खंडित जनमत
चांदनी चौक: मतदान से पहले मुस्लिम इलाकों, कांग्रेस उम्मीदवार के पड़ोस में सबसे ज्यादा वोट कटे
वोटर लिस्ट में हुई विसंगतियों के मामले में न्यूज़लॉन्ड्री की पड़ताल के अन्य भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
अमजद के परिवार की तीन पीढ़ियां चांदनी चौक निर्वाचन क्षेत्र में हवेली आज़म खां के नाम से पहचाने जाने वाले एकदम सटकर बने घरों के झुण्ड में रहती हैं. यह इलाका दिल्ली की ऐतिहासिक जामा मस्जिद से पैदल की दूरी पर है, और इस परिवार के 23 सदस्य मतदान केंद्र 10 पर पंजीकृत मतदाता हैं. लेकिन पिछले साल लोकसभा चुनावों के दौरान अमजद को पता चला कि वह अपने परिवार के उन 20 लोगों में से एक हैं, जिनका नाम मतदाता सूची से इस वजह से काट दिया गया कि उन्होंने अपना घर बदल लिया है.
55 वर्षीय अमजद ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "हमारे सामने ये पहली बार हुआ है. लेकिन नाम कटने के बारे में सबसे ज्यादा निराशाजनक बात ये थी कि इसका पता मतदान के दिन ही चला. जब हम पहली बार बूथ 10 पर गए तो उन्होंने हमें बताया कि उन्हें मतदाता सूची में हमारा नाम नहीं मिला. इसलिए हमें जामा मस्जिद में किसी दूसरे बूथ पर जाकर देखना चाहिए. वहां से हमें दूसरे बूथ पर भेज दिया गया. इस तरह हमने पांच से छह बूथों का दौरा किया. और फिर अंत में हमें जो कारण बताया गया, वो यह था कि शायद घर-घर जाकर सर्वेक्षण के दौरान बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) को हम घर पर नहीं मिले इसलिए उन्होंने हमारे नाम काट दिए.”
अमजद उन 36,815 मतदाताओं में से हैं, जिनके नाम चांदनी चौक लोकसभा क्षेत्र के 1,377 बूथों से हटा दिए गए. उनके विधानसभा क्षेत्र- जिसका नाम लोकसभा सीट की तरह चांदनी चौक ही है- में इस लोकसभा सीट के अंतर्गत नौ अन्य विधानसभाओं की तुलना में, सूची से हटाए गए मतदाताओं का प्रतिशत सबसे ज्यादा था. लेकिन न्यूज़लॉन्ड्री ने चांदनी चौक में इन विलोपनों (नाम काटे जाने) का एक ठोस पैटर्न पाया, और इस श्रृंखला में जांच की गई दो अन्य लोकसभा सीटों की तरह ही इनमें से कई मतदाता सूची संशोधन चुनाव आयोग के मानदंडों का उल्लंघन करते थे.
नाम हटाने की दर के मामले में चांदनी चौक विधानसभा के बाद सदर बाजार और शकूर बस्ती का नंबर आता है. तीनों विधानसभा क्षेत्रों में 3 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं के नाम हटाए गए, और इन सभी सीटों पर सबसे बड़ी आबादी मुस्लिम या पिछड़ी जाति की थी.
नाम हटाए जाने की दर सबसे कम मॉडल टाउन विधानसभा में रही, जिसकी आबादी में अधिकतर अगड़ी जाति के हिंदू और पंजाबी हैं और यहां विलोपन की दर 1 प्रतिशत से भी कम रही. चांदनी चौक विधानसभा की तुलना में मॉडल टाउन में लगभग 50,000 अधिक मतदाता थे.
