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स्कैनिया बस घोटाला: नितिन गडकरी, उनके दो बेटे और घूस वाली लग्ज़री बस का जटिल रिश्ता

9 मार्च को जब स्वीडिश टेलिविज़न (एसवीटी), जर्मनी की ज़्वेइट् ड्यूशेस फर्नसेहैन (ज़ैडडीएफ) और भारत की कॉन्फ्लूएंस मीडिया द्वारा अपनी पड़ताल में ये दावा किया गया कि केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने स्वीडिश ट्रक और बस निर्माता कंपनी से रिश्वत के तौर पर अपने निजी इस्तेमाल के लिए एक लक्ज़री बस ली है तो इसके बाद बिना कोई देरी किए, दृढ़ता से इन आरोपों का खंडन किया.

मंत्रीजी और उनके परिवार ने अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों को "दुर्भावनापूर्ण, मनगढ़ंत और निराधार बताया. इसके कुछ ही दिनों बाद दिप्रिंट को एक साक्षात्कार देते हुए गडकरी ने यह दावा किया कि स्कैनिया ने उन्हें किसी भी तरह की बस देने की बात को खारिज किया है, साथ ही उन्होंने रिपोर्टरों पर आरोप लगाया कि उन्होंने अपना काम ठीक से नहीं किया.

हो सकता है मंत्रीजी का यह दावा पूरी तरह झूठ न हो लेकिन यह भ्रामक जरूर है. मोबाइल की चैट्स, ईमेल के संवाद, ठेके, रसीदें और अनसिक्योर्ड लोन ट्रांसफर आदि किसी भी तरह से झुठलाए न जा सकने वाले ऐसे सबूत हैं जो यह साबित करते हैं कि स्कैनिया से लक्ज़री बस प्राप्त करने में गडकरी परिवार की सक्रिय भूमिका रही है.

इन रिपोर्टरों के हाथ स्कैनिया द्वारा गठित एक आंतरिक जांच कमेटी की रिपोर्ट लगी है जिसमें बस को गडकरी को दी गयी रिश्वत के तौर पर दर्शाया गया है. इसके साथ ही गडकरी के पुत्रों, उनसे जुड़ी कंपनियों और स्कैनिया इंडिया के अधिकारियों के बीच हुए तीन सालों से भी ज्यादा समय के लीक हो चुके संवाद भी हैं. भारत और स्वीडन के विशेषज्ञ इस पूरी बातचीत का सत्यापन कर चुके हैं.

इस रिपोर्ट में बहुत स्पष्ट तौर पर यह कहा गया है कि नितिन गडकरी, उनके पुत्र सारंग और निखिल गडकरी ही बस के वास्तविक लाभार्थी हैं.

बस सौदे के हर कदम पर सारंग और निखिल गडकरी स्कैनिया की एक भारतीय अनुषांगिक कंपनी, स्कैनिया कॉमर्शियल व्हीकल्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (स्कैनिया इंडिया) के सीधे और लगातार संपर्क में थे. उक्त बस का कथित तौर पर नितिन गडकरी की पुत्री तथा निखिल और सारंग गडकरी की बहन केतकी गडकरी के दिसंबर, 2016 में नागपुर में आयोजित भव्य विवाह में इस्तेमाल किया गया था.

स्वीडन में स्कैनिया एबी दफ्तर के सीईओ समेत उसके भीतर के ही कई अन्य सूत्रों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि बस केतकी गडकरी की शादी के लिए ही थी और स्कैनिया इंडिया के शीर्ष अधिकारी इस सौदे के पीछे की असल मंशा से अच्छी तरह वाकिफ थे.

स्कैनिया इंडिया के अधिकारियों के बीच हुए आपसी संवाद भी यही दर्शाते हैं कि कंपनी के शीर्ष पदाधिकारियों के बीच "द बस फॉर दि मिनिस्टर" सौदे की चर्चा हुई थी और स्कैनिया इंडिया के दफ्तर की बैठकों में भी इस पर कई बार चर्चा की गई थी.

स्कैनिया की आंतरिक जांच रिपोर्ट में यह दर्ज है कि जहां एक ओर स्कैनिया और गडकरी बंधु दोनों ही पक्षों ने छोटी-छोटी और अज्ञात कंपनियों की आड़ में छिपकर इस सौदे को अंजाम दिया वहीं ऐसे पर्याप्त सबूत मौजूद हैं जो इस बात की ओर इशारा करते हैं कि असल में बस "मंत्री जी" और उनके परिवार के लिए ही तैयार की गई थी.

सौदे की बातचीत की शुरुआत से लेकर नागपुर में बस की डिलीवरी होने तक करीब 18 महीनों के दौरान कथित तौर पर सारंग गडकरी बेंगलुरु स्थित स्कैनिया की फैक्ट्री में "बस का निरीक्षण" करने आते-जाते रहे. वह दो बार पुणे स्थित एक प्राइवेट डिजाइन फर्म, दिलीप छाबड़िया डिजाइन प्राइवेट लिमिटेड (डीसी डिजाइन) भी गये, जहां इस डिजाइनिंग कंपनी ने बस के भीतरी हिस्से को दुल्हन के भाई की पसंद के मुताबिक मॉडिफाई किया. यहां एक गौर करने वाली बात यह भी है कि दोनों ही मौकों पर स्कैनिया इंडिया के पदाधिकारी भी उनके साथ वहां मौजूद थे.

जहां सारंग गडकरी को बस की तैयारी से संबंधित कामकाज के बारे में लगातार सूचित किया जाता रहा वहीं निखिल केवल सौदे की शुरुआत और अंत में ही सीधे-सीधे कंपनी के एग्ज़ीक्यूटिव के संपर्क में थें. यहां तक कि भुगतानों के निपटारे के लिए भी कागजों पर बस को किराए पर लेने वाली कंपनी के बजाय गडकरी बंधुओं को याचिका भेजी गयी.

जिस कंपनी द्वारा बस को लीज़ पर लिया गया उसी कंपनी को सारंग गडकरी द्वारा संचालित की जा रही एक ऐसी कंपनी द्वारा अनसिक्योर्ड लोन दिया गया जिसमें निखिल गडकरी ऊंचा पद संभाल रहे थे. इस लोन ने कथित तौर पर बस के सिक्योरिटी डिपॉजिट के एक हिस्से की भरपाई कर दी. नितिन गडकरी ने बस को किराए पर लेने वाली फर्म से किसी भी तरह के संबंध से इंकार कर दिया है.

स्कैनिया की आंतरिक जांच रिपोर्ट में बस को फाइनेंस करने वाली कंपनी फॉक्सवैगन फाइनेंस प्राइवेट लिमिटेड (फॉक्सवैगन फाइनेंस) तक को भी क्लीन चिट नहीं दी गई है. जांच में पाया गया है कि फॉक्सवैगन फाइनेंस को इस बात की पूरी जानकारी थी कि बस मंत्रीजी के लिए ही थी और इसने लोन पास करने से पहले लोन के लिए आवेदन करने वाली कंपनी की पृष्ठभूमि और वित्तीय स्थिरता की भी ठीक से जांच-पड़ताल नहीं की थी. फॉक्सवैगन फाइनेंस जर्मनी स्थित फॉक्सवैगन एजी का ही एक हिस्सा है और फॉक्सवैगन एजी ही स्कैनिया एबी की मात्र कंपनी है.

एक बार नागपुर में बस की डिलीवरी होने के बाद न तो कागजों पर बस को लीज़ पर लेने वाली कंपनी और न ही गडकरी परिवार ने इस बस के पूरे किराए तथा सिक्योरिटी डिपॉजिट का कभी कोई भुगतान किया. इसका नतीजा यह हुआ कि जिस कंपनी ने स्कैनिया से बस लीज़ पर ली थी वह लोन को डिफॉल्ट करने लगी. इससे बस के महंगे मॉडिफिकेशन और लोन के ब्याज का सारा भार स्कैनिया पर आ गया क्योंकि यह बस उपलब्ध कराने के साथ ही लोन की 100% गारंटर की भूमिका भी निभा रही थी.

स्कैनिया ने बस का पूरा खर्च खुद ही चुकाया और बहुत सारे ठोस सबूत होने के बावजूद इस कथित भ्रष्टाचार की शिकायत कभी भी स्वीडन या भारत में बैठे अपने उच्च अधिकारियों से नहीं की.

आरोपों से इंकार और झूठ

लाल गद्दी वाली आरामदेह रेक्लाइनर सीटें, रसोई, विनायल की फर्श, चेंजिंग रूम, म्यूज़िक सिस्टम और टेलीविज़न के अलावा दूसरी बहुत-सी मनचाही सुख-सुविधाओं वाली स्कैनिया मेट्रोलिंक K410 की बिक्री से जुड़े भ्रष्टाचार के आरोपों को सबसे पहले स्कैनिया ग्रुप इंटरनल ऑडिट (जीआईए) टीम के सामने नवंबर 2017 में रखा गया.

नवंबर 2018 में स्वीडन और जर्मनी के सदस्यों वाली ये टीम इस नतीजे पर पहुंची कि इस बस के द्वारा मंत्री महोदय और उनके परिवार को आर्थिक लाभ पहुंचाया गया है. ये लाभ किस हद तक पहुंचाया गया इसका निर्धारण न्यायिक आकलन द्वारा ही हो पाएगा.

यह बस स्कैनिया द्वारा बंगलुरु स्थित ट्रांसप्रो मोटर्स प्राइवेट लिमिटेड (ट्रांसप्रो मोटर्स) नाम की एक प्राइवेट कंपनी को 2015 में बेची गई थी. इसके बाद बस को मॉडिफाई कराने के लिए दो अन्य भारतीय प्राइवेट कंपनियों में भेजा गया जिनमें से एक डीसी डिजाइन है, और अंत में नवंबर 2016 में यह नागपुर स्थित सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी मैनेजमेंट सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड (सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी) नामक एक हॉस्पिटैलिटी फर्म को किराए पर दे दी गई.

