Report
अडाणी के असम में 3 हजार बीघा जमीन खरीदने की ख़बर का फैक्ट चेक
गुवाहाटी हाईकोर्ट में हुई एक सुनवाई का एक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है. वीडियो में जस्टिस संजय कुमार मेधी असम के दीमा हसाओ जिले में एक निजी सीमेंट कंपनी को 3,000 बीघा जमीन आवंटित किए जाने पर आश्चर्यचकित होकर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं.
12 अगस्त की सुनवाई के दौरान जस्टिस मेधी ने कहा, "3,000 बीघा! पूरा जिला? ये क्या हो रहा है? एक निजी कंपनी को 3,000 बीघा जमीन दी जा रही है?... निजी हित नहीं, बल्कि जनहित मायने रखता है."
इस खबर ने ऑनलाइन जगत में एक नई शक्ल ले ली. जैसे ही यह क्लिप फैली, कांग्रेस और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सोशल मीडिया हैंडल सहित कई अन्य लोगों ने दावा किया कि ये जमीन अडाणी समूह को सौंपी जा रही है. बात इस हद तक उछली कि अडाणी समूह को 18 अगस्त को औपचारिक रूप से इस बात का खंडन जारी करना पड़ा, जहां स्पष्ट किया गया कि ऐसी खबरें "निराधार" हैं और इनका सीमेंट कंपनी से कोई नाता नहीं है.
गलत सूचना और उसके बाद दिए स्पष्टीकरण के बाद इस ख़बर का असली मुद्दा- आदिवासी ग्रामीणों और छठे अनुसूची क्षेत्रों में भूमि आवंटन के बीच लंबे समय से चल रहा संघर्ष- एक बार फिर हाशिए पर चला गया.
न्यूज़लॉन्ड्री ने पहले इसी ज़िले में अन्य खनन परियोजनाओं के प्रति आदिवासी प्रतिरोध पर रिपोर्ट की थी. इनमें से एक परियोजना अडाणी समूह की अंबुजा सीमेंट से जुड़ी है, जिसकी चूना पत्थर खनन परियोजना को 1,200 बीघा से ज्यादा जमीन आवंटित की गई और विस्थापन के डर से उसे स्थानीय स्तर पर कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है.
वायरल क्लिप से कहीं पुरानी लड़ाई
वायरल वीडियो के केंद्र में महाबल सीमेंट कंपनी है, जिसे दीमा हसाओ जिले के एक पर्यावरण के तौर पर अहम इलाके उमरंगसो में विवादित आवंटन मिला था. दिसंबर 2024 से नोबडी लोंगकु क्रो और चोटोलारफेंग गांवों के 22 निवासी इस आवंटन को अदालत में चुनौती दे रहे हैं. उनका आरोप है कि दीमा हसाओ स्वायत्त परिषद ([डीएएचसी) ने उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना जमीन आवंटित की थी.
1951 में स्थापित छठी अनुसूची में आने वाला जनपद दीमा हसाओ, उत्तरी कछार हिल्स स्वायत्त परिषद द्वारा प्रशासित किया जाता है, जो इस क्षेत्र में, ख़ास तौर पर इसके आदिवासी समुदायों के लिए भूमि प्रबंधन और प्रशासन की देखरेख करती है. ज़िले में सर्वेक्षणित और सर्वेक्षण रहित, दोनों प्रकार की जमीनें हैं- सर्वेक्षणित भूमि पर भूमि अधिकार परिषद द्वारा प्रशासित होते हैं और सर्वेक्षण रहित क्षेत्रों में राजस्व विभाग द्वारा मान्यता प्राप्त पारंपरिक व्यवस्थाओं के अनुरूप होते हैं.
याचिकाकर्ताओं का दावा है कि उनके परिवार 1975 से इन जमीनों पर कानूनी तौर पर रह रहे हैं और खेती करते आ रहे हैं, और गांव के मुखियाओं या गांव बुराओं के ज़रिये डीएएचसी को लगातार कर देते रहे हैं. उनका तर्क है कि यह जमीन आदिवासी रीति-रिवाजों के तहत सामुदायिक स्वामित्व में है और गांव बुराओं द्वारा ग्रामीणों के बीच बांटी जाती है.
लेकिन 2024 में एक राजस्व अधिकारी ने उन्हें बताया कि उनकी जमीन एक निजी कंपनी की परियोजना के लिए अधिग्रहित कर ली गई है. याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि एक पटवारी ने कथित तौर पर कुछ ग्रामीणों को अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) पर दस्तख़त करने और मुआवज़े के तौर पर 2 लाख रुपये के चेक लेने के लिए मजबूर किया.
