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स्पेशल इंटेसिव रिवीजन: वोटर लिस्ट से गायब होने का डर!
हुसैन शेख की मौत हो जाने के चलते बिहार के पूर्वी चंपारण के मेघुआ नामक गांव के तबरेज आलम ने 11 जून 2024 को बूथ-लेवल के अधिकारी के पास शेख का नाम मतदाता सूची से हटाने के लिए फॉर्म जमा किया था. नवंबर तक चुनाव अधिकारियों ने तबरेज की पहचान और उनके द्वारा शेख को लेकर कही गई बात को सत्यापित कर लिया. और जनवरी 2025 तक तबरेज के अनुरोध को मानते हुए बिहार की वोटर लिस्ट से हुसैन का नाम हटा दिया गया.
हुसैन का नाम वोटर लिस्ट से हटाए जाने के पांच महीने बाद 37 वर्षीय तबरेज को भारत के चुनाव आयोग की तरफ से कागजातों की मदद से खुद के अस्तित्व को साबित करने के लिए बाध्य किया जाने लगा. आयोग का कहना था कि तबरेज साबित करें कि वो भारत के नागरिक हैं और बिहार के आगामी विधानसभा चुनावों में वोट करने के अधिकार के लिए वो अपने गांव में नियमित तौर पर पर्याप्त मात्रा में निवास करते हैं.
तबरेज की ही तरह बिहार में ऐसे लाखों लोग हैं जिन्होंने पिछले एक या फिर पिछले सभी पांच आम और पांच विधानसभा चुनावों में संभवतः वोट दिया था लेकिन अब उनको तबरेज की ही तरह कागजी दस्तावेजों के आधार पर जल्द से जल्द अपने वोट देने के अधिकार को सत्यापित करना है. अपने वोट देने के अधिकार को सत्यापित न कर पाने की स्थिति में कानून के नजरिये से इन लोगों को संदिग्ध नागरिक करार दिया जा सकता है.
बिहार में ये सब इसलिए हो रहा है क्योंकि भारत के चुनाव आयोग ने 24 जून को बिहार की मतदाता सूचियों का स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर) करते हुए इन सूचियों को पूरे तरीके से पुनर्गठित करने का निर्णय अचानक से ले लिया है.
अपनी नागरिकता, पहचान और अपने रहने के सामान्य निवास स्थान को ताजा तौर पर जल्द से जल्द सत्यापित न कर पाने की स्थिति में चुनाव आयोग के उपरोक्त लिखित निर्णय ने वर्ष 2003 से पंजीकृत लाखों वोटरों के पंजीकरण को रद्द कर दिया है. इन सभी वोटरों को अपने वोट देने के अधिकार के लिए अब नए सिरे से सबूत पेश करने होंगे. बहुत से ऐसे वोटर जिन्होंने वर्ष 2003 से पहले अपना पंजीकरण किया था उनको भी अपने पंजीकरण को प्रमाणित करने के लिए प्रमाण पेश करने होंगे.
रिपोर्टर्स कलेक्टिव की तरफ से दस्तावेजों की पड़ताल दिखाती है कि बिहार की वोटर लिस्टों को पुनर्गठित करने को लेकर चुनाव आयोग की ओर से लिया गया ये निर्णय अचानक से लिया गया ऐसा यू-टर्न है, जिसने बिहार की चुनाव प्रक्रिया को सकते में ला दिया है. हमें इस बात को लेकर सबूत प्राप्त हुए कि 24 जून को भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) की ओर से आए आदेश के पहले तक बिहार में अधिकारी कानूनी रूप से मान्य और परखे हुए तरीकों की मदद से लगातार मतदाता सूचियों को अपडेट कर रहे थे.
यहां तक कि जून 2024 से जनवरी 2025 के बीच बिहार की चुनाव मशीनरी ने, बिहार के मुख्य चुनाव अधिकारी के द्वारा मतदाता सूचियों के इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को दर्शाने वाले, स्पेशल समरी रिवीजन 2025 के अंतर्गत मतदाता सूचियों का पुनरावलोकन भी कर लिया था.
मतदाता सूचियों के पुनरावलोकन के संपन्न हो जाने की ये बात चुनाव आयोग की ओर से दिए जाने वाले उन संकेतों के विपरीत जाती है जिनके तहत आयोग ये इशारा करता रहा है कि चूंकि बिहार का वर्तमान चुनावी डेटाबेस इतनी ज्यादा खराब स्थिति में है कि इसको पूरी तरीके से पुनर्गठित करने की जरूरत है.