जीआईए का कहना है कि यह सौदा ट्रांसप्रो मोटर्स से सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी की आड़ में किया गया था जबकि वास्तव में बस के सौदे से इन दोनों कंपनियों का कोई संबंध नहीं था.

बस की फंडिंग फॉक्सवैगन एजी द्वारा अपनी भारतीय अनुषांगिक कंपनी फॉक्सवैगन फाइनेंस प्राइवेट लिमिटेड से लोन दिला कर की गई और सौदा स्कैनिया कमर्शियल व्हीकल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के माध्यम से हुआ जिसके द्वारा लोन की 100% गारंटी ली गई थी.

लीज़ की अवधि खत्म होने तक बस कि किसी भी किश्त का भुगतान नहीं किया गया था. नतीजतन पूरे सौदे का भार, करीब 2.2 करोड़ रुपए स्कैनिया इंडिया पर पड़ा. फॉक्सवैगन फाइनेंस का कहना है कि उन्होंने बस पर दोबारा दावा किया और अपनी लागत हासिल कर ली. वैसे इसने लागत तो जरूर हासिल कर ली लेकिन ये ऐसा कोई भी सबूत पेश करने में असफल रहा है जिससे यह साबित हो सके कि इसने बस पर दोबारा दावा किया था.

ज़ेडडीएफ, एसवीटी और कॉन्फ्लूएंस मीडिया द्वारा स्कैनिया लक्ज़री बस स्टोरी और यह सार्वजनिक है कि कैसे स्कैनिया की लक्ज़री बस उसके कथित वास्तविक लाभार्थी की पहचान छिपाने के लिए ही कई हाथों से गुजर कर उस तक पहुंची. इसके दो दिन बाद ही नितिन गडकरी के वकील ने एसवीटी को यह स्टोरी वापस लेने को कहा लेकिन एसवीटी ने इंकार कर दिया.

वहीं भारत में नितिन गडकरी के दफ्तर द्वारा बयान दिया गया कि ये सब स्कैनिया का अंदरुनी मामला है और मंत्री महोदय या उनके परिवार के सदस्यों का स्कैनिया बस की किसी भी खरीद या बिक्री से या फिर उसकी खरीद या बिक्री करने वाले किसी भी व्यक्ति या कंपनी से कोई संबंध नहीं है.

जहां एक ओर मंत्री महोदय द्वारा इस सौदे से पल्ला झाड़ लिया गया वहीं स्कैनिया पर अपने भ्रष्ट कार्यों के मामले में गुमराह करने और अधिकृत तौर पर झूठ बोलने के आरोप लगे.

स्कैनिया एबी ने इस कथित भ्रष्ट सौदे में शामिल अपने अधिकारियों को उनके कॉन्ट्रैक्ट खत्म कर उन्हें नौकरी से निकाल कर, दंडित करने का नाटक किया. लेकिन स्कैनिया के दावों की गहराई से पड़ताल की जाए तो ऐसा देखने में आता है कि स्कैनिया ने न केवल ठोस और पर्याप्त सबूतों वाली आंतरिक जांच रिपोर्ट को ही करीब ढाई सालों तक दबाकर रखा बल्कि नौकरी से निकाले गए कुछ अधिकारियों को वापस नौकरी पर भी रख लिया.

बस की निर्माता और उसको फाइनेंस करने वाली कंपनियां क्रमशः स्कैनिया एबी और फॉक्सवैगन एजी दोनों ही बस के वर्तमान पते और मालिक के बारे में अलग-अलग जानकारियां दे रही हैं.

भ्रष्टाचार का तंत्र

2011 में कर्नाटक के बंगलुरु में अपना भारतीय दफ्तर खोलने वाली स्कैनिया एबी ने अपनी आंखे भारत के भारी वाहनों के बड़े बाजार पर डालते हुए 300 करोड़ रुपए के निवेश के साथ मार्च, 2015 में बंगलुरु के बाहरी छोर पर स्थित नरसापुरा में ट्रक और बस का निर्माण करने वाली एक फैक्ट्री का उद्घाटन किया.

इस फैक्ट्री की स्थापना को 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के पहले साल में शुरू हुए ‘मेक इन इंडिया’ अभियान की एक बहुत बड़ी सफलता के रूप में देखा गया.

उसी साल वरिष्ठ भाजपा नेता नितिन गडकरी को प्रधानमंत्री मोदी की कैबिनेट में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री का पद दिया गया.

स्कैनिया इंडिया ऑफिस के डायरेक्टर ऑफ सेल्स वी. शिवाकुमार और पूर्ति ग्रुप के निखिल गडकरी के बीच इस लक्ज़री बस पर बातचीत की शुरुआत जून, 2015 में स्कैनिया बस मैन्युफैक्चरिंग के भारत में लॉन्च होने के दो महीनों बाद शुरू हुई. शिवाकुमार द्वारा निखिल की अधिकृत ईमेल आईडी पर एक मेल भेजा गया जिसमें स्कैनिया सेवेन स्टार लक्ज़री कैंपिंग कोच की 7 तस्वीरें अटैच थी. और पूछा गया था कि क्या उन्हें बस में अपनी पसंद के मुताबिक कुछ और चीजें जुड़वानी या मॉडिफाई करवानी हैं?

"इस काम को निपटाने के लिए मैं स्वयं आपसे मिलूंगा. हम आपको आपकी पसंद के मुताबिक खास तरह से तैयार किए गए ग्राफ़िक्स उपलब्ध करायेंगे जिसमें आपके ही पसंद की इंटीरियर कलर थीम भी होगी," शिवाकुमार ने लिखा, जो कि एक मंझे हुए सेल्समैन थे और एक अन्य प्रतिद्वंदी फर्म से 2012 में स्कैनिया में आये थे.

जीआइए द्वारा यह स्थापित किया गया कि ईमेल में जिस निखिल का जिक्र है वह उन्हीं केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के पुत्र और सारंग के भाई हैं जो उस समय पूर्ति ग्रुप का संचालन कर रहे थे. नितिन गडकरी द्वारा वर्ष 1995 में पूर्ति ग्रुप की स्थापना की गई थी. (पूर्ति ग्रुप से सम्बंधित विवाद)

कथित तौर पर शिवाकुमार का मुख्य काम यह सुनिश्चित करना था कि सौदा बिना किसी परेशानी के आसानी से हो जाए. शिवाकुमार ने ही बस के मामले में महाराष्ट्र के पुणे में स्थित प्राइवेट डिजाइन फर्म डीसी डिजाइन को शामिल किया.

30 जुलाई को उन्होंने पुणे की इस फर्म के एक वरिष्ठ अधिकारी को सूचना देते हुए लिखा कि 20 अगस्त, 2015 को सारंग गडकरी उनसे मिलने आयेंगे और स्कैनिया की बस के नक़्शे और डिजाइन के बारे में बात करेंगे.

"आपकी और मेरी फोन पर हुई बातचीत के संदर्भ में मैं और सारंग गडकरी इस रविवार (02 अगस्त, 2015) को 14.5 एम बस शैल हेतु स्कैनिया मेट्रो लिंक कैंपर कोच के नक़्शे और डिजाइन के लिए बातचीत करने के लिए 11 बजे आपकी पुणे स्थित फैक्ट्री आ रहे हैं. कृपया नक़्शे और डिजाइन के ड्राफ्ट तैयार रखें," शिवाकुमार ने उदाहरण के तौर पर कैंपर का एक नक़्शा अटैच करते हुए लिखा.

तब तक स्कैनिया इंडिया के दफ्तर के भीतर यह चर्चा पूरे जोर-शोर से चलने लगी थी कि कैसे यह सौदा कंपनी के लिए एक मील का पत्थर साबित होगा. 17 नवंबर, 2015 को स्कैनिया के तत्कालीन सेल्स स्ट्रेटजी एग्ज़ीक्यूटिव ने इस सौदे को अंजाम देने के लिए 10 लोगों को एक ईमेल थ्रेड के माध्यम से एक साथ आपस में जोड़ दिया जिसमें तत्कालीन डायरेक्टर, प्रोडक्शन बसेस एंड कोचेस, हेलमुट श्वार्ट्ज; स्कैनिया इंडिया के सीएफओ उल्फ फ्रॉमहोल्ज़ और शिवाकुमार भी शामिल थे. इस ईमेल थ्रेड में लिखा गया, "गडकरी के लिए मेट्रोलिंक". इसमें शामिल अन्य लोगों में तत्कालीन ऑर्डर मैनेजर; डायरेक्टर, बस एंड कोच और प्रोजेक्ट ऑफिस के हेड शामिल थे.

एग्ज़ीक्यूटिव ने लिखा, "गडकरी की स्कैनिया 14.5 एम मेट्रोलिंक बस को चेचिस नंबर-1890275 आवंटित किया गया है. आप सभी से आग्रह किया जाता है कि इस पर काम शुरू कर दिया जाए ताकि हम एक अच्छी क्वालिटी की बस दिसंबर, 2015 के मध्य तक डिलीवर कर सकें. गडकरी चाहते हैं कि बस दिसंबर, 2015 के मध्य तक डिलीवर कर दी जाए.”

श्वार्ट्ज ने इस पर इसलिए आपत्ति जताई क्योंकि बस का निर्माण कार्य अपने अंतिम दौर में था और इसकी 'स्पेसिफिकेशन्स' में बदलाव नहीं किया जा सकता था. इस पर तत्कालीन मैनेजर, सेल्स स्ट्रेटजी एंड रेंटल्स, अरुण रंगासामी ने उत्तर दिया कि उन्हें 15 दिसंबर तक बस डिलीवर करने के लिए इस सब की जल्द से जल्द जरूरत है. रंगासामी के अनुसार इस बारे में बैठक में ही तय किया जा चुका था.

