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साबरमती आश्रम के आसपास दिन-रात चलता पीला पंजा- ‘इस बदलाव से यहां की सादगी चली जाएगी’
सुप्रीम कोर्ट ने एक अप्रैल को महात्मा गांधी के परपोते तुषार गांधी की वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने साबरमती आश्रम के लिए गुजरात सरकार की 1,200 करोड़ की पुनर्विकास परियोजना का विरोध किया था.
याचिका ख़ारिज करते हुए न्यायमूर्ति एम. एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने कहा कि वह याचिका में हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं. इसकी सुनवाई में दो साल से अधिक का विलंब हुआ है.
जिस वक़्त सुप्रीम कोर्ट मामले की सुनवाई से इनकार करते हुए याचिका ख़ारिज कर रहा था उसी वक़्त अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे महात्मा गांधी के आश्रम के आस-पास दर्जनों की संख्या में जेसीबी मलबे को हटा रही थीं.
इस आश्रम में महात्मा गांधी 1917 से 1930 के बीच रहे थे. यहीं से उन्होंने नमक विरोधी कानून को लेकर ऐतिहासिक दांडी मार्च भी किया था.
आश्रम के ठीक सामने सड़क के दूसरी तरफ खादी ग्रामोद्योग गांधी हाट था. जो यहां साल 1979 से चल रहा था. इसमें खादी के कपड़े बिकते थे. 27 मार्च को अधिकारियों की एक टीम दुकान को खाली कराने के लिए पहुंची. यहां के इंचार्ज नागाजी देसाई बताते हैं, ‘‘हमने प्रशासन से 31 मार्च तक के लिए समय मांगा. हमारे पास करीब 17 लाख रुपये का स्टॉक था. उसे अचानक एक दिन में कैसे हटा सकते हैं.’’
देसाई आगे बताते हैं, ‘‘27 मार्च को वो लोग चले गए लेकिन अगले दिन 28 मार्च को 20 के करीब मज़दूरों और गाड़ी लेकर पहुंचे और सामान निकालकर बाहर रखवाने लगे. वो सामान को ऐसे रख रहे थे जैसे कबाड़ हो. अधिकारियों ने कहा कि तत्काल इसे खाली करें. इतना दबाव था कि हमने उसी दिन जैसे-तैसे वहां से सामान हटाया. अगले ही दिन जेसीबी से हमारी दुकान को तोड़ दिया गया. एकदम समतल कर दिया गया. समझ में नहीं आ रहा था कि इतनी जल्दबाजी क्या थी.’’
खादी ग्रामोद्योग गांधी हाट को हटाने के बाद आश्रम में बनी नई पार्किंग में उसे एक टीन की दुकान मिली है. जो 33X10 फुट की है. देसाई बताते हैं, ‘‘यहां ना हमारा समान आ पाया और न हमारे यहां काम करने वाले लोगों को जगह मिली. ऐसे में तीन काम करने वालों को हटाना पड़ा. टीन का शॉप है. सीधे सूरज की किरण पड़ रही है. ना ही खरीदार आ रहे हैं. धूप की वजह से हमारे कपड़े भी खराब हो रहे हैं.’’
आश्रम के आसपास बीते दो महीने से तोड़-फोड़ चल रही है. उसमें मार्च 15 के बाद से तेजी आई है. इसके पीछे कारण है, पुडुचेरी के उपराज्यपाल के. कैलाशनाथन की गुजरात यात्रा. उन्हें कभी गुजरात का ‘सुपर सीएम’ कहा जाता था. पूर्व आईएएस अधिकारी के. कैलाशनाथन इस निर्माण की एग्जीक्यूटिव काउंसिल के प्रमुख हैं. वो बीते महीने ही गुजरात यात्रा पर थे. यहां उन्होंने बैठक ली. जिसके बाद काम की रफ़्तार तेज हो गई है.
