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आइंस्टीन ने हमेशा गांधी की तारीफ नहीं की
अल्बर्ट आइंस्टीन महात्मा गांधी और उनके अहिंसा के सिद्धांत के बड़े प्रशंसक थे. वह महात्मा गांधी की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए नहीं थकते थे. अपने तमाम साक्षात्कारों और वक्तव्यों में वह महात्मा गांधी की प्रशंसा करते हुए दिखते हैं. गांधी के सत्तरवें जन्मदिन पर सन 1939 में अल्बर्ट आइंस्टीन ने एक वक्तव्य जारी किया था जिसका एक अंश यहां प्रस्तुत है-
“अपने लोगों का एक नेता, किसी भी बाह्य ताकत के द्वारा असमर्थित, एक राजनीतिज्ञ जिसकी सफ़लता तकनीकी उपकरणों और कलाबाजी पर निर्भर नहीं हैं, बल्कि उसके व्यक्तित्व की विश्वस्यनीय क्षमता पर निर्भर है. एक विजयी योद्धा जिसने ताकत के इस्तेमाल से हमेशा नफरत की है. एक बुद्धिमान और विनम्र इंसान, जो सुलझी हुई और अटल बारंबारता के साथ काम करता है, जिसने अपनी सारी ऊर्जा को अपने लोगों के उत्थान में और उनकी सर्वस्व की भलाई के लिए समर्पित कर दिया है, एक इंसान जिसने यूरोप की क्रूरतापूर्ण निर्दयता का साधारण मानव की गरिमा से डटकर सामना किया है, और इस तरह हमेशा उच्चता और उत्कृष्टटा के साथ उभरा है.आने वाली पीढ़ियों, बहुत संभव है कि यह बहुत मुश्किल से विश्वास करेंगीं कि इस तरह के किसी मांस और खून वाले ने कभी धरती पर चहलकदमी की होगी.”
(From ‘Einstein on Humanism, Einstein Archives 32-601)
सन 1950 में आइंस्टीन को भारतीय मूल के अमेरिकी पत्रकार ने पत्र लिखकर पूछा था कि हाइड्रोजन बम का विरोध करते हुए आइंस्टीन क्यों नहीं गांधी की तरह आमरण अनशन पर बैठ जाते? उस प्रश्न का जवाब आइन्स्टीन ने 24 मार्च, 1950 को एक पत्र लिखकर दिया था जिसका प्रमुख अंश यह है-
“मैं यह बहुत अच्छी तरह से समझ सकता हूं कि आपने अपने हालिया पत्र में जो सलाह दी है वह आपके लिए स्वाभाविक है क्योंकि आप भारतीय मानसिकता के लोगों के बीच रह रहे हैं. लेकिन अमेरिकी लोगों की मानसिकता को देखते हुए, मुझे अच्छी तरह से यकीन है कि जिस क्रिया की आप सलाह दे रहे हैं उसका वैसा परिणाम नहीं आएगा जैसा कि यहां उम्मीद की जा रही है. इसके विपरीत यह यहां अक्षम्य अभिमान की अभिव्यक्ति माना जायेगा. इसका मतलब यह नहीं है मेरे अन्दर गांधी और सामान्य रूप से भारतीय परम्परा के लिए के लिए महानतम प्रशंसा का भाव नहीं है. मैं महसूस करता हूं कि अंतरराष्ट्रीय मामलों में भारत का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है और यह लाभदायक भी सिद्ध होगा. मैंने गांधी और नेहरू की किताबों को वास्तविक सराहना के साथ पढ़ा है. अमेरिकी-रूसी टकराव में भारत की कठोर रूप से तटस्थ रहने की योजना, शांति की समस्या के समाधान की दिशा में राष्ट्रों के स्तर से ऊपर उठकर सोचे गए समाधान को प्राप्त करने में तटस्थ देशों के संगठित प्रयास का नेतृत्व करेगी|”
(From ‘Einstein on Peace: by Nathan and Norden, 1968, page 525)
आइंस्टीन सिर्फ गांधी की तारीफ ही नहीं करते, असहमितयां होने पर वह उनकी आलोचना भी करते हैं. इसके अलावा अलबर्ट आइंस्टीन ने गांधी के विचारों पर “सर्वे ग्राफिक” को दिए गए एक और साक्षात्कार में कहा था –
“मैं गांधी का बहुत बड़ा प्रशंसक हूं, लेकिन मुझे विश्वास है कि उनके विचारों की दो कमजोरियां हैं. असहयोग या अविरोध कठोरताओं से संघर्ष करने का एक बुद्धिमत्तापूर्ण तरीका है मगर ऐसा केवल आदर्श परिस्थितियों में ही किया जा सकता है. आज के समय में यह नाजी पार्टी के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. इसके बाद गांधी आज के आधुनिक सभ्यता के समय में मशीनों का उन्मूलन करने के प्रयास करके एक और गलती करते हैं.”
