Report
चुनाव आयोग मुख्यालय के पास कड़े प्रतिबंध, पत्रकारों ने कहा- मीडिया कवरेज को सीमित करने की कोशिश
भारत निर्वाचन आयोग का मुख्यालय अब पत्रकारों के लिए पहले जैसा नहीं रहा. दिल्ली के अशोका रोड पर स्थित इस इमारत के बाहर अब भारी बैरिकेडिंग कर दी गई है. जहां पहले मीडिया के कैमरे और रिपोर्टर नियमित रूप से खड़े होकर आयोग की हलचलों को कैद करते थे, वहां अब पत्रकारों का खड़ा होना मना है. हालात ऐसे हैं कि इमारत के सामने तो दूर, सड़क पार से भी वीडियो या तस्वीर लेने पर कड़ी मनाही है.
सोमवार, 3 नवंबर को जब हमने आयोग के बाहर से एक सामान्य विजुअल लेने की कोशिश की तो एक पुलिसकर्मी दौड़ता हुआ आया और वीडियो बनाने के लिए मना करते हुए कैमरा बंद करने को कहा. जब मैंने अपना प्रेस कार्ड दिखाया और कहा कि मैं सिर्फ एक तस्वीर ले रहा हूं, वीडियो नहीं बना रहा तो उसने साफ शब्दों में कहा, “यहां किसी को भी शूटिंग की अनुमति नहीं है.”
वहीं, आयोग की बिल्डिंग के दूसरे कोने पर जब एक अन्य तस्वीर लेने की कोशिश की, जो कि मेन गेट से दूर है, वहां भी मौजूद पुलिसकर्मियों ने टोकते हुए फोटो लेने के लिए मना कर दिया. इमारत की निगरानी में लगे इन सुरक्षाकर्मियों के बर्ताव पर हमने चुनाव आयोग को बीट के तौर पर कवर करने वाले पत्रकारों से बात की तो उन्होंने हमें विस्तार से समझाते हुए पूरी कहानी बताई.
दिल्ली में चुनाव आयोग की कवरेज करने वाले कई पत्रकारों का कहना है कि ऐसा पहले नहीं था. “पहले हम चुनाव आयोग मुख्यालय के बाहर से लाइव रिपोर्टिंग करते थे, नेताओं के आने-जाने की फुटेज लेते थे, लेकिन अब सब कुछ बंद है,” एक टीवी चैनल के रिपोर्टर ने कहा, “यह पाबंदी दो तीन महीने पहले ही लगी है. अब हमें, निर्वाचन आयोग की बिल्डिंग से दूर पंजाब नेशनल बैंक की तरफ खड़ा होना पड़ता है.”
पत्रकारों का कहना है कि यह सिर्फ “सुरक्षा व्यवस्था” का मामला नहीं है बल्कि मीडिया कवरेज को सीमित करने की कोशिश है. एक सीनियर प्रिंट रिपोर्टर के मुताबिक, “जब आप आयोग के बाहर खड़े नहीं हो सकते, तो यह जानना भी मुश्किल हो जाता है कि कौन नेता या अफसर अंदर आ रहा है या बाहर जा रहा है. यह पारदर्शिता पर असर डालता है.”
कुछ पत्रकारों ने इस बारे में मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार से भी शिकायत की हालांकि, उन्होंने "देखते हैं" कहकर मामले को टाल दिया.
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने क्या कहा
इस पूरे मसले पर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी कहते हैं, "यह बेहद ही सप्राइज़िंग और शॉकिंग है… अगर आप एक्सेसेबल (पहुंच में) नहीं हो और आपका वर्ज़न (पक्ष) नहीं दे रहे हो तो डॉन्ट ब्लेम दा प्रेस. (प्रेस को मत कोसिए) "
कुरैशी बताते हैं कि उनके कार्यकाल में डीपीआईओ ही सभी प्रेस कॉन्फ्रेंस, प्रेस मीटिंग और प्रेस ब्रीफिंग का आयोजन करते थे. छोटी बड़ी हर किस्म की. हमने सब डीपीआईओ पर छोड़ा था और कभी कोई शिकायत नहीं आई."