इससे पहले नवंबर 2024 में आश्रम के सामने से होकर जाने वाली सड़क को बंद कर दिया गया. अब इसे तोड़ा जा रहा है. उसके बाद से यहां कई निर्माण तोड़े जा चुके हैं, जैसे- सफाई स्कूल, पीटीसी स्कूल, स्त्री अध्यापन मंदिर, खादी सदन और गौशाला.
साबरमती आश्रम पुर्नविकास योजना के लिए एक ट्रस्ट का निर्माण किया गया है. जिसका नाम, महात्मा गांधी सबरमती आश्रम मेमोरियल ट्रस्ट है. इसकी गवर्निंग काउंसिल के प्रमुख गुजरात के मुख्यमंत्री हैं और एग्जीक्यूटिव काउंसिल के प्रमुख के कैलाशनाथन.
वहीं, इस योजना को पूरा कराने की जिम्मेदारी पूर्व आईएएस अधिकारी आइके पटेल के पास है. उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि यहां 1947 से पहले जितने निर्माण थे, उसे हम संग्रहित कर रहे हैं. ऐसे यहां कुल 36 निर्माण थे, उसमे से 28 पर काम चल रहा है. बाकी के छह भवन मुख्य आश्रम के अंतर्गत हैं. वहीं, 20 भवनों को हमने तोड़ा है. इन भवनों का गांधी की परंपरा या लीगेसी से कोई लेना-देना नहीं था.
क्या है साबरमती आश्रम पुनर्विकास योजना?
इस योजना के बारे में विस्तार से समझाते हुए यहां एक प्रदर्शनी लगी हुई है. उसके मुताबिक, साबरमती आश्रम 55 एकड़ में फैला हुआ है. यह जमीन पांच ट्रस्ट्रों के पास थी. जिसमें से चार ने अपनी पूरी जमीन महात्मा गांधी सबरमती आश्रम मेमोरियल ट्रस्ट को सौंप दी है. यह 48.79 एकड़ जमीन है.
जिस जगह पर महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी रहे थे. उस जगह की देखभाल साबरमती आश्रम प्रिजर्वेशन एंड मेमोरिएल ट्रस्ट देखता है. यह 6.45 एकड़ में फैला हुआ है. सरकार का दावा है कि इस क्षेत्र में पुर्नविकास का कोई काम नहीं हो रहा है. यहां जमीन नहीं ली गई है.
इसके बाद हरिजन आश्रम ट्रस्ट था. जिसके पास यहां सबसे ज़्यादा 21.15 एकड़ जमीन थी. इसी के अंतर्गत सफाई स्कूल भी आता था. इसके मुखिया गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री और उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल के दामाद जयेश पटेल थे. इस ट्रस्ट से सारी जमीन ले ली गई है.
7.28 एकड़ जमीन साबरमती आश्रम गौशाला ट्रस्ट के पास थी. इनकी भी सारी जमीन पुनर्विकास योजना में आ गई है. यहां पर जो पहले से गौशाला का ढांचा मौजूद था, उसका पुर्नविकास कर दिया गया है.
चौथा ट्रस्ट, खादी ग्रामोद्योग प्रयोग समिति है. जिसके पास कुल 6.05 एकड़ जमीन थी. इनकी भी पूरी जमीन पुर्नविकास योजना के अंतर्गत आ गई है. वहीं, गुजरात खादी ग्रामोद्योग मंडल के पास 0.45 एकड़ की जमीन थी. बाकी के 14 एकड़ अहमदाबाद नगर निगम और गुजरात सरकार की है. यह सभी पुर्नविकास के अंतर्गत आ रहे हैं.
55 एकड़ क्षेत्र को लेकर सरकार का जो मास्टर प्लान है. उसमें पुराने भवनों के अलावा आश्रम घाट, न्यू एग्जिबिशन सेंटर, लॉट्स पॉन्ड, कैफेटेरिया और एम्पीथिएर आदि बनेगा.
