खंडित जनमत
फर्रुखाबाद: भाजपा की मामूली अंतर से जीत और वोटर लिस्ट से नाम हटाने का सिलसिला
वोटर लिस्ट में हुई विसंगतियों के मामले में न्यूज़लॉन्ड्री की पड़ताल का यह तीसरा भाग है. इसके अन्य भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
फर्रुखाबाद लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने करीब 2,700 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी. लेकिन क्षेत्र में चुनाव होने से कुछ महीने पहले ही 32,000 से ज्यादा मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटा दिए गए. अलीगंज में सबसे ज्यादा नाम काटे गए. अलीगंज विधानसभा में 30 फीसदी यादव और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या है. अलीगंज के 395 बूथों में से 53 में नाम हटाने की दर असामान्य रूप से ज्यादा थी. इनमें से 37 बूथ ऐसे थे जहां मुस्लिम, यादव, शाक्य और जाटव मतदाताओं की संख्या अधिक थी.
न्यूज़लॉन्ड्री ने अपनी जमीनी पड़ताल, क्षेत्रीय कर्मचारियों और वरिष्ठ अधिकारियों से बातचीत और वोटर्स की समीक्षा में पाया कि वोटर लिस्ट में से लोगों के नाम हटाने में एक भाजपा के पत्र की भी भूमिका हो सकती है.
जनवरी में अलीगंज के भाजपा विधायक सत्यपाल सिंह राठौर ने जिला प्रशासन को “फर्जी मतदाताओं” पर चिंता जाहिर करते हुए एक चिट्ठी लिखी. इस चिट्ठी के लिखने के दो हफ्ते बाद अलीगंज के चार बूथों से 277 मतदाताओं के नाम हटाए गए.
इन सभी बूथों पर केवल यादव, शाक्य, जाटव और मुस्लिम समुदाय के मतदाता थे. ये सभी नाम बिना किसी आवेदन के स्वतः संज्ञान तरीके से हटाए गए जबकि सामान्य प्रक्रिया में किसी भी मतदाता के खिलाफ आपत्ति दर्ज करने के लिए फॉर्म 7 के जरिए शिकायत दर्ज कराई जाती है.
स्वत: संज्ञान मामलों में, चुनाव कर्मी फॉर्म 7 भरने और वेरिफिकेशन प्रक्रिया के बाद एक तरफा तरीके से मतदाताओं के नाम हटा सकते हैं. हालांकि, भारतीय निर्वाचन आयोग की ओर से सितंबर 2021 में जारी मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) चुनाव से छह महीने पहले स्वत: संज्ञान से नाम हटाने की इजाजत नहीं देती, सिवाय “खास परिस्थितियों” और “आयोग की मंजूरी” के.
इसके अलावा, जब न्यूज़लॉन्ड्री ने विधायक की चिट्ठी में जिक्र किए गए बूथों पर घर-घर जाकर सर्वे किया तो कम से कम 20 मतदाता ऐसे मिले जो नाम हटाने के निर्धारित मापदंडों- मृत्यु या पते का बदलना जैसी दलीलों पर खरे नहीं उतरते थे. जिन बाकी लोगों के नाम हटाए गए थे, उनके पते पर जाने पर या तो उनके घर पर ताला लगा मिला या वे घर पर मौजूद नहीं थे.
किसी भी मतदाता का नाम हटाने के मामले में मतदाता को अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाना चाहिए. खासकर ऐसे इलाकों में जहां वोटर लिस्ट से नाम काटने का अनुपात 2 फीसदी या उससे अधिक हो, लेकिन न्यूज़लॉन्ड्री ने जब उन लोगों से बात की जिनके नाम वोटर लिस्ट से हटा दिए गया तो पता चला कि इन्हें ऐसा कोई मौका नहीं मिला, ना ही इस संबंध में उनके पास कोई नोटिस आया.
इस दावे को खारिज करते हुए चुनाव अधिकारियों ने कहा कि उन लोगों को नोटिस भेजे गए थे लेकिन स्थानीय लोग उसे समझ नहीं पाए क्योंकि नोटिस “अंग्रेजी” में थे.
बतौर वोटर हटाए गए मतदाताओं का पता लगाना आसान है. आपको बस वोटर लिस्ट में दर्ज पते पर जाना होता है.
