Saransh
अवैध हिरासत, यातना और भीड़ वाली मानसिकता का हिस्सा बनती भारतीय पुलिस
छोटे- मोटे अपराध के लिए पुलिस का हिरासत में ले लेना और फिर आरोपित की मौत हो जाना अक्सर ऐसी ख़बरें सुनने को मिलती रहती हैं. लेकिन ये सिर्फ ख़बरें नहीं हैं. ये भारत की पुलिस व्यवस्था की एक तस्वीर भी हैं. कॉमन कॉज़ और सीएसडीएस की भारतीय पुलिस की स्थिति पर हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कई अहम और हैरान करने वाली जानकारियां सामने आई हैं.
भारत के 17 राज्यों के 82 इलाकों मे स्थित पुलिस स्टेशन, पुलिस लाइन्स और कोर्ट में विभिन्न पदों पर तैनात 8276 पुलिसकर्मियों की रायशुमारी के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार हुई है.
रिपोर्ट बताती है कि पुलिस हिरासत में ज़्यादातर मौतें गिरफ़्तारी के 24 घंटे के अंदर ही हो जाती हैं. उदाहरण के लिए, गुजरात की बात करें तो साल 2018-22 के बीच यहां पुलिस हिरासत में हुई 96 प्रतिशत मौतें गिरफ्तारी के 24 घंटों के भीतर हुई.
वहीं, पुलिस के बीच प्रताड़ना देने से लेकर भीड़ वाली मानसिकता का समर्थन भी करना भी चिंताजनक इशारा है. भारत में चार में से एक पुलिसकर्मी भीड़ के न्याय को सही मानता है. 22 प्रतिशत पुलिसकर्मी मानते हैं कि ‘खतरनाक अपराधियों’ को मार देना बेहतर है न कि कानूनी मुकदमा चलाना और गुजरात के पुलिसवाले भीड़ के खुद ही जज, ज्यूरी और जल्लाद बन जाने का सबसे ज्यादा समर्थन करते हैं जबकि केरल वाले ऐसा मानने में सबसे पीछे हैं.
तो क्या भारत में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार पुलिस खुद कानून तोड़ रही है? क्या हमारे रक्षक ही अत्याचारी बनते जा रहे हैं? हिरासत में यातना, फर्जी एनकाउंटर और पुलिसिया तानाशाही, क्या यही हमारी सुरक्षा व्यवस्था का नया चेहरा बनता जा रहा है?
कुछ ऐसे ही सवालों के जवाब हमने सारांश के इस अंक में ढूंढने की कोशिश की है.
Also Read
-
Devbhoomi’s descent: Signs of state complicity in Uttarakhand’s siege on Muslims
-
Pune journalist beaten with stick on camera has faced threats before
-
Bihar voter list revision: RJD leader Manoj Jha asks if ECI is a ‘facilitator’ or a ‘filter’
-
Meet BJP’s ‘Bihar ke yuvaon ki aawaaz’: Misogynistic posts, vulgar remarks, ‘black magic’ claims
-
स्मृति ईरानी, कंगना रनौत, कांवड़िए और शर्माजी की बटर चिकन पत्रकारिता