आइके पटेल बताते हैं कि महात्मा गांधी सबरमती आश्रम मेमोरियल ट्रस्ट ने जिन दूसरे ट्रस्टों से जमीन ली हैं, उन्हें आश्रम के बगल में जमीन भी दी गई है. नागाजी देसाई (गुजरात खादी ग्रामोद्योग मंडल) को भी यहीं जमीन मिली है. इसके अलावा पुर्नविकास के लिए जो ट्रस्ट बनाया गया है उसमें हरिजन ट्रस्ट से जयेश पटेल, साबरमती आश्रम प्रिजर्वेशन एंड मेमोरिएल ट्रस्ट से कार्तिक साराभाई और दूसरे ट्रस्टों के एक-एक ट्रस्टी भी शामिल हैं. उनके सुझावों को भी पुर्नविकास में शामिल किया जाता है.
बजट के दो तिहाई का पुनर्वास पर खर्च का दावा-
आश्रम के आसपास 280 मकान थे जिसमें 300 लोगों का परिवार रहता था. जिसमें से ज़्यादातर दलित समुदाय से थे. इन्हें महात्मा गांधी ने यहां बसाया था. इन परिवारों को यहां से जाने के लिए चार ऑफर सरकार की तरफ से दिए गए थे. यह काम अहमदाबाद के जिला अधिकारी को सौंपा गया था. पहला ऑफर 60-90 लाख रुपये, दूसरा शास्त्री नगर स्थित सरदार पटेल आवास योजना में आवास, तीसरा आश्रम के करीब ही घर बनाकर देना और चौथा आश्रम के पास जमीन उपलब्ध कराना और निर्माण के लिए पैसे देना. यह राशि 25 लाख रुपये थीं.
आश्रम के सामने रसोई चलाने वाले हेमंत चौहान बीजेपी के नेता हैं और पीढ़ियों से यहां रह रहे हैं. उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि शुरुआत में सरकार की तरफ से पहला और दूसरा ऑफर ही दिया गया था. ऐसा यहां से हरिजनों को निकालने के लिए किया गया. भय के कारण 55 के करीब लोगों ने आवास ले लिया और बाकियों ने पैसे. 14-15 लोग थे, जो लड़ रहे थे कि उन्हें यहीं आवास दिया जाए. अंत में आकर हमारी बात मानी गई. अब यहां कर्मभूमि बंगलो बना है. इस सोसायटी का मैं चेयरमैन हूं.’’
चौहान आगे बताते हैं, “इस बंगलो में चार कमरों का घर हैं. जो आश्रम में रहने वाले 16 लोगों को आवंटित हुआ है. इसमें से दो बंगलो मेरा है. इसमें प्रयोग समिति के मुकुंद जोशी और दिनेश जोशी, जो पिता पुत्र हैं. उन्हें भी घर मिला है. जिन लोगों ने पैसे ले लिए या शास्त्री नगर में घर लिया वो अब पछता रहे है.’’
महात्मा गांधी सबरमती आश्रम मेमोरियल ट्रस्ट की तरफ योजना के लिए प्रदर्शित तस्वीरों में दावा किया गया है कि परियोजना की लागत का दो तिहाई हिस्सा आश्रमवासियों के पुर्नवास पर खर्च किया गया है. इस परियोजना की लागत 1200 करोड़ रुपये है उसका दो तिहाई यानि 800 करोड़ रुपये लोगों के पुनर्वास पर ही खर्च हुए हैं?
हालांकि, जब हमने इसको लेकर आइके पटेल से बात की तो उन्होंने कहा कि शायद वो गलती से लिखा गया है. उन्होंने हमें बताया, ‘‘आश्रमवासियों के पुनर्वास पर तकरीबन 225 करोड़ रुपये और जो यहां संस्थाएं थीं उनके रिलोकेशन पर 105 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं.’’
