Newslaundry Hindi
शिक्षा नीति 2020: शिक्षा को आमजन से दूर करने की नीति
छात्रों-युवाओं और बुद्धिजीवियों के तमाम विरोध को दरकिनार करते हुए 29 जुलाई के दिन 'नयी शिक्षा नीति 2020' को मोदी सरकार के कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है. कायदे से इस शिक्षा नीति को संसद के दोनों सदनों में पेश करके पास किया जाना था तभी यह कानून बनती लेकिन मोदी सरकार के चाल-चरित्रसे लगता है कि उसकी नौबत ही नहीं आने दी जायेगी. यह शिक्षा नीति शिक्षा के क्षेत्र में सरकारी विनिवेश को घटायेगी और बड़ी पूंजी के लिए शिक्षा के दरवाज़े खोलेगी. व्यापक मेहनतकश जनता के बेटे-बेटियों के लिए शिक्षा प्राप्त करने के रास्ते और भी संकरे हो जायेंगे.'नयी शिक्षा नीति' के मोटे पोथे में शब्दजाल तो बहुत लम्बा-चौड़ा बुना गया है लेकिन जैसे ही आप इसकी अन्तर्वस्तु तक जायेंगे तो जानेंगे कि यह शब्द जाल केवल "जलते सत्य को टालने" के लिए बुना गया है.
के कस्तूरीरंगन के नेतृत्व में बनी कमेटी ने नयी शिक्षा नीति का प्रारूप (ड्राफ्ट) सरकार को 31 मई, 2019 को सौंप दिया था. यह ड्राफ्ट अंग्रेजी में 484 औऱ हिंदी में 648 पेज का था. इसी के आधार पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 55 पेज का प्रारूप (ड्राफ्ट) कैबिनेट में भेज दिया था. कैबिनेट इसे पारित करके संसद के दोनों सदनों में पेश करने वाला था और फ़िर वहां से पास होने पर ये ड्राफ्ट देश में नयी शिक्षा नीति के रूप में लागू हो जाता. किन्तु अब केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मन्त्री रमेश पोखरियाल निशंक के बयानों से लगता है कि 'घर की बही, काका लिखणिया' के दौरे-दौरा में संसद के दोनों सदनों की मंजूरी के बिना ही इसे कानून बना दिया जायेगा. नयी शिक्षा नीति अगले 20 साल तक शिक्षा के स्वरूप और ढांचे को निर्धारित करेगी.
भारत में पहली शिक्षा नीति 1968 में आयी थी. आज़ादी के बाद से लेकर 68 तक शिक्षा की दिशा टाटा-बिड़ला प्लान से निर्देशित थी. इसके बाद दूसरी शिक्षा नीति 1986 में आयी जिसे 1992 में उदारीकरण-निजीकरण की नीतियों के मद्देनजर संशोधित किया गया. तभी से शिक्षा के क्षेत्र में निजी पूंजी की घुसपैठ की परियोजना को अंजाम दिया गया तथा शिक्षा भी मुनाफ़ा कमाने का एक साधन बन गयी. अब सरकार तीसरी शिक्षा नीति को लेकर आन खड़ी हुई है.
'नयी शिक्षा नीति 2020' बातें तो बड़ी-बड़ी कर रही है किन्तु इसकी बातों और इसमें सुझाये गये प्रावधानों में विरोधाभास है. यह नीति शिक्षा के स्तर और गुणवत्ता को उन्नत करने की बात कहती है किन्तु दूसरी तरफ़ दूसरी कक्षा तक की पढ़ाई के लिए सरकार की ज़िम्मेदारी को ख़त्म करने की बात कहती है. शिक्षा नीति का मूल प्रारूप देश में स्कूली स्तर पर 10 लाख अध्यापकों की कमी को तो स्वीकार करती है परन्तु इन पदों की भर्ती की कोई ठोस योजना पेश नही करती.
यह शिक्षा नीति फाउंडेशनल स्टेज यानी पहले 5 साल की पढ़ाई (3+2) में अध्यापक की कोई जरूरत महसूस नही करती. इस काम को एनजीओकर्मी, आंगनवाड़ी कर्मी और अन्य स्वयंसेवक अंजाम देंगे. वैसे भी यह नीति तथाकथित ढांचागत समायोजन की बात करती है जिसका मतलब है कम संसाधनों में ज़्यादा करो यानी सरकार का अपनी ज़िम्मेदारियों से पल्ला झाड़ने का प्रयास.
'नयी शिक्षा नीति' का दस्तावेज खुद स्वीकार करता है कि देश में अब भी 25% यानी 30 करोड़ से ऊपर लोग अनपढ़ हैं फिर भी नयी शिक्षा नीति में शिक्षा की सार्वभौमिकता का पहलू छोड़ दिया गया है. यानी शिक्षा की पहुंच को आखिरी आदमी तक ले जाने की कोई ज़रूरत नहीं. वैसे तो यह ड्राफ्ट 2030 तक 100% साक्षरता के लक्ष्य को पाने की बात करता है लेकिन दूसरी तरफ़ कहता है कि जहां 50 से कम बच्चे हों वहां स्कूल को बन्द कर देना चाहिए. आज स्कूलों को बढ़ाने की जरूरत है किन्तु यह नीति ठीक इसके उलट उपाय सुझा रही है. पुरानी शिक्षा नीति कहती थी कि स्कूल पहुंच के हिसाब से होना चाहिए ना कि बच्चों की संख्या के हिसाब से.
