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कोरोना वायरस पर हुई हालिया रिसर्च से हमने क्या सीखा

संक्रमण

कोरोना वायरस का संक्रमण मुख्य रूप से खांसने या छींकने से मुंह से निकली थूक की बूंदों से या किसी सतह पर पड़ी हुई बूंदों से फैलता है. ऐसा भी पाया गया है कि यह वायरस मल में भी मौजूद हो सकता है. इस वायरस के नमूनों की सफाई के बाद किये गए परिक्षण से ऐसा पता चलता है इस वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए किये जा रहे प्रयास काफी हैं.

एक हालिया अध्ययन के मुताबिक ऐसा भी हो सकता है कि कोविड-19 संक्रमण के लक्षण दिखाई ही न दें. 14 प्रतिशत लोगों में इस संक्रमण के लक्षण कभी दिखे ही नहीं. इसका मतलब यह है कि कोविड-19 की जांच और इसकी रोकथाम के लिए किये जाने वाले प्रयासों, खासकर तब जब सोशल डिस्टेन्सिंग कम हो जाये, के दौरान हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि इसके लक्षण दिखाई नहीं देते. इसे चिकित्सा विज्ञान की भाषा में नॉन सिम्टोमैटिक बीमारी कहते हैं.

जांच

रैपिड टेस्ट में शरीर द्वारा उत्पन्न किये गए एंटीबाडी, जो कि कोविड-19 से लड़ने में सहायक होता है, को नापता है. इसके परिणाम आधे घंटे में आ जाते हैं. इस टेस्ट में संक्रमण के पॉजिटिव परिणाम सात से दस दिनों में आते हैं. जहां परिणाम पॉज़िटिव आने पर संक्रमण होने की पुष्टि हो जाती है वहीं अगर परिणाम निगेटिव आये तो भी कोरोना वायरस संक्रमण से इंकार नहीं किया जा सकता है.

पीसीआर या पॉलिमरेज़ चेन रिएक्शन, टेस्ट वायरल कणों के भार को नापता है. इसमें वायरस की अनुवांशिक सामग्री की जांच होती है. इसके परिणाम छः से आठ घंटे में आ जाते हैं. फ़िलहाल, भारत में कुल 135 पीसीआर परिक्षण केंद्र मौजूद हैं.

इलाज

अभी इसका कोई इलाज नहीं है.

डब्ल्यूएचओ ने कोरोना वायरस के लिए चार भरोसेमंद उपचारों पर वैश्विक मेगा परिक्षण, या कहें कि सॉलिडेरिटी ट्रायल, शुरू कर दिया है: रेमडेसिविर, एक प्रायोगिक एंटी वायरल कंपाउंड है.

क्लोरोक्वीन और हाइड्रोऑक्सीक्लोरोक्वीन, जो मलेरिया की दवाएं हैं. 23 मार्च को भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने एक एडवाइजरी जारी की जिसमें कहा गया कि ऐसे लोग जो कि कोरोना वायरस संक्रमण से पीड़ित हैं वो हाइड्रोऑक्सीक्लोरोक्वीन दवा का उपयोग कर सकते हैं. हालांकि अभी तक इस तथ्य का स्थापित करने के लिए कोई पुख्ता सबूत नहीं है.

लोपिनवीर और रिटोनवीर, हाल ही में हुए एक परीक्षण में पाया गया कि ये दो एचआईवी ड्रग्स बेहद गंभीर कोविड-19 संक्रमण वाले रोगियों को "सिर्फ देखभाल के अलावा कोई लाभ नहीं" देता है.

लोपिनवीर, रिटोनवीर और इंटरफेरॉन बीटा

सॉलिडेरिटी ट्रायल को जिस हिसाब से डिज़ाइन किया गया है वो डबल-ब्लाइंड, चिकित्सीय शोध में सबसे अच्छे मानक के हिसाब से नहीं है इसलिए इसका प्रभाव मरीजों पर प्रायोगिक हो सकता है लेकिन डब्ल्यूएचओ का कहना है कि इसे इस वायरस की गति के खिलाफ वैज्ञानिक कठोरता को संतुलित करना चाहिए.

कोरोनावायरस के उपचार के लिए 44 टीकों पर शोध प्रारंभिक चरण में है.

कोरोनावायरस से संबंधित और क्या जानकारी हमें होनी चाहिए?

