Newslaundry Hindi
रिपब्लिक टीवी को लेकर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया में दो-फाड़
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने सोमवार को रिपब्लिक टीवी के पत्रकारों के खिलाफ मुंबई पुलिस द्वारा दर्ज हुई एफआईआर पर एक बयान जारी किया है. गिल्ड ने यह बयान अपने सदस्यों के बीच हुई तीखी बहस-बतकुच्चन के बाद जारी किया है. गिल्ड द्वारा जारी बयान की भाषा बहुत महत्वपूर्ण है.
बयान में गिल्ड ने रिपब्लिक के पत्रकारों के खिलाफ मुंबई पुलिस द्वारा दर्ज किए गए केस को चिंताजनक बताया है लेकिन साथ ही चैनल द्वारा टीआरपी में हेरफेर के लिए जारी पुलिस जांच को जारी रखने और किसी भी तरह से कानूनी प्रक्रिया को प्रभावित नहीं करने की बात कही है. बयान का लब्बोलुआब यह है की संस्थान की गड़बड़ियों के लिए पत्रकारों को परेशान करना बंद होना चाहिए.
गिल्ड ने अपने बयान में रिपब्लिक के खिलाफ कड़े शब्दों का प्रयोग करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट के उस बयान का जिक्र किया है जिसमें अदालत ने चैनल को रिया चक्रवती के मामले में की गई रिपोर्टिंग और चैनल की ‘खोजी पत्रकारिता’ वाले तर्क पर तल्ख टिप्पणी की थी.
गिल्ड ने कहा, “मीडिया की निष्पक्षता और पत्रकारों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए चैनल अपनी ज़िम्मेदारी समझे और पुलिस अपनी जांच के नाम पर चैनल के पत्रकारों को परेशान ना करें.” गिल्ड का यह बयान शुक्रवार को मुंबई पुलिस द्वारा चैनल के खिलाफ दर्ज किए गए केस के तीन दिन बाद आया है.
बता दें कि अर्णब गोस्वामी के चैनल रिपब्लिक टीवी के खिलाफ मुंबई पुलिस टीआरपी घोटाले की जांच कर रही है. इसी दौरान मुंबई पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह को निशाना बनाकर रिपब्लिक टीवी द्वारा की गई आपत्तिजनक मीडिया कवरेज को आधार बनाकर मुंबई पुलिस ने चैनल के पत्रकारों के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज की है.
बयान जारी करने को लेकर चली लंबी बहस
शुक्रवार को दर्ज एफआईआर और सोमवार को जारी हुए बयान के बीच तीन दिनों में गिल्ड के भीतर सदस्यों के बीच काफी खींचतान देखने को मिली. कुछ सदस्य साफ तौर पर रिपब्लिक के खिलाफ हो रही कार्रवाई को कानूनी प्रक्रिया में हस्तक्षेप बताते हुए इस पर कोई बयान जारी करने के खिलाफ थे. वहीं थोड़े से पत्रकारों का एक गुट किसी भी हाल में रिपब्लिक के पक्ष में बयान जारी करने का समर्थक था.
न्यूज़लॉन्ड्री के पास इस बातचीत की पूरी मेलचेन है. रिपब्लिक के पक्ष में बयान जारी करने का दबाव बना रहे पत्रकारों में आर जगन्नाथन, स्मिता प्रकाश और एमडी नलपत के नाम प्रमुख हैं. वहीं विरोध में खड़े पत्रकारो में राजदीप सरदेसाई, आशुतोष, जाविद लईक का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है.
25 अक्टूबर को गिल्ड के सदस्यों की बीच जारी मेलबाजी में उतरते हुए राजदीप सरदेसाई ने लिखा, “मैं कई कारणों से इस बहस में जुड़ने से हिचक रहा था, जिनमें से एक मेरा दृढ़ विश्वास है कि पत्रकारिता कार्यों से पहचानी जानी चाहिए ना की बातों से. लेकिन जब बहुत से लोग रिपब्लिक टीवी के मामले में नैतिकता की बात कह रहे हैं तो मुझे लगता है कि यह समय स्पष्ट बोलने का है.”
