Report
विजय गोयल और निदेशक के टकराव का अखाड़ा बनी गांधी स्मृति और दर्शन समिति, आर्थिक घोटाले के आरोप
महात्मा गांधी के नाम पर बनी भारत सरकार की संस्था गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति (जीएसडीएस) में इन दिनों घमासान मचा हुआ. यह केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन काम करती है. न्यूज़लॉन्ड्री को मिले एक्सक्लूसिव दस्तावेजों से पता चला है कि समिति के उपाध्यक्ष एवं भाजपा नेता विजय गोयल और इसके निदेशक प्रोफेसर ज्वाला प्रसाद के बीच ठनी हुई है. दोनों ने एक दूसरे के कामकाज में गंभीर गड़बड़ियों की शिकायत संबंधित विभाग में शीर्ष स्तर से की है.
चेयरमैन विजय गोयल ने ज्वाला प्रसाद के कामकाज पर सवाल उठाते हुए 21 फरवरी, 2025 को उन्हें पद से हटा दिया. प्रसाद ने खुद को निदेशक पद से हटाए जाने को अवैध बताते हुए दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया है. साथ ही प्रसाद ने विजय गोयल पर गांधी स्मृति और दर्शन समिति में लाखों रुपये के भ्रष्टाचार करने के संगीन आरोप लगाए हैं. इस विवाद से जुड़े दस्तावेज न्यूज़लॉन्ड्री के पास हैं.
कैंपस में शराब और भ्रष्टाचार की शिकायत-
पूर्व केंद्रीय मंत्री विजय गोयल को मोदी सरकार ने 2021 में गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति का उपाध्यक्ष बनाया था. मई 2023 में ज्वाला प्रसाद, जो कि दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे, उन्हें डेप्युटेशन पर समिति का निदेशक बनाकर भेजा गया.
न्यूज़लॉन्ड्री को मिले दस्तावेज बताते हैं कि ज्वाला प्रसाद को हटाने की प्रक्रिया लंबे वक्त से चल रही थी. यह भी दिलचस्प है कि गोयल के उपाध्यक्ष बनने के बाद से चार निदेशक बदल चुके हैं.
3 मई, 2024 को विजय गोयल ने ज्वाला प्रसाद को एक पत्र लिखा. न्यूज़लॉन्ड्री ने यह पत्र पढ़ा है. इसमें गोयल सिलसिलेवार तरीके से ज्वाला प्रसाद पर 18 आरोप लगाते हैं. इसमें लापरवाही, गांधी दर्शन में शराब पीना, इसके गेस्ट हाउस में मनमाने ढंग से लोगों को ठहराना और संस्थान के पैसे को बिना इजाज़त खर्च करना शामिल है.
गोयल ने अपने शिकायती पत्र में लिखा- ‘‘गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति में प्रशासनिक कार्यों में आप अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों का ठीक से पालन नहीं कर रहे, उसके लिए यह मेरा दूसरा पत्र है."
इसके जवाब में ज्वाला प्रसाद ने गोयल को लिखा- ‘‘पिछला पत्र मुझे व्यक्तिगत दिया गया था. जिसका विधिवत जवाब मैंने आपको निश्चित समय सीमा में प्रस्तुत कर दिया था. इसमें कोई कार्यालय प्रति नहीं थी अतः फाइल में नहीं लगी. हालांकि मेरी फाइल विगत वर्षों से आपके कार्यालय में ही है.’’
पिछला पत्र किस संदर्भ में था, इसकी जानकारी नहीं मिल पाई. इसको लेकर ज्वाला प्रसाद और गोयल कुछ भी नहीं बोल रहे हैं.
गोयल अपने इस पत्र में आगे लिखते हैं, ‘‘मुझे जानकारी मिली है कि आपके द्वारा बहुत से फैसले बिना उपाध्यक्ष (कार्यकारी समिति अध्यक्ष) की जानकारी के लिए जा रहे हैं. और बहुत से फैसलों पर आदेशों और सुझावों के बाद भी समय से अमल नहीं हो पा रहा और बहुत सारे मामलों में अनदेखी की गई है.’’
इसके बाद गोयल 18 सवाल पूछते हैं. वो पूछते हैं, "जब यह तय हो गया था कि डायरेक्टर से लेकर चपरासी तक, सभी की हाजिरी बायोमीट्रिक से लगेगी और गैर-हाजिरी पर सभी पर एक से नियम लागू होंगे तब क्या यह बायोमेट्रिक हाजिरी लग रही है?