हमने जिन सबूतों की छानबीन की वो दिखाते हैं कि चुनाव आयोग के दावों के उलट जून, 2025 के महीने में ही मतदाता सूचियों का स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन किए जाने का निर्णय लेने के कुछ दिन पहले ही चुनाव आयोग और बिहार में तैनात आयोग के अधिकारियों ने 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए फाइनल हुई मौजूद मतदाता सूची को वैध मानकर इस पर अपनी हामी भर दी थी. हमने पाया कि नियमित रूप से चीजों को अपडेट करने, वोटरों के नाम जोड़ने या हटाने के लिए आयोग इसी स्वीकार की गई मतदाता सूची का प्रयोग कर रहा था.
हमने बिहार चुनाव आयोग के अधिकारियों और हालिया वर्षों में भारत के चुनाव आयोग में शीर्ष पदों पर अपनी सेवाएं दे चुके दो अधिकारियों से बात की. इसके साथ ही हमने दर्जन भर से ज्यादा बूथ स्तर के ऐसे अधिकारियों से बात की जो चुनावों और मतदाता सूची के इंचार्ज के रूप में सरकार के अंतिम ऑफिसर के तौर पर काम करते हैं. इन सभी अधिकारियों ने अपनी पहचान को गुप्त रखने की इच्छा जाहिर की. हम यहां पर अधिकारियों की ओर से दिए गए बयानों के उन कुछ हिस्सों को उद्धरित कर रहे हैं जिसकी हम स्वतंत्र रूप से पुष्टि कर सकते हैं.
चुनाव आयोग के दो भूतपूर्व अधिकारियों जिनसे हमने बात की उनमें से एक ने कहा कि ऐसा पहली बार है कि चुनाव आयोग इस प्रकार की “व्यवधान” उत्पन्न करने वाली कार्रवाई कर रहा है. अधिकारी ने कहा कि ये कार्रवाई बिना किसी कारण के 2003 से पहले और बाद में पंजीकृत किए गए वोटरों के बीच भेदभाव करती है.
अधिकारी ने कहा, “यदि चुनाव आयोग सीमित कागजी सबूतों के आधार पर 2003 के बाद पंजीकृत किए गए सभी वोटरों को अपने वोट देने के अधिकार को सत्यापित करने के लिए कह रहा है तो इसका अर्थ ये है कि चुनाव आयोग के अनुसार चिंताजनक रूप से पार्लियामेंट के पिछले पांच और राज्य के पिछले पांच चुनावों में वोटरों में जालसाज या फिर दोषपूर्ण वोटर शामिल थे. ऐसा ही है ना?”
अधिकारी ने आगे कहा, “अगर ऐसा ही है तो पूरा सरकारी तंत्र और सालों से मतदाता सूची बनाने की प्रक्रिया में शामिल ऊपर से नीचे तक के अधिकारी या तो इस बड़े स्तर की जालसाजी को देखने से चूक जाने या फिर इस जालसाजी और दशकों से थोक के भाव हो रही गलतियों को बढ़ावा देने के लिए उत्तरदायी हैं. मुझे तो ये अविश्वसनीय लगता है.”
चुनाव आयोग के दूसरे भूतपूर्व अधिकारी ने कहा, “सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए इतने शॉर्ट नोटिस पर पूरे बिहार की मतदाता सूची को फिर से बनाया जा रहा है. हालांकि, मतदाता सूची को साफ-सुथरा रखने के लिए चुनाव आयोग को ये अधिकार है कि वो जरूरी कदमों को उठाए, लेकिन इन मामले में मुझे लगता है कि आयोग के अधिकारों का प्रयोग गलत कामों की पूर्ति के लिए हो रहा है. ये पूरी कार्रवाई लोगों के हाथ से उनके वोट देने के अधिकार को छीन सकती है और ये कार्रवाई लोगों की नागरिकता के ऊपर अनुचित रूप से सवाल उठाती है.”
हमने चुनाव आयोग को अपने सवाल भेजे थे. चुनाव आयोग की तरफ से हमें अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है. अगर चुनाव आयोग ने हमें जवाब दिया तो इस स्टोरी को अपडेट किया जाएगा.
