हवा का हक़
दिल्ली: वायु प्रदूषण पर दिल्ली सरकार का दोहरा चरित्र और खुलेआम बिकते पटाखे
एक तरफ दिल्ली सरकार करीब 800 करोड़ रुपये खर्च करके राजधानी में प्रदूषण को नियंत्रित और कम करने का दावा कर रही है तो दूसरी तरफ पटाखे जलाने का समर्थन करके उसी प्रदूषण में इजाफे को भी निमंत्रण दे रही है.
सरकार का तर्क है कि दिवाली के दौरान सिर्फ ग्रीन पटाखे ही जलाने होंगे. जिससे कि पारंपरिक पटाखों के मुकाबले करीब 30 फीसदी कम प्रदूषण हो.
दरअसल, केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार की मांग को ध्यान में रखते हुए बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में कुछ शर्तों के साथ दिवाली के दौरान ग्रीन पटाखे जलने की अनुमति दे दी है. कोर्ट ने कहा कि दिल्ली में ग्रीन पटाखे 18 से 21 अक्टूबर तक जलाए जा सकते हैं. जबकि ग्रीन पटाखे की बिक्री की अनुमति 18 से 20 अक्टूबर तक रहेगी. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि बाजार में सिर्फ ग्रीन पटाखे बिकें इसके लिए पुलिस लगातार पैट्रोलिंग और जांच करेगी. वहीं, जिन पटाखों पर नीरी और पेसा का क्यूआर कोड लगा होगा सिर्फ वही पटाखे बेचे जा सकेंगे.
हालांकि, हमने इस आदेश से पहले जब 14 अक्टूबर और 15 अक्टूबर को दिल्ली के सदर बाजार का दौरा किया तो सच्चाई कुछ अलग ही नजर आई. यहां पर खुले तौर पर पटाखे बेचे और खरीदे जा रहे हैं. साथ ही ये पटाखे ग्रीन श्रेणी वाले नहीं है. यह पारंपरिक पटाखे हैं. जिसमें कि हर तरह के पटाखे उपलब्ध हैं. जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 18 से लेकर 20 अक्टूबर तक सिर्फ ग्रीन पटाखों के बेचने की ही अनुमति दी है.
हमने जब पटाखे खरीदने वाले लोगों से पूछा कि वह प्रदूषण के बावजूद दिल्ली में पटाखे क्यों जलाना चाहते हैं तो उनका जवाब बस इतना था कि यह हमारे त्योहार का हिस्सा है और इसके बिना हम दिवाली नहीं मना सकते. अगर इसे थोड़ा बहुत प्रदूषण बढ़ता भी है तो कोई समस्या नहीं है.
गौरतलब है कि दिल्ली में प्रदूषण एक बड़ी समस्या है और इसमें भी सबसे खतरनाक है वायु प्रदूषण. हाल में आई एक रिसर्च के मुताबिक अगर आप दिल्ली में रहते हैं और यहां की हवा में सांस लेते हैं तो आपकी उम्र लगभग 8 वर्ष काम हो सकती है.
इसके साथ ही हमने सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली सरकार के इस फैसले पर विशेषज्ञों से भी बात की. देखिए हमारी ये ग्राउंड रिपोर्ट.
त्यौहार हमें याद दिलाते हैं कि अंधेरा कितना ही गहरा हो प्रकाश एक किरण ही उजाला फैला देती है, छल का बल हमेशा नहीं रहता और आशा की जीत होती है. न्यूज़लॉन्ड्री और द न्यूज़ मिनट को सब्स्क्राइब कीजिए ताकि स्वतंत्र पत्रकारिता का ये दीया जलता रहे. हमारे दिवाली ऑफर का लाभ उठाने के लिए यहां क्लिक करें.
Also Read
-
NDA claims vs Bihar women’s reality: Away from capital, many still wait for toilet, college, and a chance
-
We already have ‘Make in India’. Do we need ‘Design in India’?
-
Skills, doles, poll promises, and representation: What matters to women voters in Bihar?
-
Not just freebies. It was Zohran Mamdani’s moral pull that made the young campaign for him
-
‘Not everyone can afford air purifiers’: Delhi protest seeks answers on air crisis