इसके जवाब में ज्वाला प्रसाद लिखते हैं- ‘‘सभी कर्मचारियों/अधिकारियों की उपस्थिति बायोमीट्रिक से लगती है. पीछे बाढ़ के कारण मशीन ख़राब हो गई थी. अब पुनः ठीक हो गई है. पहले किसी भी निदेशक की उपस्थिति नहीं लगती थी लेकिन आपके आदेश के बाद मेरी भी उपस्थिति रजिस्टर पर लगती है जिसका निरीक्षण आपने भी किया था.’’
गोयल का अगला सवाल था- ‘‘डायरेक्टर के मकान में एक कमर्चारी नियमों के खिलाफ कैसे रह सकता है. जिसके बारे में शराब की शिकायत भी है. जिस पर आपको तुरंत मकान खाली कराने के लिए कहा गया था?
इसके जवाब में प्रसाद लिखते हैं, ‘‘उक्त कमर्चारी बीते छह सालों से डायरेक्टर के मकान में रह रहा था. हालांकि, अब उसे अन्य जगह पर रहने के लिए मकान दिया गया है. उसके शराब पीने की शिकायत मेरे कार्यालय में अभी तक नहीं आई है. यदि शराब पीने की कोई शिकायत आती है तो उस पर ज़रूर कार्रवाई की जाएगी. आप भी समय-समय पर गांधी दर्शन का निरीक्षण-भ्रमण करते हैं लेकिन आपके संज्ञान में भी ऐसा कभी नहीं आया है.’’
आगे के सवालों में गोयल सीधे प्रसाद पर कई गंभीर आरोप लगाते हैं. मसलन गोयल लिखते हैं- “आपसे बात हुई थी कि आप डायरेक्टर के मकान में नहीं रहना चाहते हैं तो उसमें किसी भी तरह संस्थान का खर्च नहीं किया जाएगा. मेरी जानकारी के मुताबिक, आप बिना अनुमति व बजट आवंटन के वहां पर काम करवा रहे हैं.’’
इस पर प्रसाद जवाब देते हैं- ‘‘डायरेक्टर आवास बाढ़ के बाद बहुत बुरी हालत में था. उसमें रखा सामान दीमक से खराब हो रहा था. उसे ठीक करवा कर अनुमानित बजट का अनुमोदन कराकर सीपीडब्ल्यूडी से काम कराया जा रहा है. ताकि सामान खराब न हो. इस संदर्भ में मैखिक सहमति भी आपसे प्राप्त की गई थी.’’
इसके बाद गोयल संस्थान के वीवीआईपी गेस्ट हाउस में महीने भर से एक परिवार के टिके होने की शिकायत करते हैं. इसी तरह उपाध्यक्ष के संज्ञान में लाए बिना नियुक्ति करने का आरोप भी लगाते हैं. अपने जवाबी पत्र के आखिरी में ज्वाला प्रसाद लिखते है-
‘‘मेरे कार्यकाल का एक वर्ष पूर्ण नहीं हुआ है. मेरे द्वारा किए गए कामों को प्रोत्साहित न कर इस तरह का पत्र मिलना हतोत्साहित करता है. कई ऐसे उदाहरण हैं, जहां डायरेक्टर के पद की गरिमा को हतोत्साहित किया गया, जिससे नीचे के स्टाफ में अच्छा संदेश नहीं गया. जैसे कि पूर्व में सभी कार्यक्रमों में आरएसवीपी या निदेशक के रूप में मुख्य कार्यकारी अधिकारी होने के नाते निदेशक का नाम आता था चाहे विज्ञापन हो या अन्य शिलापट आदि लेकिन आपके द्वारा सभी जगह डायरेक्टर का नाम हटा दिया गया. ऐसे बहुत से तथ्य हैं जिससे प्रतीत होता है कि यह पत्र कोई गलत मंशा या दुर्भावना से ग्रसित होकर मुझे दिया गया है.’’