वर्तमान में चल रहे अपडेशन, जल्द ही संपन्न हुई स्पेशल समरी रिवीजन नामक वैध एवं जायज प्रक्रिया और बिहार में मतदाता सूची में की गई अपडेट्स को रद्द करने के लिए जून के कुछ दिनों में चुनाव आयोग द्वारा किन-किन सबूतों को जुटाया गया? इस रिपोर्ट को लिखने के लिए प्राप्त साक्ष्य ये दिखाते हैं कि राज्य स्तर पर मतदाता सूची में कोई इतनी बड़ी विसंगतियां नहीं मिल मिल गईं थीं कि मतदाता सूची को बिलकुल नए सिरे से पुनरीक्षित करने की जरूरत पड़ जाए.
हम जब इस रिपोर्ट को लिख रहे हैं बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण की 30-दिनों की कार्रवाई प्रारम्भ हो गई है. चुनाव आयोग दावा कर रहा है कि ये कार्रवाई सुचारू रूप से की जा रही है और आयोग इस कार्रवाई को राष्ट्रीय स्तर पर कराए जाने के अपने आदेश पर टिका हुआ है.
चुनाव आयोग बनाम नियम
मौतों, पलायन और शहरीकरण के लेखे-जोखे के लिए मतदाता सूचियों को अपडेट किया जाना बेहद जरूरी है. इस प्रकार की अपडेट संबंधी कार्रवाई के लिए वैधानिक नियम हैं. रजिस्ट्रेशन ऑफ इलेक्टर्स रूल्स ऑफ 1960 ऐसे तीन रास्तों को परिभाषित करता है जिसके तहत मतदाता सूची को पुनरीक्षित किया जा सकता है.
इंटेंसिव रिवीजन- मतदाता सूची पुनरीक्षण की इस कार्रवाई के तहत बिलकुल नए सिरे से, पहले से मौजूद किसी भी मतदाता सूची का संदर्भ लिए बिना, दरवाजे-दरवाजे जाकर वोटरों की पहचान को सत्यापित किया जाता है.
समरी रिवीजन- यह एक वार्षिक कार्रवाई है जिसके तहत बूथ-स्तर के अधिकारी जनता से मतदाता सूची में मौजूद विसंगतियों को इंगित करते हुए दावों और आपत्तियों को आमंत्रित करते हैं, और अंत में फाइनल मतदाता सूची प्रकाशित करने के लिए अधिकारी जनता के द्वारा किए गए दावों आदि को सत्यापित करते हैं.
आंशिक समरी एवं आंशिक इंटेंसिव रिवीजन- यह उपरोक्त लिखित दो विधियों का मिलाजुला स्वरूप है.
नियम इस प्रकार के किसी भी कार्रवाई को परिभाषित नहीं करते हैं लेकिन यदि मतदाता सूची को पुनरीक्षित करने के सामान्य तरीकों में चुनाव आयोग को बहुत सी खामियां नजर आती हैं तो चुनाव आयोग का मैनुअल स्पेशल समरी रिवीजन के नाम से मतदाता सूची का एक चौथे तरीके से पुनरीक्षण प्रस्तावित करता है. चुनाव आयोग उपरोक्त लिखित खामियों को रिकॉर्ड करता है और फिर स्पेशल समरी रिवीजन का नोटिस निकालता है.
इलेक्शन कमीशन ने अभी बिहार और फिर बाद में बाकी के देश के लिए जिस प्रकार के मतदाता सूची पुनरीक्षण का आदेश दिया है उसको ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर)’ का नाम दिया गया है. तथ्य ये है कि इस प्रकार के किसी भी शब्द का कोई अस्तित्व नहीं है और मतदाता सूची को पुनरीक्षित करने वाली शासन-विधि में इस नाम से किसी नियम का कोई जिक्र नहीं है.
एसआईआर के अंतर्गत चुनाव आयोग ने निम्नांकित आदेश दिए हैं:
2003 तक पंजीकृत वोटरों को इस बात का प्रमाण देना होगा कि 2003 की मतदाता सूची में उनका नाम शामिल था.
40 की उम्र के पार ऐसे वोटर जिनका नाम 2003 की मतदाता सूची से गायब है उनको अपनी नागरिकता, पहचान और निवास को साबित करने के लिए दस्तावेज प्रस्तुत करने होंगे.
2003 की जिस मतदाता सूची का प्रयोग इस सूची पुनरीक्षण की कार्रवाई के लिए किया जा रहा है उसका हिस्सा बनने के लिए 21 से 40 साल की उम्र के लोग बहुत छोटे थे इसलिए इस उम्र के लोगों को या तो इस बात का प्रमाण देना होगा कि वर्ष 2003 की मतदाता सूची में उनके अभिभावकों को वोटर के रूप में पंजीकृत किया गया था और या फिर इस प्रकार के वोटरों को अपने किसी एक अभिभावक की पहचान और नागरिकता के साथ अपनी पहचान व नागरिकता को सिद्ध करना होगा.