इसके बावजूद वह गांधी और उनके सिद्धांतों को प्रासंगिक और ज़रूरी बताते हैं. कुछ ही समय बाद 16 जून, सन 1950 में संयुक्त राष्ट्र रेडियो को दिए गए एक साक्षात्कार में आइंस्टीन ने कहा था –
“मुझे विश्वास है की गांधी के विचार हमारे समय के सभी राजनीतिज्ञों से श्रेष्ठ थे. हमें उनके विचारों के अनुरूप कार्य करने के प्रयास करने चाहिए. अपने किसी भी कार्य के लिए संघर्ष करते हुए हमें हिंसा से बचते हुए, जो हमें गलत लगता है उसमें शामिल नहीं होना चाहिए.”
अल्बर्ट आइंस्टीन महात्मा गांधी के आजीवन प्रशंसक रहे. जब भी युद्धों से निजात पाने की दिशा में चर्चा होती थी वह हमेशा अहिंसा और गांधी जी का ज़िक्र करते थे. अल्बर्ट आइंस्टीन की विचारधारा पर गांधी जी और अहिंसा का काफ़ी प्रभाव रहा. सन 1950 में एक रिकार्डेड ऑडियो में अल्बर्ट आइंस्टीन ने गांधी के बारे में कहा था, “मुझे भरोसा है कि हमारे समय के सभी राजनैतिक महापुरुषों में महात्मा गांधी के विचार सबसे विद्वत्तापूर्ण हैं.”
यह द्वितीय विश्वयुद्ध के काफ़ी पहले का समय था और गांधी की छवि भारत में एक सशक्त राजनैतिक ताकत के रूप में बन चुकी थी, मगर वैश्विक तौर पर अब भी उन्हें बहुत ख्याति नहीं मिली थी. सन 1931 में जब गांधी जी के मित्र सुन्दरम आइंस्टीन के घर पहुंचे तो उन्होंने गांधी जी के नाम एक संक्षिप्त पत्र लिखा. –
आदरणीय गांधी जी,
इन पंक्तियों को आप तक पहुंचाने के लिये मैं आपके मित्र का सहारा ले रहा हूं जो अभी मेरे घर में उपस्थित हैं. आपने अपने कार्यों के ज़रिये यह प्रदर्शित किया है कि हिंसा के बिना भी सफलता हासिल कर पाना संभव है, यहां तक कि उन लोगों के साथ काम करते हुये भी, जिन्होंने हिंसा के माध्यम का त्याग नहीं किया हो. मुझे आशा है कि आपका उदाहरण आपके देश की सीमाओं के पार भी पहुंचेगा, और ऐसी अंतरराष्ट्रीय शक्ति बनाने में सहायक होगा जिसका सभी सम्मान करेंगे, जो युद्धों-विवादों को खत्म करने सम्बन्धी निर्णय लेगी.
सच्चे आदर सहित,
आपका
(अल्बर्ट आइंस्टीन )
आशा है, आपसे कभी आमने-सामने मुलाकात होगी.
गांधी जी ने आइंस्टीन को यह जवाब दिया था –
लन्दन
अक्टूबर 18, 1931
प्रिय मित्र,
सुन्दरम के हाथों आपका खूबसुरत पत्र पाकर मुझे खुशी हुई. मेरे लिये यह बहुत तसल्ली की बात है कि मेरे काम को आपका समर्थन मिला है. वास्तव में मैं भी चाहता हूँ कि हम लोग कभी आमने-सामने मिलें, वह भी मेरे भारत वाले आश्रम में.
भवदीय
(मो.क.गांधी .)
आइंस्टीन और गांधी अपने जीवन काल में कभी नहीं मिले. टैगोर और आइंस्टीन की जब मुलाक़ात हुई थी तो उन्होंने आपस में तमाम विषयों पर बातचीत की थी जो कि बहुत चर्चित भी है और उत्कृष्ट भी. काश! गांधी और आइंस्टीन कभी मिलते तो तमाम विषयों पर विशेष रूप से अहिंसा और शांति पर बेहतरीन वार्तालाप जरूर होता.
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