चांदनी चौक विधानसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा मतदाता सूची से हटाए गए तीन बूथों में से एक बूथ वो था, जहां अमजद का घर था और दूसरा बूथ कांग्रेस उम्मीदवार जेपी अग्रवाल के पड़ोस में थाे. अपने पक्ष में मतदान में 14 प्रतिशत की बढ़ोतरी के बावजूद अग्रवाल भाजपा से 90,000 वोटों के अंतर से हार गए. न्यूज़लॉन्ड्री ने घर-घर जाकर सर्वेक्षण किया और पुष्टि की, कि इन तीन बूथों पर हटाए गए 497 मतदाताओं में से कम से कम 147 (लगभग 29.6 प्रतिशत) गलत तरीके से हटाए गए थे.
जैसा कि इस श्रृंखला में पहले बताया गया है, चुनाव आयोग को मतदाता सूची से नाम हटाने के मामले में सावधानी बरतनी चाहिए. इसके दिशा-निर्देशों के अनुसार, यदि किसी बूथ पर नाम हटाने की दर 2 प्रतिशत से अधिक है, तो निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी को व्यक्तिगत रूप से सभी मामलों की जांच करनी चाहिए. चांदनी चौक लोकसभा क्षेत्र में 2.2 प्रतिशत मतदाताओं के नाम हटाए गए, चांदनी चौक विधानसभा में 3.5 प्रतिशत मतदाता नाम हटाए गए और इन तीन बूथों पर नाम हटाए जाने का प्रतिशत क्रमशः 24, 18 और 18 रहा.
चांदनी चौक विधानसभा में एक और बूथ था, जहां 364 यानी 34 प्रतिशत मतदाताओं के नाम हटाए गए, लेकिन बूथ 121 का विवरण इस रिपोर्ट में नहीं दिया जा रहा है क्योंकि न्यूजलॉन्ड्री ने पाया कि इस बूथ के अधिकांश मतदाता दूसरे निर्वाचन क्षेत्रों में चले गए थे और बाकी मतदाताओं के नाम सूची में संशोधन के दौरान सही तरीके से हटाए गए थे.
इस रिपोर्ट में जांचे गए तीन बूथों 6, 10 और 40 के विपरीत बूथ 121 में एक भी गलत नाम नहीं हटाया गया. यहां के बीएलओ राजेंद्र प्रसाद ने इसके दो कारण बताए. “सबसे पहले, ये मतदाता सरकारी कर्मचारी थे, जो पुराने सचिवालय के पीछे वाटर वर्क्स क्वार्टर और पोस्ट और टेलीग्राम क्वार्टर में रहते थे. कुछ साल पहले वे सेवानिवृत्त हो गए और इन सरकारी आवासों से बाहर चले गए. दूसरी बात, वाटर वर्क्स क्वार्टर में प्लांट के लिए जगह बनाने के लिए दर्जनों घरों को तोड़ दिया गया था, इसलिए वे मतदाता उन घरों से बाहर चले गए. इस तरह ये नाम हटाए जाने कुछ सालों से लंबित थे, लेकिन इस बार हमें उन्हें हटाने की अनुमति मिल गई.”
न्यूज़लॉन्ड्री ने बूथ 121 में इन जगहों का भी दौरा किया और हमारे डोर-टू-डोर सर्वेक्षण में हमने पाया कि हटाए गए मतदाता वास्तविक थे. जब हमने चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उनके ईपीआईसी नंबरों के माध्यम से इन स्थानांतरित मतदाताओं की खोज की तो हमने पाया कि उनके अधिकांश वोट दूसरे निर्वाचन क्षेत्र में स्थानांतरित हो गए थे.
पलायन करने वाली आबादी?
बूथ 6 और 10 पर केवल मुस्लिम मतदाता हैं. बूथ 6 पर 18 प्रतिशत मतदाताओं के नाम हटाए गए (863 में से 162). बूथ 10 पर भी 18 प्रतिशत मतदाताओं के नाम हटाए गए (813 में से 153). बूथ 40 पर 24 प्रतिशत मतदाताओं के नाम हटाए गए (747 में से 182). इस बूथ पर कांग्रेस उम्मीदवार जेपी अग्रवाल का घर भी है, जो पहले दो बार चांदनी चौक लोकसभा सीट जीत चुके हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री यह पता नहीं लगा सका कि ये नाम स्वतः संज्ञान लेकर हटाए गए थे, या फिर लोगों ने इन संशोधनों की मांग करते हुए शिकायत दर्ज की थी. बूथ 6 के बीएलओ से टिप्पणी के लिए संपर्क नहीं किया जा सका.
चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों के अनुसार, निवास में बदलाव के मामले में बीएलओ स्वतः संज्ञान लेकर किसी मतदाता का नाम तभी हटा सकता है, जब उसके पते पर वापस लौटने की कोई संभावना न हो. इसके बाद भी चुनाव निकाय को मतदाता के घर पर नोटिस भेजना पड़ता है, जिसमें उसे जवाब देने के लिए 15 दिन का समय दिया जाता है. यदि डाक विभाग इस वजह से नोटिस लौटाता है कि व्यक्ति दिए गए पते पर नहीं मिला, या यदि मतदाता निर्धारित समय के भीतर जवाब नहीं देता है, तो निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी (ईआरओ) संबंधित बीएलओ को फील्ड वेरिफिकेशन के लिए भेजेगा. उसके बाद ही, ईआरओ, जो आमतौर पर एक उप-जिला मजिस्ट्रेट होता है, नाम हटाने की प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकता है.
चांदनी चौक विधानसभा क्षेत्र के कुछ बूथों में नाम हटाने की ऊंची दर के बारे में पूछे जाने पर अतिरिक्त निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी मीणा ने कहा, "ऐसा इसलिए है क्योंकि इन इलाकों की आबादी लंबे समय से पलायन कर रही है और चांदनी चौक के इन इलाकों में बहुत कम निवासी बचे हैं. इसलिए, इस आम चुनाव में हमने उन सभी मतदाताओं को हटाने के बारे में सोचा जो पलायन कर गए हैं."
अमजद ने बताया कि उनके परिवार के जिन लोगों के नाम सूची से हटाए गए थे, उनमें से चार वास्तव में बाहर चले गए थे, लेकिन 16 लोग उस पते पर मौजूद हैं जिस पर उन्होंने मतदाता के रूप में पंजीकरण कराया था. न्यूज़लॉन्ड्री ने अमजद और उनके परिवार से उनके घर पर मुलाकात करके इस बात की पुष्टि की. मीणा द्वारा दिया गया स्पष्टीकरण अमजद के गले नहीं उतरा, उन्होंने पूछा, "फिर हमारे परिवार के तीन सदस्य अभी भी पंजीकृत मतदाता कैसे बने हुए हैं?"
हमारे डोर-टू-डोर सर्वेक्षण में हमें कम से कम 147 नाम हटाए मिले, जिनमें 145 मतदाता ऐसे थे जिनका नाम "पता बदलने" के कारण हटाया गया. लेकिन न्यूज़लॉन्ड्री ने पाया कि ये 145 मतदाता या तो स्थायी या अस्थायी रूप से उसी पते पर रह रहे थे, जिसका उल्लेख मतदाता सूची में किया गया था. उन सभी ने कहा कि उन्हें सूची में बदलाव के बारे में कोई सूचना नहीं मिली थी.
40 वर्षीय वारिशा ने कहा, "मेरे परिवार के घर बदलने का कोई सवाल ही नहीं है. मेरे पति को मतदान के दिन पता चला कि उनका वोट हटा दिया गया है. उन्होंने बूथ पर अधिकारियों से विनती की कि उन्हें वोट डालने दिया जाए, लेकिन वे नहीं माने." वारिशा और उनके 50 वर्षीय पति दशकों से अपने पंजीकृत पते पर रह रहे हैं. उनकी 20 वर्षीय बेटी अलीना को भी मतदान के दिन पता चला कि उनका नाम मतदाता सूची में नहीं था. उन्होंने कहा, "अलीना और मैं बगल के बूथ पर पंजीकृत हैं, लेकिन हमने पाया कि हमारे नाम भी सूची से हटा दिए गए हैं. मेरी बेटी यह जानकर खास तौर पर निराश हुई क्योंकि यह उसका मतदान करने का पहला मौका था."