16 मई को, नोबडी लोंगकु क्रो के एक गुट ने डीएएचसी को एक औपचारिक आपत्ति पत्र सौंपा, जिसमें अधिकारियों पर "अनैच्छिक" अधिग्रहण को आगे बढ़ाने के लिए "जबरदस्ती" और "गलत सूचना" का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया गया.
जहां ग्रामीणों के एक वर्ग ने दबाव बनाने का आरोप लगाया है, पर इस साल फरवरी से इस मामले में कम से कम नौ सुनवाईयां हो चुकी हैं.
पिछले साल ग्रामीणों द्वारा अदालत का दरवाजा खटखटाने से तीन महीने पहले, ग्रामीणों की ओर से एक कार्यकर्ता द्वारा दायर जनहित याचिका की वजह से ये भूमि विवाद गुवाहाटी उच्च न्यायालय पहुंच गया था. हालांकि अदालत ने नवंबर में मामले का निपटारा कर दिया था और निवासियों को कोई नई परिस्थितियां आने पर वापस लौटने का हक़ दिया था, लेकिन फिर भी जमीनी स्तर पर तनाव बढ़ता ही रहा. एक याचिका दिसंबर में दायर की गई थी.
अदालती सुनवाई
2 फरवरी को पहली सुनवाई के दौरान, गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि अधिकारी यह स्पष्ट करें कि याचिकाकर्ताओं के स्वामित्व वाले भूखंडों के पास की 3,000 बीघा जमीन महाबल सीमेंट को कैसे आवंटित की गई. अदालत ने आवंटन से जुड़ी भूमि के सीमांकन की प्रगति पर भी डीएएचसी से ताज़ा जानकारी मांगी.
अप्रैल तक परिषद ने एक हलफनामा प्रस्तुत किया, जिसमें स्वीकार किया गया कि जनवरी में पारित एक प्रस्ताव ने प्रभावित निवासियों को वैकल्पिक भूमि प्रदान करने को मंजूरी दी थी. इसके बाद 6 मार्च को एक अधिसूचना जारी की गई, जिसमें गांव से लगभग 500 मीटर दूर, अधिग्रहित भूमि के बराबर अनुपात में, कृषि उपयोग के लिए नकद मुआवजे के साथ, भूमि के पुनः आवंटन की पुष्टि की गई.
इस बीच, महाबल सीमेंट ने भी एक अलग याचिका दायर की, जिसमें कुछ व्यक्तियों द्वारा उसकी सीमेंट परियोजना में कथित रूप से बाधा डालने की शिकायत पर कार्रवाई न करने का आरोप लगाया गया. बाद में अदालत ने दोनों याचिकाओं को एक साथ मिला दिया और 12 अगस्त को संयुक्त रूप से उन पर सुनवाई की, जिसकी टिप्पणी वायरल हो गई.
अदालत ने कहा, "मामले के तथ्यों पर सरसरी निगाह डालने से पता चलता है कि जिस जमीन को आवंटित करने की मांग की गई है, वो लगभग 3,000 बीघा है, जो अपने आप में असाधारण लगता है."
महाबल सीमेंट ने दावा किया कि यह जमीन एक निविदा प्रक्रिया के माध्यम से दिए गए खनन पट्टे के बाद आवंटित की गई थी, लेकिन अदालत ने गंभीर चिंताएं जताईं और कहा कि यह ज़िला छठी अनुसूची का इलाका है "जहां, वहां रहने वाले आदिवासी लोगों के अधिकारों और हितों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. संबंधित क्षेत्र दीमा हसाओ ज़िले में उमरांगसो है, जो एक पर्यावरणीय हॉटस्पॉट के रूप में जाना जाता है, जहां गर्म पानी के चश्मे हैं, प्रवासी पक्षियों, वन्यजीवों आदि का पड़ाव है."
इस मामले की अगली सुनवाई 1 सितंबर को होगी.
मूल रूप से अंग्रेजी में प्रकाशित ख़बर को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
भ्रामक और गलत सूचनाओं के इस दौर में आपको ऐसी खबरों की ज़रूरत है जो तथ्यपरक और भरोसेमंद हों. न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करें और हमारी भरोसेमंद पत्रकारिता का आनंद लें.
Also Read
-
A conversation that never took off: When Nikhil Kamath’s nervous schoolboy energy met Elon Musk
-
Indigo: Why India is held hostage by one airline
-
2 UP towns, 1 script: A ‘land jihad’ conspiracy theory to target Muslims buying homes?
-
‘River will suffer’: Inside Keonjhar’s farm resistance against ESSAR’s iron ore project
-
Who moved my Hiren bhai?