Report
सुप्रीम कोर्ट के आदेश: मशीनों से मतदान का डाटा डिलीट नहीं करे चुनाव आयोग
निर्वाचन आयोग ईवीएम में दर्ज मतदान के आंकड़ों को जांच और परीक्षण के दौरान मिटा नहीं सकता. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान ये आदेश दिए. भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग, माइक्रोकंट्रोलर की जांच और सत्यापन के दौरान इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों से चुनाव परिणामों के आंकड़ों को नहीं मिटा सकता.
यह पीठ ईवीएम की जांच और सत्यापन पर पिछले साल जून में चुनाव आयोग द्वारा जारी तकनीकी मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.
मालूम हो कि ये एसओपी सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसले के निर्देश पर जारी की गई थी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दूसरे या तीसरे स्थान पर आने वाले उम्मीदवारों को पांच प्रतिशत ईवीएम पर मतदान के आंकड़ों को सत्यापित करने की अनुमति है, बशर्ते वे परिणाम घोषित होने के सात दिनों के भीतर ऐसा करने के लिए लिखित अनुरोध दायर करें. पिछले साल अप्रैल में जारी फैसले में आगे कहा गया था कि ये उम्मीदवार एक विधानसभा या संसदीय क्षेत्र में पांच प्रतिशत ईवीएम चुन सकते हैं.
लेकिन हाल ही में कुछ याचिकाकर्ताओं ने सर्वोच्च न्यायालय में दायर अपनी याचिका में आरोप लगाया कि तकनीकी एसओपी में सत्यापन प्रक्रिया के लिए मॉक पोल आयोजित करने की बात कही गई है, जिससे मतदान संबंधी डेटा को मिटाने का रास्ता खुल गया है. इसमें पार्टियों को मिले वोट और ईवीएम से प्रत्येक वोट डाले जाने का समय भी शामिल है.
दरअसल, मॉक पोल में ईवीएम के कामकाज का प्रदर्शन शामिल होता है. मॉक पोल आमतौर पर उम्मीदवारों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में मतदान के दिन से ठीक पहले होता है. इस अभ्यास के दौरान, प्रत्येक मशीन में लगभग 50 वोट डाले जाते हैं और वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल या वीवीपैट से मिलान किया जाता है ताकि यह जांचा जा सके कि ईवीएम ठीक से काम कर रही है या नहीं.
कांग्रेस के नेता सर्व मित्र के वकील देवदत्त कामत ने अदालत को बताया कि मॉक पोल के दौरान माइक्रो-कंट्रोलर और माइक्रो चिप से "पोल डाटा नष्ट कर दिया गया था". कामत ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसले का पूरा उद्देश्य (पोल किए गए डेटा) की अखंडता को समझना था."
'डाटा मिटाएं नहीं'
याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने कहा कि अप्रैल के फैसले का उद्देश्य इंजीनियरों से यह जांच करवाना था कि ईवीएम के साथ कोई छेड़छाड़ तो नहीं की गई है. उन्होंने कहा, "हम यह नहीं चाहते थे कि ईवीएम के साथ छेड़छाड़ की जाए या उन्हें निष्क्रिय कर दिया जाए. हमारा मतलब यह था कि इंजीनियर यह बता सकें कि कोई छेड़छाड़ तो नहीं की गई है."
सीजेआई ने चुनाव आयोग के वकील मनिंदर सिंह से कहा, "ईवीएम से डाटा मिटाएं नहीं. डाटा को दुबारा लोड न करें."
हरियाणा कांग्रेस के नेता सर्व मित्र और करण सिंह दलाल के अलावा एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने भी इस मामले में याचिका दायर की हुई है.
कौन हैं सर्व मित्र और करण सिंह दलाल?
बीते साल हुए हरियाणा विधानसभा के चुनावों में सर्व मित्र ने कांग्रेस की टिकट पर रानिया विधानसभा से चुनाव लड़ा. हालांकि, वो इंडियन नेशनल लोकदल के अर्जुन चौटाला से 4,191 वोटों से हार गए. वहीं, पांच बार विधायक रहे दलाल भाजपा के गौरव गौतम से हार गए.
विधानसभा चुनाव के नतीजों से असंतुष्ट सर्व मित्र ने परिणाम के एक हफ्ते के भीतर ही नौ बूथों की नौ इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की जांच और सत्यापन (चेक एंड वेरिफिकेशन) के लिए चुनाव आयोग में आवेदन किया. उन्होंने कुल 4,24,800 रुपये का भुगतान किया- यानी प्रत्येक ईवीएम के लिए 47,200 रुपये.
9 जनवरी को सर्व मित्र को सिरसा में जांच और सत्यापन के लिए जिला चुनाव अधिकारी ने आमंत्रित किया था. उनके अनुसार पहली ईवीएम में 'अमान्य(invalid)' लिखा आया था और मशीन की बर्न मेमोरी से डाटा मिटाने के बाद चेक एंड वेरिफिकेशन को मॉक पोल में बदल दिया गया था. जबकि सर्व मित्र ने वास्तविक मतदान डेटा का विश्लेषण करने की मांग की थी.
अन्य ईवीएम मशीनों में भी ऐसा होने की सम्भावना को भांपते हुए सर्व मित्र ने जिला चुनाव अधिकारी से प्रक्रिया को रोकने के लिए कहा, और उनसे अन्य ईवीएम मशीनों को यथावत रखने के लिए कहा.
सर्व मित्र ने अब जली (बर्न) हुई मेमोरी/माइक्रो-कंट्रोलर की जांच और सत्यापन पर अपने पहले के निर्देश को लागू करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और बताया है कि इस पर चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों ने अदालत के आदेश का उल्लंघन किस तरह किया.
एडीआर की ओर प्रशांत भूषण के तर्क
अप्रैल, 2024 के फैसले से संबंधित मामले में याचिकाकर्ता एडीआर का प्रतिनिधित्व करते हुए प्रशांत भूषण ने पीठ को बताया कि चुनाव आयोग माइक्रोकंट्रोलर के कामकाज की जांच करने के लिए केवल मॉक पोल कर रहा है. उन्होंने अदालत से कहा, "हम चाहते हैं कि कोई ईवीएम के सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर की जांच करें और देखें कि इसमें किसी तरह की छेड़छाड़ की गई है या नहीं."
ईसीआई के काउंसलर ने एडीआर और दलाल की याचिकाओं पर आपत्ति जताते हुए तर्क दिया कि उनकी याचिकाओं का निपटारा पहले कोर्ट की एक अलग बेंच ने किया था. पीठ ने दलाल की याचिका खारिज कर दी और कहा कि वह अगले 15 दिनों में एडीआर की याचिका पर फैसला करेगी.
पीठ ने यह भी कहा कि प्रत्येक ईवीएम के सत्यापन की लागत, जो लगभग 40,000 रुपये तय की गई है, बहुत अधिक है और इसे कम किया जाना चाहिए.R
Also Read
-
Who picks India’s judges? Inside a hidden battle between the courts and Modi’s government
-
Years after ‘Corona Jihad’ vilification: Delhi HC quashes 16 Tablighi Jamaat FIRs
-
History must be taught through many lenses
-
PIL in Madras HC seeks to curb ‘speculation blaming pilots’ in Air India crash
-
उत्तर प्रदेश: 236 मुठभेड़ और एक भी दोषी नहीं, ‘एनकाउंटर राज’ में एनएचआरसी बना मूकदर्शक