शिवाकुमार ने रंगासामी का पक्ष लेते हुए ई-मेल थ्रेड पर कहा, "यह सौदा हमारे लिए मील का पत्थर साबित होगा. परिवहन मंत्री हमारी बस का इंतजार कर रहे है. दिसंबर का मध्य हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि वह एक बेहद महत्वपूर्ण पारिवारिक अवसर पर इस बस की अपेक्षा कर रहे हैं. मुझे 23 नवंबर की बैठक में इस संबंध में उनसे बातचीत करने के लिए इस प्रस्ताव पर सहमत होना ही होगा.”

छह मिनट बाद ऑर्डर मैनेजर ने उत्तर दिया कि यदि मंत्रीजी इस बस की प्रतीक्षा कर रहे हैं तो टीम को अभी तक इस बस का ऑर्डर क्यों नहीं मिला? शिवाकुमार ने मैनेजर को समझाया कि चूंकि बस केवल किराए पर दी जा रही है इसलिए मंत्रीजी की तरफ से कोई ऑर्डर नहीं आएगा. हम इस बारे में पिछले एक महीने से चर्चा कर रहे हैं और इसे हर पीएमएम (प्रोडक्ट मैनेजमेंट मीटिंग) में उठाते रहे हैं, उन्होंने लिखा.

इसके कुछ ही दिनों बाद 26 नवंबर, 2015 को सारंग गडकरी स्कैनिया इंडिया की फैक्ट्री में आये. उनके आने से एक दिन पूर्व ही शिवाकुमार द्वारा स्कैनिया इंडिया के छह कर्मचारियों को एक ईमेल किया गया जिसमें गडकरी के पुत्र के आने के कारणों की जानकारी दी गई थी और उन्हें उसी अनुसार उचित प्रबंध करने को कहा गया. उन्होंने लिखा था, "कल केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के पुत्र हमारी फैक्ट्री में आयेंगे. वह दोपहर का भोजन हमारे साथ ही करेंगे और उसके बाद मैं उनके साथ एक्सकॉन वैन्यू जाऊंगा".

उन्होंने लिखा कि गडकरी के आने का कारण बस एंड ट्रक फैक्ट्री में अपनी "शैल बस का निरीक्षण" करना है और वहां पर मदद के लिए रिचर्ड और हेल्मुट भी मौजूद होंगे. उस वक्त रिचर्ड वार्डेमार्क, डायरेक्टर, सर्विस ऑपरेशन्स थे. दोनों को ही ई-मेल पर मार्क किया गया था.

हमने श्वार्ट्ज, वार्डेमार्क और रंगासामी तीनों को ही ईमेल किया पर कोई जवाब नहीं मिला. हम यहां सेल्स स्ट्रैटेजी एग्ज़ीक्यूटिव का नाम नहीं लेंगे क्योंकि अब तक हम औपचारिक तौर पर उनका कोई भी बयान नहीं ले पाए हैं.

बस का इंतजाम: "एक बहुत बड़े आदमी के लिए"

निश्चित तौर पर दिसंबर 2015 के मध्य तक बस की डिलीवरी नहीं हो सकती थी. लेकिन स्कैनिया इंडिया ने इस लिहाज से काफी तरक्की कर ली थी कि उसने न केवल शैल बस आरक्षित करने में सफलता पा ली थी बल्कि उसे बस का एक खरीदार भी मिल गया था.

सारंग गडकरी का स्कैनिया की फैक्ट्री का दौरा करने के कुछ ही दिनों बाद बंगलुरु शिवाकुमार के साथ इंटरनेशनल एग्ज़ीबिशन सेंटर में शिवाकुमार के साथ जाना हुआ जहां इन दोनों की मुलाकात लक्ष्मीनारायण से हुई जो कर्नाटक में स्थित एक प्राइवेट ट्रांसपोर्ट कंपनी ट्रांसप्रो मोटर्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक और मालिक थे. स्कैनिया इंडिया ने दो महीने पहले ही 1 अक्टूबर, 2015 को ट्रांसप्रो मोटर्स को बस की बिक्री के लिए अपना एजेंट नियुक्त किया था.

एग्ज़ीबिशन में शिवाकुमार और निखिल गडकरी ट्रांसप्रो मोटर्स के लिए बस को खरीदने के “अवसर" के बारे में बात करना चाह रहे थे जिसका इस्तेमाल "एक बहुत बड़ा आदमी" करने वाला था. लक्ष्मीनारायण ने बाद में जीआइए को बताया कि यह बस एक मंत्री के लिए थी.

बहुत ही कम समय में केवल साल भर पुरानी कंपनी ट्रांसप्रो मोटर्स (वित्त वर्ष 2013-14 में गठित) नई ऊंचाइयों को छू रही थी. सारंग गडकरी के स्कैनिया फैक्ट्री के दौरे के चार दिन बाद ही 30 नवंबर, 2015 को ट्रांसप्रो मोटर्स ने शिवाकुमार के आग्रह पर स्कैनिया को शैल बस के लिए 1.2 करोड़ (1,20, 13,133 करोड़ रुपए) का एक परचेज़ ऑर्डर जारी किया.

जीआइए ने अपनी रिपोर्ट में दर्ज किया कि स्कैनिया ने अपने रिकॉर्ड में ऐसा दिखाया कि यह एक आम सौदा था. इसे करीब चार लाख के मुनाफे वाली बिक्री के रूप में दर्ज किया गया और उसी दिन से यह बस स्कैनिया की संपत्ति नहीं रही.

लेकिन जीआइए के अनुसार बस की बिक्री के 10.5 महीनों बाद- 21 सितंबर, 2016 को बिक्री के लिए भुगतान की गई राशि स्कैनिया के बही-खातों में दर्शाई गई और स्कैनिया को मात्र 1.1 करोड़ रुपए (1,19,61,505 रुपए) की राशि का भुगतान किया गया न कि 1,20,13,133 रुपए की राशि का.

जीआइए को अपनी जांच के अंत तक स्कैनिया इंडिया और ट्रांसप्रो मोटर्स के बीच हुआ कोई लिखित सेल्स एग्रीमेंट नहीं मिला है.

जीआईए ने यह भी दर्ज किया है कि लक्ष्मीनारायण से परचेज़ ऑर्डर लेते हुए शिवाकुमार ने उसे यह आश्वासन भी दिया था कि फॉक्सवैगन फाइनेंस बस शैल और भीतरी मोडिफिकेशन को फंड करने के लिए सहमत हो गया है.

"हम आपको इस काम के लिए जरूरी ब्रांड गारंटी के मामले में भी मदद करेंगे," शिवाकुमार ने लक्ष्मीनारायण को एक ईमेल में लिखा और एक महीने बाद लक्ष्मीनारायण को फॉक्सवैगन फाइनेंस से लोन के लिए आवेदन करने के लिए सभी जरूरी दस्तावेज़ भी तत्कालीन रीज़नल मैनेजर ने उपलब्ध करा दिये.

24 दिसंबर, 2015 को बस के नक़्शे का आखिरी संस्करण ''स्कैनिया प्रपोजल 8'' के नाम से सारंग गडकरी की निजी ईमेल आईडी पर शिवाकुमार द्वारा इस विश्वास के साथ भेजा गया था कि जनवरी, 2016 के मध्य तक बस तैयार हो जाएगी.

ईमेल के अटैचमेंट्स दर्शाते हैं कि प्रस्तावित बस में एक आसुस मीडिया प्लेयर, 3 टीवी- 47 इंच सोनी, 29 इंच सोनी, और कार्बन टीवी; इलेक्ट्रोफ्लक्स रेफ्रिज़िरेटर; आईएफबी माइक्रोवेव ओवेन; कैफे कॉफी डे कॉफी मेकर; आसुस या सोनी का एम्प्लीफायर; वॉश बेसिन; कॉर्डलेस माइक मोबाइल चार्जिंग प्वाइंट्स; इनवर्टर; सीसीटीवी कैमरे; वाईफाई सिस्टम; रसोई; आदमकद आईने के साथ कपड़ों की अलमारी और अन्य फिटिंग्स के साथ ही बायो शौचालय की सुविधाओं से भी यह बस लैस थी. अकेले टॉयलेट क्यूबिकल की कीमत ही 14 लाख रुपए से ज्यादा थी.

फरवरी और मार्च 2016 में शिवाकुमार ने सारंग गडकरी को अनेक विकल्पों में से चयन करने के लिए बस के भीतरी हिस्से की कुछ तस्वीरें भेजी थीं. बस के भीतरी और बाहरी हिस्से का काम दो अलग-अलग कंपनियों को सौंपा गया था जिनमें से एक का सारंग गडकरी ने अगस्त, 2015 में दौरा किया था.

स्कैनिया इंडिया का सेल्स हेड एक ऐसे व्यक्ति को बस डिलीवर करने का वादा कर रहा था जिसका कागजों पर बस से कोई संबंध नहीं था. यह बस अब स्कैनिया इंडिया की संपत्ति नहीं रह गई थी लेकिन यह साफ तौर पर देखा जा सकता है कि दोनों ही पक्षों द्वारा सभी नियमों को ताक पर रखा गया.

स्वीडन में स्थित स्कैनिया के ऑफिस में नितिन गडकरी

कागजी सबूतों को मिटाते हुए

11 मई, 2016 को स्कैनिया ने ट्रांसप्रो मोटर्स के नाम 1.8 करोड़ का एक नया चालान जारी किया जिसके अनुसार 1.2 करोड़ की कीमत की बस के अतिरिक्त मॉडिफिकेशन के लिए अब 68 लाख रुपयों (43 लाख रुपये + 25 लाख रुपये) की जरूरत थी जिसका खर्च भी ट्रांसप्रो मोटर्स को ही उठाना था.

