Newslaundry Hindi
यह मीडिया के लोकतंत्रीकरण का भी समय है
अक्सर कहा जाता हैं की मीडिया के माध्यम से लोग चर्चित होते हैं. बहुत समय तक धारणा थी की अगर चर्चित होना और चर्चा में रहना हैं तो मीडिया की सहायता लो. मगर पूरी प्रक्रिया उल्टी पड़ गई हैं. आज हम अक्सर देखते हैं की मीडिया, मीडिया समूह और मीडियाकर्मी ही अक्सर चर्चा में रहते हैं और वह स्वयं खबर होते, अपने किसी दृष्टिकोण के कारण या अपने पेशेवर रवैये के कारण.
अभी वर्तमान की बात करें तो तीन घटनाएं चर्चा में हैं और तीनों मीडिया से संबंधित हैं. पहली घटना वायर के संपादक से संबंधित हैं, दूसरी घटना कश्मीर के पत्रकारों से सम्बंधित हैं और तीसरी घटना अर्नब गोस्वामी और उनके चैनल से संबंधित हैं, तीनों घटनाएं मीडिया के तीन रूपों और तीन अलग-अलग शैलियों से सम्बन्धित हैं.
पहली घटना का संबंध एक न्यूज़ पोर्टल से हैं जिस पर आरोप हैं की इसने अपनी ख़बर में राज्य के मुख्यमंत्री के कथन का उल्लेख किया जो कथन उनका नहीं था. दूसरी घटना का संबंध प्रिंट मीडिया के एक पत्रकार से है जो कश्मीर पर रिपोर्ट करते हैं. पत्रकार पर आरोप हैं की उसने एक घटना की गलत रिपोर्टिंग की. तीसरी घटना का संबंध एक न्यूज़ चैनल से हैं उनपर यह आरोप लगाया जा रहा हैं की उनके चैनल ने भीड़ द्वारा की गई हत्या को धार्मिक रंग दिया.
अगर तीनों को घटनाओं से संबंधित प्राथमिक सूचनाओं पर दृष्टि डालें तो पायेंगे की तीनों घटनाएं वस्तुतः तथ्यों की गलती या उनकी गलत व्याख्या से संबंधित हैं. मगर उन पर आने वाली प्रतिक्रियाएं और उनके स्वरूप से हम आज के मीडिया के चरित्र का आकलन कर सकते हैं. पहली 2 घटनाओं में सरकार ने मीडियाकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की है वहीं तीसरी घटना में एक राजनीतिक पार्टी, मीडिया के खिलाफ कार्यवाही कर रही हैं और उस पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा मीडिया पर आक्रमण का आरोप लग रहा है.
अब तीनों ही घटनाओं पर आ रही प्रतिक्रिया को देखें तो पायेंगे की जहां दोनों घटनाओं को प्रेस की स्वतंत्रता से जोड़ा गया वही तीसरी घटना को झूठा और स्वाभाविक बताने की कोशिश हो रही हैं. इन घटनाओं पर आ रही अलग-अलग प्रतिक्रियाएं यह बताती हैं की आज का मीडिया कैसे काम कर रहा है. तीनों घटनाओं के मूल में मीडिया की कार्यप्रणाली हैं. मीडिया ख़बरों को प्राप्त करने के लिए किन माध्यमों को अपनाता हैं और ख़बरों की सत्यता को जांचने का उनका तरीका क्या हैं? यह सारे प्रश्न आज महत्वपूर्ण बन गए हैं.
अगर आज मीडिया की विश्वसनीयता पर कोई सबसे पहले और सबसे बड़ा प्रश्नचिन्ह लगाता है तो वह स्वयं मीडिया हैं. यहां महत्वपूर्ण बात यह है की एक मीडिया द्वारा दूसरे मीडिया समूह पर प्रश्न उठाने का आधार का कोई निरपेक्ष मापदंड नहीं है बल्कि अक्सर यह वैचारिक असहमति या व्यक्तिगत संबंधों के आधार पर भी होता है.
बहुत समय तक एक छोटा सा समूह इस निरपेक्षता के मापदंडों को निर्धारित करता रहा मगर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने इस एकाधिकार को शिथिल किया. ख़बरों की दुनिया में इलेक्ट्रानिक मीडिया का प्रवेश एक क्रांतिकारी घटना थी. यह उसी प्रकार था जैसे की प्रिंटिंग मशीन की खोज ने प्रेस के विकास को एक नई दिशा दी थी. उसी प्रकार की घटना इलेक्ट्रानिक मीडिया के आगमन के रूप में थी.