पत्रकारों ने क्या कहा
एक टीवी चैनल के पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर बात की. वो कहते हैं कि इस मसले को लेकर वह खुद तीन बार चुनाव आयोग (ईसी) से बात कर चुके हैं. उनका कहना है, “जब भी मैं कुछ रिकॉर्ड करने के लिए चुनाव आयोग मुख्यालय जाता हूं तो वहां मौजूद सुरक्षाकर्मी मुझे ऐसा करने से मना कर देते हैं. इस बारे में हमने कई बार आवाज उठाई है. मैंने खुद मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार से कहा था कि हमें कवरेज करने में दिक्कत हो रही है तो उन्होंने जवाब दिया कि यह सुरक्षा कारणों से किया गया है. कुछ हो सकता है तो हम देखेंगे.”
वह आगे बताते हैं, “शुरुआत में यह व्यवस्था अस्थाई रूप से लागू की गई थी, लेकिन अब इसे पूरी तरह परमानेंट कर दिया गया है. एक बार हम कई पत्रकार एक साथ चुनाव आयुक्त से मिले भी थे और कहा था कि ऐसा नहीं होना चाहिए. हमें पीटूसी रिकॉर्ड करने में दिक्कत हो रही है, क्योंकि बैकग्राउंड में चुनाव आयोग की बिल्डिंग या बोर्ड दिखना जरूरी होता है. लेकिन उस पर उन्होंने सिर्फ इतना कहा ठीक है, मैं देखता हूं. इस बात को दो-तीन महीने हो चुके हैं, पर अभी तक कुछ नहीं हुआ.”
एक अन्य पीआईबी कार्ड धारक पत्रकार का कहना है, “हमारे पास पीआईबी कार्ड होने का मतलब यह नहीं है कि हम जब चाहें अंदर जा सकते हैं. जब तक अंदर से बुलावा नहीं आता गेट पर मौजूद सुरक्षाकर्मी अंदर नहीं जाने देते. चाहे पत्रकार के पास पीआईबी कार्ड हो या वह किसी चैनल का बीट रिपोर्टर हो फर्क नहीं पड़ता. अंदर तभी जा सकते हैं जब वहां से अनुमति मिले.”
वे आगे जोड़ते हैं, “फोटो और वीडियो शूट करने पर पूरी तरह पाबंदी है. एक दिन टीवी9 के रिपोर्टर ने दूर से जूम करके तस्वीरें लेने की कोशिश की थी लेकिन उन्हें भी तुरंत रोक दिया गया.”
वह याद करते हैं, “जब संसद सत्र के दौरान कांग्रेस ने विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया था, तभी से यहां बैरिकेडिंग की गई है.”
करीब दो दशकों से पत्रकारिता कर रहे एक वरिष्ठ वीडियो पत्रकार कहते हैं कि पहले हम कार्यालय के अंदर आसानी से चले जाते थे लेकिन अब ऐसा नहीं है. अब पीआईबी होल्डर हों या बीट रिपोर्टर बिना परमीशन के किसी को एंट्री नहीं है. पहले हम गेट के बाहर विजुअल और वीडियो लेते थे, कुछ भी होता था तो लोगों से भी यहीं बात करते थे, वो भी खुशी-खुशी यही बाइट देते थे लेकिन यह अब सब बंद हो गया है. अब तो ये लोग कैमरा और मोबाइल छीनने पर उतारू हैं, अगर हमने कुछ भी जबरदस्ती फोटो या वीडियो लेने की कोशिश की.
बीते दिनों चुनाव आयोग ने कांग्रेस के आरोपों पर प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी उसे लेकर अटकलें लगाई गई थी की ज्यादातर मीडिया संस्थानों के रिपोर्टर को सवाल पहले से भेजे गए थे. यह भी चुनाव आयोग के नज़रिये से एकदम नई बात थी.