जीआईए के अनुसार स्कैनिया इंडिया के तत्कालीन मैनेजिंग डायरेक्टर एंडर्स ग्रन्डस्ट्रॉमर के निर्देशों पर ही यह चालान जारी किया गया था.

चालान ट्रांसप्रो मोटर्स के नाम पर जारी किया गया था लेकिन गडकरी बंधु इससे संबंधित बातचीत में अच्छी तरह शामिल थे.

14 मई, 2016 को शिवाकुमार ने सारंग गडकरी को सलाह-मशवरे के लिए सौदे की एक बोली फॉरवर्ड की जो उसे डीसी डिजाइन ने भेजी थी. और जून का पहला सप्ताह आते-आते स्कैनिया इंडिया के दफ्तर में बस के काम के पूरे होने की चर्चाएं शुरु हो चुकी थीं.

शिवाकुमार ने उल्फ फ्रॉमहोल्ज़ और ग्रन्डस्ट्रॉमर के उत्तराधिकारी मिकाइल बेंजे और कुछ अन्य लोगों को समझाते हुए लिखा कि कैसे यह सौदा कंपनी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और शीर्ष प्रबंधन अधिकारी इस सौदे के बारे में भली-भांति जानते हैं. उन्होंने यह भी लिखा कि लेन-देन का काम एक डीलर के माध्यम से हो रहा है.

उन्होंने लिखा, "यह हमारे लिए बहुत ही फायदेमंद साबित होने जा रहा है जिसके बारे में मिखाइल के पास विस्तृत सूचनाएं हैं. जैसा की बैठक में तय हुआ था, लेन-देन आसानी से हो इसके लिए सौदा एक डीलर के माध्यम से किया जा रहा है. बस के रूपांतरण का काम जो पिछले कुछ महीनों से जारी है अब अपने अंतिम चरण में है. मिखाइल और हम इस पर चर्चा कर चुके हैं. अंतिम तैयारियों के लिए जल्द से जल्द बस को डीसी डिजाइन पहुंचाना होगा.’’

इस पर फ्रॉमहोल्ज़ ने जवाब दिया कि उन लोगों को ट्रांसप्रो मोटर्स के इस सौदे में सहायता करनी चाहिए. इस बात पर शिवाकुमार ने सहमति जताई और कहा कि "एकबारगी प्रस्ताव" के तौर पर यह बस नागपुर जाएगी.

हमने ग्रन्डस्ट्रॉमर, फ्रॉमहोल्ज़ और बेंजे से बात करने के प्रयास किये लेकिन उन्होंने किसी भी तरह की कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया.

इसके बाद चेसिस नंबर 1890275 और चालान नंबर 2015-16/CI/NF/ 0427 वाली बस डीसी डिजाइन के वर्कशॉप में चली गई.

8 दिन बाद 18 जून, 2016 को शिवाकुमार ने पुणे स्थित फर्म के एक प्रतिनिधि को सूचित किया कि सारंग गडकरी पुणे आना चाहते हैं. सारंग गडकरी का यह दूसरा फैक्ट्री दौरा था.

जीआइए ने शिवाकुमार और सारंग गडकरी की फोन पर हुई बातचीत की समीक्षा करने के बाद यह पुष्टि की कि शिवाकुमार लगातार सारंग गडकरी को डिजाइन फर्म में चल रहे काम के बारे में जानकारी दे रहे थे और स्वयं सारंग गडकरी भी उनसे नियमित रूप से इस बारे में जानकारी लेते थे.

09 जुलाई, 2016 को डीसी डिजाइन के प्रतिनिधि ने बस को पसंदीदा रंगरूप देने के काम के लिए एक अंतिम मेल सारंग गडकरी को उनके पर्सनल ईमेल आईडी पर भेजी न कि कागजों के हिसाब से बस के असली मालिक ट्रांसप्रो मोटर्स को. उन्होंने लिखा, "कृपया बस के भीतरी हिस्से को पसंदीदा रंगरूप देने के काम के लिए आज सुबह आप से और शिवाकुमार से हुई बातचीत के आधार पर तैयार की गई, यहां अटैच्ड संशोधित अंतिम बोली प्राप्त करें. हम आपसे आग्रह करते हैं कि आप इस प्रस्ताव को एक आधिकारिक निर्णय तौर पर लेने के बजाय एक अपवाद के तौर पर लें.”

बोली 67 लाख रुपये से अधिक की थी. शिवाकुमार को ईमेल पर कॉपी किया गया था जबकि इस मोल-भाव से ट्रांसप्रो मोटर्स को बाहर रखा गया था.

24 घंटों के भीतर ही शिवाकुमार ने डीसी डिजाइन के प्रतिनिधि को जवाब दिया कि वह सारंग गडकरी से हुई चर्चा के आधार पर तय किए गए "स्पेसिफिकेशंस" के अनुरूप काम करने के लिए सहमत हैं. गडकरी को इस ईमेल पर कॉपी किया गया.

परचेज़ ऑर्डर को खरीदार या संचालन करने वाली कंपनी (यानी कि ट्रांसप्रो मोटर्स) जारी करती है. जिसे स्कैनिया सप्ताह भर के भीतर ही पूरा कर देती, शिवाकुमार ने बताया. 15 जुलाई 2016 को जितनी आसानी से बाकी सभी काम चल रहे थे उसी तरह लक्ष्मीनारायण ने भी डीसी डिजाइन की अंतिम बोली को अपनी लिखित सहमति दे दी.

जब बस में कुछ बदलाव करने के लिए उसे गैराज में रखा गया था उसी समय फाइनल कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार बस को गडकरी बंधुओं को सौंपने का वक्त आ गया.

3 अगस्त, 2016 को फॉक्सवैगन फाइनेंस ने शैल बस, ढांचे को गढ़ने और इंटीरियर डिजाइनिंग के लिए ट्रांसप्रो मोटर्स का लोन पास कर दिया. लोन की कुल राशि 2.18 करोड़ रुपए (2,18,91,299 रुपए) (शैल बस के लिए 1,20,13,134 रुपए + 22,19,849 ढांचे को गढ़ने के लिए +76,58,316 रुपये इंटीरियर डिजाइनिंग के लिए) थी.

अब कुछ देर के लिए थोड़ा पीछे चलते हैं. बस की बिक्री नवंबर 2015 में हुई. ट्रांसप्रो मोटर्स को लोन अगस्त, 2016 में दिया गया और जीआइए ने अपनी रिपोर्ट में दर्ज किया कि स्कैनिया ने अपने बही-खाते में दर्शाया है कि बस के बदले में भुगतान राशि सितंबर, 2016 में प्राप्त की गयी. तो ऐसे में ये सारी कड़ियां आपस में जुड़ती दिखाई पड़ती हैं. ट्रांसप्रो मोटर्स फॉक्सवैगन फाइनेंस से पैसा मिल जाने के बाद ही स्कैनिया को भुगतान कर सकता था.

19 सितंबर को शिवाकुमार ने सारंग गडकरी को उनके एप्पल आईमैसेज पर सूचना दी कि दिन के दौरान पेमेंट ट्रांसफर (फॉक्सवैगन फाइनेंस द्वारा किया गया) पूरा हो जाएगा. सारंग गडकरी ने आरटीजीएस नंबर मांगा.

27 अक्टूबर, 2016 को लक्ष्मीनारायण ने रेंटल एग्रीमेंट का एक ड्राफ्ट सारंग गडकरी को भेजा और 11 नवंबर, 2016 को औपचारिक तौर पर ट्रांसप्रो मोटर्स बस के रेंटल कॉन्ट्रैक्ट में अगले 3 सालों के लिए 11 नवंबर, 2016 से लेकर 10 नवंबर, 2019 तक, नागपुर के एक ग्राहक के साथ शामिल हो गयी.

हालांकि नागपुर स्थित यह ग्राहक न तो सारंग और न ही निखिल गडकरी थे. यह ग्राहक आवास और आहार सुविधाएं उपलब्ध कराने वाली एक प्राइवेट कंपनी सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी मैनेजमेंट सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड (सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी) थी. कागजों पर निखिल या सारंग गडकरी का इस कंपनी से कोई संबंध नहीं है.

स्कैनिया मेट्रोलिंक बस से संबंधित बातचीत में आज तक सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी, इसके मालिक या फिर इसके डायरेक्टर शामिल नहीं हुए हैं. लेकिन सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी के दोनों में से एक डायरेक्टर प्रियदर्शन विवेक पांडे अनुबंध के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के लिए हाजिर हुए थे. शिवाकुमार ने गवाह के तौर पर इन दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए थे.

सुदर्शन और गडकरी

स्कैनिया और गडकरी बंधुओं की बस के मामले में बातचीत शुरू होने के एक सप्ताह से भी कम समय के भीतर 9 जून, 2015 से सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी ने अपना व्यापार शुरू किया. उस वित्त वर्ष के समाप्त होने तक कंपनी का लाभ व हानि का खाता पूरी तरह खाली था.

इसने कोई बिक्री नहीं की थी और इसीलिए इसे कोई आय भी प्राप्त नहीं हुई थी. कंपनी का बैंक बैलेंस भी एक लाख रुपये से कम था (98,892 रुपये) और इसका टर्नओवर भी शून्य था. कंपनी की कुल कीमत का आंकड़ा भी नकारात्मक (-2,01,108 रुपये) था और इसने अगले वित्त वर्ष में 3 महीनों के भीतर ही इतनी बड़ी रकम के बदले किराए की एक बस के सौदे पर हस्ताक्षर कर दिये.

