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बजट 2021 का एक बड़ा सुधार
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण के 26वें पन्ने के 143वें परिच्छेद में यह वाक्य था: "मैं एफसीआई को खाद्यान्न पर मिलने वाली अनुवृति पर रोक लगाने का प्रस्ताव रखती हूं और इसी के अनुसार 2020-21 के संशोधित अनुमान (RE) और 2021-22 के बजट अनुमान (BE) में प्रावधान के अनुरूप बजट दे दिया गया है."
संभवतः इस एक पंक्ति में आज पेश किए गए केंद्र सरकार के 2021-22 के सालाना बजट में किया गया सबसे बड़ा सुधार है.
आइए इसे क्रमवार तरीके से देखें और समझे की मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं.
प्रिय पाठक, इस लेख को पढ़ते हुए आपको अपने ध्यान में दो बातें रखनी चाहिए. पहला, कि केंद्र सरकार का बजट सारे हंगामे के बावजूद अंततः उसके आर्थिक खातों का ब्यौरा होता है. और इन खातों को जितना हो सके, उतने सटीक तौर पर पेश किया जाना चाहिए.
दूसरा, भारत सरकार नकद लेखे-जोखे पर काम करती है. इसका मतलब की जब सरकार के खाते से पैसा निकल जाता है तभी उसे खर्चा माना जाता है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह खर्चा सरकार की तरफ से किसी सरकारी संस्था के द्वारा ही किया गया हो. अगर सरकार ने संस्था को वह पैसा नहीं दिया, तो उसे खर्चा नहीं माना जाता.
भारतीय खाद्य निगम या एफसीआई, राज्यों की अन्य आपूर्ति संस्थाओं के साथ मिलकर, सरकार की तरफ से किसानों से सीधे गेहूं और चावल न्यूनतम समर्थन मूल्य या एमएसपी पर खरीदती हैं. यह मूल्य हर साल सरकार द्वारा घोषित किया जाता है. हालांकि सरकार 23 प्रकार की फसलों के समर्थन मूल्य की घोषणा करती है, पर मुख्यतः वह एफसीआई और दूसरी संस्थाओं के द्वारा किसानों से केवल गेहूं और चावल ही खरीदती है. बीते वर्षों में धीरे-धीरे थोड़ी बहुत खरीद दालों, कपास और तेल के बीजों की भी होने लगी है.
पर्याप्त मात्रा में गेहूं और चावल खरीद लेने के बाद एफसीआई उसे अपने और निजी गोदामों में संग्रहित रखती है. फिर वह इस गेहूं और चावल को सार्वजनिक वितरण प्रणाली या पीडीएस या आम भाषा में राशन की दुकानों के द्वारा बहुत कम दामों पर खाद्य सुरक्षा की ज़रूरतों के हिसाब से उपलब्ध कराती है.
एफसीआई चलती रहे इसे सुनिश्चित करने के लिए, सरकार दाम में आने वाले अंतर की भरपाई सालाना बजट में कुछ राशि, खाद्य अनुवृत्ति या छूट के लिए निकाल कर करती है.
दिक्कत यह है कि बीते सालों में छूट के लिए निर्धारित की गई राशि, कभी भी एफसीआई को पीडीएस के द्वारा कम दामों में बेचे गए गेहूं और चावल से हुए घाटे के लिए पूरी नहीं पड़ती. जैसा कि 2019-20 में हुआ, एफसीआई खाद्यान्न में छूट के लिए कुल राशि 3,17,905 करोड़ रुपए चाहती थी. परंतु उसे सरकार से 75000 करोड रुपए मिले, जो बजट में खाद्यान्न अनुवृत्ति के लिए निर्धारित किए गए थे.
उसे बाकी बची रकम कहां से मिली? रकम का एक बड़ा हिस्सा राष्ट्रीय लघु बचत कोष या एनएसएसएफ से उधार लिया गया था. विभिन्न छोटी बचत योजनाओं से हुआ संग्रह, और एक वित्तीय वर्ष में धन निकासी का औसत, मिलकर राष्ट्रीय लघु बचत कोष के धन का स्रोत बनते हैं. 31 मार्च 2020 तक एफसीआई पर एनएसएसएफ के 2,54,600 करोड़ रुपए बकाया थे.
एफसीआई के द्वारा छूट में मांगी गई रकम को पीडीएस के माध्यम से गेहूं और चावल बेचने में खर्च किए जाने के बावजूद भी सरकार ने एफसीआई को उस रकम का भुगतान नहीं किया था. इसका मतलब कि सरकार के खाते से रकम नहीं निकली थी. और क्योंकि सरकार नकद लेखे-जोखे पर चलती है, यह रकम खर्चे में नहीं गिनी गई जबकि सरकार की एक शाखा, एफसीआई, उसे सरकार की तरफ से खर्च कर चुकी थी.