ज्वाला प्रसाद की शिकायत
न्यूज़लॉन्ड्री को मिली जानकारी के मुताबिक, ज्वाला प्रसाद ने 22 फरवरी, 2025 को गोयल के खिलाफ एक शिकायत संस्कृति मंत्रालय को दी है. इसको लेकर प्रसाद कहते हैं, ‘‘जांच चल रही है. मामला अभी अदालत में है इसलिए इस पर कोई भी कमेंट नहीं कर सकता हूं.’’
संस्कृति मंत्रालय के सचिव को 22 फरवरी को जो पत्र ज्वाला प्रसाद ने लिखा उससे पहले उन्हें गोयल ने निदेशक पद से हटाकर उनके मूल नियुक्ति पर भेजने का आदेश जारी कर दिया था. प्रसाद अपने पत्र में कहते हैं, ‘‘जीएसडीएस के निवर्तमान उपाध्यक्ष द्वारा मनमाने ढंग से मुझे निदेशक के पद से हटाया है जो उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मैंने उनके कार्यकाल के दौरान अलग-अलग वित्तीय और प्रशासनिक अनिमियतता को लेकर चिंता जताई थी.’’
इसके आगे प्रसाद, विजय गोयल के ऊपर भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप लगाते हैं. इन आरोपों की कॉपी न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद है.
ज्वाला प्रसाद लिखते हैं, ‘‘निवर्तमान उपाध्यक्ष यानी विजय गोयल ने 6 जून 2024 को कार्यकारी परिषद के निर्णय को दरकिनार करते हुए जीएसडीएस मामले के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता पिंकी आनंद को नियुक्त किया ताकि उन्हें अनुचित वित्तीय लाभ प्रदान किए जा सकें. एक ही मामले के लिए दो चालान- एक 7 लाख 70 हजार, और दूसरा 6 लाख 60 हजार, कुल मिलाकर 14 लाख 30 हजार रुपये, क्रमशः सुनवाई के तारीखों पर 30 अगस्त 2024 और 18 सितंबर 2024 को प्रस्तुत किए गए. मुझ पर इन बिलों को तुरंत देने के लिए दबाव बनाया गया लेकिन मैंने इनकार कर दिया क्योंकि यह कार्यकारी समिति (ईसी) के फैसले और कार्यालय ज्ञापन के अनुसार स्वीकार्य शुल्क अनुपालन (कंप्लायंस) में नहीं है.’’
ज्वाला प्रसाद के पत्र में गोयल पर लगाए गए कुछ आरोप इस प्रकार हैं-
- विजय गोयल द्वारा जीएसडीसी स्टाफ के 10 सदस्यों को निजी कार्य के लिए तैनात किया गया था, जिनका वेतन लगभग 6 लाख रुपये हर महीने जीएसडीसी द्वारा दिया जा रहा था.
- विजय गोयल द्वारा उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना विज्ञापनों पर 75 लाख रुपये से ज़्यादा खर्च किए गए. जिससे उनकी पसंद की निजी कंपनी को लाभ पहुंचा.
- जीएसडीसी कैंटीन को विजय गोयल के एक सहयोगी को टेंडर प्रक्रिया का पालन किए बगैर और साथ ही पानी और बिजली का शुल्क लिए बिना आवंटित कर दिया गया.
- विजय गोयल ने आदेश दिया कि जीएफआर दिशा-निर्देशों के अनुसार चुने गए सबसे कम बोली लगाने वालों को ठेका नहीं दिए जाने चाहिए. मुझपर सीपीडब्ल्यूडी की बजाय निजी फर्म को जीएसडीएस का ठेका देने का दबाव डाला गया.
- गोयल ने डीडीयू मार्ग स्थित अपनी निर्माणाणाधीन संपत्ति से रात में अवैध रूप से हरे पेड़ काटकर आधी रात में गांधी दर्शन में रखवा दिए. जो कि राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के आदेशों का उल्लंघन है.
अपने पत्र में आगे ज्वाला प्रसाद ने लिखा कि विजय गोयल के गलत कार्यों और अपमानजनक व्यवहार के कारण उनके कायर्काल में चार निदेशकों ने कार्यकाल पूरा किए बिना इस्तीफा दिया है. जिसमें से मंत्रालय द्वारा नियुक्त दो निदेशक भी शामिल हैं. इसमें से एक ने तीन महीने और दूसरे ने एक महीने के भीतर पद छोड़ दिया.
अंत में प्रसाद खुद को निदेशक पद से हटाए जाने के आदेश को वापस लेने और अपने लगाए गए आरोपों के पक्ष में साक्ष्य प्रस्तुत करने और उसकी निष्पक्ष जांच की मांग करते हैं.
