाग लिया जिसे देखकर सब खुश हुए. जीतने वाले प्रतियोगियों को सम्मानित भी किया गया."

पिछले साल 26 नवंबर को देश के अलग-अलग हिस्सों से किसान दिल्ली आये थे. जिसके बाद से किसान नेताओं और सरकार के बीच कई दौर की वार्ताएं भी हुईं लेकिन सभी विफल रहीं. तब से अब तक किसानों को बॉर्डर पर बैठे चार महीने हो गए हैं. इस बीच किसान नेता बंगाल चुनाव के दौरान सरकार के खिलाफ प्रचार कर रहे हैं. हिसार के अनूप चनोट (30) कहते हैं, “पिछले चार महीनों से लाखों किसान दिल्ली के बॉर्डरों पर तानाशाही सरकार के खिलाफ काले कानूनों को रद्द करवाने के लिए जंग लड़ रहे हैं. ये बात बंगालवासी जानते हैं. वो इसे दिमाग में रखकर वोट देने जाएं.”

वह आगे कहते हैं, "बंगाल का इतिहास क्रांतिकारी रहा है. आज फिर पूरा देश बड़ी उम्मीदों के साथ बंगाल को देख रहा है. शायद चुनाव के बाद सरकार को याद आ जाए कि उन्होंने किसान को बॉर्डर पर मरने छोड़ दिया है. किसानों ने हर मौसम और त्यौहार बॉर्डर पर बिता दिए हैं. अब उन्हें बॉर्डर से हटाना है तो सरकार को पारित तीनों कृषि कानून वापस लेने ही होंगे.

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