किराए के अनुबंध के आधार पर सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी को ट्रांसप्रो मोटर्स को 1.2 करोड़ रुपए के ब्याज रहित प्रतिदेय वाले सिक्योरिटी डिपॉजिट का भुगतान करना पड़ता और ट्रांसप्रो मोटर्स को इसे लीज़ की अवधि की समाप्ति पर 36 महीनों के बाद लौटाना था. जीआईए ने अपनी रिपोर्ट में यह दर्ज किया कि लक्ष्मीनारायण के अनुसार यह राशि 40 लाख रुपयों की तीन किश्तों में जमा करनी थी जिसकी शुरुआत नवंबर 2016 से होने वाली थी.

इसके साथ ही सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी को ट्रांसप्रो मोटर्स को 20,000 रुपये का मासिक किराया भी चुकाना था. इस पूरी अवधि के लिए कुल राशि 7.2 लाख रुपए थी. यदि किराए का भुगतान 60 दिनों से ज्यादा वक्त के लिए लंबित रहता तो बस के मालिक ट्रांसप्रो मोटर्स को कानूनी रास्ता चुनने और बस को वापस लेने का अधिकार भी था.

लेकिन उसी साल जब सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी ने सौदे पर हस्ताक्षर किए तो इस पर गडकरी बंधुओं द्वारा चलाई जा रही एक कंपनी द्वारा फंड्स की बौछार हो गई. इसने मानस एग्रो इंडस्ट्रीज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड से 35 लाख रुपए का एक अनसिक्योर्ड लोन प्राप्त किया. सारंग गडकरी 15 जून,2016 से इसके पूर्णकालिक डायरेक्टर हैं.

यह फर्म कंपनियों के एक बड़े समूह मानस ग्रुप के अधीन आती है. निखिल गडकरी मानस ग्रुप के सलाहकार और प्रबंधन परिषद के एक सदस्य की भूमिका निभाते हैं. कुल मिलाकर कंपनी में चल रहे कामकाज के देखरेख की जिम्मेदारी उन्हीं पर है.

26 जनवरी, 2018 को बस को रखने और इस्तेमाल करने को न्यायोचित ठहराने की एक कमजोर कोशिश करते हुए सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी ने इस लक्ज़री बस की 4 तस्वीरें अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट कीं. ये तस्वीरें बिना किसी विवरण के थीं और इनमें ग्राहकों के लिए किराया सेवाओं का प्रस्ताव भी नहीं था. (सुदर्शन के फेसबुक पेज पर बस की यही तस्वीरें लगी हुई हैं

वित्त वर्ष 2017-18 में सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी अपनी आय से अधिक खर्च कर रहा था और इसे 82,132 रुपयों का घाटा भी हुआ. इसने मानस एग्रो इंडस्ट्रीज से लिए लोन का एक पैसा भी नहीं चुकाया है.

अगले दो वर्षों में सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी के ऑडिटर्स ने अपनी रिपोर्ट में यह चिन्हित किया कि मानस एग्रो इंडस्ट्रीज से लिया गया 35 लाख रुपयों का अनसिक्योर्ड लोन कानून के दायरे में नहीं आता. ऑडिटर्स पक्के तौर पर यह भी तय नहीं कर पाए कि लोन देने वाले भी कानून के प्रति जवाबदेह हैं या नहीं.

रिपोर्ट में दर्ज किया गया, "अनसिक्योर्ड लोन के संदर्भ में घोषणाएं डायरेक्टर और संबंधित पक्षों से प्राप्त की गई है. जिसे साफ नीयत के साथ स्वीकार कर लिया गया. लोन देने वाले पक्ष के पास इस संबंध की जांच करने के साथ ही धारा 185 व 186 (कंपनी अधिनियम, 2013 की) के अनुपालन के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है."

(कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 185 ने कंपनियों को ऐसी किसी भी कंपनी के निदेशकों या किसी भी व्यक्ति को ऋण देने या उनके द्वारा लिए गए ऋण के संबंध में कोई गारंटी या कोई सुरक्षा देने से प्रतिबंधित कर दिया है जिनमें निदेशक हितबद्ध हैं.

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 186 में कहा गया है- एक कंपनी जो अपने द्वारा स्वीकार किए गए किसी भी जमा के पुनर्भुगतान या जमा पर ब्याज के भुगतान में चूक गयी है, ऐसे डिफ़ॉल्ट को कम करने तक कोई भी ऋण, गारंटी, निवेश या सुरक्षा नहीं प्रदान कर सकती.

सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी के ऑडिटर्स ने कुछ अन्य मसलों पर भी गौर किया. मार्च, 2019 में इसने कहा कि कंपनी के पास एक बस थी जो ना के बराबर राजस्व पैदा करती थी लेकिन कंपनी लगातार इस पर मूल्यह्रास का दावा करती रही. इस मामले में जो सफाई दी गई वह संतोषजनक नहीं थी. ऑडिटर्स का कहना था, "यह लेन-देन की प्रमाणिकता और वैधता पर संदेह पैदा करता है.”

कई रिपोर्टर सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी जाकर स्कैनिया लक्ज़री बस सौदे में उनकी भूमिका तथा गडकरी परिवार से उनके संबंधों पर एक विस्तृत प्रश्नावली भी उन्हें भेज चुके हैं लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं आया है.

पैसों के बहाव का अभाव

जैसे ही बस के कॉन्ट्रैक्ट पर दस्तखत हुए पैसा आना शुरू होना था. पहला चरण सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी से ट्रांसप्रो मोटर्स तक, और दूसरा ट्रांसप्रो मोटर्स से फॉक्सवैगन फाइनेंस तक.

जहां सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी को हर महीने 20,000 रुपए किराए के तौर पर ट्रांसप्रो मोटर्स को देने थे, वहीं ट्रांसप्रो मोटर्स की फॉक्सवैगन फाइनेंस को जाने वाली महीने की किश्त 3,71,828 रुपए थी. यह उन्हें सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी से मिलने वाले किराए से 18 गुना ज्यादा रकम थी.

दो निजी पार्टियों के बीच हुआ यह करार वादे के पीछे के असली मकसद को छुपा सकता था, अगर तयशुदा रकम ट्रांसफर होता तब. लेकिन बस के कथित तौर पर नागपुर के हवाले होने के बाद ट्रांसफर मोटर्स के खाते रिक्त ही रहे.

बस लीज़ के करार पर दस्तखत होने के 11 दिन बाद, सारंग गडकरी को 30 लाख रुपए मांगते हुए एक मैसेज भेजा जाता है, कथित तौर पर बस की पहली किश्त थी. जीआइए के दस्तावेजों के अनुसार इस मैसेज को भेजने वाला अज्ञात है.

अगले दिन सारंग गडकरी उत्तर देते हैं कि काम अगले दिन हो जाएगा, लेकिन जब पैसे ट्रांसफर नहीं होते तो शिवाकुमार उनसे थोड़ी विनती करते हैं, "सर ट्रांसप्रो के क्रेडिट में पेमेंट नहीं आया है, वह काफी परेशान हैं क्योंकि उसकी भी फाइनेंसर को किश्त जानी है, कृपा करें."

सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी से ट्रांसप्रो मोटर्स को पहली किश्त 23 नवंबर, 2016 को मिली. लेकिन 40 लाख के बजाय केवल 25 लाख ही भेजे गए थे. एक दिन बाद, एक अज्ञात नंबर से सारंग गडकरी को धन्यवाद और ट्रांसप्रो को पेमेंट मिलने की पुष्टि करता हुआ एक मैसेज भेजा जाता है.

अगले महीने तक, लक्ष्मीनारायण का 55 लाख (80-25) बस की सिक्योरिटी और 2 महीने का किराया 40,000 रुपए (20+20) बकाया हो जाता है. उसने महीने के आखिर तक सब्र से इंतजार किया, लेकिन उसके खाते की रकम 25 लाख रुपए पर ही स्थिर रही.

इस सौदे से उनकी झुंझलाहट ज़ाहिर होने लगी थी. उन्होंने पूरी प्रक्रिया का हिस्सा रहे और ट्रांसप्रो मोटर्स को साथ लाने वाले शिवाकुमार को एक गुस्से से भरी ईमेल लिखी.

30 दिसंबर, 2016 को लक्ष्मीनारायण, शिवकुमार को लिखते हैं, "अगर पांडे कल तक दूसरी किश्त देता है, मैं वह करार नोटिस देकर खत्म करना चाहता हूं, मैं वह बस वापस ले लूंगा, और खुद चला लूंगा, जो करार हुआ था यह उसका उल्लंघन है, किसी भी नतीजे को भुगतने के लिए तैयार रहें. कृपया उसे बता दें, वह तो मेरे फोन या मैसेज का जवाब देने की जरूरत भी नहीं समझता. मैं गंभीरता से कह रहा हूं. 4 जनवरी 2017 तक मैं इंतजार करूंगा. उसके बाद मैं कानून का सहारा लूंगा."

शिवाकुमार ने उन्हें सारंग गडकरी को एक ईमेल लिखने को कहा, जो वह साथ में उन्हें भी भेज दें. उन्होंने लक्ष्मीनारायण को दिलासा दिया कि वह दोनों गडकरी भाइयों के साथ इस मुद्दे पर बात करेंगे.

शिवकुमार लिखते हैं, "मैं सारंग को यह मेल भी फॉरवर्ड कर दूंगा जिससे कि उन्हें परिस्थिति का पता चल जाए. उन्हें आज सुबह अपने साथ कॉल पर लेते हैं."

इस ईमेल आदान-प्रदान के तुरंत बाद, शिवकुमार ने ट्रांसप्रो मोटर्स का भुगतान कराने के लिए गडकरी बंधुओं से इस विषय पर गंभीरता से बात की. जीआईए नोट करता है कि उनकी सारंग और निखिल गडकरी से चैट पर जल्दी-जल्दी काफी बातें हुई.