भारत के पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि परंपरागत तौर पर, अगर कोई मतदाता अपना घर बदल भी लेता है, तो भी उसे वोट देने की अनुमति होती है क्योंकि चुनाव आयोग का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी मतदाता, वोट देने के अधिकार से वंचित न रहे. फिर भी 2024 के लोकसभा चुनाव में चांदनी चौक विधानसभा क्षेत्र के मतदान केंद्र 6, 10 और 40 पर आए कई लोग, चुनावी व्यवस्था द्वारा लिए गए फैसलों की वजह से अपने इस मौलिक अधिकार का इस्तेमाल नहीं कर सके.
अतीक-उर-रहमान का परिवार 1957 से अपने पंजीकृत पते पर रह रहा है. फिर भी मतदान के दिन 54 वर्षीय रहमान को पता चला कि उनका नाम सूची में नहीं था. उन्होंने कहा, “मेरे लिए घर बदलने का सवाल ही नहीं है क्योंकि यह हमारा पुश्तैनी घर है. मतदान के दिन मैंने अधिकारियों से बहुत अनुरोध किया कि मुझे अपना वोट डालने दिया जाए. इतना ही नहीं मैंने उन्हें यह साबित करने के लिए और भी दस्तावेज़ दिखाए कि मैं उसी जगह का निवासी हूं, लेकिन वे नहीं माने.”
न्यूज़लॉन्ड्री ने पाया कि जिन लोगों ने अपना पता बदल लिया था, उनमें से अधिकांश नियमित अंतराल पर पंजीकृत पते पर वापस आते थे. उदाहरण के लिए, 57 वर्षीय नजमा बेगम और 46 वर्षीय फातिमा बेगम मतदाता सूची में स्थायी पते से सिर्फ़ दो इमारतों की दूरी पर स्थित घरों में रहने चली गई थीं. नजमा ने कहा, "मेरे माता-पिता और भाई इसी घर में रहते हैं. चूंकि हमारी शादी सिर्फ़ दो घरों की दूरी पर हुई थी, इसलिए हमें कभी भी आधिकारिक दस्तावेजों में अपना पता बदलने का कोई मतलब नहीं लगा. दशकों से यही होता आ रहा है, लेकिन यह पहली बार था जब हमारे वोट हटा दिए गए."
बूथ 10 पर मोहम्मद एजाज़ के परिवार से 24 पंजीकृत मतदाता हैं, लेकिन 2024 में 23 का नाम हटा दिया गया. 54 वर्षीय एजाज ने कहा कि एक नाम हटाना वैध था, लेकिन उन्होंने अन्य 22 को चुनौती दी. जिन लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाए गए हैं, वे लगभग एक दशक पहले एक गली दूर दूसरे घर में चले गए थे. उनके मतदाता पहचान पत्र पर अंकित संपत्ति का मालिकाना अभी भी परिवार के पास ही है. “यह कोई नई स्थिति नहीं है. वास्तव में हम सब 2022 के दिल्ली नगर निगम चुनावों में अपना वोट डाल पाए थे. फिर इस बार हमारे वोट क्यों काटे गए? और अगर वोट हटाने का एकमात्र मानदंड घर बदलना है, तो चुनाव आयोग ने हमारे परिवार के एक मतदाता को क्यों बख्शा है? इस तर्क से, उन्हें सभी वोट हटा देने चाहिए थे.”
न्यूज़लॉन्ड्री के बूथ 40 के सर्वेक्षण के दौरान हमें कुछ हिंदू परिवार मिले, जिनके नाम मतदाता सूची से हटा दिए गए थे. अशोक नाहर और उनके परिवार के छह लोगों ने पाया कि मतदान के दिन उनके नाम सूची में नहीं थे. 72 वर्षीय नाहर ने पूछा, "हम मतदाता सूची में दर्ज मकान के मालिक हैं. सच्चाई तो ये है कि हम अभी भी हर दो महीने में यहां रहने आते हैं. हमने हाल ही में दिल्ली एमसीडी [दिल्ली नगर निगम] के चुनाव में भी मतदान किया था. फिर हमारे वोट कैसे हटाए जा सकते हैं?"