21 की उम्र से कम के वो वोटर जिनका जन्म वर्ष 2004 के बाद हुआ है उनको या तो इस बात का सबूत दिखाना होगा कि 2003 की मतदाता सूची में उनके अभिभावकों को वोटर के रूप में पंजीकृत किया गया था, और या फिर इस प्रकार के वोटरों को अपने दोनों अभिभावकों की नागरिकता और पहचान को सिद्ध करने वाले दस्तावेजों को प्रस्तुत करते हुए अपनी खुद की पहचान और नागरिकता जो साबित करना होगा.
मतदाता सूचियों की इस स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन की कार्रवाई के तहत वोटरों को अपने साक्ष्य दिखाने के लिए 30 दिनों का समय दिया गया है. इसके साथ ही यदि मतदाता सूची से वोटरों का नाम हटा लिया जाता है और या फिर सूची में उसका नाम दोषपूर्ण रूप से दर्ज कर दिया जाता है तो इन सभी त्रुटियों को चुनौती देने के लिए वोटरों को 30 दिनों का समय दिया गया है.
भारत के चुनावी इतिहास में इस तरीके के मतदाता सूची में किए गए पुनरीक्षण की कोई मिसाल नहीं है. वर्ष 2002-2003 में चुनाव आयोग ने आखिरी बार एसआईआर के नाम से कुछ कार्रवाई की थी, लेकिन ये कार्रवाई चुनाव के महज तीन महीने पहले जल्दबाजी में छोटे स्तर पर न कराकर विधिवत रूप से साल भर तक चली थी. और महत्वपूर्ण बात ये है कि द कलेक्टिव के द्वारा परखे गए चुनाव आयोग के मैन्युअल ये दिखाते हैं कि 2003 का एसआईआर एक समय पर सूचीबद्ध किए गए वोटरों और किसी अन्य समय सूचीबद्ध किए गए वोटरों के बीच भेदभाव नहीं करता था.
वर्तमान में मतदाता सूची पुनरीक्षण की इस कार्रवाई को महज ‘स्पेशल’ बोलकर चुनाव आयोग मनमाने तौर पर सूची पुनरीक्षण के एक ऐसे बिलकुल नए रास्ते को सृजित करने की ओर चल निकला है जो रास्ता अलग-अलग नागरिकों से अलग-अलग तरीके से व्यवहार करता है. और साथ में सूची पुनरीक्षण कार्रवाई का ये तरीका लोगों से वोटर लिस्ट में शामिल होने के लिए अलग-अलग स्तर के सबूत मांगता है.
अपने नोटिफिकेशन में चुनाव आयोग का दावा है कि ये स्पेशल कार्रवाई इसलिए जरूरी है क्योंकि, “पिछले 20 वर्षों में बहुत बड़े स्तर पर मतदाता सूची में चीजें जोड़े या हटाए जाने के कारण, कमीशन ने संज्ञान लिया है कि इस समयावधि में, मतदाता सूची बहुत हद तक बदल गई है. उफान मारता शहरीकरण और लोगों का पलायन…अब रोज की बात है.”
हालांकि, बिहार के चुनाव आयोग के रिकॉर्ड चुनाव आयोग के उपरोक्त लिखित कथन के विपरीत जाते हैं.
अभी संपन्न हुए स्पेशल रिवीजन को किनारे लगा दिया गया
रिकॉर्ड दिखाते हैं कि चुनाव आयोग के निर्देशानुसार बिहार के चुनावी ढांचे ने अभी जल्द ही मतदाता सूची का स्पेशल समरी रिवीजन संपन्न किया है. स्पेशल समरी रिवीजन की ये कार्रवाई जून 2024 से शुरू होकर नवम्बर 2024 तक चली थी. चुनाव आयोग के रिकॉर्ड दिखाते हैं कि इस पूरी विधिवत कार्रवाई के बाद मतदाताओं की फाइनल लिस्ट जनवरी 2025 में जारी कर दी गई थी.
इसी के साथ ही रिकॉर्ड्स के अनुसार, जब तक 24 जून को चुनाव आयोग ने बेहद अभूतपूर्व रूप से मतदाता सूची को बिलकुल ही नए सिरे से फिर से बनाने का फरमान अचानक से नहीं सुना दिया, जून के महीने में भी दर्ज कराई गई आपत्तियों और प्रविष्टियों के आधार पर मतदाता सूची में चीजों को जोड़ने, हटाने और बदलने का काम नियमानुसार चल ही रहा था.