फर्रुखाबाद शहर से 40 किलोमीटर दूर स्थित नगला बलभ यादव बहुसंख्यक गांव है और यहां के लोग बड़े-बड़े खेतों के मालिक हैं. इन खेतों में आलू, मक्का और बाजरा जैसी फसलें उगाई जाती हैं.
इस गांव में घुसते ही 27 बरस की यादव वोटर शिखा का घर है.
वोटर लिस्ट से हटाए गए लोगों की सूची में उनका भी नाम भी शामिल था. शिखा का नाम घर का पता बदलने का हवाला देते हुए सूची से हटा दिया गया. लेकिन लोकसभा चुनाव में वोट नहीं डाल पाने की इस वजह से शिखा पूरी तरह से अनजान थी.
शिखा ने बताया, "चुनाव के दिन अधिकारियों ने मुझसे कहा कि मेरा नाम इसलिए काटा गया क्योंकि मैं नाबालिग हूं. मैंने पूछा कि यह कैसे संभव है क्योंकि मैंने 2022 के विधानसभा चुनावों में वोट दिया था. मैंने उन्हें अपना आधार कार्ड भी दिखाया. लेकिन वे संतुष्ट नहीं हुए."
शिखा ने हमें अपना आधार कार्ड दिखाकर अपनी उम्र साबित करने की कोशिश की. जब उनसे पूछा गया कि क्या जिला चुनाव कार्यालय से नाम कटने से पहले उन्हें कोई नोटिस मिला था तो उनका जवाब ‘नहीं’ था.
न्यूज़लॉन्ड्री की इस रिपोर्टिंग के दौरान पड़ोसी गांव दादूपुर खुर्द में यह बात फैल गई कि दिल्ली से आई एक पत्रकार हटाए गए वोटर्स की जांच कर रही है.
पहले तो सुखदेव कुमार को लगा कि “चुनाव अधिकारी” उनका वोट “लौटाने” आए हैं. जाटव समुदाय के 26 बरस के सुखदेव एक खेतिहर मजदूर हैं. वह खेत में काम छोड़कर, एक दोस्त की बाइक उधार लेकर, दादूपुर खुर्द में न्यूज़लॉन्ड्री से मिलने आए. उन्होंने बताया “मुझे चुनाव के दिन पता चला कि मेरा वोट कट गया है. मुझे यह भी नहीं पता था कि यह कब हटा. मुझे समझ नहीं आया कि यह कैसे संभव है क्योंकि मैंने पिछले विधानसभा चुनाव में वोट दिया था.”
जब न्यूज़लॉन्ड्री जैतरा ब्लॉक के नगला कमले गांव पहुंचा, जो एक घंटे की दूरी पर है तो गांव वाले एक बरगद के पेड़ के नीचे इकट्ठा हो गए. समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता सुरजीत यादव ने पत्रकार से पूछा “आपको कैसे पता चला कि यहां कई मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं?”
सवाल के जवाब में पत्रकार ने उन्हें वोटर लिस्ट दिखाई. इसके बाद दस्तावेज के मुताबिक, मृत घोषित ‘राधेश्री’ का नाम लिया. नाम सुनते ही गांव वाले एक साथ हंसने लगे. आखिरकार 61 साल की राधेश्री हमें उनके घर पर मिली. जैसे ही उन्होंने अपने घास-फूस से बने घर के नीले रंग के दरवाजे को खोला, वह इस बात को लेकर ज्यादा चिंता में थी कि कहीं वोटर लिस्ट से नाम कटने की वजह से उनका राशन योजना से नाम तो नहीं काट दिया जाएगा.
राधेश्री के घर से तीन घर दूर न्यूज़लॉन्ड्री को एक और मतदाता मिला. ये घर 52 बरस के सत्यपाल का है. वह उसी पते पर रहते हैं जिस पर उनके वोटर आई कार्ड में जिक्र है. इनका नाम वोटर लिस्ट से बदले हुए पता का हवाला देकर हटा दिया गया. इस बारे में पूछने पर वो मजाक में कहते हैं, “मैं तो कहीं आता जाता भी नहीं हूं.”
हमने उसी गांव में 62 साल के त्रिमोहन सिंह से भी मुलाकात की जिन्हें वोटर लिस्ट में मृत घोषित कर दिया गया था. हालांकि, वह इस रिपोर्ट के लिए फोटो खिंचवाने में असहज थे.
