उद्योगपति गौतम अडाणी की तस्वीर.
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अडाणी पर मीडिया रिपोर्टिंग रोकने वाले आदेश पर रोक, अदालत ने कहा- आदेश एकतरफा 

दिल्ली के रोहिणी स्थित जिला अदालत ने गुरुवार को निचली अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें पत्रकारों और प्रकाशकों को अडाणी समूह के खिलाफ की गई रिपोर्टिंग को हटाने का आदेश दिया था. निचली अदालत ने यह आदेश 6 सितंबर को दिया था.

पत्रकार रवि नायर, अबीर दासगुप्ता, अयस्कांत दास और आयुष जोशी ने इस आदेश के खिलाफ अपील की थी. उनकी अपील पर सुनवाई करते हुए रोहिणी कोर्ट के जिला जज आशीष अग्रवाल ने कहा कि पत्रकारों का पक्ष सुने बिना रोक लगाना सही नहीं था.

जज ने कहा, “अगर बाद में सीनियर सिविल जज यह पाएं कि ये मानहानिकारक नहीं हैं, तो जो लेख हटा दिए गए होंगे उन्हें दोबारा बहाल करना संभव नहीं होगा. इसलिए मेरी राय में ट्रायल कोर्ट को पत्रकारों को सुनकर ही फैसला करना चाहिए था. यह आदेश उचित नहीं है. इसलिए मैं अपील स्वीकार करता हूं और उस आदेश को रद्द करता हूं,.”

इसी मामले में पत्रकार परंजय गुहा ठाकुरता ने भी अपील दायर की है. उस पर जिला जज सुनील चौधरी ने सुनवाई की और अपना आदेश सुरक्षित रख लिया.

उल्लेखनीय है कि रोहिणी जिला अदालत के सिविल जज अनुज कुमार सिंह ने 6 सितंबर को एक आदेश जारी किया था. कोर्ट ने यह आदेश अडाणी एंटरप्राइजेज द्वारा इस महीने की शुरुआत में दायर याचिका पर दिया था. इस याचिका में पत्रकार पंरजॉय गुहा ठाकुरता समेत कई पत्रकारों और संस्थानों को कंपनी के खिलाफ मानहानिकारक लेख और वीडियो प्रकाशित करने से रोकने की मांग की थी. 

अपने अंतरिम आदेश में सिविल जज सिंह ने लिखा था, “न्याय के हित में इतना पर्याप्त है कि प्रतिवादी 1 से 10 को अगले आदेश तक अडाणी समूह की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने वाली अप्रमाणित, असत्यापित और सतही रूप से मानहानिकारक रिपोर्टें प्रकाशित/ प्रसारित/ वितरित करने से रोका जाए.”  आदेश में यह भी कहा गया था कि अप्रमाणित या असत्यापित सामग्री को हटाया जाए या यदि संभव न हो तो पांच दिन के भीतर डिलीट किया जाए.

बाद में कोर्ट के इसी आदेश के आधार पर सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने 16 सितंबर को पत्रकारों, मीडिया संस्थानों और कंटेंट क्रिएटर्स को टेकडाउन नोटिस जारी कर दिया. न्यूज़लॉन्ड्री भी उनमें शामिल था. मंत्रालय ने आदेश में कई यूट्यूब और इंस्टाग्राम लिंक हटाने को कहा.

इस कार्रवाई के खिलाफ आज सुनवाई के दौरान पत्रकारों की ओर से वकील वृंदा ग्रोवर ने तर्क दिया कि प्रेस को पूरी तरह चुप कराने वाला ऐसा आदेश कानून में कहीं मौजूद नहीं है.

वकील वृंदा ग्रोवर और नकुल गांधी ने दलील दी कि अभी तक अडाणी समूह ने यह साबित नहीं किया है कि लेख मानहानिकारक हैं. उन्होंने कहा, “ये सभी तथाकथित ‘मानहानिकारक’ लेख हैं, इन्हें मानहानिकारक साबित करना बाकी है.” उन्होंने यह भी कहा कि अंतरिम आदेश में अधिकतर बातें अडाणी समूह के आरोपों की कॉपी-पेस्ट लगती हैं.

ग्रोवर ने आगे कहा, “यह एक जॉन डो आदेश है. क्या इस देश में कोई कानून है जो खासकर प्रेस से कहे कि आप किसी संस्था पर सवाल नहीं उठा सकते, नहीं लिख सकते? कानून इसकी इजाज़त नहीं देता. पहले ही भारी संख्या में टेकडाउन आदेश आ चुके हैं.”

मालूम हो कि जॉन डो आदेश उन मामलों में दिए जाते हैं जब विरोधी पक्ष अज्ञात या अनाम हो. अडाणी के मुकदमे में 10वें प्रतिवादी के तौर पर जॉन डो/अशोक कुमार का नाम दर्ज है.

ग्रोवर ने यह भी कहा कि अडाणी समूह द्वारा उद्धृत अधिकांश लेख जुलाई, 2024 में प्रकाशित हुए थे और यह सवाल उठाया कि आदेश इतनी जल्दबाज़ी में क्यों पास हुआ.

जब अदालत ने अडाणी पक्ष से पूछा कि इतनी जल्दी की वजह क्या है, तो कंपनी के वकील विजय अग्रवाल ने कहा कि अगस्त, 2025 का एक पॉडकास्ट भी सामग्री में शामिल है और कानून एकतरफा आदेश की इजाज़त देता है.

उन्होंने आरोप लगाया कि ये पत्रकार मिलकर एक लॉ फर्म की तरह काम कर रहे हैं. अग्रवाल ने कहा, “यह मामला हिंदुस्तान टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया या इंडियन एक्सप्रेस का नहीं है. ये खुद को पत्रकार कहते हैं और गुट बनाकर लिखते हैं, अपील करते हैं.” उन्होंने यह भी दावा किया कि इन पत्रकारों पर एनआईए का केस चल रहा है और ये चीन से फंडिंग ले रहे हैं.

अग्रवाल ने कहा, “ये कह रहे हैं कि लेख पुराने हैं. लेकिन मेरी (अडाणी की) छवि खराब हुई है. अब ये लोग फंड इकट्ठा कर रहे हैं और कह रहे हैं कि हमारे कानूनी खर्च बढ़ रहे हैं, हमें चंदा दो.”

अडाणी समूह की ओर से सीनियर एडवोकेट जगदीप शर्मा ने कहा कि पत्रकार लगातार हिंडनबर्ग रिपोर्ट का हवाला देते हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट अडाणी समूह को पहले ही क्लीन चिट दे चुका है.

शर्मा ने आगे कहा, “मुझे सिर्फ इसलिए सज़ा दी जा रही है क्योंकि मैं एक उद्योगपति हूं और देश के लिए काम करता हूं. हिंडनबर्ग की एक रिपोर्ट से ही अरबों डॉलर का नुकसान हो गया था.”

जिला जज आशीष अग्रवाल ने स्पष्ट किया कि अब सिविल जज इस मामले को स्वतंत्र रूप से सुन सकते हैं और उनकी टिप्पणियों से मामला प्रभावित नहीं होगा.

पत्रकारों और मीडिया संस्थानों को भेजे गए टेकडाउन नोटिस में 138 यूट्यूब लिंक और 83 इंस्टाग्राम पोस्ट शामिल थे. यह नोटिस गूगल और मेटा जैसी कंपनियों को भी भेजा गया था.

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