Newslaundry Hindi
लामबंद हुई फिल्म इंडस्ट्री की अपील
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के चार संगठन और 34 प्रोडक्शन हाउस ने दिल्ली हाईकोर्ट में दीवानी मुकदमा दायर किया है. इसमें वादी पक्ष ने गुहार लगाई है कि कुछ मीडिया संस्थानों द्वारा जारी गैरजिम्मेदार और लांछनात्मक मीडिया कवरेज पर रोक लगाई जाए. इस अपील में रिपब्लिक टीवी के अर्नब गोस्वामी और प्रदीप भंडारी के साथ टाइम्स नाउ के राहुल शिवशंकर और नविका कुमार के नाम दिए गए हैं. इनके अलावा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का भी हवाला दिया गया है.
मुख्य आपत्ति है कि ये सभी गैरजिम्मेदार, अपमानजनक और मानहानिकारक शब्दों में फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी हस्तियों की निंदा करते हैं. कुछ फिल्मी हस्तियों को निशाना बनाकर खुलेआम मीडिया ट्रायल किया जाता है. यह उनकी निजता के अधिकार का उल्लंघन है. इस पर यथाशीघ्र पाबंदी लगाई जाए. ये चैनल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया केबल टेलीविजन नेटवर्क, 1994 के नियमों का पालन करें. कोर्ट से अपील की गई है कि बदनाम करने के उद्देश्य से जारी किए गए सारे कंटेंट वापस लेने के साथ उन्हें हटाया भी जाए.
पिछले कुछ महीनों में राजनीतिक और सरकारी हलकों के समर्थन, नॉन कोऑपरेशन और मौन से फिल्म इंडस्ट्री को निशाना बनाने की आक्रामक बेलगाम प्रक्रिया जारी है. फिल्म इंडस्ट्री की हस्तियों और मुद्दों पर पहले भी विवाद होते रहे हैं, लेकिन इस बार जिस तरीके से चौतरफा एकाग्र आक्रमण हुआ, वह यकीनन खास उद्देश्य, साजिश और दुर्भावना के तहत प्रतीत हो रहा है.
सुशांत सिंह राजपूत की असामयिक मौत के बाद से उठे सवालों और विवादों ने पूरी घटना को एक खास दिशा में नियोजित तरीके से मोड़ा. एक अभिनेता के असामयिक मौत के कारणों की तलाश में आशंकाओं और अनुमानों की बाढ़ आ गई. नेपोटिज्म, आउटसाइडर और डिप्रेशन से शुरू हुई बातें बाद में हत्या और ड्रग्स की तरफ अनियंत्रित तरीके से बढीं. सुशांत सिंह राजपूत के लिए न्याय की मांग करने वालों का शोर ऐसा बढ़ा कि बिहार सरकार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पूरे मामले को सीबीआई के हाथों सौंप देने की अनुशंसा कर दी.
एक मुहिम के तहत नैरेटिव गढ़ा गया कि मुंबई पुलिस मामले की सही जांच नहीं कर रही है. वह कुछ प्रभावशाली व्यक्तियों को बचाने की कोशिश में है. सुशांत सिंह राजपूत के बहाने अलग-अलग निशाने लगाए गए और महाराष्ट्र सरकार एवं मुंबई पुलिस के खिलाफ माहौल तैयार किया गया है. धीरे-धीरे तीन केंद्रीय जांच एजेंसियों ने अलग-अलग कोनों से मामले की जांच शुरू की. अभी तक अंतिम निर्णय नहीं आया है लेकिन यह स्पष्ट हो चुका है कि सुशांत सिंह राजपूत की हत्या नहीं हुई थी.
उन्होंने आत्महत्या की थी. अब तो यह भी तथ्य सामने आया है कि 80,000 फेक अकाउंट बनाकर सोशल मीडिया पर मुहिम चलाई गई और इसमें एक राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी सक्रिय थी. निश्चित ही किसी ताकतवर की शह और ढील से रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाउ ने निंदा, आलोचना, भर्त्सना और बदनामी की मुहिम तेज की. इस दौर में कोविड-19, गिरती जीडीपी, बेरोजगारी और अन्य जरूरी राष्ट्रीय मुद्दे गौण हो गए. सभी समाचार चैनलों और पत्र-पत्रिकाओं का फोकस एक कलाकार की मौत और उससे जुड़े नित नए उद्घाटन हो गए. जांच के दरमियान सूत्रों के हवाले से पूछताछ की बातें लीक होकर खबरों की सुर्खियां बनती रहीं. नतीजतन फिल्म इंडस्ट्री की भयंकर बदनामी हुई. दशकों से गढ़ी, निर्मित और मजबूत हुई फिल्म इंडस्ट्री की प्यारी और आकर्षक छवि को ग्रहण लग गया.
पिछले चार महीनों में मीडिया और सोशल मीडिया की झूठी और बेबुनियाद खबरों से यह नैरेटिव स्थापित हो चुका है कि फिल्म इंडस्ट्री नशेड़ी, गंदे और एंटी इंडियन व्यक्तियों से भरी है, इस पूरी मुहिम में कंगना रनौत स्वकेंद्रित राग अलापती रहीं. केंद्रीय सरकार का उन्हें भरपूर समर्थन मिला. वह नित नए आरोप गढ़ती हैं और किसी न किसी पर आक्रमण करती हैं. अफसोस की बात है कि उनकी फिजूल टिप्पणियों को भी मीडिया का एक तबका तूल देता है और खबरें बनाता है.