बिहार की चुनावी प्रक्रिया में शामिल एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया के बाद हमें इसे कुछ चुनिंदा मानकों, जैसे अनुमानित जनसंख्या-मतदाता अनुपात, लिंगानुपात, आयु समूह विश्लेषण, मतदान केंद्रवार पिछले तीन वर्षों में (वोटरों की) संख्या में हुई असामान्य बढ़ोतरी या कमी, के ऊपर परखना होता है. अगर इन जांचों में कोई विसंगतियां मिलती हैं तो इसकी सूचना चुनाव आयोग को दे दी जाती है. मैं ये नहीं कह सकता हूं कि जनवरी 2025 में संपन्न हुई कार्यवाही में हमें इन विसंगतियों में से कोई भी विसंगति पूरे राज्य में मिली थी.”
इस अधिकारी ने जनवरी 2025 के बाद बनाई गई मतदाता सूचियों की स्थिति को दर्शाती हुई स्टैण्डर्ड रिपोर्टें भी साझा की. पिछले वर्षों की मतदाता सूचियों की रिपोर्टों की वर्तमान रिपोर्टों से तुलना करते हुए हमने वर्तमान रिपोर्टों को परखा. यदि राज्य स्तर पर देखें तो सकल रूप से जनवरी 2025 की मतदाता सूची के अनुपातों की रेंज वर्ष 2024, 2023, 2022 और 2021 की रेंजों के समान ही है. ये इस बात को दर्शाता है कि इस वर्ष मतदाता सूची मे किए गए अपडेट किसी विसंगतिपूर्ण ट्रेंड की तरफ नहीं ले जाते हैं.
अधिकारी ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि, “जल्द ही संपन्न हुआ स्पेशल समरी रिवीजन कोई इतनी बड़ी राज्य स्तरीय विसंगतियों को नहीं दर्शाता है कि इनकी रिपोर्ट चुनाव आयोग को देनी पड़ जाए.”
इन रिपोर्टों का एक भाग पलायन किए हुए वोटरों का निर्वाचन क्षेत्र के अनुसार भी ब्योरा प्रदान करता है. जब हमने रिपोर्टों के पलायन संबंधी भाग को परखा तो हमें पता चला कि जनवरी 2025 की रिपोर्ट के अनुसार 1,91,222 वोटरों ने अपना ठिकाना बदल दिया है. रिकॉर्ड्स के अनुसार, चुनाव आयोग के दावों के विपरीत, बिहार की निर्वाचन पुनरीक्षण प्रक्रिया के अंतर्गत हर साल लोगों के पलायन का ब्योरा भी जमा किया जाता है.
स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन का आदेश देने के पहले तक मतदाता सूचियों में जिन बड़ी गड़बड़ियों का चुनाव आयोग दावा कर रहा था उन दावों को पुख्ता करने के लिए चुनाव आयोग ने कोई डेटा या सबूत उपलब्ध नहीं कराया. और न ही जनवरी 2025 की स्पेशल समरी रिवीजन में राज्य स्तरीय अधिकारियों ने ऐसी कोई बड़ी गड़बड़ी पाए जाने का दावा किया.
चुनाव आयोग के एक सेवानिवृत्त अधिकारी ने कहा कि, “2003 में विभिन्न राज्यों में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन रिकॉर्ड्स का कम्प्यूटरीकरण करने के लिए किया गया था. 2003 की इस कार्रवाई के दौरान सभी नागरिकों के साथ एक समान व्यवहार किया गया था और सबको अपने वोट देने के अधिकार पर दावा करने के लिए दस्तावेज प्रस्तुत करने का पर्याप्त समय मिला था. लेकिन इस बार राजनीतिक पार्टियों या नागरिकों को बिना किसी पुख्ता सबूत दिए चुनाव आयोग ने बहुत ही कम समय में अलग-अलग नागरिकों के लिए अलग-अलग विधा से अपनी पहचान को सत्यापित करने का आदेश सुना दिया.”
चुनाव आयोग की तरफ से तुतर-फुतर में आए आदेश के बाद कई अन्य डर हवा में पसर गए हैं. एक डर ये है कि यदि इस तेजी से होने वाली कार्रवाई में जो नागरिक प्रतिभाग नहीं कर पायेंगे उन नागरिकों की नागरिकता का क्या होगा.