अगर सरकार त्वरित लेखे जोखे के हिसाब से चले, जहां पर खर्चे के खाते पर आते ही उसे खर्चे की तरह गिना जाता है, भले ही बैंक से पैसा गया हो या नहीं, तो उसका कुल खर्चा बजट में घोषित खर्चे से कहीं ज्यादा होता.
फरवरी 2020 में पेश किए गए बजट को उदाहरण के लिए देखें. सरकार का वित्त वर्ष 2020-21 के लिए कुल अनुमानित राजकोषीय घाटा 7.96 लाख करोड़ था (यह कोविड महामारी के भारत में आने से पहले का अनुमान था). राजकोषीय घाटा, साल भर में सरकार की आमदनी और खर्चे के बीच का अंतर होता है. साल के लिए खाद्यान्न के लिए निर्धारित छूट की राशि 1.16 लाख करोड़ रुपए बजट में निर्धारित की गई थी. यह तब था जब एफसीआई के छूट के बिल की अनुमानित राशि 3,08,680 करोड़ रुपए थी. स्वाभाविक तौर पर सरकार ने एफसीआई को सीधे भुगतान नहीं किया और उसे राष्ट्रीय लघु बचत कोष या एनएसएसएफ से पैसा उधार लेना पड़ा.
हालांकि यह नकद लेखे-जोखे की खातों में करामात है, पर सरकार ने अपने खर्चे को कम बताया और इस प्रक्रिया में अपने राजकोषीय घाटे को कम घोषित किया.
वित्तीय वर्ष 2021-22 के बजट को पेश करते हुए वित्त मंत्री ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया और एफसीआई को उपलब्ध रहने वाले, एनएसएसएफ से मिलने वाले ऋण की उपलब्धता को खत्म कर दिया. यह बदलाव सरकार के खातों में 2020-21 के लिए भी लागू कर दिया गया है.
पिछले साल फरवरी में जब वित्तीय वर्ष 2020-21 का बजट पेश किया गया था, एफसीआई को मिलने वाली खाद्यान्न में छूट 77,983 करोड रुपए थी. इस आंकड़े को सुधार कर अब 3,44,077 करोड़ रुपए कर दिया गया है. साल 2020-21 की कुल जमा खाद्यान्न पर मिलने वाली छूट अब 4,22,618 करोड़ रुपए पर है, जिसके बनिस्बत बजट में इसके लिए निर्धारित राशि 1,15,570 करोड़ रुपए थी.
केवल इसी कदम ने सरकार के राजकोषीय घाटे को करीब दो लाख करोड़ बढ़ाकर कुल 18.49 लाख करोड़ अर्थात सकल घरेलू उत्पाद या जीडीपी का 9.5 प्रतिशत कर दिया है. अगर सरकार ने ऐसा ना करने का निर्णय लिया होता और पहले की तरह नकद लेखे जोखे की प्रक्रिया पर ही चलती, तो वह अपने राजकोषीय घाटे को काफी कम बता सकती थी.
एफसीआई को वर्ष 2021-22 में मिलने वाली खाद्यान्न अनुवृत्ति 2,02,616 करोड़ है. देखा जाए तो यह पहले के अनुपात में बहुत ज्यादा है और यही 2021-22 में राजकोषीय घाटे के बहुत ज्यादा रहने के कारणों में से एक है, जो अभी 15.07 लाख करोड़ या सकल घरेलू उत्पाद का 6.8 प्रतिशत है.
लेकिन इस सब में अच्छी बात यह है कि आखिरकार सरकार राजकोषीय घाटे के सही आंकड़े बता रही है और खातों में की जाने वाली तिकड़म के पीछे नहीं छुप रही. पुनरावृति का खतरा उठाते हुए भी यह कहा जाना जरूरी है, कि सरकार के बजट का सबसे महत्वपूर्ण भाग आर्थिक खातों को जितना हो सके उतना सटीक रूप से पेश किया जाना है. यह उसी दिशा में उठाया गया एक कदम है.
इससे अगला कदम, पूरे तंत्र में फैले हुए राजकोषीय घाटे को पेश करना होगा, जिसके लिए राज्य सरकारों के द्वारा लिए गए ऋण और सार्वजनिक संस्थाओं के द्वारा लिए गए ऋणों को भी गिनना पड़ेगा. इस कदम से हमारे आर्थिक तंत्र में और ज्यादा पारदर्शिता आएगी.
इस स्टोरी का एक वर्जन पहले न्यूज़लॉन्ड्री पर प्रकाशित हो चुका है.
