Newslaundry Hindi
खट्टर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव से राजनीतिक दलों के सियासी गठजोड़ का हुआ पर्दाफाश
हरियाणा में विपक्षी कांग्रेस पार्टी द्वारा लाये गये अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में कांग्रेस के 30 व 2 निर्दलीय यानी कुल 32 विधायकों ने वोट किया जबकि जजपा समर्थित भाजपा सरकार को हलोपा (1), निर्दलीय (5), जजपा (10) व भाजपा के 39 मिलाकर कुल 55 विधायकों का समर्थन मिला. इनेलो के अभय चौटाला किसान अन्दोलन के चलते विधान से इस्तीफा दे चुके हैं जबकि भाजपा के प्रदीप चौधरी को न्यायालय से सजा होने के कारण विधानसभा की सदस्यता से हाथ धोना पडा था. हरियाणा में 90 विधानसभा सीटें हैं.
वर्तमान में चल रहे किसान अन्दोलन को आधार बनाकर भाजपा-जजपा गठबन्धन सरकार पर जनसमर्थन खो देने के आरोप के तहत इस अविश्वास प्रस्ताव द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री व वर्तमान में नेता प्रतिपक्ष भूपेंदर सिंह हूडा ने कांग्रेस पार्टी व खुद के नेतृत्व को किसानों के पक्ष में खड़ा दिखाने का एक सोचा-समझा दांव खेला ताकि राज्य की राजनीति में अपनी पैठ को अपने पुत्र के लिए पुन: स्थापित कर सकें और साथ ही अपने परम्परागत राजनीतिक विरोधी लोकदल के देवीलाल व ओमप्रकाश चौटाला की विरासत से जन्मी जजपा व जाट नेता के रूप में उभरे उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की राजनीति को किसान विरोधी पूंजीपतियों का सहयोगी साबित कर लगाम लगा सकें.
2019 के हरियाणा के विधानसभा चुनावों में दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी ने चुनाव किसानों के मुद्दों को प्रमुख रखकर भाजपा व नरेन्द्र मोदी की नीतियों को सीधे चुनौती देते हुए लड़ा था जिसमें प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों से उनको सफलता भी मिली. दुष्यंत चौटाला के पिता अजय चौटाला व दादा ओमप्रकाश चौटाला शिक्षक भर्ती घोटाले में जेल में सजा काट रहे थे. दुष्यंत चौटाला की माता नैना चौटाला ने चुनाव उपरांत किसी भी कीमत पर भाजपा से किसी भी गठबन्धन की संभावना को पूर्ण खारिज किया था, लेकिन प्रदेश में सरकार के गठन में भाजपा को अप्रत्याशित समर्थन देकर राजनीतिक संधि कर ली जिससे किसान व ग्रामीण आहत हुए क्योंकि मतदाताओं ने भाजपा के विरोध में अपना मत जननायक जनता पार्टी को दिया था.
हरियाणा में कांग्रेस कई गुटों मे बंटी हुई है और भूपेंदर हूडा के नेतृत्व और कार्यशैली पर विगत में अलग-अलग गुटों के असंतोष जाहिर होते रहे हैं. 2019 में राज्य के विधानसभा चुनावों से पहले भूपेंदर हूडा द्वारा कांग्रेस छोड़ नयी पार्टी बनाने की बातों ने खूब जोर पकडा था, लेकिन चुनाव आते आते कांग्रेस हाई कमान ने अन्य गुटों में संतुलन साधते हुए भूपेंदर हूडा के नेतृत्व में भरोसा जताया था. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कुमारी शैलजा के साथ अपनी मेहनत व क्षमता से भूपेंदर हूडा कांग्रेस को सम्मानजनक विपक्ष के रूप में स्थापित करने में सफल भी हुए.
