Assembly Elections 2021
पश्चिम बंगाल चुनाव: भाजपा कार्यालय पर क्यों लगे टीएमसी के झंडे?
हम दोपहर करीब एक बजे कोलकाता पहुंचे और यह पता करने में लग गए कि आस-पास कौनसी रैलियां हो रही हैं जिनको कवर किया जा सकता है. इस बीच हमें पता चला कि हैस्टिंग्स इलाके में भारी विरोध प्रदर्शन हो रहा है. भाजपा का एक मुख्यालय इसी इलाके में है. हम वहां की स्थिति का जायज़ा लेने उस और बढ़े.
वहां मौजूद कार्यकर्ता बेहद आक्रोशित थे. वह भाजपा के टिकट बंटवारे को लेकर नाराज थे. खबर मिली कि अमित शाह अपना असम दौरा समय से पहले समाप्त कर यह विवाद सुलझाने कोलकाता आ गए हैं.
भाजपा कार्यकर्ताओं ने हमें बताया कि विवाद का निपटारा करने के लिए पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की बैठक सातवीं मंजिल पर हो रही थी. जबकि कार्यकर्ताओं ने बिल्डिंग के प्रवेशद्वार को घेर रखा था और वह बिना कोई उत्तर मिले नेताओं को बाहर आने नहीं दे रहे थे.
न्यूज़लॉन्ड्री ने पता किया कि विरोध कर रहे लोग हावड़ा जिले से हैं और वह बसों और ट्रकों में भरकर अपनी मांगे मनवाने पहुंचे थे. जब हम उनसे बात कर रहे थे तभी एक भाजपा नेता भवन से निकलकर बहार आए. इस दौरान किसी ने उन पर पत्थर फेंका लेकिन वह वहां खड़े एक पुलिसकर्मी को जा लगा. इसके बाद तो वहां कोहराम मच गया. कोलकाता पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर जमकर लाठी-डंडे बरसाए और इलाका खाली करवा दिया.
निश्चित रूप से इस कहानी को कहने के लिए और अधिक पड़ताल की ज़रूरत थी, जो हमने की.
बता दें कि हावड़ा जिले में 16 विधानसभा सीटें हैं और यहां दो चरणों- 6 और 10 अप्रैल में चुनाव होने हैं. वहां जमा हुए भाजपा कार्यकर्ताओं ने बताया कि वह इन 16 में से 8 विधानसभा सीटों से आए हैं क्योंकि वह इन सीटों पर उम्मीदवारों के चयन से नाराज़ हैं.
लेकिन और जानकारी इकट्ठा करने पर हमने पाया कि यहां तीन नाम बार-बार आ रहे थे: मोहित घाटी (पांचला विधानसभा), राजीब बनर्जी (डोमजूर विधानसभा) और सुमित रंजन करार (उदयनारायणपुर विधानसभा). इन सभी में एक बात सामान थी. यह सभी दूसरी पार्टियों से चुनाव के ठीक पहले भाजपा में आ गए थे और इन्हें टिकट भी मिल गया था.
इसके बाद हमने तय किया कि इन तीन में से दो विधानसभा क्षेत्रों- पांचला और डोमजूर में चलकर पता लगाया जाए कि भाजपा कार्याकर्ता क्यों नाराज़ हैं.
पांचला
न्यूज़लॉन्ड्री की टीम जब पांचला भाजपा कार्यालय पहुंची तो वहां दरवाजे बंद मिले. जब हम आस-पास पूछताछ कर रहे थे और कार्यकर्ताओं को खोज रहे थे तभी हम संतू खटुआ से मिले. खटुआ एक स्थानीय निवासी हैं जिनका दावा है कि वह 90 के दशक से भाजपा के साथ काम कर रहे हैं.
"हम हैस्टिंग्स में थे और दो दिनों से प्रदर्शन कर रहे थे. इस विधानसभा क्षेत्र से करीब 100-150 कार्यकर्ता वहां गए थे ताकि हम पार्टी नेतृत्व को यह बता सकें कि हम मोहित घाटी के नामांकन से खुश नहीं हैं." उन्होंने बताया.
हमें पता लगा कि मोहित घाटी का चुनाव से ठीक पहले दल-बदल का अजीब इतिहास रहा है.