वह आगे कहते हैं, “हां… गिल्ड को महाराष्ट्र में मुंबई पुलिस द्वारा की गई इस तरह की कार्रवाई के खिलाफ निंदा बयान जारी करना चाहिए. लेकिन जो लोग पुलिस की इस कार्रवाई को स्वतंत्र पत्रकारिता पर हमले के रूप में देखते हैं, उन्हें एक बात स्पष्ट करना चाहता हूं ‘स्वतंत्रता’ का अर्थ गैर जिम्मेदार और सांप्रदायिक होने की छूट नहीं है. जैसा कि पालघर के मामले में दो साधुओं की हत्या को हिंदू-मुस्लिम हिंसा के रूप में पेश किया गया. जानबूझकर और दुर्भावनापूर्वक सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने का काम था. सच कहूं तो सुशांत सिंह राजपूत मामले की कवरेज सिर्फ घटिया पत्रकारिता थी, जिसके साथ हमें जीना है. इसने टीवी पत्रकारिता को सनसनीखेज टैबलॉयड पत्रकारिता के स्तर पर गिरा दिया. लेकिन पालघर घटना में की गई कवरेज से एक मानसिकता का पता चलता है जिसकी निंदा होनी चाहिए. सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाली पत्रकारिता, असली पत्रकारिता नहीं है और यह किसी भी संवैधानिक संरक्षण की अनुमति नहीं देता है. गिल्ड को तब भी चुप नहीं रहना चाहिए जब राज्य अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करें और ना ही तब जब कोई चैनल प्रोपेगेंडा करे.”
अपने मेल के अंत में राजदीप लिखते हैं, “बयान जारी करने में रीढ़ की आवश्यकता नहीं होती है, रीढ़ की आवश्यकता अच्छी पत्रकारिता के लिए होती है.”
राजदीप का यह बयान इसी मेल चेन में आए एएनआई की स्मिता प्रकाश के जवाब में था. स्मिता एनबीए के बयान का जिक्र करती हैं, “हम रिपब्लिक की पत्रकारिता का समर्थन नहीं करते. रिपब्लिक एनबीए का सदस्य भी नहीं है, इसके बावजूद हम एडिटोरियल स्टाफ के खिलाफ एफआईआर की कड़ी निंदा करते हैं.” स्मिता याद दिलाती है कि एनबीए ने यह सब तब किया जबकि अर्णब के साथ उनका टकराव चल रहा है, इसके लिए रीढ़ चाहिए.”
इसी रीढ़ का जिक्र राजदीप ने अपने उत्तर में किया है. इस पूरे मेलचेन की शुरुआत स्वराज्य पत्रिका के संपादक आर जगन्नाथन उर्फ जग्गी ने की थी. उन्होंने लिखा, “गिल्ड में रिपब्लिक के मामले को लेकर यह चुप्पी क्यों हैं. गिल्ड की कोई विश्वसनीयता नहीं रहेगी अगर वह अर्णब और उनके संपादकीय टीम के खिलाफ दर्ज एफआईआर की कड़े से कड़े शब्दों में भर्त्सना नहीं करता है.”
जग्गी आगे एक महत्वपूर्ण बात कहते हैं, “आज अगर गिल्ड रिपब्लिक के मामले में चुप रहता है तो याद रखिए की भविष्य में सारे पत्रकार अलग-अलग पार्टियों की सरकारों का निशाना बनेंगे.”
बातचीत और आगे बढ़ती है. राजदीप के मेल के जवाब में स्मिता प्रकाश लिखती हैं, “गिल्ड का पक्षपातपूर्व दृष्टिकोण अस्वीकार है. वह आगे लिखती हैं, क्या प्रसार भारती के संबंध में गिल्ड ने पीटीआई के समर्थन में बयान नहीं दिया? हां.”
