Newslaundry Hindi
अर्नब गोस्वामी की पत्रकारिता बोले तो भारत का रेडियो रवांडा
इस बार की टिप्पणी में रेडियो रवांडा की कहानी. यह मोबाइल और व्हाट्सएप का दौर शुरू होने से पहले की बात है. अफ्रीका महाद्वीप के पूर्वी हिस्से में स्थित रवांडा में उस वक्त तक टेलीविज़न भी घर-घर नहीं पहुंचा था. तब रेडियो अपनी पहुंच और प्रभाव में बेहद शक्तिशाली था. वहां आरटीएलएम जैसे रेडियो चैनलों ने खुलेआम अपने प्रसारणों में बहुसंख्यक हुतू आबादी को अल्पसंख्यक तूत्सी आबादी का नरसंहार करने के लिए उकसाया.
रवांडा की त्रासदी हमारी ताज़ा याददाश्त में घटी सबसे भयावह मानवीय त्रासदी है, जिसमें वहां के मीडिया ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया था. इस नरसंहार में हुतू बहुसंख्यकों ने 8 लाख तूत्सी अल्पसंख्यकों और उदारवादियों को मौत के घाट उतार दिया था. रवांडा के उस नरसंहार की पटकथा वहां के मीडिया ने लिखी थी. इनमें से ज्यादातर रेडियो स्टेशन थे. इसीलिए आज के भारत और मीडिया, विशेषकर टीवी मीडिया के संदर्भ में रेडियो रवांडा की कहानी जानना बहुत जरूरी है.
Also Read: रिपब्लिक भारत या झूठ का गणतंत्र ?
Also Read
-
Gujarat’s invisible walls: Muslims pushed out, then left behind
-
Let Me Explain: Banu Mushtaq at Mysuru Dasara and controversy around tradition, identity, politics
-
गुजरात: विकास से वंचित मुस्लिम मोहल्ले, बंटा हुआ भरोसा और बढ़ती खाई
-
September 15, 2025: After weeks of relief, Delhi’s AQI begins to worsen
-
Did Arnab really spare the BJP on India-Pak match after Op Sindoor?