संदिग्ध नागरिक
कानून ये कहता है कि सिर्फ नागरिकों को ही वोट करने का अधिकार है. लेकिन सरकारी दस्तावेज जिनसे किसी व्यक्ति विशेष की नागरिकता प्रमाणित की जाती है वो दस्तावेज हमेशा से ही एक उलझी गुत्थी रहे हैं. इसलिए व्यावहारिक तौर पर निर्वाचन आयोग इस बात का अंतिम निर्णय लेने से बचता है कि कौन देश का नागरिक है और कौन नहीं. वोटर कार्ड जारी करने के लिए निर्वाचन आयोग विविध प्रकार के दस्तावेज पहचान पत्र के रूप में स्वीकार करता है.
लेकिन इस बार अपने आदेश में निर्वाचन आयोग ने जोर देते हुए कहा है कि स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन में नागरिकता का सत्यापन किया जाना चाहिए. निर्वाचन आयोग के नागरिकता सत्यापन की बात पर बल दिए जाने के कारण बिहार में हलचल बढ़ गई थी.
द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने एक वीडियो देखा जिसमें बिहार के अररिया जिले का एक जिला स्तर का अधिकारी लोगों को खासतौर पर सूचित करते हुए कह रहा था कि इस कार्रवाई का उद्देश्य उन वोटरों की नागरिकता को सत्यापित करने का है, जिनका नाम दशकों पुरानी 2023 की वोटर लिस्ट में नहीं है.
चुनाव आयोग के सेवानिवृत्त अधिकारी ने कहा, “असम में हमें इस प्रकार की कार्रवाई का अनुभव पहले भी हो चुका है जहां ‘संदिग्ध’ होने की श्रेणी में डाले गए वोटरों को वोट डालने नहीं दिया गया था. लगभग दो दशकों के बाद हमें अभी तक नहीं पता है उन वोटरों और उनके अधिकारों का क्या हुआ. असम के उस किस्से का किसी ने फॉलो अप नहीं किया. मैं इस बात को लेकर बेहद चिंतित हूं कि तुतर-फुतर में की गई मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण की ये कार्रवाई राष्ट्रीय स्तर पर संदिग्ध नागरिकों का एक पूरा चिट्ठा तैयार कर देगी.”
उन्होंने अपनी बात में आगे जोड़ा, “इसके साथ ही अपने वोटिंग के अधिकार के सबूत के रूप में नागरिक जो-जो दस्तावेज जमा कर सकते हैं उसको लेकर चुनाव आयोग की तरफ से जारी किया गया भ्रांतिकारक दिशानिर्देश जनता के लिए बेहद कठिन है जो भयंकर भ्रम फैला देगा. जनता के पास दस्तावेजों की एक सम्पूर्ण और स्पष्ट लिस्ट होनी चाहिए.”
अपनी पहचान को कैसे सत्यापित किया जाए?
सेवानिवृत्त अधिकारी चुनाव आयोग के उस आदेश का संदर्भ लेकर अपनी बात कह रहे थे जिसके अनुसार नागरिकों को अपना वोट देने का अधिकार सिद्ध करने के लिए क्रमबद्ध तरीके से लिखे गए 11 दस्तावेजों में से एक दस्तावेज को प्रदान करना होता था. वर्तमान में इस डर के कारण कि जाली आधार कार्डों की वजह से सरकारी तंत्र इन कार्डों का बायोमेट्रिक के माध्यम से सत्यापन करने में विफल होता जा रहा है, आधार और राशन कार्ड को स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन की प्रक्रिया में मान्य नहीं किया गया है.
चूंकि निर्दिष्ट दस्तावेज बताने के बाद चुनाव आयोग का आदेश कहता है कि ये दस्तावेजों की सम्पूर्ण लिस्ट नहीं है, भ्रम का माहौल बना हुआ है.
हमने बिहार के एक अधिकारी से बात की तो उन्होंने कहा, “जमीन पर मौजूद अधिकारियों के लिए आप आदेश को इस तरह स्पष्ट तौर पर दिशानिर्देश लिखे बिना नहीं छोड़ सकते. चुनाव आयोग को उन-उन दस्तावेजों की स्पष्ट लिस्ट प्रदान करनी चाहिए थी जिनको जमा करना मान्य है.”