विवेक कौल बैड मनी किताब के लेखक हैं
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण के 26वें पन्ने के 143वें परिच्छेद में यह वाक्य था: "मैं एफसीआई को खाद्यान्न पर मिलने वाली अनुवृति पर रोक लगाने का प्रस्ताव रखती हूं और इसी के अनुसार 2020-21 के संशोधित अनुमान (RE) और 2021-22 के बजट अनुमान (BE) में प्रावधान के अनुरूप बजट दे दिया गया है."
संभवतः इस एक पंक्ति में आज पेश किए गए केंद्र सरकार के 2021-22 के सालाना बजट में किया गया सबसे बड़ा सुधार है.
आइए इसे क्रमवार तरीके से देखें और समझे की मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं.
प्रिय पाठक, इस लेख को पढ़ते हुए आपको अपने ध्यान में दो बातें रखनी चाहिए. पहला, कि केंद्र सरकार का बजट सारे हंगामे के बावजूद अंततः उसके आर्थिक खातों का ब्यौरा होता है. और इन खातों को जितना हो सके, उतने सटीक तौर पर पेश किया जाना चाहिए.
दूसरा, भारत सरकार नकद लेखे-जोखे पर काम करती है. इसका मतलब की जब सरकार के खाते से पैसा निकल जाता है तभी उसे खर्चा माना जाता है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह खर्चा सरकार की तरफ से किसी सरकारी संस्था के द्वारा ही किया गया हो. अगर सरकार ने संस्था को वह पैसा नहीं दिया, तो उसे खर्चा नहीं माना जाता.
भारतीय खाद्य निगम या एफसीआई, राज्यों की अन्य आपूर्ति संस्थाओं के साथ मिलकर, सरकार की तरफ से किसानों से सीधे गेहूं और चावल न्यूनतम समर्थन मूल्य या एमएसपी पर खरीदती हैं. यह मूल्य हर साल सरकार द्वारा घोषित किया जाता है. हालांकि सरकार 23 प्रकार की फसलों के समर्थन मूल्य की घोषणा करती है, पर मुख्यतः वह एफसीआई और दूसरी संस्थाओं के द्वारा किसानों से केवल गेहूं और चावल ही खरीदती है. बीते वर्षों में धीरे-धीरे थोड़ी बहुत खरीद दालों, कपास और तेल के बीजों की भी होने लगी है.
पर्याप्त मात्रा में गेहूं और चावल खरीद लेने के बाद एफसीआई उसे अपने और निजी गोदामों में संग्रहित रखती है. फिर वह इस गेहूं और चावल को सार्वजनिक वितरण प्रणाली या पीडीएस या आम भाषा में राशन की दुकानों के द्वारा बहुत कम दामों पर खाद्य सुरक्षा की ज़रूरतों के हिसाब से उपलब्ध कराती है.
एफसीआई चलती रहे इसे सुनिश्चित करने के लिए, सरकार दाम में आने वाले अंतर की भरपाई सालाना बजट में कुछ राशि, खाद्य अनुवृत्ति या छूट के लिए निकाल कर करती है.
दिक्कत यह है कि बीते सालों में छूट के लिए निर्धारित की गई राशि, कभी भी एफसीआई को पीडीएस के द्वारा कम दामों में बेचे गए गेहूं और चावल से हुए घाटे के लिए पूरी नहीं पड़ती. जैसा कि 2019-20 में हुआ, एफसीआई खाद्यान्न में छूट के लिए कुल राशि 3,17,905 करोड़ रुपए चाहती थी. परंतु उसे सरकार से 75000 करोड रुपए मिले, जो बजट में खाद्यान्न अनुवृत्ति के लिए निर्धारित किए गए थे.
उसे बाकी बची रकम कहां से मिली? रकम का एक बड़ा हिस्सा राष्ट्रीय लघु बचत कोष या एनएसएसएफ से उधार लिया गया था. विभिन्न छोटी बचत योजनाओं से हुआ संग्रह, और एक वित्तीय वर्ष में धन निकासी का औसत, मिलकर राष्ट्रीय लघु बचत कोष के धन का स्रोत बनते हैं. 31 मार्च 2020 तक एफसीआई पर एनएसएसएफ के 2,54,600 करोड़ रुपए बकाया थे.
एफसीआई के द्वारा छूट में मांगी गई रकम को पीडीएस के माध्यम से गेहूं और चावल बेचने में खर्च किए जाने के बावजूद भी सरकार ने एफसीआई को उस रकम का भुगतान नहीं किया था. इसका मतलब कि सरकार के खाते से रकम नहीं निकली थी. और क्योंकि सरकार नकद लेखे-जोखे पर चलती है, यह रकम खर्चे में नहीं गिनी गई जबकि सरकार की एक शाखा, एफसीआई, उसे सरकार की तरफ से खर्च कर चुकी थी.
