Khabar Baazi
झूठी रिपोर्टिंग पर कोर्ट की सख्ती: ज़ी न्यूज़ और न्यूज़ 18 के खिलाफ एफआईआर के आदेश
जम्मू-कश्मीर की एक अदालत ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान कथित रूप से झूठी और मानहानिकारक खबरें प्रसारित करने के आरोप में ज़ी न्यूज़ और न्यूज़18 इंडिया के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है.
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, यह आदेश पुंछ की एक अदालत ने 28 जून को वकील शेख मोहम्मद सलीम की शिकायत पर पारित किया. सलीम का आरोप है कि दोनों चैनलों ने पाकिस्तानी गोलाबारी में मारे गए एक स्थानीय शिक्षक को झूठे ढंग से “आतंकवादी” बताया.
पुलिस ने अदालत में तर्क दिया कि चूंकि यह प्रसारण दिल्ली से हुआ था, इसलिए यह मामला अदालत की क्षेत्रीय अधिकार सीमा से बाहर है. लेकिन अदालत ने इस आपत्ति को खारिज कर दिया और बिना किसी पुष्टि के शिक्षक को आतंकवादी करार देने को “गंभीर पत्रकारिता कदाचार” करार दिया.
‘द वायर’ की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने ज़ी न्यूज़, न्यूज़18 और अन्य राष्ट्रीय टीवी चैनलों के “कुछ एंकरों और संपादकीय कर्मियों” के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया.
अदालत ने कहा कि यह रिपोर्टिंग मानहानि, सार्वजनिक उपद्रव और धार्मिक भावनाएं आहत करने की श्रेणी में आती है, जो भारतीय न्याय संहिता और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 के तहत दंडनीय अपराध हैं.
गौरतलब है कि 47 वर्षीय शिक्षक क़ारी मोहम्मद इकबाल पुंछ के निवासी थे और 7 मई को पाकिस्तानी गोलीबारी में वह मारे गए थे.
न्यूज़लॉन्ड्री ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि सीएनएन-न्यूज़18 ने इकबाल को एक ऐसा “आतंकवादी” बताया जिसे भारत “बहुत समय से खोज रहा था”. चैनल ने यह भी दावा किया कि वह पुलवामा हमले का मास्टरमाइंड था. इसकी हिंदी इकाई न्यूज़18 इंडिया ने इकबाल को “लश्कर कमांडर” बताया, जो पीओके में “आतंक की फैक्ट्रियां” चलाता था.
ज़ी न्यूज़ ने इकबाल को “एनआईए का मोस्ट वांटेड” आतंकवादी बताया, जो “युवाओं को ब्रेनवॉश कर उन्हें आतंकी गतिविधियों के लिए तैयार करता था”. रिपब्लिक टीवी ने उसे “टॉप लश्कर-ए-तैयबा कमांडर” बताया.
बाद में पुंछ पुलिस ने ट्वीट कर स्पष्ट किया कि इकबाल के “किसी भी आतंकी संगठन से कोई संबंध नहीं थे” और “गलत जानकारी फैलाने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी”.
न्यूज़लॉन्ड्री ने इकबाल की मौत के कुछ दिन बाद पुंछ में उनके परिवार से मुलाकात की. परिवार ने इस दौरान बातचीत में कहा, “हम खुद को यह कहकर दिलासा देते रहे कि वो देश के लिए शहीद हुए हैं, अब अल्लाह के करीब हैं. लेकिन जो हमने कभी सोचा भी नहीं था, वो था भारतीय मीडिया का यह व्यवहार. इसने हमें पूरी तरह तोड़ दिया.”
इस मामले पर पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
भ्रामक और गलत सूचनाओं के इस दौर में आपको ऐसी खबरों की ज़रूरत है जो तथ्यपरक और भरोसेमंद हों. न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करें और हमारी भरोसेमंद पत्रकारिता का आनंद लें.
Also Read
-
Exclusive: India’s e-waste mirage, ‘crores in corporate fraud’ amid govt lapses, public suffering
-
4 years, 170 collapses, 202 deaths: What’s ailing India’s bridges?
-
‘Grandfather served with war hero Abdul Hameed’, but family ‘termed Bangladeshi’ by Hindutva mob, cops
-
India’s dementia emergency: 9 million cases, set to double by 2036, but systems unprepared
-
ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा का सार: क्रेडिट मोदी का, जवाबदेही नेहरू की