ज्वाला प्रसाद की निदेशक पद से छुट्टी
विजय गोयल के खिलाफ दी गई शिकायत के बावजूद संस्कृति मंत्रालय ने गोयल की अनुशंसा पर ज्वाला प्रसाद को निदेशक पद से हटा दिया और उनकी जगह आनन- फानन में पल्लवी प्रशांत होलकर को निदेशक नियुक्त कर दिया.
प्रसाद की नियुक्ति निदेशक पद पर तीन साल के लिए हुई थी. उन्हें यहां से हटाने और मूल नियुक्ति (दिल्ली यूनिवर्सिटी) पर भेजने को लेकर गोयल ने पहला पत्र 10 फरवरी 2025 को भेजा था.
गोयल ने यह पत्र दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति को लिखा था. 12 फरवरी को दिल्ली विश्वविद्यालय ने इस बाबत एक पत्र ज्वाला प्रसाद को भेजा. उसमें विजय गोयल के पत्र का हवाला देते हुए लिखा गया कि आपको तत्काल प्रभाव से दिल्ली विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार ऑफिस में ड्यूटी के लिए निर्देशित किया गया लेकिन आपने अब तक रिपोर्ट नहीं किया है.
उसी दिन ज्वाला प्रसाद ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के संयुक्त रजिस्ट्रार को पत्र लिखकर सूचित किया कि नियमों के मुताबिक, निदेशक को पद से हटाने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास है. और उन्हें केंद्र सरकार ऐसी कोई सूचना या आदेश नहीं मिला है.
28 फरवरी को संस्कृति मंत्रालय की अवर सचिव बी आशा नायर ने एक आदेश जारी किया. इसमें जीएसडीएस के निदेशक का अतिरिक्त पदभार संस्कृति मंत्रालय की निदेशक पल्ल्वी प्रशांत होलकर को सौंप दिया गया.
ज्वाला प्रसाद ने गांधी स्मृति के एक अन्य पक्ष को भी उजागर किया. संस्कृति मंत्रालय को लिखे गए पत्र में उन्होंने दावा किया कि 10 फरवरी को विजय गोयल ने जो पत्र लिखा था वो ऐसे नीतिगत फैसले लेने के लिए अधिकृत नहीं है क्योंकि उनका कार्यकाल 1 सितंबर 2024 को ही समाप्त हो चुका है.
प्रसाद अपनी शिकायती पत्र में बार-बार विजय गोयल को निवर्तमान उपाध्यक्ष बताते हैं. हालांकि, जीएसडीएस की वेबसाइट पर अभी भी उपाध्यक्ष के तौर पर विजय गोयल का ही नाम लिखा हुआ है. वहीं, 30 जनवरी 2025 तक बतौर उपाध्यक्ष गोयल की तस्वीरें जीएसडीएस ने अपने सोशल मीडिया पर प्रकाशित की हैं.
संस्कृति मंत्रालय से इसको लेकर हमने पूछा कि विजय गोयल क्या अभी भी जीएसडीएस के उपाध्यक्ष है तो उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया.
दोनों द्वारा एक दूसरे पर लगाए गए आरोपों, ज्वाला प्रसाद को हटाने के पीछे के कारण जानने के लिए हमने संस्कृति मंत्रालय की अवर सचिव बी आशा नायर से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया. हमने उन्हें कुछ सवाल भेजे हैं. ज्वाला प्रसाद से भी हमने उनका पक्ष जानने की कोशिश की लेकिन उन्होंने मामला अदालत में होने की बात कह कर फोन काट दिया.
इस मामले पर हमने विजय गोयल और पिंकी आनंद से भी टिप्पणी के लिए संपर्क किया लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.
इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
Also Read: 2 अक्टूबर विशेष: गांधी दर्शन या मोदी दर्शन?
Also Read
-
Long hours, low earnings, paying to work: The brutal life of an Urban Company beautician
-
Why are tribal students dropping out after primary school?
-
TV Newsance 304: Anchors add spin to bland diplomacy and the Kanwar Yatra outrage
-
How Muslims struggle to buy property in Gujarat
-
‘Opaque editorial decisions, by design’: BBC staff’s open letter on Israel-Palestine coverage