सत्यापन के लिए मान्य 11 दस्तावेजों में से आधार को मान्यता नहीं दी गई है, इस बात के ऊपर किसी का ध्यान नहीं गया. जब चुनाव आयोग ने इस समस्या के समाधान के लिए दस्तावेजों की लिस्ट को ‘सांकेतिक (सम्पूर्ण नहीं)’ शीर्षक दे दिया तब बिहार के आधिकारिक तौर पर सूचना प्रदान करने वाले चैनलों ने चुनाव आयोग के उलट जाते हुए 11 दस्तावेजों की इस आधार विहीन लिस्ट को एकमात्र स्वीकार्य दस्तावेजों की लिस्ट बता दिया.
स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन को लेकर जागरूकता बढ़ाने कि लिए बिहार सरकार के औपचारिक क्षेत्रीय न्यूज यूनिट ने ट्विटर पर एक ग्राफिक आधारित ट्वीट किया था जिसमें आवश्यक रूप से जमा किए जाने वाले 11 दस्तावेजों को दिखाया गया था. लेकिन इस ट्वीट से मुख्य शब्द “सम्पूर्ण नहीं” गायब था.
वहीं, पुनरीक्षण कार्रवाई को करने वाले बूथ-स्तर के कर्मचारियों (बीएलओ) को मतदाता सूची का पुनरीक्षण करने के लिए जो दिशानिर्देश दिए गए थे वो काफ़ी विस्तृत थे. अररिया जिले के एक बीएलओ, गणेश लाल राजक ने मामले पर प्रकाश डालते हुए बताया, “हमारी ट्रेनिंग के समय हमें दिशानिर्देश दिया गया था कि जन्म और निवास का सत्यापन करने के लिए हम आधार और राशन कार्ड का प्रयोग न करें.”
हालांकि, चुनाव आयोग के द्वारा प्रकाशित 2023 की निर्वाचन नामावली का मैनुअल आधार को उम्र और निवास का सत्यापन करने के लिए स्वीकार्यता प्रदान करता है. दस्तावेजों के न होने की स्थिति में किसी एक अभिभावक या सरपंच के द्वारा प्रदान की गई शपथ या समर्थन, या फिर मात्र वोटर के बूथ स्तर के अधिकारी के द्वारा किए गए प्रत्यक्ष परीक्षण को उम्र के सत्यापन के लिए दस्तावेज के रूप में प्रयोग किया जा सकता है. दस्तावेजों की अनुपस्थिति में इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर निवास के सत्यापन के लिए लोकल स्तर पर खोजबीन भी कर सकता है.
जमीनी हड़कंप
लेकिन बात ये है कि जब हम इस रिपोर्ट को लिख रहे हैं बिहार में मतदाता सूचियों का स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन चल रहा है. हमने तामाम ऐसे बूथ-स्तर के अधिकारियों से बात की जिनको वोटर लिस्ट के लिए पूरे देश में फॉर्मों को बांटने के साथ-साथ इन फॉर्मों को साक्ष्यों के आधार पर भरवाना भी है.
30-दिनों की इस मतदाता पुनरीक्षण कार्रवाई के पहले ही हफ्ते में नागरिकों के रोष के मद्देनजर बूथ-स्तर के अधिकारियों को दिए गए दिशानिर्देश बदल दिए गए. अब इन अधिकारियों को आदेश दिया गया है कि गणना प्रपत्र (इन्यूमरेशन फॉर्म) को स्वीकार करते समय वोटर के सत्यापन के लिए दस्तावेज न मांगे.
द कलेक्टिव ने जिन बूथ-स्तर के तमाम अधिकारियों से बात की उन्होंने बताया कि 30 जून को चुनाव आयोग द्वरा स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन संबंधी घोषणा किए जाने के पांच दिनों के बाद ही बूथ अधिकारियों की ट्रेनिंग प्रारंभ हुई थी. और जुलाई के पहले हफ्ते में ही इन अधिकारों को दरवाजे-दरवाजे पर बांटने के लिए गणना प्रपत्र दे दिए गए थे.
जिला सीतामढ़ी के बूथ अधिकारी भरत भूषण ने द कलेक्टिव को बताया, “हालांकि (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन की) ये बात 25 जून से ही कागजों में है लेकिन सरकार ने ट्रेनिंग शुरू करने में पांच दिन की देरी की. और इसके बाद हमें गणना प्रपत्र देने में भी उन्होंने और पांच दिनों की देरी की. भरत को 5 जुलाई को गणना प्रपत्र दिए गए थे. 900 लोगों को मतदाता सूची में शामिल करने के लिए भरत को आगामी तीन हफ्तों में ये प्रपत्र बांटने और फिर एकत्रित करने हैं. भरत ने ये भी बताया कि गणना प्रपत्रों को ऑनलाइन माध्यम से अपलोड करने में भी उनको समस्या आ रही है जिससे काम में बाधा उत्पन्न हो रही है.