जनसंख्या के लिहाज से हरियाणा जाट बहुल प्रदेश है और खेती किसानी पर निर्भर है. यहां की राजनीति ग्रामीण व किसानों के मुद्दों व राजनीतिक नेतृत्व लगभग हमेशा ही जाट नेताओं में केन्द्रित रहा है. भाजपा ने हरियाणा में गैर-जाट को मुख्यमंत्री बनाया हुआ है.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मूल मंत्र ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस’ को साकार करने के उद्देश्य से कृषि क्षेत्र में लाये गये तीन कानूनों के खिलाफ पंजाब से शुरू हुए विरोध ने जिस तरह एक आन्दोलन का रूप लिया उसके विस्तार ने हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान के कृषक वर्गों को भी प्रभावित किया. स्वामिनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू कर किसान को उपज के उचित मूल्य देने व कृषि क्षेत्र में आवश्यक सुधार लाने के भाजपा द्वारा चुनावों में दिये गये आश्वासनों से निराश किसानों में नये कृषि कानूनों ने आक्रोश को बढ़ा दिया है. नये कानूनों के प्रावधानों में कृषि उपज के समर्थन मूल्य की गारंटी का कानून नहीं होना, स्थापित कृषि मंडियों के समानान्तर पूंजीपतियों के लिए नयी मंडियों की स्थापना, अनुबंध कृषि को किसान एक पूंजीवादी नियंत्रण और भविष्य में कृषि भूमि पर अपने स्वामित्व को सरकार द्वारा निजीकरण के प्रयास के रूप में देख-समझ कर खुद को ठगा हुआ पा रहे हैं. इस कारण केन्द्र व विभिन्न राज्यों में वर्तमान सत्ताधारी भाजपा के नीति निर्धारक केन्द्रीय, प्रादेशिक व स्थानीय नेता व विधायक सीधे किसानों के निशाने पर हैं.
तीन नये कृषि कानूनों के आने के बाद भाजपा और जजपा के कई विधायकों ने प्रदेश नेतृत्व को इन कानूनों से होने वाले प्रभावों को लेकर अपनी चिंताएं जतायी थीं. कुछ विधायकों व नेताओं ने किसानों के पक्ष का समर्थन किया और सार्वजनिक मंच से किसानों के साथ खड़े होने के दावे भी किये थे.
किसानों के साथ खड़े होने की पहल महम के निर्दलीय विधायक बलराज कुन्डू ने की, दादरी से निर्दलीय विधायक सोमवीर सांगवान ने दिसंबर 2020 में ही किसानों के मुद्दों पर मनोहर लाल खट्टर सरकार के रुख के कारण समर्थन वापिस ले लिया था.
नारनौंद से जजपा विधायक व पार्टी के उपाध्यक्ष राम कुमार गौतम ने भी केन्द्र द्वारा पारित कृषि कानूनों का विरोध मुखर तौर पर किया था. उन्होंने कहा था, "किसानों का जो आंदोलन चल रहा है उस बारे में मेरा यह कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समय की नजाकत को देखते हुए फौरन तीनों कानून रद्द कर देने चाहिए. जो आज दिल्ली बॉर्डर पर किसान जमा हैं, वह सभी धर्मों के सभी जातियों के, सारे देश के लोग वहां पर हैं. उनकी भावना के खिलाफ कानून बनाए रखना यह बहुत बड़ी बेवकूफी होगी और इसका खमियाजा भुगतना पड़ेगा, जिसके परिणाम बहुत गंभीर होंगे. किसान कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं, वह इस देश को चलाता है. देश की सीमाओं की रक्षा तक किसान करता है. किसान को नाराज करना बहुत बड़ी गलती होगी. हरियाणा सरकार के बारे में मैं यह कहना चाहता हूं कि स्पेशल सेशन बुलाकर तीनों कानून को रद्द करने के लिए रेगुलेशन भेजना चाहिए हरियाणा सरकार की तरफ से."
लेकिन रामकुमार गौतम ने अविश्वास प्रस्ताव पर सरकार के पक्ष में ही अपना समर्थन दे दिया. टोहाना से जननायक जनता पार्टी के विधायक देविन्द्र बबली ने तीन दिन पहले ही किसान आन्दोलन के पक्ष में बोलते हुए सरकार पर ही सवाल उठाये थे, लेकिन आखिरकार सरकार को समर्थन दे दिया.
खाप पंचायतों द्वारा पूरे प्रदेश में भाजपा के बहिष्कार का ऐलान पहले ही हो चुका है. लेकिन भाजपा सरकार इस किसान आन्दोलन को कांग्रेस द्वारा प्रायोजित बताने पर तुली हुई है.
हरियाणा प्रदेश में राजनीति पारम्परिक तौर पर किसानों व ग्रामीण मुद्दों पर ही केन्द्रित रही है जिसमें भाजपा 2014 मे सेंध लगाने में सफल रही और प्रदेश की राजनीति को जाट और गैर-जाट के ध्रुवों मे बांट दिया. इस अविश्वास प्रस्ताव से किसान आन्दोलन या कांग्रेस को क्या मिलेगा ये तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन कानूनों के बारे में सरकार की स्थिति और नीति और भी स्पष्ट जरूर हो गयी है.