चार संगठनों और 34 प्रोडक्शन हाउस के एक साथ आने से स्पष्ट संकेत मिला है कि आरोपों से उकताकर फिल्म इंडस्ट्री ने सामूहिक शिकायत और अपील की है. इस बार सरकार के समर्थक माने जा रहे अक्षय कुमार और अजय देवगन फिल्म इंडस्ट्री के समूह में शामिल हैं. खानत्रयी, रितिक रोशन जैसे लोकप्रिय सितारों के साथ पाएदार प्रोडक्शन हाउस शामिल हैं. इंडियन फिल्म एंड टीवी डायरेक्टर एसोसिएशन का इस ग्रुप से नहीं जुड़ना एक सवाल है. उनके इस अलगाव पर कुछ निर्देशकों ने सवाल उठाए हैं और अपनी सदस्यता छोड़ने की बात की है.
पिछले चार महीनों की बदनामी की मुहिम में एक सदी पुरानी फिल्म इंडस्ट्री के सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक योगदान को भुला दिया गया. भारतीय समाज में फिल्मों की महती भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता. आजादी के पहले से फिल्म इंडस्ट्री भारतीय समाज में आ रहे बदलावों के साथ आगे बढ़ती गई है और कई अवसरों पर अग्रणी और निर्देशकीय भूमिका भी निभाई है. फिल्मों के लोकप्रिय कलाकार भारतीय जनमानस के आदर्श रहे हैं और हैं, लेकिन इस बार की मुहिम में पूरे योगदान को किनारे कर दिया गया. उन्हें गलीज और गन्दा मान लिया गया.
अभी पिछले ही साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो अवसरों पर फिल्म इंडस्ट्री के प्रतिनिधियों से मुलाकात की थी. इन मुलाकातों में उन्होंने अपने संबोधन में फिल्म इंडस्ट्री का गुणगान करते हुए यह आह्वान किया था कि वह नए भारत के लिए नेशन बिल्डिंग के उद्देश्य से फिल्म निर्माण में सक्रिय हो. भारतीयता से भरपूर फ़िल्में आयें. उनकी मंशा फिल्म इंडस्ट्री पूरी नहीं कर पा रही है. जाहिर है कि भाजपा की राजनीतिक सोच और भारत की अवधारणा से पंथ-निरपेक्ष और असांप्रदायिक फिल्म इंडस्ट्री का मेल नहीं हो सकता. चाहने के बावजूद सरकार और भाजपा को कथित ‘राष्ट्रवाद’ के नारे लगाती फिल्में नहीं मिल पा रही हैं.
फिल्म इंडस्ट्री की अपील और दीवानी मुकदमे से यह जाहिर हो गया है कि फिल्म इंडस्ट्री एकजुट होकर लांछन और बदनामी को रोकना चाहती है. बहुत नशायो, अब न नशइहों. देखना होगा हाईकोर्ट पूरे मामले पर क्या फैसला देता है और क्या दिशा निर्देश जारी करता है?
अपील में शामिल संगठन और प्रोडक्शन हाउस
द फिल्म एंड टेलीविजन प्रोड्यूसर गिल्ड ऑफ इंडिया (पीजीआई)
द सिने एंड टीवी आर्टिस्ट्स एसोसिएशन (सीआईएनटीएए)
भारतीय फिल्म और टीवी निर्माता परिषद (आईएफटीपीसी)
स्क्रीन राइटर्स एसोसिएशन (एसडब्ल्यूए)
आमिर खान प्रोडक्शंस
एड-लैब्स फिल्म्स
अजय देवगन फिल्म्स
आंदोलन फिल्म्स
अनिल कपूर फिल्म और कम्यूनिकेश नेटवर्क
अरबाज खान प्रोडक्शंस
आशुतोष गोवारिकर प्रोडक्शंस
बीएसके नेटवर्क और एंटरटेनमेंट
केप ऑफ गुड फिल्म्स
क्लीन स्लेट फिल्मज
धर्मा प्रोडक्शंस
एम्मे एंटरटेनमेंट एंड मोशन पिक्चर्स
एक्सेल एंटरटेनमेंट
फिल्मक्राफ्ट प्रोडक्शंस
होप प्रोडक्शन
कबीर खान फिल्म्स
लव फिल्म्स
मैकगफिन पिक्चर्स
नाडियाडवाला ग्रैंडसन एंटरटेनमेंट
वन इंडिया स्टोरीज
आर एस एंटरटेनमेंट (रमेश सिप्पी एंटरटेनमेंट)
राकेश ओमप्रकाश मेहरा पिक्चर्स
रेड चिलीज एंटरटेनमेंट
रील लाइफ प्रोडक्शंस
रिलायंस बिग एंटरटेनमेंट
रोहित शेट्टी पिक्चरज
रॉय कपूर फिल्म्स
सलमान खान फिल्म्स
सिखया एंटरटेनमेंट
सोहेल खान प्रोडक्शंस
टाइगर बेबी डिजिटल
विनोद चोपड़ा फिल्म्स
विशाल भारद्वाज पिक्चर्स
यशराज फिल्म्स
Also Read
-
Kalli Purie just gave the most honest definition of Godi Media yet
-
TV Newsance 311: Amit Shah vs Rahul Gandhi and anchors’ big lie on ‘vote chori’
-
Crossing rivers, climbing mountains: The story behind the Dharali stories
-
Lallantop team detained, press cards and gear seized while covering SSC protest
-
Why India, US, petrostates blocked global plastics treaty at Geneva talks