2 जनवरी, 2017 को शिवाकुमार ने सारंग गडकरी को एक एसएमएस भेजा- "डियर सर, लक्ष्मीनारायण फाइनेंसर के भुगतान की वजह से बहुत तनाव में हैं क्योंकि उसने फाइनेंसर के मार्जिन के पैसे के भुगतान में भी निवेश किया है. उसके खाते में भुगतान की रकम ट्रांसफर कराने के लिए आपकी मदद की गुजारिश है. कृपया मदद करें." सारंग गडकरी ने कोई जवाब नहीं दिया.

17 फरवरी, 2017 को ट्रांसप्रो मोटर्स को सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी से 10 लाख रुपए और मिले. इस समय ट्रांसप्रो मोटर्स का कुल बकाया सिक्योरिटी का 85 लाख (1.20 - 35) और किराए का 80,000 रुपए (20 x 4) था.

मार्च में फिर से शिवकुमार ने, ट्रांसप्रो मोटर्स के भुगतानों को निपटाने का अनुरोध करते हुए निखिल गडकरी के एप्पल आईमैसेज पर कम से कम चार और सारंग गडकरी को एक मैसेज भेजा. उन्होंने साथ में अनुच्छेदों और नियमों की फोटो को भी संलग्न कर दिया.

20 मार्च 2017 को उन्होंने निखिल को लिखा, "सर आपको कॉल करने की कोशिश की, लक्ष्मीनारायण के बकाया भुगतान को आपके ध्यान में लाने का अनुरोध है. उसके ऊपर फाइनेंसर का जबरदस्त दबाव है जिसने वाहन के दोबारा कब्जे का नोटिस भेज दिया है. सर बकाया किश्त ट्रांसफर करने की कृपा करें."

24 मार्च, 2017 को उन्होंने निखिल को दोबारा लिखा, "सर आपकी मदद की जरूरत है, फाइनेंसर ने लक्ष्मीनारायण को नोटिस दे दिया है. कृपया कल तक भुगतान कर उसकी मदद करें."

28 मार्च, 2017 को उन्होंने निखिल और सारंग गडकरी दोनों को मैसेज किया, "डियर सर एक बहुत विनम्र विनती, फाइनेंसर ने लक्ष्मीनारायण को कानूनी नोटिस भेज दिया है, कृपया आज ट्रांसफर कर उसकी मदद करें सर वरना वह हमारी मदद करने के बावजूद मुसीबत में फंस जाएगा सर."

3 दिन बाद लक्ष्मी नारायण को सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी से 25 लाख और मिले. सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी पर अभी भी सिक्योरिटी के 60 लाख (1.2 - 60) और किराया बढ़कर 1 लाख (20x5) हो गया था. अभी तक किराया एक बार नहीं दिया गया था.

इस पूरे खेल का दोषी अब एक लोन डिफॉल्टर लक्ष्मीनारायण है. 10 अप्रैल, 2017 से एक महीने तक लक्ष्मीनारायण और शिवकुमार के बीच ट्रांसप्रो मोटर्स के लोन के पैसे को न चुका पाने पर ईमेल का आदान-प्रदान होता है.

लक्ष्मीनारायण बताते हैं, “अप्रैल 2017 तक उन्हें नागपुर से केवल 60 लाख रुपए ही मिले हैं जबकि उन्हें जनवरी 2016 तक 1.2 करोड़ रुपए मिल जाने चाहिए थे. उन्हें नागपुर के ग्राहक से बस के किराए के तौर पर 12 किश्तों में 7.2 लाख रुपए भी नहीं मिले हैं. उन्हें ऐसा लग रहा था कि उनको नजरअंदाज कर फायदा उठाया जा रहा है.” शिवकुमार ने उन्हें भरोसा दिलाया की वह मिलकर इस मामले पर बातचीत कर सकते हैं.

उसी दिन शिवकुमार ने निखिल गडकरी को मैसेज किया और 25 लाख रुपए भिजवाने के लिए उनसे हस्तक्षेप करने को कहा. उन्होंने मैसेज में लिखा, "सर आपसे दखल देने की विनती है, अमितजी के द्वारा इंगित किए गए पिछले महीने के 25 लाख रुपए अभी भी बकाया हैं, कृपा करें सर लक्ष्मीनारायण विकट आर्थिक तनाव में है क्योंकि उसने बस के लिए उधार लिया था."

जीआइए यह नोट करता है कि 30 जून, 2017 को स्कैनिया ने फॉक्सवैगन फाइनेंस से पूछा कि क्या बस का लोन ट्रैवल टाइम कार रेंटल प्राइवेट लिमिटेड (ट्रैवल टाइम) को ट्रांसफर हो सकता है, क्योंकि ट्रांसप्रो मोटर्स "सहयोग नहीं कर रहा" है. लोन को ट्रांसफर करने की इस अर्ज़ी को, फॉक्सवैगन फाइनेंस ने खारिज कर दिया.

ट्रैवल टाइम पुणे महाराष्ट्र में स्थित एक प्राइवेट ट्रांसपोर्ट कंपनी है और उसने ही राज्य में स्कैनिया की बसों की डीलरशिप ली थी. उसी तरह जैसे कर्नाटक में स्कैनिया की डीलरशिप ट्रांसप्रो मोटर्स के पास थी.

20 और 24 मार्च 2017 को ट्रैवल टाइम के द्वारा ट्रांसप्रो मोटर्स को क्रमशः 12 लाख और 3 लाख रुपए की दो किश्तें ट्रांसफर की गईं. लक्ष्मीनारायण ने जीआइए को बताया कि यह पैसा बस के लिए आर्थिक मदद था. लेकिन जीआइए यहां इंगित करता है कि ट्रांसप्रो मोटर्स के खातों में यह सेवाओं के लिए किए गए भुगतान के रूप में दर्ज किया गया है और बस के लिए किए गए भुगतान से इसका कोई लेना देना नहीं है.

हमने ट्रांसप्रो मोटर्स को दिए गए पैसे को लेकर ट्रैवल टाइम से संपर्क किया. कंपनी के दो निदेशकों में से एक, विवेक कालकर ने जवाब दिया, "हम यह देखकर काफी चकित हैं कि स्कैनिया ने हमारा नाम अपने किसी गड़बड़ झाले में शामिल कर लिया है (अगर ऐसा हुआ है). हमने आपके द्वारा उल्लेख किए गए किसी भी मंत्री से किसी भी तरह के संबंध में कभी, किसी प्रकार का फायदा नहीं लिया है. हम अपने ऊपर लगाए गए सभी आरोपों, जो बदनाम करने और लांछन लगाने वाले हैं, को सिरे से नकारते हैं."

1 दिसंबर, 2017 को निखिल गडकरी ने शिवाकुमार को एसएमएस सूचित किया कि 15 दिनों में अंतिम बकाया रकम चुका दी जाएगी. लेकिन जब 26 दिसंबर तक ट्रांसप्रो मोटर्स के पास कोई पैसा नहीं पहुंचा तो शिवाकुमार वापस हाथ फैलाकर उनके पास पहुंचे.

शिवाकुमार लिखते हैं, "डीलर के ऊपर अत्यधिक दबाव है और उसने फॉक्सवैगन फाइनेंस की तीन किश्तों को नहीं निपटाया है. आपने पक्का किया था कि 15 दिसंबर 2017 तक भुगतान हो जाएगा. कृपया इसमें मदद करें सर क्योंकि ट्रांसप्रो के डीलर पर इसकी वजह से मानसिक और शारीरिक रूप से फर्क पड़ा है, प्लीज सर कृपा करें."

इन मिन्नतों को किसी ने नहीं सुना

अब तक ट्रांसप्रो मोटर्स और फॉक्सवैगन फाइनेंस दोनों को समझ आ चुका था कि उन्हें बस के लिए अब और भुगतान नहीं मिलेगा.

इस दौरान, ट्रांसप्रो मोटर्स अक्टूबर 2016 से फॉक्सवैगन फाइनेंस को लोन की किस्तें भरती रही थी और नवंबर 2017 तक वह किसी तरह 44,91,936 लाख रुपए ही दे पाई. यह उनके द्वारा उधार ली गई रकम का छोटा सा हिस्सा था और सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी के द्वारा उन्हें दिए गए पैसों का 75 प्रतिशत हिस्सा था.

12 अक्टूबर 2018 को फॉक्सवैगन फाइनेंस के क्रेडिट आकलन विभाग के प्रमुख ने रिटेल फाइनेंस के वरिष्ठ मैनेजर और स्कैनिया इंडिया ऑफिस के क्रेडिट नियंत्रण विभाग को लिखा कि 2.21 करोड़ रुपए (₹22195991) (1,21,78,573 + 77,65,449 + 22,51,969 - तीनों लोन) ट्रांसप्रो मोटर्स पर बकाया हैं. क्योंकि स्कैनिया भारत ने इस लोन की ब्रांड गारंटी दी थी और उधार लेने वाले ने किश्तें नहीं चुकाई हैं, तो स्कैनिया को यह पैसे देने चाहिए.

30 सितंबर, 2018 को फॉक्सवैगन फाइनेंस के खातों में ट्रांसप्रो मोटर्स एक गैर निष्पादित संपत्ति या एनपीए (डूबी हुई रकम), के रूप में नामित हो गई. 4 अक्टूबर, 2018 तक कुल बकाया ऋण 2.22 करोड़ रुपए (2,22,07,299 रुपए) था.

झूठ से भरी बस

मंत्री को स्कैनिया लग्जरी बस दिए जाने की बात जब शुरू में मीडिया में आई तो एक भारतीय मीडिया संस्थान ने स्कैनिया के प्रवक्ता हांसाओके डेनियल्सन के हवाले से एक वक्तव्य इस करार को लेकर चलाया. डेनियल्सन ने कहा- "नहीं, यह बस स्कैनिया इंडिया से 2016 में कंपनी के एक प्राइवेट डीलर ने खरीदी थी जिसने उसे अपने एक ग्राहक (एक भारतीय बस संचालक) को दे दिया था. बस की मौजूदा स्थिति के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है."