"घाटी डेढ़ महीने पहले ही तृणमूल छोड़कर भाजपा में आए हैं," खटुआ ने कहा.
हमने खुद ही यह गिनने की कोशिश की कि घाटी ने कितनी बार पार्टियां बदलीं. जब हमने वहां मौजूद लोगों से पूछा तो उन्होंने घाटी के दल-बदल की पूरी सूची हमें दे डाली.
वह 2011 में तृणमूल की साथ थे, जिसे छोड़कर उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा. फिर 2012 में वह कांग्रेस से जुड़ गए. 2015 में वह कांग्रेस छोड़ भाजपा में चले गए. फिर 2016 में वह एक बार फिर तृणमूल में शामिल हो गए. और अब 2021 में वह फिर से भाजपा में आ गए हैं.
एक अन्य भाजपा कार्यकर्ता कौशिक कोले ने बताया, "वह इसलिए नाराज़ हैं क्योंकि तृणमूल में रहते हुए घाटी और उनके समर्थकों ने भाजपा कार्यकर्ताओं पर कई बार हमले करवाए. हम उस व्यक्ति के लिए कैसे वोट मांगे जो हमें बुरी तरह पीटा करता था? उनके गुंडों ने सभी भाजपा कार्यकर्ताओं को सालों से आतंकित कर रखा है!"
कौशिक ने अपने फ़ोन में हमें एक दिलचस्प फोटो दिखाई जिसमें भाजपा, तृणमूल और इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) तीनों के उम्मीदवार साथ-साथ मुस्कुराते हुए खड़े हैं.
फिर उन्होंने पूछा, "आप बताइए क्या हमसे इस आदमी का प्रचार करने की उम्मीद की जा सकती है?" फिर दरवाज़ा खोल वह हमें पार्टी कार्यालय के अंदर ले गए, जहां कुछ दिन पहले भड़के हुए कार्यकर्ताओं ने तोड़-फोड़ की थी.
खटुआ ने कहा, "हमारी पीड़ा असहनीय थी. आक्रोशित कार्यकर्ताओं ने यहां तोड़-फोड़ की तबसे यह कार्यालय बंद है. अब हमने भाजपा का चुनाव प्रचार पूरी तरह रोक दिया है. हम जनता को क्या मुंह दिखाएंगे? यह शर्मनाक है."
हम पांचला पार्टी कार्यालय से आगे बढ़े और गली के दूसरे छोर पर कुछ और लोगों से बात की. वहीं चाय की दुकान पर हमें कुछ और कार्यकर्ता मिले जो सांकरेल विधानसभा क्षेत्र से आए थे. उन्हें उनके उम्मीदवार, प्रभाकर पंडित, पसंद तो हैं लेकिन उनकी भी अपनी कुछ समस्याएं हैं.
लंबे समय से भाजपा कार्यकर्ता रह चुके अंजन खाडा ने बताया, "वह भी घाटी को टिकट मिलने से नाराज़ हैं. "इस सूची के जारी होने से पहले हम एक साथ प्रचार कर रहे थे. पांचला और सांकरेल के कार्यकर्ता एक-दूसरे की सहायता कर रहे थे. लेकिन अब हमने इस विधानसभा क्षेत्र में प्रचार पूरी तरह बंद कर दिया है."
खाडा ने कहा कि घाटी एक पेशेवर अपराधी हैं और कई संदेहपूर्ण व्यापार करते हैं. "सभी जानते हैं कि वह ड्रग्स, वेश्यावृत्ति और जुए के अड्डे जैसे धंधे में लिप्त हैं. सब यह भी जानते हैं कि वह भू-माफिया भी हैं. भाजपा ने उन्हें टिकट देकर गलत किया," उन्होंने कहा.
“भाजपा का मुद्दा विकास और जनकल्याण है. हम व्यवस्था बदलना चाहते हैं. यह सब नहीं करना चाहते.“
डोमजूर
पांचला से डोमजूर की दूरी 25 किमी है. हमें लगा था कि इस छोटे से शहर में कहीं एक भाजपा कार्यालय मिलेगा जहां काफी गहमा-गहमी होगी. हम संकरी और संदेहास्पद गलियों से गुजरते रहे. एक भवन पर भाजपा का झंडा लगा था, वहां भी पूछा लेकिन कुछ नहीं मिला.
