Khabar Baazi
अयोध्या फैसले पर डीवाई चंद्रचूड़ की दलील: असली बेअदबी तो उस जगह मस्जिद का निर्माण था
पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने न्यूज़लॉन्ड्री को दिए गए एक इंटरव्यू में उन तमाम फैसलों की सफाई दी है जो उनके कार्यकाल में दिए गए. इनमें से कुछ फैसले बेहद विवादित मुद्दों पर आदारित थे, जिनसे एक पक्ष में आज भी असहमति देखी जाती है. जस्टिस चंद्रचूड़ की दलीलें एक और नए विवाद का कारण बनती दिख रही हैं.
अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद-राम मंदिर विवाद का निर्णय हिंदूओं के पक्ष में देने के सवाल पर सफाई देते हुए चंद्रचूड़ ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट का फैसला “आस्था नहीं बल्कि सबूतों” पर आधारित था. वरिष्ठ पत्रकार श्रीनिवासन जैन ने जब उनसे पूछा कि 1949 में बाबरी मस्जिद में रामलला की मूर्ति अवैध तरीके से रखी गई. यह बात हिंदू पक्ष के खिलाफ क्यों नहीं गई? तब चंद्रचूड़ ने कहा कि इसकी शुरुआत और पहले से होती है. क्योंकि पहले पहल उस जगह पर मस्जिद का निर्माण “असल में उस स्थान को अपवित्र करना” था. जबकि अदालत के सामूहिक फैसले में यह कहा गया है कि किसी मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाए जाने का कोई प्रत्यक्ष पुरातात्विक प्रमाण नहीं है.
जैन ने चंद्रूचूड़ से पूछा कि मस्जिद के नीचे स्थित ढांचे के गिरने के तो बहुत से कारण हो सकते हैं. इससे यह बात कैसे प्रमाणित होती है कि मंदिर गिराकर मस्जिद बनाई गई. इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि जो भी लोग फैसले की आलोचना कर रहे हैं, असल में वो मस्जिद के वहां होने की सैद्धांतिक वजह को अनदेखा करना चाहते हैं और फिर तुलनात्मक रूप से इतिहास की कुछ चुनिंदा बातों को अपने समर्थन में पेश करते हैं.
विवादित भूमि को इलाहाबाद हाईकोर्ट की तरह हिस्सों में न बांटने को लेकर भी चंद्रचूड़ ने सफाई दी. उन्होंने कहा कि अगर लोग शांति से एक-दूसरे के साथ रह रहे होते तो अदालती दखल की जरूरत ही नहीं पड़ती. साथ ही चंद्रचूड़ ने ये भी कहा कि मुस्लिम पक्ष “निरंतर और निर्विवाद कब्जा” साबित नहीं कर सका.
इस इंटरव्यू में जस्टिस चंद्रचूड़ के एक और बहुचर्चित फैसले वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे को लेकर भी काफी बातें हुई हैं. दरअसल, चंद्रचूड़ ने अयोध्या विवाद पर अपने फ़ैसले में कहा था कि प्लेसेज़ ऑफ वर्शिप एक्ट का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि इतिहास को बहाना बनाकर पुराने विवाद फिर से न खोले जाएं और न ही अदालतें ऐसे दावों को सुनें जो मुगल काल की घटनाओं से जुड़ी हों. अदालत ने साफ कहा था कि स्वतंत्रता के बाद धार्मिक स्थलों की स्थिति जस की तस रहेगी. फिर इसके बावजूद उनकी ही अध्यक्षता वाली पीठ ने बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे की अनुमति क्यों दी?
इस पर चंद्रचूड़ ने कानून की पेचीदगी और उसमें मौजूद अपवादों का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि प्लेसेज़ ऑफ वर्शिप एक्ट का मूल प्रावधान यह कहता है कि 15 अगस्त 1947 तक धार्मिक स्थलों का जो स्वरूप था, वही आगे भी कायम रहेगा और इसके विपरीत कोई दावा नहीं किया जा सकता. हालांकि, इस कानून में कुछ अपवाद भी हैं. जैसे कि पहला अपवाद अयोध्या मामले से जुड़ा है, जहां पहले से दायर मुकदमों को जारी रखने की अनुमति दी गई थी. इसके अलावा भी एक और अपवाद है, जो कि उन स्थलों से संबंधित है जिन्हें “पुरातात्विक महत्व” का माना जाता है. चंद्रचूड़ के अनुसार, यह तय करना कि कोई स्थल वास्तव में ‘पुरातात्विक महत्व’ का है या नहीं, स्वयं में एक अलग कानूनी प्रश्न है और अदालत इसे सुनने की हकदार है.
चंद्रचूड़ ने इस दौरान एक और दावा किया. उन्होंने कहा कि सदियों से ज्ञानवापी में पूजा होती आ रही है और मुस्लिमों ने कभी इसका विरोध नहीं किया. जबकि सच्चाई ये है कि मुस्लिम पक्ष ने लगातार इस दावे पर आपत्ति जताई है.
चंद्रचूड़ का यह पूरा इंटरव्यू देखने के लिए यहां क्लिक करें.
Also Read
-
TV Newsance 321: Delhi blast and how media lost the plot
-
Hafta 563: Decoding Bihar’s mandate
-
Bihar’s verdict: Why people chose familiar failures over unknown risks
-
On Bihar results day, the constant is Nitish: Why the maximiser shapes every verdict
-
Missed red flags, approvals: In Maharashtra’s Rs 1,800 crore land scam, a tale of power and impunity