भारतीय समाचार रिपोर्ट ने इसमें यह भी जोड़ दिया कि स्कैनिया ने (डेनियल्सन के हवाले से) गडकरी के बेटों से जुड़े किसी (व्यक्ति या कंपनी) के साथ किसी भी तरह के व्यापारिक सौदे में पड़ने से इनकार किया है.

नितिन गडकरी ने इस न्यूज़ रिपोर्ट और वक्तव्य को, अपने और अपने परिवार को इस भ्रष्ट सौदे से पाक-साफ घोषित करने के लिए इस्तेमाल किया. उन्होंने इसे स्कैनिया का अंदरूनी मामला बताया.

इन संवाददाताओं ने डेनियल्सन से इन वक्तव्यों की पुष्टि की. उन्होंने माना कि हालांकि उनका वक्तव्य ठीक था लेकिन भारतीय न्यूज़ रिपोर्टों में इस्तेमाल किया गया दूसरा वक्तव्य भ्रामक था.

उन्होंने कहा, "मैं अपने बयान को पहचानता हूं और उसके साथ हूं. लेकिन परिवार के प्रतिनिधि के द्वारा की गई व्याख्या थोड़ी भ्रामक लगती है. जबकि तुम और मैं, हम दोनों जानते हैं कि ट्रांसप्रो से बस को किराए पर लेने वाली कंपनी को एक निकट का रिश्तेदार ही चला रहा था.” (स्वीडिश से अनुवादित)

उन्होंने लगातार ईमेल में दोहराया कि सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी वह कंपनी है, जो परिवहन मंत्री के बेटे से जुड़ी है और स्कैनिया इतना पक्का कर पाई है कि बस को "किराए पर" मंत्री के बेटे ने लिया था.

उन्होंने यह भी कहा, "हमें यह भी पता है कि मंत्री ने बस का इस्तेमाल निजी तौर पर किया है, अपनी बेटी की शादी में. लेकिन इसका वर्णन ऐसे भी हो सकता है कि मंत्री ने पार्टी के ट्रांसपोर्ट को संभालने के लिए एक बस कंपनी की सेवाएं लीं. हम यह साबित नहीं कर पाए हैं कि मंत्री को यह बस उपहार के रूप में मिली थीं."

डेनियल्सन के अनुसार स्कैनिया का तर्क- "क्या आप सही में सोचते हैं कि एक अच्छा भला भारतीय मंत्री एक बस को उपहार के तौर पर लेगा, खास तौर पर तब जब वह बहुत कम दामों में बसों की हेल्प अपने बेटे से ले सकता था जो एक बस कंपनी चलाता है?"

लेकिन, डेनियल्सन स्कैनिया से अकेले व्यक्ति नहीं हैं जिन्होंने मंत्री के बस से जुड़े होने की बात कही है.

26 फरवरी, 2021 को खबर के चलने से पहले स्कैनिया के सीईओ हैनरिक हेनरिक्सेन ने स्वीडन में एसवीटी को एक वीडियो साक्षात्कार दिया, और कहा कि कंपनी के पास जानकारी है कि मंत्रीजी की एक बेटी की शादी में बस का इस्तेमाल हुआ था.

उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत में स्कैनिया के वरिष्ठ कर्मचारी इस सौदे को विदेश में बैठे अपने वरिष्ठ मैनेजमेंट से छुपाना चाह रहे थे.

हेनरिक्सेन कहते हैं, "तो यह एक सौदा था जिसे कभी होना ही नहीं चाहिए था. और यह एक ऐसा शब्द है जहां पर हमने बस को अपने एक व्यक्तिगत डीलर को बेचा और उन्होंने इसके बाद उसे एक ट्रांसपोर्ट कंपनी को बेच दिया जिसके भारतीय मंत्री से पारिवारिक और व्यक्तिगत संबंध हैं. हमारे सिस्टम को इसे पकड़ना चाहिए था और हम सब के लिए खतरे की घंटी बज जानी चाहिए थी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि भारत मैं स्कैनिया के वरिष्ठ लोगों ने सिस्टम को चकमा दिया क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि यह सौदा पूरा हो."

उन्होंने सौदे का ठीकरा स्कैनिया इंडिया के दफ्तर पर फोड़ते हुए यह भी कहा, "हमारे द्वारा बनाए गए नियमों को उन्होंने चकमा दे दिया, कागजात पूरे नहीं थे और वह हमें सूचना देने से बच रहे थे."

हेनरिक्सन ने इंटरव्यू में समझाया कि जैसे ही स्वीडन में स्कैनिया को इन भ्रष्ट सौदों के बारे में पता चला, उन्होंने तुरंत अपने तंत्र की सफाई की और जितने भी लोग दोषी पाए गए उन्हें निकाल दिया. उन्होंने यह भी कहा कि इतना ही नहीं स्कैनिया ने तो नरसापुरा में अपनी बस निर्माण इकाई को भी बंद कर दिया जिससे हजारों नौकरियां प्रभावित हुईं. सब भ्रष्टाचार की वजह से.

सच्चाई यह है कि जून 2018 में जब स्कैनिया ने भारत में अपनी उत्पादन इकाई को बंद किया तो ऐसी घटिया बिक्री की वजह से हुआ था न कि भ्रष्टाचार की वजह से, जो हेनरिक्सन का दावा था. उस समय मीडिया ने इस पर रिपोर्ट किया था और भारत में स्कैनिया की बसों के दो एजेंटों ने पत्रकारों से इस बात की पुष्टि की थी.

और अगर हम हेनरिक्सन की बात पर भरोसा करें, तो क्या स्कैनिया ने खराब बिक्री अपने भारत ऑफिस के भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए दिखाई थी?

स्कैनिया के एक पूर्व कर्मचारी जिन्हें बस प्लांट के बंद होने की वजह से निकाल दिया गया, कहते हैं कि आधिकारिक तौर पर प्लांट बंद करने की कार्यवाही के कागजात कर्नाटक श्रम विभाग को कभी सौंपे ही नहीं गए.

हेनरिक्सन ने यह जिक्र भी किया था कि भारत ऑफिस के जिन लोगों को भ्रष्ट सौदों का दोषी पाया गया, उन्हें निकाल दिया गया था. लेकिन स्कैनिया इंडिया के शीर्ष के अधिकारियों के द्वारा कंपनी को छोड़ने की टाइमलाइन जीआइए के द्वारा दाखिल किए गए समय से मेल नहीं खाती. इनके अलावा कुछ और लोग या तो ऊंचे पदों या बाहर के देशों में भेजकर पदोन्नत किए गए, जिनमें से कुछ आज भी स्कैनिया के कर्मचारी हैं.

बस सौदे के पीछे के तथाकथित सरताज, शिवाकुमार ने स्कैनिया मार्च 2018 में छोड़ दी थी. जीआईए के निष्कर्ष पूरे होने से 6 महीने पहले. उन्होंने एक ऐसी कंपनी को ज्वाइन किया जिसका स्कैनिया से बसों के कोच बनाने के लिए करार था.

संवाददाताओं ने स्कैनिया इंडिया के दो पूर्व कर्मचारियों, जिनमें से एक एचआर विभाग में था, से पुष्टि की कि शिवाकुमार को भ्रष्टाचार के कारणों से नहीं हटाया गया था. उन्होंने एक बड़े बोनस के साथ इस्तीफा दिया था. सूत्र यह भी बताते हैं कि स्कैनिया छोड़ने से एकदम पहले उन्हें कथित तौर पर जर्मनी स्थित, फॉक्सवैगन एजी ऑफिस में दो बार बुलाया गया.

हमने शिवाकुमार से संपर्क करने की कई कोशिश कीं. संवाददाताओं ने उनसे व्यक्तिगत तौर पर मिलने की गुजारिश की, जिसे उन्होंने खारिज कर दिया. फोन से संपर्क करने पर उन्होंने कहा कि उन्होंने स्कैनिया को वर्षों पहले छोड़ दिया था और वह इस मामले पर कोई टिप्पणी करना नहीं चाहते. उन्होंने कई बार भेजे गए विस्तृत प्रश्नों का कोई जवाब नहीं दिया.

हेलमुट श्वारट्ज़ और सेल्स विभाग का वह कर्मचारी जिसने 2015 में "मेट्रोलिंक फॉर मिस्टर गडकरी” के शीर्षक वाली ईमेल भेजी थी, उसने स्कैनिया जुलाई 2017 में छोड़ दी.‌ एंडर्स ग्रंथ क्रोमा ने स्कैनिया इंडिया को सितंबर 2016 में छोड़ दिया था और वह स्वीडन ऑफिस में जुलाई 2017 तक रहे. इन तीनों ने स्कैनिया को जीआइए के तथ्यों के बाहर आने से एक वर्ष से अधिक पहले छोड़ दिया था. (उनकी लिंक्डइन प्रोफाइलों के अनुसार)

रिचर्ड वार्डमार्क ने स्कैनिया इंडिया ऑफिस को अक्टूबर 2018 में छोड़ दिया था लेकिन वह अब स्कैनिया के फिनलैंड ऑफिस- एसओई बस प्रोडक्शन फिनलैंड ओवाय के कार्यकारी निदेशक हैं.