24 घंटे ख़बरों को खोजना और 24 घंटे चलने वाली ख़बरों के लिए प्रायोजकों की खोज करना इन दोनों ने मीडिया के आचार और विचार दोनों को प्रभावित किया है. खबरें लाना और प्रायोजक ढूंढ़ना ही मुख्य कार्य हो गया जिससे ख़बरों की गुणवत्ता और कौन सी ख़बर महत्वपूर्ण हैं इस विमर्श को कमजोर किया. क्योंकि खबर की जगह प्रायोजक महत्वपूर्ण बन गया अतः वही ख़बर दिखाना मजबूरी बन गया, जिसे प्रायोजक मिले. इसने कई और घटकों को ख़बरों को निर्धारित करने में सहायता की.
मीडिया के विकास के अगले सोपान में ई-मीडिया सोशल मीडिया का आगमन हुआ जिसमें खबरें अब ट्विटर और फेसबुक पर ज्यादा तेजी से आने लगी. हर वह समूह जो चाहे प्रिंट में था या इलेक्ट्रानिक मीडिया में अब वह अपना ई-पोर्टल लाने लगा. ख़बरों की आवृत्ति यहां और तेज थी और उनकी विश्वसनीयता उतनी ही कम.
इन सबने नए समूहों को जन्म दिया वो समूह जो लम्बे अरसे से ख़बरों के निर्धारण और उसकी व्याख्या से जुड़े थे उनको नए लोगों से चुनौती मिली. प्रारम्भिक दौर का संघर्ष अच्छा पत्रकार बनाम ख़राब पत्रकार था जो अब कौन वास्तव में पत्रकार हैं और कौन पत्रकार नहीं हैं इस पर आ गया हैं.
पहले खबरों को लोगों तक पहुंचाने वालों को पत्रकार माना जाता था अब पत्रकार मानने की प्रक्रिया कौन सी खबर कौन पहुंचा रहा हैं इससे निर्धारित होने लगी हैं. अर्नब जब एक प्रकार की खबर दिखाते थे तो वह पत्रकार थे मगर जबसे उनके ख़बरों को प्रस्तुत करने का दृष्टिकोण बदला उनसे लोग पत्रकारिता का प्रमाणपत्र वापस लेने लगे. ऐसा ही राहुल कंवल के साथ हुआ जब उन्होंने जेएनयू पर रिपोर्ट की तो वह एक वर्ग के लिए पत्रकार थे मगर जब उन्होंने तब्लीगी जमात पर रिपोर्ट की तो लोग उनसे पत्रकारिता का प्रमाणपत्र वापस मांगने लगे.
जो दूसरों को प्रमाणपत्र दे रहे हैं या ले रहे हैं ऐसा नहीं की उनका अपना रिकार्ड ठीक हैं, मगर यह प्रक्रिया चल रही है. लोग दूसरों को अपने से कमतर या नकली पत्रकार सिद्ध करने में लगे हैं. इस पूरे विमर्श से एक बात तो स्पष्ट है की आज का मीडिया अनेक समूहों में विभाजित हैं, वह विभिन्न मुद्दों पर एक राय नहीं हैं अपितु पत्रकार और पत्रकारिता के मापदंडों पर भी नहीं.
यह एक तरह से स्वयं मीडिया के लिए भी ठीक हैं क्योंकि सोशल मीडिया के आगमन के कारण आम लोगों की सक्रियता मीडिया को लेकर बढ़ी हैं जिसके कारण काफी संख्या में नए लोग इस क्षेत्र में आए हैं. ये लोग मीडिया के कार्य और उसकी कार्य प्रणाली दोनों को बदल रहे हैं जिसके कारण बहुत सारे प्रचलित मापदंडों की मान्यता में बदलाव आया हैं.
तीनों घटनाएं मीडिया के विभिन्न रूपों और उनकी विभिन्न कार्यशैलियों को बताती हैं की कैसे मीडिया के समूह किसी घटना का आकलन और उसका प्रस्तुतीकरण करते हैं. तीनों घटनाओं की अलग-अलग व्याख्या मीडिया के स्वयं के द्वंद्व को व्यक्त करती हैं. ये घटनाएं यह भी बताती हैं की वास्तव में मीडिया का एकाधिकार वाला युग समाप्त हो गया हैं अब नए नए घटक अपने हिसाब से ख़बरों और सत्य की व्याख्या कर रहे हैं. निःसंदेह इससे कुछ उथल-पुथल हो रही हैं मगर यह इस क्षेत्र और मीडिया क्षेत्र में लोकतंत्र निर्माण के लिए अत्यंत आवश्यक है.
(लेखक सेंटर ऑफ पॉलिसी रीसर्च एंड गवर्नेंस से जुड़े हैं)
Also Read
-
Two years on, ‘peace’ in Gaza is at the price of dignity and freedom
-
4 ml of poison, four times a day: Inside the Coldrif tragedy that claimed 17 children
-
Delhi shut its thermal plants, but chokes from neighbouring ones
-
Hafta x South Central feat. Josy Joseph: A crossover episode on the future of media
-
Encroachment menace in Bengaluru locality leaves pavements unusable for pedestrians