पुनरीक्षण कार्रवाई के एक हफ्ते में ही बूथ अधिकारियों को दिए गए दिशानिर्देश बदल दिए गए. बहुत से अधिकारियों ने बताया कि अब वो बिना किसी जरूरी दस्तावेजों के फोटो चस्पा किए भरे हुए फॉर्मों को ही एकत्र कर रहे हैं. ऐसा करने का आदेश बूथ कर्मचारियों को मौखिक रूप से अधिकारियों की तरफ से दिया गया है जिससे कम से कम फॉर्म भर तो जाए.
जिला अररिया की रीना कुमारी ने द कलेक्टिव को बताया, “ऑनलाइन माध्यम में मुझे गणना प्रपत्र के साथ पहचान पत्र को अपलोड करने में समस्या हो रही थी, इसलिए मुझे निर्देश दिया गया कि मैं भरे हुए प्रपत्रों को बिना दस्तावेजों के जमा कर दूं.”
6 जुलाई को इस पुनरीक्षण कार्रवाई के लिए नियमों को और भी ढीला करते हुए बिहार के चीफ इलेक्टोरल ऑफिसर के कार्यालय की तरफ से एक विज्ञापन प्रकाशित किया गया जिसमें कहा गया कि, “जैसे ही आपको गणना प्रपत्र मिलता है…इसको तुरंत भरे…अगर आपके पास जरूरी दस्तावेज या फोटो नहीं है तो भी फॉर्म को तुरंत भर कर इसको बीएलओ को दे दें.”
द कलेक्टिव इस बात की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं कर सकता है कि क्या पहचान को सत्यापित करने के लिए जरूरी दस्तावेजों के बिना जमा किए गए गणना प्रपत्रों को मतदाता सूची में शामिल किया जाएगा कि नहीं. इन अधूरे फॉर्मों के केस को बिहार के चुनाव अधिकारी कैसे डील करेंगे इस विषय में बूथ-स्तर पर मौजूद कर्मचारियों को आधे-अधूरे दिशानिर्देश ही दिए गए हैं.
सुपौल जिले के बूथ अधिकारी कृष्ण कुमार मंडल ने कहा कि उनको ये दिशानिर्देश दिया गया है कि पहचान के सत्यापन के लिए जरूरी दस्तावेजों को बिना संलग्न किए गए जो फॉर्म उनको आंशिक रूप से भरी हुई स्थिति में प्राप्त हुए हैं उन फॉर्मों को वो अधिकारियों के द्वारा मूल्यांकन किए जाने के लिए एक ओर रख दें. मंडल ने कहा, “यदि हमारे सामने कोई ऐसा व्यक्ति आता है जो 11 दस्तावेजों में से कोई भी दस्तावेज उपलब्ध नहीं करा पाता है तो हमें आदेश है कि ऐसी स्थिति में भी उस व्यक्ति को डरने से बचाने और सार्वजनिक क्षेत्र में हल्ला मचने से रोकने के लिए हम उस व्यक्ति का गणना प्रपत्र ले लें. लेकिन हमें इन प्रपत्रों को ऑनलाइन तरीके से अपलोड करने की बजाए एक ओर रख लेना है. इन प्रपत्रों का मूल्यांकन बाद में किया जाएगा जिससे ये निर्धारित किया जा सके कि इन प्रपत्रों से कैसे निपटना है.”
भारत निर्वाचन आयोग द्वारा बिहार के सभी 7 करोड़ से अधिक मतदाताओं के सत्यापन करने का सरसरा आदेश जमीन पर लागू हो चुका है. 6 जुलाई को केंद्र सरकार ने अपनी प्रेस रिलीज में कहा था कि 21.46 प्रतिशत गणना प्रपत्रों को जमा कर दिया गया है. प्रेस रिलीज कहती है कि, “अभी भी फॉर्म जमा करने की आखिरी तिथि को आने में 19 दिनों का वक्त है.
सरकार का कहना है कि, “बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर) की कार्रवाई मतदाताओं के सहयोग से बहुत सुचारू रूप से जमीन पर लागू हो गई है.” हमने पाया कि सरकार के इस दावे को पुख्ता करने के लिए जमीन पर मौजूद कर्मचारियों को फॉर्म जमा करते हुए नागरिकों का वीडियो बनाकर उसको सोशल मीडिया पर डालने का अतिरिक्त टास्क दिया गया है.”
साभार- द रिपोर्टर्स कलेक्टिव
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