Newslaundry Hindi
विदेशी धुन पर ज़ॉम्बी पत्रकारिता और न्याय व्यवस्था
किसानों के आंदोलन में बीते हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया. मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अदालत में इस मसले पर लंबी बहस के बाद तीनों कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगा दी गई और चार सदस्यों की एक कमेटी बना दी गई. सुनवाई के दौरान कोर्ट में एक मजेदार घटना घटी. देश के अटॉर्नी जनरल यानि देश के सबसे बड़े कानूनी अधिकारी केके वेणुगोपाल ने बीच बहस कोर्ट में कहा कि किसान आंदोलन देश के लिए खतरा है क्योंकि इसमें खालिस्तानियों ने घुसपैठ कर ली है.
देश के शीर्ष कानूनी अधिकारी का यह बयान बीते कुछ महीनों के दौरान खबरिया चैनलों, भीजेपी आईटी सेल, सत्ताधारी दल के समर्थक ट्रोल्स और अखबारों पर चल रहे इसी तरह के तथ्यहीन दावों से प्रेरित है. डिसइंफो लैब नाम की वेबसाइट ने किसानों के आंदोलन में खालिस्तानी घुसपैठ के दावे की एक खूबसूरत पड़ताल की है. यह जानना आपके लिए जरूरी है कि खालिस्तान की बहस कहां से शुरू हुई, किसने शुरू की, कहां से इसकी भारत के मुख्यधारा मीडिया में एंट्री हुई, और कैसे यह अटार्नी जनरल का मुख्य तर्क बन गई.
जिस भाजपा की आईटी सेल और दक्षिणपंथी ट्रोल समूह को आप देशभक्ति और राष्ट्रवाद के नाम पर दुष्प्रचार और फेक न्यूज़ फैलाने वाले रंगरूट समझते हैं, वो दरअसल हेडलेस चिकेन हैं. डिसइंफो लैब की पूरी पड़ताल में साबित होता है कि कुछ विदेशी ताकतों यानी पाकिस्तान और विदेशों में मौजूद खालिस्तान समर्थक संगठनों ने बहुत आसानी से आईटीसेल और दक्षिणपंथी ट्रोल्स का इस्तेमाल अपना प्रोपगैंडा फैलाने के लिए किया. ये सब एक ज़ॉम्बी में बदल गए. और एक बार जब जॉम्बी शिकार पर निकलते हैं तब आप पाते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में सरकार का शीर्ष कानूनी अधिकारी भी उनके ज़हर से बच नहीं पाता.
इस पूरी कहानी को आप तक पहुंचाने में काफी समय, शोध और ऊर्जा लगती है. और यह इकलौती रिपोर्ट नहीं है. आप न्यूज़लॉन्ड्री डॉट कॉम पर जाइए वहां आपको इस तरह के तमाम रिपोर्ट्स मिलेंगी जो हमारे रिपोर्टर्स बड़ी मेहनत मशक्कत से देश के अलहदा हिस्सों से इकट्ठा करते हैं. हम ये सब कर पा रहे हैं क्योंकि आप इस काम में हमारी मदद करते हैं. न्यूज़लॉन्ड्री अंबानी, अडानी के पैसे या किसी सरकार के विज्ञापन से नहीं चलता बल्कि अपने सब्सक्राइबर के दम पर ये रिपोर्टस और कहानियां आपके सामने लाता. हमें आपके सब्सक्रिप्शन की जरूरत है. स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए आपका योगदान भी बहुत जरूरी है. न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करके आप गर्व से कह सकते हैं मेरे खर्च पर आज़ाद हैं ख़बरें.
किसानों के आंदोलन में बीते हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया. मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अदालत में इस मसले पर लंबी बहस के बाद तीनों कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगा दी गई और चार सदस्यों की एक कमेटी बना दी गई. सुनवाई के दौरान कोर्ट में एक मजेदार घटना घटी. देश के अटॉर्नी जनरल यानि देश के सबसे बड़े कानूनी अधिकारी केके वेणुगोपाल ने बीच बहस कोर्ट में कहा कि किसान आंदोलन देश के लिए खतरा है क्योंकि इसमें खालिस्तानियों ने घुसपैठ कर ली है.
देश के शीर्ष कानूनी अधिकारी का यह बयान बीते कुछ महीनों के दौरान खबरिया चैनलों, भीजेपी आईटी सेल, सत्ताधारी दल के समर्थक ट्रोल्स और अखबारों पर चल रहे इसी तरह के तथ्यहीन दावों से प्रेरित है. डिसइंफो लैब नाम की वेबसाइट ने किसानों के आंदोलन में खालिस्तानी घुसपैठ के दावे की एक खूबसूरत पड़ताल की है. यह जानना आपके लिए जरूरी है कि खालिस्तान की बहस कहां से शुरू हुई, किसने शुरू की, कहां से इसकी भारत के मुख्यधारा मीडिया में एंट्री हुई, और कैसे यह अटार्नी जनरल का मुख्य तर्क बन गई.
जिस भाजपा की आईटी सेल और दक्षिणपंथी ट्रोल समूह को आप देशभक्ति और राष्ट्रवाद के नाम पर दुष्प्रचार और फेक न्यूज़ फैलाने वाले रंगरूट समझते हैं, वो दरअसल हेडलेस चिकेन हैं. डिसइंफो लैब की पूरी पड़ताल में साबित होता है कि कुछ विदेशी ताकतों यानी पाकिस्तान और विदेशों में मौजूद खालिस्तान समर्थक संगठनों ने बहुत आसानी से आईटीसेल और दक्षिणपंथी ट्रोल्स का इस्तेमाल अपना प्रोपगैंडा फैलाने के लिए किया. ये सब एक ज़ॉम्बी में बदल गए. और एक बार जब जॉम्बी शिकार पर निकलते हैं तब आप पाते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में सरकार का शीर्ष कानूनी अधिकारी भी उनके ज़हर से बच नहीं पाता.
इस पूरी कहानी को आप तक पहुंचाने में काफी समय, शोध और ऊर्जा लगती है. और यह इकलौती रिपोर्ट नहीं है. आप न्यूज़लॉन्ड्री डॉट कॉम पर जाइए वहां आपको इस तरह के तमाम रिपोर्ट्स मिलेंगी जो हमारे रिपोर्टर्स बड़ी मेहनत मशक्कत से देश के अलहदा हिस्सों से इकट्ठा करते हैं. हम ये सब कर पा रहे हैं क्योंकि आप इस काम में हमारी मदद करते हैं. न्यूज़लॉन्ड्री अंबानी, अडानी के पैसे या किसी सरकार के विज्ञापन से नहीं चलता बल्कि अपने सब्सक्राइबर के दम पर ये रिपोर्टस और कहानियां आपके सामने लाता. हमें आपके सब्सक्रिप्शन की जरूरत है. स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए आपका योगदान भी बहुत जरूरी है. न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करके आप गर्व से कह सकते हैं मेरे खर्च पर आज़ाद हैं ख़बरें.
Also Read
-
Hafta X South Central: Highs & lows of media in 2025, influencers in news, Arnab’s ‘turnaround’
-
TV Newsance 2025 rewind | BTS bloopers, favourite snippets and Roenka awards prep
-
Is India’s environment minister lying about the new definition of the Aravallis?
-
How we broke the voter roll story before it became a national conversation
-
Tata Harrier and Tata Safari 1.5 Petrol: A bold stroke but will it work?