Newslaundry Hindi
लॉकडाउन की बरसी: ऑटो से 1400 किलोमीटर यात्रा करने वाले मजदूरों से साल भर बाद मुलाकात
कोरोना महामारी को लेकर 24 मार्च की शाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक से लॉकडाउन की घोषणा कर दी थी. पीएम ने तब कहा था, ‘‘आज रात 12 बजे से संपूर्ण देश में संपूर्ण लॉकडाउन होने जा रहा है. हिंदुस्तान को बचाने के लिए, हिंदुस्तान के हर नागरिक को बचाने के लिए, आपको बचाने के लिए, आपके परिवार को बचाने के लिए आज रात 12 बजे से घरों से निकलने के लिए पूरी तरह पाबंदी लगाई जा रही है.’’
कोरोना के चलते कारोबार पहले से ही ठप पड़ा हुआ था फिर अचानक से लगे लॉकडाउन के बाद जो हुआ वो इतिहास का हिस्सा बन गया. भारत ने आज़ादी के बाद सबसे बड़ा पलायन देखा. प्रधानमंत्री के इस घोषणा के बाद लोग जैसे-तैसे अपने घरों की तरफ भागने लगे. पैदल, बाइक, ऑटो, ठेला, साइकिल जिसको यात्रा का जो भी साधन मिला वो अपने घरों के लिए निकल गया.
बिहार के कटिहार जिले के रहने वाले सद्दाम और उनके साथी दिल्ली में ऑटो चलाकर अपने परिवार की जिम्मेदारी निभा रहे थे. जब पहली बार 21 दिन का लॉकडाउन लगा तो उन्होंने कर्ज लेकर दिल्ली में रहने का फैसला किया, लेकिन जब दोबारा 14 अप्रैल को लॉकडाउन दोबारा बढ़ाया गया तब ये लोग एक ऑटो से अपने घर बिहार के कटिहार के लिए निकल गए. न्यूज़लॉन्ड्री ने तब इनसे बात की थी. वो रिपोर्ट आप यहां पढ़ सकते हैं- लॉकडाउन: खाली पेट ऑटो से 1400 किलोमीटर का सफ़र .
बेहतर ज़िन्दगी की तलाश में शहर आए तमाम लोग भूख की डर से एकबार फिर गांव की तरफ भागे. सद्दाम बताते हैं, ''पहला लॉकडाउन तो हमने जैसे तैसे काट दिया लेकिन जब उसे बढ़ाया गया तो हमारा रहना मुश्किल था. हम 15 अप्रैल को ऑटो लेकर कटिहार के लिए निकल गए. रास्ते में कहीं कुछ खाने को नहीं मिला लेकिन हम जैसे-तैसे भागलपुर पहुंचे. अपने जिले के बॉर्डर पर. वहां पुलिस ने कहा कि दिल्ली वापस जाओ. हमें मारकर भगाया. हमने गुजारिश की तब जाकर हमें क्वारंटाइन सेंटर में रखा गया.''
मज़बूरी में लौट आए दिल्ली
पहले तो बिहार सरकार ने कहा कि जो भी बिहार निवासी जहां है वहीं रहें. सरकार उन्हें मदद पहुंचाएगी. कुछ लोगों को बिहार सरकार ने एक-एक हज़ार रुपए मदद के तौर पर भेजा भी पर लोगों का वापस लौटने का सिलसिला जारी रहा.
बिहार सरकार ने तब कहा था कि जो भी प्रवासी वापस आ रहे हैं उन्हें उनके काबिलियत के मुताबिक काम दिया जाएगा. पर ऐसा हुआ नहीं और लोगों को दोबारा काम की तलाश में शहर की तरफ भगाना पड़ा.
सद्दाम और उनके साथियों के साथ भी यही हुआ. ऑटो से घर जाने वालों में से एक सउद अंसारी कहते हैं, ‘‘मैं घर पर अकेला कमाने वाला हूं. खेती-बाड़ी तो अपनी है नहीं. दूसरों के खेतों में काम करते थे. जहां पहले मज़दूरी 200 रुपए मिलती थी, वहां सौ रुपए मिल रहा था. कम मज़दूरी में ही कुछ रोज काम किए. कर्ज बढ़ता जा रहा था तो वापस दिल्ली आ गए. मैं ऑटो का काम छोड़ दिया. अब एक नर्सरी में काम करता हूं. बाकी लोग अभी भी ऑटो ही चलाते हैं.’’
दिल्ली के संत नगर इलाके के तीन हज़ार के कमरे में चार लोग रहते हैं. तनवीर अंसारी इसमें से एक हैं. ये भी ऑटो चलाते हैं. दोनों पैरों से विकलांग तनवीर भी कटिहार जाने वालों में शामिल थे. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए तनवीर कहते हैं, ‘‘बिहार सरकार से हमें कुछ नहीं मिला. कर्जा लेकर खाए. जब कर्ज बढ़ता जा रहा था तो दिल्ली आ गए. यहां भी कमाई नहीं हो रही है.’’
‘आज भी उस सफर को याद कर नींद नहीं आती’
काम की तलाश में ये लोग दिल्ली तो लौट आए हैं लेकिन परेशानियां खत्म नहीं हो रही है. कोरोना के कारण लोगों का घरों से निकलना कम हो रहा है जिस कारण ऑटो में सवारी नहीं मिल पा रही है.
ये लोग आज भी उस सफर को याद करके रोने लगते हैं. सउद बताते हैं, ‘‘रास्ते में हमने लोगों को रोते हुए देखा. किसी के चेहरे पर हंसी नहीं थी. हम लोग भी भूखे गए. रास्ते में पुलिस वालों ने मारा. आज भी उस दिन को याद करके अकेले में रोते है.’’
Also Read
-
BJP faces defeat in Jharkhand: Five key factors behind their setback
-
Newsance 275: Maha-mess in Maharashtra, breathing in Delhi is injurious to health
-
Decoding Maharashtra and Jharkhand assembly polls results
-
Pixel 9 Pro XL Review: If it ain’t broke, why fix it?
-
How Ajit Pawar became the comeback king of Maharashtra