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नेपाल: युवाओं के उग्र प्रदर्शन के बीच प्रधानमंत्री का इस्तीफा

नेपाल में प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस्तीफा दे दिया है. प्रधानमंत्री को यह कदम देशभर में हो रहे उग्र प्रदर्शनों के चलते उठाना पड़ा. मालूम हो कि बीते दिन हुए इन प्रदर्शनों में पुलिस फ़ायरिंग में 19 लोगों की मौत हो गई. वहीं, 400 से ज्यादा लोगों के घायल होने की सूचना है. मौतों के बाद मंगलवार को प्रदर्शन और उग्र हो गए. 

प्रदर्नशकारियों ने संसद भवन और नेताओं के आवासों सहित कई सरकारी दफ़्तरों में तोड़फोड़ की. वहीं, ओली पर प्रदर्शनकारियों और मानवाधिकार संगठनों ने निर्दोष युवाओं पर गोली चलवाने का आरोप लगाया. 

गौरतलब है कि जुलाई, 2024 से ओली चौथी बार प्रधानमंत्री पद पर थे. उन्हें उनके राष्ट्रवादी तेवर और आक्रामक शैली के लिए जाना जाता है. प्रधानमंत्री के इस्तीफ़े के बावजूद नेपाल के कई शहरों में अभी भी प्रदर्शन जारी हैं. 

ऐसे शुरू हुआ पूरा विवाद

दरअसल, युवाओं का गुस्सा नेपाल की ओली सरकार द्वारा हाल ही में सोशल मीडिया पर लगाए गए प्रतिबंध के बाद से फूट पड़ा. 4 सितंबर 2025 से सरकार ने फेसबुक, यूट्यूब, व्हाट्सऐप और एक्स (ट्विटर) सहित 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बैन लगा दिया. सरकार ने इसके लिए सुप्रीम कोर्ट की फुल बेंच के फैसला का हवाला दिया और सोशल मीडिया कंपनियों को हफ्तेभर के भीतर रजिस्ट्रेशन करवाने के निर्देश जारी किए. सरकार ने कहा कि वह इन्हें बैन नहीं कर रही बल्कि कानूनी दायरे में लाने की कोशिश कर रही है.

अधिकारियों ने इसे फर्जी खबरों और ऑनलाइन धोखाधड़ी पर रोक लगाने के लिए ज़रूरी कदम बताया. लेकिन नेपाल ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमले की तरह देखा और नतीजतन प्रदर्शन से शुरू हुआ सिलसिला इतना बढ़ गया कि संसद भवन में भीड़ घुस गई और पुलिस की गोलीबारी में 19 लोगों को जान गंवानी पड़ी. 

हालांकि, असंतोष की वजह सिर्फ यही नहीं थी. टिकटॉक पर #NepoKids और #NepoBabies जैसे अभियानों ने नेताओं और उनके परिवारों की आलीशान जीवनशैली उजागर की, जिससे पहले से पनप रहे असंतोष में भ्रष्टाचार का भी मामला जुड़ गया. 

प्रदर्शन की शुरुआत “हामी नेपाल” नामक संगठन की ओर से की बताई जा रही है. दरअसल, हामी नेपाल के नेतृत्व में स्कूली वर्दी पहने हजारों छात्र-युवा सड़कों पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन के लिए उतरे. उनकी मांग थी- “भ्रष्टाचार खत्म हो, भाई-भतीजावाद पर रोक लगे और सरकार जवाबदेह बने.” 

श्रीलंका और बांग्लादेश में हाल के जनांदोलनों से प्रेरित यह आंदोलन 8 सितंबर को हिंसक हो उठा. संसद परिसर की ओर बढ़ते प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए पुलिस ने वाटर कैनन, आंसू गैस, रबर की गोलियां और यहां तक कि गोलियां भी चलाईं. जिसके बाद 19 लोगों की मौत हो गई.

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