नयी शिक्षा नीति का मूल ड्राफ्ट शिक्षा के ऊपर जीडीपी का 6% और केंद्रीय बजट का 10% ख़र्च करने की बात करता है किन्तु साथ में ये यह भी कहता है कि यदि कर (टैक्स) कम इकठ्ठा हो तो इतना खर्च नहीं किया जा सकता. यह ड्राफ्ट शिक्षा के अधिकार के तहत 3-18 साल तक के बच्चे को निःशुल्क शिक्षा देने की बात करता है. किन्तु आयु सीमा 18 साल तक नहीं होनी चाहिए बल्कि सरकार को नर्सरी से पीएचडी तक की शिक्षा निःशुल्क और एक समान उपलब्ध करानी चाहिए.
नयी शिक्षा नीति के मूल ड्राफ्ट में यह भी सुझाव दिया गया है कि छठीं कक्षा से बच्चों को छोटे-मोटे काम-धन्धे भी सिखाये जायेंगे. आज हमारे देश के उद्योगों में उत्पादन क्षमता का सिर्फ़ 73% ही पैदा किया जा रहा है. पूंजीपति आपसी स्पर्धा में सस्ते श्रमिकों की आपूर्ति के लिए वोकेशनल सेण्टरों, आईटीआई, पॉलिटेक्निक इत्यादि का रुख कर रहे हैं ताकि इन्हें सस्ते मज़दूर मिल सकें और शिक्षा पर खर्च भी कम करना पड़े. यह क़दम इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर नयी शिक्षा नीति में शामिल किया गया है. कुल मिलाकर नयी शिक्षा नीति का प्रारूप जनता के समान और निःशुल्क शिक्षा प्राप्त करने के अधिकार को तिलांजलि देने के समान है.
नयी शिक्षा नीति 2020 लागू होने के बाद उच्च शिक्षा के हालात तो और भी बुरे होने वाले हैं. पहले से ही लागू सेमेस्टर सिस्टम, एफवाईयूपी, सीबीडीएस, यूजीसी की जगह एचईसीआई इत्यादि स्कीमें भारत की शिक्षा व्यवस्था को अमेरिकी पद्धति के अनुसार ढालने के प्रयास हैं. शिक्षा के मूलभूत ढांचे की तो बात ही क्या करें यहां तो शिक्षकों का ही टोटा है. केन्द्रीय और राज्य विश्वविद्यालयों में क़रीबन 70 हजार प्रोफेसरों के पद ख़ाली हैं.
उच्च शिक्षा को सुधारने के लिए हायर एजुकेशन फाइनेंशियल एजेंसी (HEFA) बनी हुई है उसका बजट विगत साल 650 करोड़ घटाकर 2,100 करोड़ कर दिया है. उससे पिछले वर्ष इसका बजट 2,750 करोड़ था किन्तु हैरानी की बात यह है कि ख़र्च सिर्फ 250 करोड़ ही किया गया था. सरकार लगातार उच्च शिक्षा बजट को कम कर रही है. लगातार कोर्सों को स्व-वित्तपोषित बनाया जा रहा है.विश्वविद्यालयोंको स्वायत्ता दी जा रही है जिसका मतलब है सरकार विश्वविद्यालय को कोई फण्ड जारी नही करेगी.
सरकार की मानें तो विश्वविद्यालय को अपना फंड, फीस बढ़ाकर या किसी भी अन्य तरीके से जिसका बोझ अन्ततः विद्यार्थियों पर ही पड़ेगा, करना होगा. इसके पीछे सरकार खजाना खाली होने की बात करती है किन्तु कैग की रिपोर्ट के अनुसार 2007 से अब तक प्राप्त कुल शिक्षा सेस में से 2 लाख 18 हज़ार करोड़ रुपये की राशि सरकार ने खर्च ही नहीं की है. क्या ये पैसा पूंजीपतियों को बेल आउट पैकेज देने पर खर्च किया जायेगा? एक तरफ सरकार ढोंग करती है कि बजट का 10 प्रतिशत और सकल घरेलू उत्पाद का छह प्रतिशत शिक्षा पर खर्च होना चाहिए दूसरी ओर 10 और 6 प्रतिशत तो छोड़ ही दीजिए जो थोड़ी बहुत राशि शिक्षा बजट के तौर पर आवंटित होती है सरकार उसमें से भी डण्डी मारने की फ़िराक में रहती है.
उच्च शिक्षा से जुड़े एमए, एमफ़िल, तकनीकी कोर्सों और पीएचडी के कोर्सों को भी मनमाने ढंग से पुनर्निर्धारित किया गया है. एमफिल के कोर्स को समाप्त ही कर दिया गया है. इससे सीधे-सीधे उच्च शिक्षा की गुणवत्ता के साथ खिलवाड़ होगा.
कुल मिलाकर 'नयी शिक्षा नीति 2020' जनता के हक़ के प्रति नहीं बल्कि बड़ी पूंजी के प्रति समर्पित है. शिक्षा की नयी नीति हरेक स्तर की शिक्षा पर नकारात्मक असर डालेगी. यह समय देश के छात्रों-युवाओं और बौद्धिक तबके के लिए शिक्षा के अधिकार को हासिल करने हेतु नये सिरे से संघर्ष करने के लिए कमर कस लेने का समय है.
(लेखक - इन्द्रजीत दिशा छात्र संगठन की महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक, हरियाणा इकाई से जुड़े हैं और पत्रकारिता के छात्र हैं)
Also Read
-
‘Not a Maoist, just a tribal student’: Who is the protester in the viral India Gate photo?
-
130 kmph tracks, 55 kmph speed: Why are Indian trains still this slow despite Mission Raftaar?
-
Supreme Court’s backlog crisis needs sustained action. Too ambitious to think CJI’s tenure can solve it
-
Malankara Society’s rise and its deepening financial ties with Boby Chemmanur’s firms
-
The Constitution we celebrate isn’t the one we live under