हरियाणा में विपक्षी कांग्रेस पार्टी द्वारा लाये गये अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में कांग्रेस के 30 व 2 निर्दलीय यानी कुल 32 विधायकों ने वोट किया जबकि जजपा समर्थित भाजपा सरकार को हलोपा (1), निर्दलीय (5), जजपा (10) व भाजपा के 39 मिलाकर कुल 55 विधायकों का समर्थन मिला. इनेलो के अभय चौटाला किसान अन्दोलन के चलते विधान से इस्तीफा दे चुके हैं जबकि भाजपा के प्रदीप चौधरी को न्यायालय से सजा होने के कारण विधानसभा की सदस्यता से हाथ धोना पडा था. हरियाणा में 90 विधानसभा सीटें हैं.
वर्तमान में चल रहे किसान अन्दोलन को आधार बनाकर भाजपा-जजपा गठबन्धन सरकार पर जनसमर्थन खो देने के आरोप के तहत इस अविश्वास प्रस्ताव द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री व वर्तमान में नेता प्रतिपक्ष भूपेंदर सिंह हूडा ने कांग्रेस पार्टी व खुद के नेतृत्व को किसानों के पक्ष में खड़ा दिखाने का एक सोचा-समझा दांव खेला ताकि राज्य की राजनीति में अपनी पैठ को अपने पुत्र के लिए पुन: स्थापित कर सकें और साथ ही अपने परम्परागत राजनीतिक विरोधी लोकदल के देवीलाल व ओमप्रकाश चौटाला की विरासत से जन्मी जजपा व जाट नेता के रूप में उभरे उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की राजनीति को किसान विरोधी पूंजीपतियों का सहयोगी साबित कर लगाम लगा सकें.
2019 के हरियाणा के विधानसभा चुनावों में दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी ने चुनाव किसानों के मुद्दों को प्रमुख रखकर भाजपा व नरेन्द्र मोदी की नीतियों को सीधे चुनौती देते हुए लड़ा था जिसमें प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों से उनको सफलता भी मिली. दुष्यंत चौटाला के पिता अजय चौटाला व दादा ओमप्रकाश चौटाला शिक्षक भर्ती घोटाले में जेल में सजा काट रहे थे. दुष्यंत चौटाला की माता नैना चौटाला ने चुनाव उपरांत किसी भी कीमत पर भाजपा से किसी भी गठबन्धन की संभावना को पूर्ण खारिज किया था, लेकिन प्रदेश में सरकार के गठन में भाजपा को अप्रत्याशित समर्थन देकर राजनीतिक संधि कर ली जिससे किसान व ग्रामीण आहत हुए क्योंकि मतदाताओं ने भाजपा के विरोध में अपना मत जननायक जनता पार्टी को दिया था.
हरियाणा में कांग्रेस कई गुटों मे बंटी हुई है और भूपेंदर हूडा के नेतृत्व और कार्यशैली पर विगत में अलग-अलग गुटों के असंतोष जाहिर होते रहे हैं. 2019 में राज्य के विधानसभा चुनावों से पहले भूपेंदर हूडा द्वारा कांग्रेस छोड़ नयी पार्टी बनाने की बातों ने खूब जोर पकडा था, लेकिन चुनाव आते आते कांग्रेस हाई कमान ने अन्य गुटों में संतुलन साधते हुए भूपेंदर हूडा के नेतृत्व में भरोसा जताया था. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कुमारी शैलजा के साथ अपनी मेहनत व क्षमता से भूपेंदर हूडा कांग्रेस को सम्मानजनक विपक्ष के रूप में स्थापित करने में सफल भी हुए.
जनसंख्या के लिहाज से हरियाणा जाट बहुल प्रदेश है और खेती किसानी पर निर्भर है. यहां की राजनीति ग्रामीण व किसानों के मुद्दों व राजनीतिक नेतृत्व लगभग हमेशा ही जाट नेताओं में केन्द्रित रहा है. भाजपा ने हरियाणा में गैर-जाट को मुख्यमंत्री बनाया हुआ है.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मूल मंत्र ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस’ को साकार करने के उद्देश्य से कृषि क्षेत्र में लाये गये तीन कानूनों के खिलाफ पंजाब से शुरू हुए विरोध ने जिस तरह एक आन्दोलन का रूप लिया उसके विस्तार ने हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान के कृषक वर्गों को भी प्रभावित किया. स्वामिनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू कर किसान को उपज के उचित मूल्य देने व कृषि क्षेत्र में आवश्यक सुधार लाने के भाजपा द्वारा चुनावों में दिये गये आश्वासनों से निराश किसानों में नये कृषि कानूनों ने आक्रोश को बढ़ा दिया है. नये कानूनों के प्रावधानों में कृषि उपज के समर्थन मूल्य की गारंटी का कानून नहीं होना, स्थापित कृषि मंडियों के समानान्तर पूंजीपतियों के लिए नयी मंडियों की स्थापना, अनुबंध कृषि को किसान एक पूंजीवादी नियंत्रण और भविष्य में कृषि भूमि पर अपने स्वामित्व को सरकार द्वारा निजीकरण के प्रयास के रूप में देख-समझ कर खुद को ठगा हुआ पा रहे हैं. इस कारण केन्द्र व विभिन्न राज्यों में वर्तमान सत्ताधारी भाजपा के नीति निर्धारक केन्द्रीय, प्रादेशिक व स्थानीय नेता व विधायक सीधे किसानों के निशाने पर हैं.