चौहान पुर्नवास में भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हैं और कहते हैं कि बहुत जल्दी मैं विस्तार से इसकी जानकारी गृहमंत्री अमित शाह को दूंगा. वो बताते हैं, ‘‘करीब 30 ऐसे लोगों को आवास मिला है जो आश्रम में नहीं रहते थे. मेरे पास पूरी लिस्ट है. अमित शाह को दूंगा.’’
किसने जताया विरोध
महात्मा गांधी आश्रम के पांच ट्रस्टों से जुड़े सदस्यों ने इस परियोजना का कोई विरोध नहीं किया. उसे अपनी सहमति दी.
महात्मा गांधी के पड़पोते तुषार गांधी इसका शुरू से ही विरोध कर रहे हैं. वो इसको लेकर कोर्ट भी गए लेकिन हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों जगह से निराशा हाथ लगी.
वहीं 'गांधी से जुड़े संस्थानों पर सरकारी कब्ज़ा रोको', इस नारे के साथ 130 कार्यकर्ताओं ने एक 'लेटर कैंपेन' शुरू किया था. इसमें रामचंद्र गुहा, राजमोहन गांधी, नयनतारा सहगल, आनंद पटवर्धन, गणेश देवी, प्रकाश शाह आदि शामिल थे.
गुजरात खादी ग्रामोद्योग मंडल के प्रमुख कल्याण सिंह ही हैं. इसके अंतगर्त दो उपक्रम थे. एक वो हाट, जिसे नागा देसाई संभालते हैं और दूसरा दूसरा कलम खुश, जहां ख़राब-पुराने सूती कपड़े से डायरी बनाई जाती है. कलम-खुश की बड़ी सी बिल्डिंग हुआ करती थी. जिसे अब तोड़ दिया गया है. उसे एक छोटी सी जगह से चलाया जा रहा है.
कलम खुश के मैनेजर मोहन भाई बताते हैं कि हम लोग पहले से ही तैयार थे कि बिल्डिंग टूटेगी ऐसे में सामान पहले ही हटा लिया था. अभी तो अस्थाई सा बनाकर दिया है लेकिन नई बिल्डिंग बन रही है. उसी में हमें शिफ्ट किया जाएगा. पहले हमारा पुराना ही सही बहुत बड़ा दफ्तर हुआ करता था. उसमें से आधी जमीन इन्होंने ले ली. सरकार के मन में जो आ रहा वो कर रही है. हमारे पास खुश रहने के अलावा कोई ऑप्शन भी नहीं है.’’
मनोज भाई जहां एक तरफ चिंता जाहिर कर रहे हैं वहीं कल्याण सिंह का कहना है, ‘‘सरकार बेहतरी के लिए ही कर रही है.’’
ऐसे ही साबरमती आश्रम प्रिजर्वेशन एंड मेमोरिएल ट्रस्ट एक वरिष्ठ अधिकारी जो गांधीवादी भी हैं. वो इसके बारे में बात तो करते हैं लेकिन अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर वो कहते हैं, ‘‘यहां किसी ने भी सरकार के इस काम का विरोध नहीं किया. सबने अपना सुझाव दिया है. यहां आए बगैर लोग लिख रहे और कोर्ट जा रहे कि गांधी आश्रम में तोड़फोड़ हो रहा है. यहां पुनर्निर्माण हो रहा है. दरअसल ऐसा करने से और लोग बापू के बारे में जानेंगे. सरकार अपने कामों के जरिए बापू के जीवन की सादगी को भी बचा रही है. शिकायत करने से बेहतर यहां लोग आकर हो रहे निर्माण को देखे.’’
साबरमती आश्रम प्रिजर्वेशन एंड मेमोरिएल ट्रस्ट के डायेक्टर अतुल पंड्या इस पूरे मामले पर कुछ भी बोलने से इंकार कर देते हैं.
आश्रम की सादगी चली जाएगी
एक तरह इस ट्रस्टी का दावा है कि सरकार पुर्ननिर्माण करते हुए बापू की सादगी को आश्रम में बचाकर रखेगी. आइके पटेल भी ऐसा ही दावा करते हैं.