जतिन जैन का नाम भी सूची में नहीं था. 22 वर्षीय जतिन की मां संगीता जैन ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "मतदाता सूची में दर्ज मकान के हम मालिक हैं. इसके अलावा मेरा बेटा जतिन भी इस रिहायशी इलाके में एक ढाबा चलाता है और हर रोज यहां आता है. फिर उसका नाम इस तरह कैसे हटाया जा सकता है, जबकि दूसरों के नाम बरकरार हैं? मतदान के दिन यह जानकर वह निराश हो गया था."
दो मुस्लिम महिलाएं भी थीं, जिन्होंने पाया कि उनके नाम को छोड़कर सभी विवरण (मतदाता पहचान पत्र संख्या, घर का नंबर और पति का नाम) वही रहे. 53 वर्षीय तस्मिया का नाम बदलकर सुधीर वर्मा कर दिया गया और 64 वर्षीय अंजुम को मालूम हुआ कि उनका नाम मतदाता सूची में रजनी वर्मा के नाम से दर्ज है.
न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए तस्मिया ने कहा, "मुझे मतदान के दिन पता चला कि मेरा नाम बदलकर कोई और नाम रख दिया गया है. यह कैसे हो सकता है? मैं 18 साल से यहां वोटर हूं, मेरे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ. मतदान के दिन मैंने अधिकारियों से अनुरोध किया कि वे मुझे सिर्फ़ इसलिए मतदान करने से न रोकें क्योंकि मेरा नाम अलग है, लेकिन उन्होंने मुझे ऐसा करने की अनुमति नहीं दी और कहा कि ऐसा करने पर उन्हें परिणाम भुगतने होंगे."
कुछ मामलों में मतदाता बगल के मोहल्ले में चले गए थे, लेकिन उनका स्थायी पता वही था जो उनके मतदाता पहचान पत्र पर दर्ज था. सबका कहना था कि पते में बदलाव हालिया नहीं है. सभी ने पुष्टि की कि यह पहली बार था जब उनका नाम सूची से हटाया गया था.
बीएलओ वीनू ने गलत तरीके से नाम हटाए जाने की बात स्वीकार की. “मैंने उनमें से कुछ वोट इसलिए हटाए क्योंकि मकान मालिकों ने मुझसे अपने किराएदारों के वोट हटाने का अनुरोध किया था."
काटे गए नामों में से एक नाम बूथ 6 के 57 वर्षीय नफीस अहमद का भी था. चुनाव के दिन वे मतदान केंद्र पहुंचे तो पाया कि वे मतदान नहीं कर सकते, क्योंकि चुनाव आयोग ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था और उनका नाम हटा दिया था.
अहमद ने कहा, "मैं इसी घर में पैदा हुआ हूं और 1985 से मतदाता हूं, लेकिन मेरे साथ ऐसा पहली बार हुआ है. लोकसभा चुनाव के मतदान के दिन मुझे पता चला कि मेरा नाम सूची से हटा दिया गया है. मुझे बताया गया कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मेरी जांच पूरी नहीं हुई. मुझे नहीं पता था कि इसका कारण मृत्यु है."
अहमद की पत्नी सायरा बानो का नाम भी इस बहाने से हटा दिया गया कि वे अब पंजीकृत पते पर नहीं रहती हैं. 55 वर्षीय बानो ने कहा, "मेरी शादी 1992 में हुई थी और तब से मैं यहीं रह रही हूं और इसी बूथ से अपना वोट डाल रही हूं. यह पहली बार है जब मुझे वोट देने से मना किया गया और मुझे इस बारे में मतदान के दिन पता चला."