वह आगे लिखती हैं, “गिल्ड के नए अध्यक्ष और उनकी टीम ने अपना पहला बयान कारवां पत्रिका के पत्रकार के साथ हुई मारपीट पर जारी किया था जबकि पत्रिका के एडिटर कार्यकारिणी के सदस्य हैं? क्या किसी ने हितों के टकराव पर टिप्पणी की? नहीं, जो किया जाना था वह किया जाना चाहिए. रही बात केंद्रीय मंत्रियों के रिपब्लिक चैनल के समर्थन में कूद पड़ने की, तो क्या वह गिल्ड में हैं? यदि हां, तो उन्हें तुरंत इस्तीफ़ा देना चाहिए. या शायद गिल्ड को एक चैनल का समर्थन करने के लिए मंत्रियों की आलोचना की निंदा करनी चाहिए?”
बता दें कि, स्मिता ने मंत्रियों के बयान का जिक्र राजदीप के बयान के बाद किया है, जिसमें राजदीप ने कहा था एक चैनल (रिपब्लिक टीवी) के समर्थन में केंद्रीय मंत्री कूद पड़े, क्या यह राजनीति से प्रभावित नहीं है.
स्मिता, राजदीप के ‘रीढ़’ वाले बयान पर भी टिप्पणी करती हैं, “हां निश्चित रूप से ‘रीढ़’ क्योंकि ईजीआई जो कर रहा है वह रीढ है. एक सप्ताह में दो बयान. देश भर में कितने पत्रकार, छोटे शहरों में कई महिलाएं अपनी रिपोर्ट करने के लिए सत्ता के साथ लड़ाई लड़ती हैं. यह जानने के लिए केवल गूगल करना पड़ता है.”
अंत में वो कहती हैं, “मेरे विचार से जब पूरे मीडिया समूह के पत्रकारों के खिलाफ एफ़आईआर दर्ज की गई है तो यह गिल्ड की ज़िम्मेदारी है कि वह इस पर बयान जारी करें.”
यहां आकार पटेल लिखते हैं, “दोस्तों, यह समय है जब हमें सरकार के साथ बैठकर सभी मुद्दों पर और मीडिया के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों पर समग्रता से विचार करना चाहिए. एक प्रतिनिधिमंडल सरकार के नुमाइंदों से बात करे. इस मंडल में कार्यपरिषद के सदस्यों के साथ कुछ अन्य लोगों को शामिल किया जा सकता है. बयानों से बात करने की बजाय यह सरकार के साथ बातचीत करने का रास्ता खोलने में मदद करेगा.”
राजदीप सरदेसाई को संबोधित करते हुए आर जगन्नाथन लिखते हैं, “मुझे आपके फॉर्मूलेशन से कोई समस्या नहीं होगी बशर्ते कि "सांप्रदायिक" या "घृणास्पद भाषण" क्या है या “उन्मादी” पत्रकारिता क्या है, इस पर हमारी परिभाषा स्पष्ट हो. मेरे विचार में एंटी सीएए विरोध, एंटी हिंदू और सांप्रदायिक था लेकिन आप मेरे विचार से सहमत नहीं होगें. यह सब ठीक है, लेकिन हम यहां राजनीति या किसी विचारधारा में नहीं हैं. हम उन पत्रकारों को बचाने के लिए बात कर रहे हैं जिनपर मुंबई में एक साथ कार्रवाई की जा रही है.”
इस बहस में अलग से हस्तक्षेप करते हुए गिल्ड के एक अन्य सदस्य जाविद हसन लईक कहते हैं, “तमाम आदरणीय सदस्य रिपब्लिक टीवी और अर्णब गोस्वामी के अभिव्यक्ति की निर्बाध आजादी का समर्थन कर रहे हैं. क्या यह अपरोक्ष तरीके से हेट स्पीच और हेट क्राइम का अपरोक्ष तरीके से समर्थन नहीं हुआ. मुझे भरोसा है कि आदरणीय सदस्य इस तरह के गंभीर नतीजों का समर्थन कभी नहीं करेंगे.”