चुनाव आयोग ने क्या कहा
इस पूरे मुद्दे पर चुनाव आयोग का पक्ष जानने के लिए हमने आयोग के पीआरओ आशीष गोयल से संपर्क किया. जब उनसे आयोग के दफ्तर के बाहर की गई बैरिकेडिंग और पत्रकारों की एंट्री पर लगी पाबंदी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने संक्षेप में कहा, “जो है वही चल रहा है.”
जब उनसे यह सवाल किया गया कि पहले ऐसा नहीं हुआ करता था, अब क्यों हो रहा है? मुझे भी वहां फोटो नहीं लेने दिया गया. इस पर उन्होंने जवाब दिया, “हां, वहां, धारा 144 लगी हुई है, इसलिए ऐसा हो रहा है. हालांकि, यह व्यवस्था मेरे यहां आने से पहले की है. मुझे यहां तीन-चार महीने हुए हैं. इसका कोई खास कारण नहीं है. ऐसी कोई रोक भी नहीं है, लोग आते-जाते रहते हैं और हमसे मिलते रहते हैं. पत्रकार अब थोड़ा साइड में जाकर बाइट ले लेते हैं.”
हमने आशीष के दावे को समझने के लिए दिल्ली पुलिस के एडिशनल डीसीपी (न्यू दिल्ली रेंज) आनंद मिश्रा से बात की. उन्होंने बताया कि एसीपी अपने अपने लेवल पर अपने इलाके में आदेश जारी करते हैं. यह आदेश दो महीने के लिए होता है, इसके बाद जैसे ही दो महीने होते हैं फिर से ऑर्डर इश्यू कर देते हैं. ऐसे ही चुनाव आयोग का कार्यालय पार्लियामेंट स्ट्रीट के इलाके में आता है तो वहां पर एसीपी पार्लियामेंट स्ट्रीट के ऑर्डर को फॉलो किया जाएगा. अभी ये अक्तूबर में हुआ था, अब दिसंबर इसे फिर से रीन्यू कर दिया जाएगा. इसे वीआईपी मूवमेंट या फिर ट्रैफिक रेग्युलेशन के पाइंट ऑफ व्यू से किया जाता है.
मिश्रा आगे कहते हैं, “अब चुनाव आयोग ने पत्रकारों के लिए जगह निर्धारित कर दी है. वह भी चुनाव आयोग के दफ्तर के पास ही है.”
क्या इस भारी बैरिकेटिंग के लिए आपको चुनाव आयोग की ओर से ऐसा करने के लिए कहा गया था? इस सवाल पर वे कहते हैं कि इसकी जानकारी मुझे नहीं है. डीसीपी से पता कीजिएगा. अधिकारिक तौर पर वही बता सकते हैं. हमने डीसीपी से संपर्क किया लेकिन कॉल का जवाब नहीं मिला.
यह सवाल जस का तस है कि चुनाव आयोग मुख्यालय के बाहर मीडिया पर कथित रोकटोक किसके कहने पर लगाया गई है. क्या यह सिर्फ पत्रकारों को रोकने के लिए है या फिर इसके और भी कारण है. पत्रकारों के अपने दावे हैं और चुनाव आयोग के अपने तर्क पर असल वजह सामने नहीं आई है.
सुरक्षा कारणों से हमने इस रिपोर्ट में पत्रकारों के नाम का खुलासा नहीं है.
क्या मीडिया सत्ता या कॉर्पोरेट हितों के बजाय जनता के हित में काम कर सकता है? बिल्कुल कर सकता है, लेकिन तभी जब वह धन के लिए सत्ता या कॉरपोरेट स्रोतों के बजाय जनता पर निर्भर हो. इसका अर्थ है कि आपको खड़े होना पड़ेगा और खबरों को आज़ाद रखने के लिए थोड़ा खर्च करना होगा. सब्सक्राइब करें.
Also Read
-
Hafta X South Central: Highs & lows of media in 2025, influencers in news, Arnab’s ‘turnaround’
-
TV Newsance 2025 rewind | BTS bloopers, favourite snippets and Roenka awards prep
-
Is India’s environment minister lying about the new definition of the Aravallis?
-
How we broke the voter roll story before it became a national conversation
-
BJP got Rs 6000 cr donations in a year: Who gave and why?