Khabar Baazi
मीडिया की आज़ादी पर संसद में सरकार का गोलमोल जवाब
राज्यसभा में आरजेडी सांसद मनोज झा द्वारा भारत में पत्रकारों की स्वतंत्रता और हालिया जर्नलिज्म इंडेक्स में गिरावट को लेकर पूछे गए सवालों के जवाब में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने एक बार फिर से कोई ठोस जवाब देने की बजाय 'वाइब्रेंट मीडिया इकोसिस्टम' जैसे जुमलों का हवाला दिया. मीडिया को मजबूत करने वाले ठोस कदमों या योजनाओं की जानकारी देने से परहेज़ किया.
दरअसल, सांसद मनोज कुमार झा ने तीन सवाल पूछे थे. पहला- क्या सरकार ने भारत की प्रेस स्वतंत्रता रैंकिंग में आई गिरावट और पत्रकारों के खिलाफ बढ़ती धमकियों, कानूनी प्रताड़ना और हिंसा की घटनाओं की समीक्षा की है? दूसरा- क्या प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया जैसी संस्थाओं को राजनीतिक दखल से बचाने और मज़बूत करने के लिए कोई कदम उठाए गए हैं? और तीसरा- सरकार या राजनीतिक प्रभाव से मुक्त होकर पत्रकारों के भयमुक्त होकर काम करने की क्या योजनाएं हैं?
इन तीन अलग-अलग सवालों का जवाब एक साथ नत्थी करके एक साथ पैराग्राफ में दिया गया है. यह राज्यसभा की सवाल जवाब नियमावली का उल्लंघन है. दरअसल, संसद में पूछे गए सवालों के स्पष्ट और संपूर्ण उत्तर देने के लिए पहले से ही दिशा-निर्देश मौजूद हैं. इसके तहत 20 जनवरी को राज्यसभा सचिवालय ने एक मेमो जारी कर सभी मंत्रालयों को इस प्रक्रिया की याद दिलाई थी. इस मेमो में सचिवालय ने कहा कि मंत्रालय "अक्सर सवाल के हर हिस्से का अलग-अलग और स्पष्ट उत्तर नहीं देते." इस मेमो के साथ एक पुराने विशेषाधिकार हनन के मामले का हवाला भी संलग्न था, जिसमें मंत्रालय ने सवाल को टालने की कोशिश की थी और राज्यसभा सभापति ने इस पर निर्देश जारी किए थे. संसदीय मामलों की नियमावली में भी इसी बात पर ज़ोर दिया गया है.
मनोज झा के इन स्पष्ट सवालों के जवाब में सूचना और प्रसारण राज्यमंत्री डॉ. एल. मुरुगन ने कहा, “भारत में एक जीवंत और सक्रिय मीडिया व्यवस्था है, जिसे विदेशी संगठनों से मान्यता लेने की ज़रूरत नहीं है.”
इसके आगे सवाल के जवाब में सरकार ने 1.54 लाख से अधिक प्रिंट प्रकाशनों, 900 से अधिक निजी सैटेलाइट चैनलों और डिजिटल मीडिया की बढ़ती उपस्थिति का ज़िक्र किया लेकिन यह साफ नहीं किया कि हाल के वर्षों में पत्रकारों पर हुए हमलों या दबाव की स्थिति में सरकार ने क्या कार्रवाई की.
उत्तर में यह भी कहा गया कि संविधान का अनुच्छेद 19 (1) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया जैसे निकाय पहले से ही अस्तित्व में हैं. यह भी बताया गया कि इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया में शिकायतों के निपटारे के लिए तीन-स्तरीय स्व-नियामक व्यवस्था (सेल्फ रेगुलेटरी सिस्टम) मौजूद है.
लेकिन जवाब यह स्पष्ट नहीं करता कि इन संस्थाओं ने पत्रकारों पर दबाव, हमलों या राजनीतिक हस्तक्षेप के मामलों में क्या ठोस हस्तक्षेप किया है और सबसे अहम बात, क्या सरकार ने स्वयं ऐसी घटनाओं की कोई समीक्षा की है?
जिन सवालों का जवाब मांगा गया था, उनके बदले में सरकार ने केवल प्रक्रिया, प्रावधान और प्रचलित जुमलों को दोहराया, वर्तमान चुनौतियों पर कोई नई रणनीति या योजना का खुलासा नहीं किया.
प्रेस स्वतंत्रता पर सरकार का यह गोलमोल जवाब उस चिंता को और गहरा करता है, जिसके तहत सवाल पूछे गए थे. टालमटोल का अंदाज़ यह दर्शाता है कि पत्रकारिता की स्वतंत्रता के मुद्दे पर अभी देश में बहुत काम करना बाक़ी है.
भ्रामक और गलत सूचनाओं के इस दौर में आपको ऐसी खबरों की ज़रूरत है जो तथ्यपरक और भरोसेमंद हों. न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करें और हमारी भरोसेमंद पत्रकारिता का आनंद लें.
Also Read
-
2 convoys, narrow road, a ‘murder’: Bihar’s politics of muscle and fear is back in focus
-
Argument over seats to hate campaign: The story behind the Mumbai Press Club row
-
Delhi AQI ‘fraud’: Water sprinklers cleaning the data, not the air?
-
How a $20 million yacht for Tina Ambani became a case study in ‘corporate sleight’
-
पटना में बीजेपी का गढ़ कुम्हरार: बदहाली के बावजूद अटूट वफादारी, केसी सिन्हा बदल पाएंगे इतिहास?