अगर सरकार त्वरित लेखे जोखे के हिसाब से चले, जहां पर खर्चे के खाते पर आते ही उसे खर्चे की तरह गिना जाता है, भले ही बैंक से पैसा गया हो या नहीं, तो उसका कुल खर्चा बजट में घोषित खर्चे से कहीं ज्यादा होता.
फरवरी 2020 में पेश किए गए बजट को उदाहरण के लिए देखें. सरकार का वित्त वर्ष 2020-21 के लिए कुल अनुमानित राजकोषीय घाटा 7.96 लाख करोड़ था (यह कोविड महामारी के भारत में आने से पहले का अनुमान था). राजकोषीय घाटा, साल भर में सरकार की आमदनी और खर्चे के बीच का अंतर होता है. साल के लिए खाद्यान्न के लिए निर्धारित छूट की राशि 1.16 लाख करोड़ रुपए बजट में निर्धारित की गई थी. यह तब था जब एफसीआई के छूट के बिल की अनुमानित राशि 3,08,680 करोड़ रुपए थी. स्वाभाविक तौर पर सरकार ने एफसीआई को सीधे भुगतान नहीं किया और उसे राष्ट्रीय लघु बचत कोष या एनएसएसएफ से पैसा उधार लेना पड़ा.
हालांकि यह नकद लेखे-जोखे की खातों में करामात है, पर सरकार ने अपने खर्चे को कम बताया और इस प्रक्रिया में अपने राजकोषीय घाटे को कम घोषित किया.
वित्तीय वर्ष 2021-22 के बजट को पेश करते हुए वित्त मंत्री ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया और एफसीआई को उपलब्ध रहने वाले, एनएसएसएफ से मिलने वाले ऋण की उपलब्धता को खत्म कर दिया. यह बदलाव सरकार के खातों में 2020-21 के लिए भी लागू कर दिया गया है.
पिछले साल फरवरी में जब वित्तीय वर्ष 2020-21 का बजट पेश किया गया था, एफसीआई को मिलने वाली खाद्यान्न में छूट 77,983 करोड रुपए थी. इस आंकड़े को सुधार कर अब 3,44,077 करोड़ रुपए कर दिया गया है. साल 2020-21 की कुल जमा खाद्यान्न पर मिलने वाली छूट अब 4,22,618 करोड़ रुपए पर है, जिसके बनिस्बत बजट में इसके लिए निर्धारित राशि 1,15,570 करोड़ रुपए थी.
केवल इसी कदम ने सरकार के राजकोषीय घाटे को करीब दो लाख करोड़ बढ़ाकर कुल 18.49 लाख करोड़ अर्थात सकल घरेलू उत्पाद या जीडीपी का 9.5 प्रतिशत कर दिया है. अगर सरकार ने ऐसा ना करने का निर्णय लिया होता और पहले की तरह नकद लेखे जोखे की प्रक्रिया पर ही चलती, तो वह अपने राजकोषीय घाटे को काफी कम बता सकती थी.
एफसीआई को वर्ष 2021-22 में मिलने वाली खाद्यान्न अनुवृत्ति 2,02,616 करोड़ है. देखा जाए तो यह पहले के अनुपात में बहुत ज्यादा है और यही 2021-22 में राजकोषीय घाटे के बहुत ज्यादा रहने के कारणों में से एक है, जो अभी 15.07 लाख करोड़ या सकल घरेलू उत्पाद का 6.8 प्रतिशत है.
लेकिन इस सब में अच्छी बात यह है कि आखिरकार सरकार राजकोषीय घाटे के सही आंकड़े बता रही है और खातों में की जाने वाली तिकड़म के पीछे नहीं छुप रही. पुनरावृति का खतरा उठाते हुए भी यह कहा जाना जरूरी है, कि सरकार के बजट का सबसे महत्वपूर्ण भाग आर्थिक खातों को जितना हो सके उतना सटीक रूप से पेश किया जाना है. यह उसी दिशा में उठाया गया एक कदम है.
इससे अगला कदम, पूरे तंत्र में फैले हुए राजकोषीय घाटे को पेश करना होगा, जिसके लिए राज्य सरकारों के द्वारा लिए गए ऋण और सार्वजनिक संस्थाओं के द्वारा लिए गए ऋणों को भी गिनना पड़ेगा. इस कदम से हमारे आर्थिक तंत्र में और ज्यादा पारदर्शिता आएगी.
इस स्टोरी का एक वर्जन पहले न्यूज़लॉन्ड्री पर प्रकाशित हो चुका है.
विवेक कौल बैड मनी किताब के लेखक हैं
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