उल्फ फ्रॉमहोल्स, जो स्कैनिया इंडिया के सीएफओ थे, उन्हें 11 जनवरी, 2018 को सूचित किया गया कि एसवीटी पत्रकारों के पास मौजूद जानकारी के अनुसार उन्हें निकाल दिया जाएगा. लेकिन जून 2018 तक वह नीदरलैंड में स्कैनिया प्रोडक्शन ज़्वोल्ल में काम कर रहे थे. (जानकारी स्वीडन में एसवीटी रिपोर्टर के पास है जिन्हें स्कैनिया के सूत्रों से लिया गया)

मिकाएल बैंजे स्कैनिया इंडिया ऑफिस के कार्यकारी निदेशक जनवरी 2016 में बने और मार्च 2018 में उन्होंने स्कैनिया के स्वीडन स्थित मुख्यालय में टीम लीडर डिफेंस का कार्यभार संभाला. फॉक्सवैगन एजी ने संवाददाताओं को बताया कि वह स्कैनिया समूह के लिए अब काम नहीं करते.

जिमी रेनस्ट्रोम, जिन्होंने एक जुलाई 2017 को स्कैनिया इंडिया के सीएफओ के रूप में कार्यभार संभाला, 2 वर्ष बाद वह स्कैनिया चीन चले गए. संवाददाताओं के द्वारा संपर्क किए जाने पर रेनस्ट्रोम ने टिप्पणी करने से मना कर दिया.

अरुण रंगासामी स्कैनिया इंडिया में तेजी से उभरे और अब वह बिक्री विभाग के जनरल मैनेजर हैं.

क्या स्कैनिया ने अपने कुछ उन कर्मचारियों को कंपनी में रहने दिया जिन्हें कथित तौर पर भारत के ऑफिस में भ्रष्टाचार के बारे में पता था? और क्या उसने भ्रष्ट सौदे में आरोपित लोगों को जीआइए की जांच पूरी होने से पहले हटाया? क्या इससे यह अर्थ निकलता है कि स्कैनिया स्वीडन को भ्रष्टाचार के बारे में पता था? अगर स्कैनिया इंडिया के दफ्तर में उच्च पदों पर बैठे लोगों का भ्रष्ट सौदे में लिप्त होना उनके हटाए जाने का कारण था, तो इस मामले की सूचना भारत या स्वीडन में, किसी भी पुलिस या दूसरी जांच एजेंसी को क्यों नहीं दी गई?

हमारे संवाददाता बंगलुरु में लक्ष्मीनारायण से भी मिले लेकिन उन्होंने टिप्पणी करने से मना कर दिया. उन्होंने सूचना दी कि ट्रांसप्रो मोटर्स हुबली, कर्नाटक में अपना व्यापार समेट रहा है, और अपनी फैक्ट्री स्कैनिया के सुपुर्द कर आखिरकार बंगलुरु को छोड़ रहा है.

इस रिपोर्ट के एक संवाददाता ने 11 फरवरी से 26 फरवरी 2021 के बीच नितिन गडकरी और सड़क, परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय में उनके व्यक्तिगत सचिवों को, एक इंटरव्यू का निवेदन और विस्तृत प्रश्नोत्तरी भेजने के लिए चार बार लिखा. गडकरी के दफ्तर से कोई जवाब नहीं आया. इसके बाद संवाददाता ने प्रश्नों से भरा पत्र केंद्रीय मंत्री तक पहुंचाने के लिए जर्मनी में भारतीय दूतावास से संपर्क किया. लेकिन उस रास्ते से भी कोई जवाब नहीं मिला.

नितिन गडकरी के दोनों बेटों सारंग और निखिल गडकरी को भी विस्तृत प्रश्नोत्तरी दो बार भेजी गई. लेकिन उन्होंने भी कोई जवाब नहीं दिया.

बस अब कहां है

तकनीकी तौर पर, ट्रांसप्रो मोटर्स के लोन की किश्तें न चुका पाने के बाद, बस को लोन देने वाली कंपनी के द्वारा ज़ब्त किया जाना चाहिए था, जोकि फॉक्सवैगन फाइनेंस प्राइवेट लिमिटेड है.

उससे भी पहले, करार के मुताबिक, जैसे ही सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी ने भुगतान का डीफॉल्ट करना शुरू किया ट्रांसप्रो मोटर्स बस वापस ले सकता था. लेकिन ट्रांसप्रो मोटर्स अपने किराएदार के खिलाफ कभी अदालत गया ही नहीं.

डेनियल्सन ने ट्रांसप्रो मोटर्स के भुगतान न कर पाने की पुष्टि एसवीटी से की और बताया कि इसके बाद स्कैनिया ने फॉक्सवैगन फाइनेंस का लोन चुकाया और अक्टूबर 2019 में बस का कब्जा अपने हाथ में ले लिया.

लेकिन सुदर्शन के ऑडिटर्स ने दर्ज किया है कि फाइनेंस कंपनी ने बस पर कब्जा मार्च 2019 में ही किया था न कि अक्टूबर 2019 में. तो बस को अपने कब्जे में लेने के बाद फॉक्सवैगन ने क्या किया.

फॉक्सवैगन, जर्मनी के सूत्रों ने रिपोर्टरों को बताया कि कंपनी को कोई जानकारी नहीं है बस के बारे में.

फॉक्सवैगन फाइनेंस के सूत्रों ने जीआइए को बताया कि उनकी इस घाटे के लोन पर कार्यवाही करने की कोई मंशा नहीं है, क्योंकि वे जानते हैं- "बस स्कैनिया इंडिया के द्वारा एक बड़े राजनेता को उपहार के रूप में दी गई थी, जो इस समय एक मंत्री हैं, इस उम्मीद से कि भारत में होने वाले सौदों को स्वीकृति मिल जाए." उन्होंने यह भी बताया कि कंपनी मंत्रीजी से बस को वापस लेने की कोई इच्छा नहीं रखती.

स्कैनिया के सीईओ हेनरिक्सन ने भी, बस की मौजूदा स्थिति से जुड़े प्रश्नों को टालने की कोशिश की. लेकिन कंपनी के प्रवक्ता डेनियल्सन ने लिखित उत्तर में पुष्टि की है कि बस को ट्रांसप्रो मोटर्स ने नागपुर स्थित एक दूसरी प्राइवेट कंपनी अयोध्या कॉमर्स प्राइवेट लिमिटेड (अयोध्या कॉमर्स) को बेंच दिया गया है और इस कंपनी के भी तार 'मंत्री' से जुड़े हैं. हालांकि हम इस जानकारी को स्वतंत्र रूप से सत्यापित नहीं कर पाए.

डेनियल्सन लिखते हैं, "डीलर ट्रांसप्रो मोटर्स ने बस को अयोध्या कॉमर्स प्राइवेट लिमिटेड को बेच दिया, इस कंपनी के तार भी मंत्री से जुड़े हैं. ऐसे आरोप है कि ट्रांसप्रो ने अयोध्या कॉमर्स के हाथ बस स्कैनिया इंडिया की गुजारिश पर ही बेची. हम अपने कई सर्वे में इसका प्रमाण नहीं ढूंढ पाए हैं." (अनुवादित)

उन्होंने यह भी कहा, "आधिकारिक भारतीय रजिस्ट्रेशन के आंकड़ों के अनुसार, फरवरी का आखिरी हफ्ते तक ट्रांसप्रो मोटर्स अभी भी बस का मालिक था." मालिकाना हक की जगह बंगलुरु से हटकर नागपुर हो गई है.

स्वीडिश कंपनी ने यह भी कहा कि क्योंकि बस का मालिकाना हक अभी तक नहीं बदला है, ऐसे में हो सकता है कि बस को ट्रांसप्रो मोटर्स ने अयोध्या कॉमर्स को किराए पर दिया हो.

इसी महीने में, कारवां पत्रिका ने रिपोर्ट किया था कि 2018 में एक स्कैनिया मेट्रो लिंक बस जिसका नंबर एमएच 31 ईएम 1530 था, पूर्ति सोलर सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड के एक खाली पड़े प्लॉट में खड़ी हुई मिली थी. यह कंपनी नितिन गडकरी और उनके बेटों से जुड़ी हुई है. थोड़ा ढूंढ़ने पर, यह पता चला कि 6 दिसंबर, 2016 को बस का पंजीकरण "स्कैनिया मेट्रो लिंक एचडी 410 आईबी6" के तौर पर हुआ था. ट्रांसप्रो मोटर्स प्राइवेट लिमिटेड का नाम बस के मालिक की जगह पर है और जैसा डेनियल्सन ने कहा, मालिकाना हक नागपुर में है. बस का मौजूदा स्टेटस इस समय एक्टिव है.

संवाददाताओं ने अयोध्या कॉमर्स से संपर्क किया लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. स्कैनिया प्रवक्ता द्वारा बस के मालिकाना हक और अयोध्या कॉमर्स की बस की बिक्री और किराए में भूमिका के दावों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि हमारे संवाददाता नहीं कर पाए.

क्या इसका यह मतलब है कि बस पर दोबारा कब्जा ट्रांसप्रो मोटर्स का था और फॉक्सवैगन फाइनेंस का नहीं? क्या फॉक्सवैगन के पास बस का कब्जा दोबारा से कभी आया? अगर नहीं, तो क्या कंपनी ने ऑन रिकॉर्ड झूठ बोला?

जहां बड़ी वैश्विक कंपनियां यह ढूंढ़ने में लगी है कि 14.5 मीटर की लग्जरी बस किसके पास है, स्वीडन में प्रशासन कार्यवाही करने की तैयारियां कर रहा है. स्वीडन में सूत्रों ने एसवीटी को बताया कि राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी इकाई और पुलिस के वकीलों ने, स्कैनिया के खिलाफ जांच शुरू कर दी है. वही ब्रोन्शविग में राज्य के अभियोजक अभी विचार कर रहे हैं कि उन्हें पड़ताल शुरू करनी चाहिए या नहीं.

लेकिन मुख्य प्रश्न अभी भी मुंह बाए खड़ा है- क्यों स्कैनिया ने उस बस के पैसे दिए जिसके तार एक भारतीय मंत्री से जुड़े थे? और केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने स्कैनिया को इस उपहार के बदले में क्या दिया?

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