कुछ ऐसी भी रिपोर्ट आयीं हैं कि कोविड-19 से संक्रमित लोगों में गंध और स्वाद महसूस करने की शक्ति नहीं रह जाती है. लेकिन कोविड-19 की स्क्रीनिंग के लिए इन लक्षणों को आवृति, शुरुआत और अवधि के बारे में ज्यादा जानकारी की जरूरत है.

बुजुर्गों के लिए बनाये गए सुविधा सेंटर या नर्सिंग होम सांस संबंधित रोगों के प्रकोप की चपेट में हैं क्योंकि वहां ये तेजी से और व्यापक रूप से फैल सकते हैं.

लेबर और डिलिवरी संबंधित सेवाओं से जुड़े लोगों को जरूरी रूप से संक्रमण नियंत्रण के उपाय अपनाने चाहिए और उन शिशुओं की कड़ाई से निगरानी होनी चाहिए जिनका जन्म कोरोना वायरस से संक्रमित महिला से हुआ है.

रोग मॉडलिंग विज्ञान उपलब्ध डाटा और मान्यताओं पर आधारित होता है. कोई भी देशव्यापी निर्णय लेने से पहले हर मॉडल की समीक्षा की जानी चाहिए. भारत के लिए उपलब्ध रोग मॉडल हैं:

सीडीडीईपी और जॉन हॉपकिंस मॉडल:

इन्होंने राष्ट्रीय अनुमान के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, दिल्ली, केरल, महाराष्ट्र और तेलंगाना के लिए प्रादेशिक अनुमान दिया है. इसमें तीन परिदृश्य बताये गए हैं- उच्च, मध्यम (जिसकी सबसे अधिक संभावना है) और निम्न (आशावादी). यह मॉडल सेंटर फॉर डिजीज डायनामिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पालिसी की वेबसाइट पर प्रकाशित किया गया है लेकिन यह प्रकाशित पेपर नहीं है जिसकी गहराई से समीक्षा की गई हो. इस मॉडल में भविष्यवाणी की गई है कि बिना किसी राष्ट्रीय हस्तक्षेप के जुलाई तक 30 से 40 करोड़ भारतीय इससे संक्रमित होंगे. इस मॉडल में ऐसी भविष्यवाणी भी की गई है कि अप्रैल और मई के बीच संक्रमित लोगों की संख्या भयानक रूप से बढ़ेगी जिसमें 10 करोड़ लोग संक्रमित होंगे जिनमें से 1 करोड़ लोगों में गंभीर लक्षण दिखेंगे जबकि 2-4 करोड़ लोग अस्पताल में भर्ती होंगे. व्यापक सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेन्सिंग) से इस भयानक संख्या को 75 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है. हालांकि इसको लागू करना और सुनिश्चित करना एक चुनौती होगी.

कैंब्रिज मॉडल:

इस मॉडल में भारत, चीन और इटली में मृत्यु-दर का आंकलन करने के लिए आयु और आबादी में इसके फैलने के पैटर्न की तुलना की जा रही है. यह रिपोर्ट पहले से ही प्रकाशित है और इसकी भी समीक्षा गहराई से नहीं की गई है. आयु और वायरस के फैलने के पैटर्न का विश्लेषण करके इस रिपोर्ट को बनाने वालों ने बताया कि घर, कार्यालय और स्कूल इस संक्रमण के फैलने के मुख्य केंद्र हैं. इनका निष्कर्ष है कि तीन हफ्ते का लॉकडाउन इसको रोकने के लिए पर्याप्त नहीं है. इनका सुझाव है कि निरंतर अवधि का लॉकडाउन होना चाहिए जिसमें बीच-बीच में कुछ राहत देनी चाहिए ताकि केस लोड कम हो सके.

आईसीएमआर मॉडल:

इसका पूरा पेपर इंडियन जर्नल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च की वेबसाइट से लिया गया है. इसके सार में इस मॉडल के या इसके नतीजों के बारे में विस्तृत जानकारी नहीं है. हालांकि यह कहता है कि देश में प्रवेश करने वाली जगहों पर होने वाली स्क्रीनिंग से इस वायरस का कम्युनिटी ट्रांसफर कुछ देर के लिए सिर्फ टाला जा सकता है. जब ऐसा होता है तो जिस व्यक्ति में रोग के लक्षण मिले हैं उसको क्वारंटाइन करके इस बीमारी को कम किया जा सकता है. आईसीएमआर और स्वास्थ्य मंत्रालय, हालांकि, अभी भी यही बोल रहे हैं कि भारत में कोरोनावायरस का कम्युनिटी ट्रांसफर अभी नहीं हो रहा है.

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