दक्षिण-वाम में बंटा एडिटर्स गिल्ड
वैसे तो आज से कुछ साल पहले भी पत्रकारिता में विचारों का विभाजन था, लेकिन यह विभाजन आज के दौर में बहुत वीभत्स तरीके से सामने आ रहा है. पहले बंटवारा वैचारिक होते हुए भी पत्रकारिता पर हमले के खिलाफ एक किस्म की अलिखित एकता हुआ करती थी. यह मौजूदा दौर की ध्रुवीकृत राजनीति और पत्रकारिता में गहरी हो चुकी वैचारिक खाई का प्रतिबिंब है. राजनीतिक वर्ग निश्चित रूप से इस बंदरबांट वाली स्थिति का सबसे बड़ा लाभार्थी है और अंदर ही अंदर बुरी तरह से प्रसन्न है. यह स्थिति पैदा करने में उन्हीं पत्रकारों की भूमिका है जिन्होंने अपने ओछे, तात्कालिक हितो के लिए पहले तो सरकार के एक पक्ष का चीयरलीडर बनना स्वीकार किया और बाद में हालात को वहां बिगाड़ दिया जहां पर संतुलित, ठहराव भरी, गंभीर पत्रकारिता के सामने पाला चुनने की मजबूरी खड़ी हो गई है. गिल्ड या इस तरह के तमाम पत्रकारीय संगठन आज दुविधा के जिस दोराहे पर खड़े हैं उसमें रिपब्लिक टीवी और अर्णब जैसे पत्रकारों की भूमिका को नज़रअंदाज करना मुश्किल हैं.
रिपब्लिक टीवी को लेकर गिल्ड में पैदा हुए मतभेद पर इसके पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता अपने शो में कहते हैं- “गलत पत्रकारिता को इस तरह की पुलिसिया कार्रवाई के जरिए निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए. अर्णब गोस्वामी और रिपब्लिक टीवी के खिलाफ महाराष्ट्र में की जा रही कार्रवाई गलत है.”
हमने गिल्ड में हुई इस बातचीत पर राजदीप सरदेसाई, स्मिता प्रकाश और आशुतोष से बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने इस मामले पर कोई टिप्पणी करने से मना कर दिया.
हमने वरिष्ठ पत्रकार और गिल्ड के पूर्व अध्यक्ष शेखर गुप्ता से भी बातचीत करने की कोशिश की, हमने उन्हें मैसेज भी किया है, हालांकि रिपोर्ट लिखे जाने तक उनका कोई जवाब नहीं मिला. वहीं आर जगन्नाथन ने जवाब देते हुए कहा कि, उनके लेख को उनका आधिकारिक बयान माना जाए.
पहली बार हाल ही में हुए गिल्ड के पदाधिकारियों के चुनाव में इसके सदस्य दक्षिण और वाम खेमे में बंटते दिखे. इसको लेकर गिल्ड के कई सदस्यों ने सवाल खड़ा किया था. गिल्ड के सदस्य ओम थानवी ने तो यहां तक कह दिया, कि संपादकों की सर्वोच्च संस्था एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के पहले मतदान में गोदी मीडिया ने कब्जा जमाने की कोशिश की, पर मात खा गए. बहस यह भी है कि इस चुनाव में सरकार समर्थक गुट ने गिल्ड पर कब्जे की कोशिश की.
न्यूज़लॉन्ड्री ने एक रिपोर्ट में इस पूरे घटनाक्रम पर विस्तार से लिखा था. गिल्ड के जिन सदस्यों से हमने बात की तो वो अपना नाम उजागर नहीं करना चाहते थे. उनका कहना था कि गिल्ड ने बाहर कोई भी जानकारी साझा करने पर प्रतिबंध लगा रखा है, इसलिए वो सार्वजनिक रूप से कुछ नहीं कहेंगे.
Also Read
-
2025’s hard truth, underlined by year-end Putin visit: India lacks the clout to shape a world in flux
-
You can rebook an Indigo flight. You can’t rebook your lungs
-
‘Overcrowded, underfed’: Manipur planned to shut relief camps in Dec, but many still ‘trapped’
-
Since Modi can’t stop talking about Nehru, here’s Nehru talking back
-
Indigo: Why India is held hostage by one airline