अंत में हमें एक घर मिला जहां एक भाजपा कार्यकर्ता थे, लेकिन वह फ़ूड पोइज़निंग के कारण अस्पताल में भर्ती थे. उनके दो कार्यकर्ता मित्र उनके साथ थे. उनसे संपर्क करने की हमारी कोशिश विफल रही. क्योंकि उस पूरे इलाके में केवल तीन कार्यकर्ता मिले, हमने पूछताछ जारी रखी.
फिर हमने वहां से बेगडी का रास्ता चुना, जो और 10 किमी दूर था. हम ई-रिक्शा से वहां पहुंचे. बेगडी में एक बिरयानी की दुकान के मालिक ने बताया कि वह भाजपा कार्यालय की देखभाल करते हैं लेकिन वह अभी बंद है. उन्होंने कुछ लोगों को बुलाया और हमसे बात करने को कहा.
उनमें से एक ने हमें बताया कि दफ्तर बंद पड़ा है और हमें 20 किमी और आगे एक दूसरी जगह जाना चाहिए जहां उम्मीदवार बैठते हैं. उनके उम्मीदवार राजीब बनर्जी तृणमूल से भाजपा में आए हैं. यह तीसरा भाजपा कार्यालय था जो हमें बंद मिला.
तीन घंटे और चार ई-रिक्शा की सवारियों के बाद हम सलप ब्रिज के पास एक आधे औद्योगिक आधे रिहायशी स्थान पर पहुंचे. हमें बताया गया कि राजीब बनर्जी यहीं बैठते हैं. लेकिन जब-जब हमने उनसे मिलने का स्थान पूछा तो हमें तृणमूल कार्यालय का रास्ता बताया गया.
तब हमें लगा कि कई लोग अभी भी राजीब बनर्जी को तृणमूल नेता मानते हैं. थक-हार कर हम तृणमूल के दफ्तर ही पहुंचे. वहां मौजूद लोगों ने कहा कि उन्हें कोई जानकारी नहीं है. लेकिन तभी एक आश्चर्यजनक घटना हुई. एक महिला राहगीर ने बताया कि तृणमूल के दफ्तर के सामने ही जो भवन है वह राजीब बनर्जी का नया भाजपा कार्यालय है.
वह कुछ ऐसा दिखता था-
वहां तृणमूल के लगे झंडे थे. हम दरवाजा खटखटा कर अंदर गए. तो वहां सोते हुए तीन पुरुष मिले जिन्होंने यह पुष्टि की कि यह भाजपा उम्मीदवार का दफ्तर है.
"हम स्थानीय निवासी नहीं है," उनमे से एक ने नाम न लेने की शर्त पर बताया, "हम अमित शाह के साथ यहां आए थे. हम सभी बिहार से हैं."
उन्होंने और कुछ भी बताने से मना कर दिया. हमने पूछा कि क्या हम बनर्जी से बात कर सकते हैं. तो उन्होंने कहा कि वह दिल्ली में हैं. अभी-अभी उनका टिकट हुआ है इसलिए उनका यहां आना बाकी है.
जब हमने पूछा कि बाहर तृणमूल के झंडे क्यों हैं, भाजपा के क्यों नहीं तो उन्होंने कहा, "वह कोई बवाल करना नहीं चाहते. तृणमूल के लोग गुंडे हैं. हम बाहरी हैं और बंगाल की राजनीति नहीं समझते. लेकिन हम यह जानते हैं कि यहां चीजें कितनी हिंसक हो सकती है,"
एक ने कहा. "अगर वह हमें तृणमूल का झंडा फहराने को कहें तो हम वह भी करेंगे. यहां हमारी कोई व्यवस्था नहीं है. कोई काडर नहीं है इसलिए दब के रहने में ही भलाई है."
हम स्तब्ध थे.
दिन भर यह पता करने की कवायद कि भाजपा कार्यकर्ता अपने ही नेताओं पर पत्थर क्यों फेंक रहे हैं इस खुलासे पर ख़त्म हुई कि हावड़ा जिले और आस-पास की विधानसभाओं में पार्टी संघर्ष कर रही है.
ऐसे में गौर करने वाला सवाल है कि क्या हावड़ा में कहीं भी भाजपा जमीन पर इतनी मजबूत है कि कायकर्ता चिढ़े हुए न हों और प्रचार करने से इंकार न करें?
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