तीन नये कृषि कानूनों के आने के बाद भाजपा और जजपा के कई विधायकों ने प्रदेश नेतृत्व को इन कानूनों से होने वाले प्रभावों को लेकर अपनी चिंताएं जतायी थीं. कुछ विधायकों व नेताओं ने किसानों के पक्ष का समर्थन किया और सार्वजनिक मंच से किसानों के साथ खड़े होने के दावे भी किये थे.
किसानों के साथ खड़े होने की पहल महम के निर्दलीय विधायक बलराज कुन्डू ने की, दादरी से निर्दलीय विधायक सोमवीर सांगवान ने दिसंबर 2020 में ही किसानों के मुद्दों पर मनोहर लाल खट्टर सरकार के रुख के कारण समर्थन वापिस ले लिया था.
नारनौंद से जजपा विधायक व पार्टी के उपाध्यक्ष राम कुमार गौतम ने भी केन्द्र द्वारा पारित कृषि कानूनों का विरोध मुखर तौर पर किया था. उन्होंने कहा था, "किसानों का जो आंदोलन चल रहा है उस बारे में मेरा यह कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समय की नजाकत को देखते हुए फौरन तीनों कानून रद्द कर देने चाहिए. जो आज दिल्ली बॉर्डर पर किसान जमा हैं, वह सभी धर्मों के सभी जातियों के, सारे देश के लोग वहां पर हैं. उनकी भावना के खिलाफ कानून बनाए रखना यह बहुत बड़ी बेवकूफी होगी और इसका खमियाजा भुगतना पड़ेगा, जिसके परिणाम बहुत गंभीर होंगे. किसान कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं, वह इस देश को चलाता है. देश की सीमाओं की रक्षा तक किसान करता है. किसान को नाराज करना बहुत बड़ी गलती होगी. हरियाणा सरकार के बारे में मैं यह कहना चाहता हूं कि स्पेशल सेशन बुलाकर तीनों कानून को रद्द करने के लिए रेगुलेशन भेजना चाहिए हरियाणा सरकार की तरफ से."
लेकिन रामकुमार गौतम ने अविश्वास प्रस्ताव पर सरकार के पक्ष में ही अपना समर्थन दे दिया. टोहाना से जननायक जनता पार्टी के विधायक देविन्द्र बबली ने तीन दिन पहले ही किसान आन्दोलन के पक्ष में बोलते हुए सरकार पर ही सवाल उठाये थे, लेकिन आखिरकार सरकार को समर्थन दे दिया.
खाप पंचायतों द्वारा पूरे प्रदेश में भाजपा के बहिष्कार का ऐलान पहले ही हो चुका है. लेकिन भाजपा सरकार इस किसान आन्दोलन को कांग्रेस द्वारा प्रायोजित बताने पर तुली हुई है.
हरियाणा प्रदेश में राजनीति पारम्परिक तौर पर किसानों व ग्रामीण मुद्दों पर ही केन्द्रित रही है जिसमें भाजपा 2014 मे सेंध लगाने में सफल रही और प्रदेश की राजनीति को जाट और गैर-जाट के ध्रुवों मे बांट दिया. इस अविश्वास प्रस्ताव से किसान आन्दोलन या कांग्रेस को क्या मिलेगा ये तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन कानूनों के बारे में सरकार की स्थिति और नीति और भी स्पष्ट जरूर हो गयी है.
Also Read
-
Congresswoman Ilhan Omar on Kamala Harris’s Gaza ‘blindspot’, and how that could cost her the election
-
DD News prime time: Funded by the public, against the public
-
Media khatre mein hain: How Trump 2.0 could threaten America’s free press
-
‘Only law for people weakened’: Nearly 2 decades on, gaping holes in RTI machinery
-
‘Will give Rs 1 lakh if…’: Are Maharashtra voters more worried about price rise than polarisation?