संयोग से अहमद की मां मेमुना बेगम, जिनकी कुछ साल पहले मृत्यु हो गई थी, अभी भी मतदाता सूची में बनी हुई हैं. अहमद ने पूछा, "चुनाव आयोग किस तरह का सत्यापन कर रहा है, जहां मृत लोग मतदान कर सकते हैं और जीवित लोगों को मृत घोषित कर दिया जाता है?" अहमद की तरह ही बूथ 10 की 75 वर्षीय सईदा बेगम को भी मतदान के दिन पता चला कि उनकी मृत्यु का हवाला देते हुए उन्हें सूची से हटा दिया गया था.
न्यूज़लॉन्ड्री ने बूथ 6, 10 और 40 के सर्वेक्षण में 71 ऐसे लोग पाए जिनकी कुछ साल पहले मृत्यु हो गई थी लेकिन वे अभी भी मतदान कर सकते थे. जीवित परिवार के सदस्यों ने कहा कि उन्होंने चुनाव आयोग के घर-घर सर्वेक्षण के दौरान अपने बीएलओ को सूचित किया था, लेकिन उनके नाम नहीं हटाए गए. अरुण कुमार ने कहा, "मैंने अपने बूथ के बीएलओ से 40 बार कहा है कि मेरे पिता की मृत्यु चार साल पहले हो गई थी और कृपया उनका नाम हटा दें. लेकिन ऐसा कभी नहीं किया गया."
आधिकारिक प्रतिक्रिया
एक ही लोकसभा में विधानसभा क्षेत्रों में नाम हटाने की दर में अंतर के बारे में पूछे जाने पर चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने कहा, “मतदाता सूची में जाति या धर्म के संबंध में कोई डाटा नहीं रखा जा रहा है, या किस निर्वाचन क्षेत्र में किस धर्म या जाति के लोग अधिक हैं. हम केवल एससी आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों को नामित करते हैं.”
यह पूछे जाने पर कि चांदनी चौक विधानसभा में नाम हटाने की दर चुनाव आयोग के 2 प्रतिशत से ज़्यादा क्यों है, अधिकारी ने जवाब दिया, “आदर्श नगर या मॉडल टाउन जैसे निर्वाचन क्षेत्रों में चांदनी चौक विधानसभा की तुलना में नाम हटाने की दर कम होने का कारण, चांदनी चौक में प्रवासी मजदूरों और झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों की आबादी ज़्यादा होना है. चांदनी चौक में प्रवासी आबादी पड़ोसी राज्यों से आती रहती है. जबकि आदर्श नगर या मॉडल टाउन में स्थायी आबादी अधिक है… चांदनी चौक विधानसभा में नाम हटाने की ऊंची दर की एक और वजह ये भी है कि इन क्षेत्रों में कुछ विकास कार्य चल रहे थे, इसलिए बहुत से लोग इन बूथों से बाहर चले गए.”
हालांकि, न्यूज़लॉन्ड्री को तीन बूथों पर किए गए अपने फील्ड विजिट में झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले, प्रवासी मजदूर या कोई विकास कार्य होता हुआ नहीं मिला. बल्कि हमें गलत तरीके से नाम हटाए जाने के सौ से ज़्यादा मामले मिले.
बूथ 40 की तत्कालीन बीएलओ वीनू ने गलत तरीके से नाम हटाए जाने की बात स्वीकार की. “मैंने उनमें से कुछ वोट इसलिए हटाए क्योंकि मकान मालिकों ने मुझसे अपने किराएदारों के वोट हटाने का अनुरोध किया था. किराएदार वहां रह रहे थे, लेकिन शायद ये अनुरोध किसी आपसी झगड़े की वजह से आए हों और कुछ वोट तब भी हटाए गए जब मुझे मतदाता घर पर नहीं मिले, या उनके घर पर ताला लगा हुआ था. कुछ वोट सही तरीके से हटाए गए थे. लेकिन हां, कुछ मतदाताओं के नाम गलत तरीके से हटाए गए थे. इसलिए अब हम उन्हें फिर से पंजीकृत कर रहे हैं.”