वहीं, साबरमती आश्रम प्रिजर्वेशन एंड मेमोरिएल ट्रस्ट से जुड़े अन्य लोगों की मानें तो आश्रम की पहचान सादगी से है. यह सही है कि जहां बापू रहे वहां कोई निर्माण की योजना अभी तक नहीं है. लेकिन इसके आसपास में निर्माण कार्य होगा. कैफेटेरिया बनाये जायेंगे. संगीत का इंतज़ाम होगा तो यहां की सादगी चली जाएगी.
बीते 22 साल से आश्रम में काम करने वाले एक कमर्चारी कहते हैं, ‘‘यहां अभी लोग आते हैं तो बापू को महसूस करने आते हैं. ऐसा भी नहीं है कि कम लोग आते हैं. रोजाना यहां दो हजार से ज्यादा लोग आते हैं. मुझे तो आसपास में ‘विकास’ करने का कोई औचित्य समझ में नहीं आ रहा है. मुझे तो इस बात का भी डर है कि कल को आश्रम आने के लिए टिकट न लगा दें.’’
आइके पटेल इसको लेकर कोई स्पष्ट जवाब नहीं देते हैं. उनके जवाब से एक और अनिश्चितता सामने आती हैं. जहां पर अभी आश्रम बना है जिसकी देखभाल साबरमती आश्रम प्रिजर्वेशन एंड मेमोरिएल ट्रस्ट करता है. सरकारी दावे के मुताबिक, इस योजना के तहत कोई काम नहीं हो रहा है. ट्रस्ट ने भी दावा किया कि इस क्षेत्र का देखभाल वही करेंगे लेकिन निर्माण पूरा हो जाने के बाद जब 55 एकड़ का क्षेत्र एक बाउंड्री के अंदर आ जाएगा तो इसकी देखभाल कौन करेगा? इसपर आइके पटेल कहते हैं, ‘‘किसी एक बॉडी को यहां काम देखना पड़ेगा. मुझे लगता है कि वह बॉडी महात्मा गांधी सबरमती आश्रम मेमोरियल ट्रस्ट होगी क्योंकि इसमें गवर्निंग काउन्सिल के प्रमुख राज्य के सीएम हैं.’’
कई गांधीवादियों की यही चिंता है. अब तक आश्रम की देखभाल में सरकार की कोई भूमिका नहीं होती थी. अगर सरकार इसमें शामिल होती हैं तो वो अपने हिसाब से चीजें चलाएगी जैसे दिल्ली के गांधी स्मृति और दर्शन समिति में देखने को मिलता हैं. वहां गांधी से जुडी संस्थाएं पत्रिका निकालती हैं और उसमें बताया जाता है कि सावरकर और गांधी का आज़ादी की लड़ाई में बराबर योगदान था.
इस भारी भरकम प्रोजेक्ट के पीछे की वजह बताते हुए आइके पटेल कहते हैं, ‘‘महत्मा गांधी इस देश के सबसे बड़े हीरो हैं. लेकिन उनके बारे में विस्तार से जानकारी देती हुई कोई भी जगह देश में नहीं है. ऐसे में साबरमती आश्रम को 2019-20 में केंद्र सरकार ने चुना. इसको चुनने के पीछे कारण था कि बापू ने अपने जीवन का सबसे लंबा वक़्त इसी आश्रम में गुजारा था. यहां से जाने के बाद वो स्थायी तौर पर लंबे समय के लिए कहीं नहीं रुके थे. आज साबरमती आश्रम आने वाले लोग मुख्य आश्रम ही देख पाते हैं. जहां उन्हें बापू के जीवन के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं मिल पाती है. अभी जो लोग चिंता कर रहे हैं निर्माण के बाद वो लोग ही तारीफ करेंगे.’’
यहां का निर्माण कार्य सावनी हेरिटेज कंजर्वेशन प्राइवेट लिमिटेड को सौंपा गया है.
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