बूथ 10 की तत्कालीन बीएलओ जय कौर ने भी अपने बूथ पर मुस्लिम मतदाताओं के नाम गलत तरीके से हटाए जाने की बात स्वीकार की. “मृत मतदाताओं को हटाने के लिए फॉर्म में हमें सबसे पहले उस परिवार के सदस्य का विवरण लिखना होता है जिसने मृत्यु की सूचना दी है, फिर हमें मृत मतदाताओं का विवरण जोड़ना होता है. लेकिन गलती से मैंने दोनों नामों को बदल दिया और भूलवश असली मतदाताओं के नाम हट गए. मतदान के दिन मृत घोषित किए गए लोग भी मतदान करने के लिए आ गए. इससे अफरा तफरी मच गई. जब मैंने अधिकारियों को सूचित किया तो उन्होंने मुझे इन मतदाताओं को फिर से पंजीकृत करने के लिए कहा, क्योंकि गलती को सुधारने का कोई तरीका नहीं था.”
चुनाव आयोग के मैनुअल में ईआरओ को व्यक्तिगत रूप से उन सभी मामलों की जांच करने का निर्देश दिया गया है, जहां नाम हटाने की दर 2 प्रतिशत से अधिक है. न्यूज़लॉन्ड्री ने ईआरओ और एईआरओ से पूछा कि वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा व्यक्तिगत रूप से क्रॉस-सत्यापन के लिए चुनाव आयोग के मानदंडों के बावजूद चांदनी चौक में गलत तरीके से नाम कैसे हट गए.
एईआरओ एसएन मीणा ने हमें बताया कि सभी बूथों के लिए क्रॉस-सत्यापन नहीं किया जाता है. “100 प्रतिशत क्रॉस-सत्यापन नहीं होता है. हम रैंडम जांच करते हैं.”
इस रैंडम जांच की प्रक्रिया के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “क्या प्रक्रिया है? जैसे ट्रेन में टीटीई के पास टिकट जांचने का अपना तरीका होता है, वैसे ही हमारे पास भी अपने तरीके हैं.”
जब हमने इन तीनों बूथों पर गलत तरीके से नाम हटाए जाने के बारे में अपनी जानकारी साझा की, तो मीणा ने आरोपों से इनकार किया. “अगर हमने इतने सारे मतदाताओं के नाम गलत तरीके से हटाए होते, तो हमें भी मतदाताओं की ओर से शिकायतें मिलतीं. लेकिन हमें कोई शिकायत नहीं मिली.”
गलत तरीके से नाम हटाए जाने की बात स्वीकार करने वाले बीएलओ से मीणा ने कहा, “अगर उन्होंने गलत तरीके से नाम हटाए हैं, तो यह उनका काम है. कई बार बीएलओ मतदाता के घर पर ताला लगा देखकर नाम हटा देते हैं, क्योंकि उनका ज्यादातर समय आंगनवाड़ी में बीतता है. कई बार लोग उन्हें गलत जानकारी दे देते हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ये बीएलओ पढ़े-लिखे भी नहीं होते. ऐसे मामले सामने आते हैं, लेकिन हम क्या कर सकते हैं?”
न्यूज़लॉन्ड्री ने ईआरओ मनोज कुमार से भी संपर्क किया, लेकिन उन्होंने अपने व्यस्त कार्यक्रम का हवाला देते हुए टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
न्यूज़लॉन्ड्री ने दिल्ली के सीईओ आर. एलिस वाज़ को एक प्रश्नावली भेजी है. जवाब मिलने पर इस रिपोर्ट में उन्हें जोड़ दिया जाएगा.
मूल रूप से अंग्रेजी में प्रकाशित ख़बर को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
अनुवाद- शार्दूल कात्यायन
Also Read
-
2006 Mumbai blasts are a stark reminder of glaring gaps in terror reportage
-
How money bills are being used to evade parliamentary debate on crucial matters
-
Protocol snub, impeachment motion: Why Dhankhar called it quits
-
In a Delhi neighbourhood, the pedestrian zone wears chains
-
बिहार में मोदीजी, चैनल पर अंजनाजी और दारू में चूहे