मतदाताओं की इन गवाही के आधार पर ऐसा लगता है कि चुनाव आयोग के वोटर लिस्ट से नाम हटाने के नियमों का कई मामलों में उल्लंघन हुआ है. चुनाव आयोग के मैनुअल के मुताबिक, चाहे नाम स्वतः हटाए जाएं या सामान्य रूप से हटाए जाएं, मतदाता को नोटिस देकर अपनी बात रखने का मौका जरूर देना चाहिए. यह नियम उन इलाकों में और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जहां हटाए गए नामों की दर 2 फीसदी से अधिक है. ऐसे मामलों में, चुनाव पंजीकरण अधिकारी का क्रॉस-वेरिफिकेशन अनिवार्य है. लेकिन न्यूज़लॉन्ड्री से बात करने वाले सभी मतदाताओं ने बताया कि उन्हें नाम हटाने को लेकर कोई नोटिस नहीं दिया गया और न ही अपनी बात रखने का मौका मिला.
वोटर लिस्ट तैयार करने वाले दो बूथ-स्तरीय अधिकारियों (बीएलओ) ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि उन्होंने “बोगस वोटर्स” पर भाजपा विधायक के पत्र हासिल करने के बाद “भारी दबाव” के तहत नाम हटाने के मुद्दे पर कार्रवाई की. बाकी बूथ-स्तरीय अधिकारियों ने आरोप लगाया कि भाजपा विधायक राठौर नियमित रूप से ऐसे नाम हटाने की चिट्ठी भेजते हैं. राठौर ने न्यूज़लॉन्ड्री से इस बात कि पुष्टि की कि वह नियमित रूप से ऐसी चिट्ठी भेजते हैं.
उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) नवदीप रिनवा ने गलत तरीके से नाम हटाने के आरोपों को खारिज कर दिया. जब उनसे बीएलओ के दावों के बारे में पूछा गया कि भाजपा विधायक की चिट्ठी के बाद उन्होंने दबाव में काम किया तो उन्होंने कहा, “वो लोग आपको कुछ भी कह सकते हैं लेकिन हमें ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली है.”
उन्होंने आगे कहा, “हालांकि, बतौर चुनाव आयोग हमें किसी भी राजनीतिक दल की शिकायत पर कार्रवाई करनी होती है. हमने तो एक अन्य विधानसभा क्षेत्र में समाजवादी पार्टी के अनुरोध पर कार्रवाई भी की थी.”
फर्रुखाबाद लोकसभा क्षेत्र में भाजपा के मुकेश राजपूत ने समाजवादी पार्टी के नवल किशोर शाक्य को महज 2,678 वोटों के बेहद कम अंतर से हराया था. चुनाव के बाद, समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव ने आरोप लगाया कि फर्रुखाबाद सहित जिला प्रशासन ने पार्टी के उम्मीदवारों को कई सीटों पर हराने में मदद की. कांग्रेस के जयराम रमेश ने भी भाजपा पर प्रशासनिक अधिकारियों पर दबाव बनाने का आरोप लगाया.
विपक्षी दल भले ही ईवीएम गड़बड़ी का मुद्दा उठाते रहें, लेकिन न्यूज़लॉन्ड्री की पड़ताल के दौरान हर गांव के दर्जनों ग्रामीणों ने वोटर लिस्ट से नाम काटे जाने पर ज्यादा चिंता जताई. ऐसा इसलिए क्योंकि वोटर लिस्ट संशोधन से जुड़े नियमों के प्रति इन लोगों में जागरूकता की बहुत कमी थी. समाजवादी पार्टी इस असंतोष को भुनाने की कोशिश कर रही है. अक्टूबर में अलीगंज शहर में एक ज्वेलरी शॉप के उद्घाटन के दौरान नवल किशोर शाक्य ने सैकड़ों लोगों की भीड़ को संबोधित करते हुए वोटर लिस्ट से नाम हटाने का मुद्दा उठाया.
उन्होंने कहा, “मैंने इस सीट पर आए फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी है. जल्द ही, हम यह भी पता करेंगे कि कितनों का मताधिकार छीन लिया गया. बाबा साहब ने हमें वोट का अधिकार दिया है. हम इसे किसी को छीनने नहीं देंगे.”
न्यूज़लॉन्ड्री ने फर्रुखाबाद के उन तीन बूथों पर ध्यान केंद्रित किया, जहां नाम हटाने की दर सबसे ज्यादा थी. यह आंकड़ा 5 फीसदी से लेकर 12 फीसदी तक था जो कि चुनाव आयोग की 2 फीसदी की सीमा से कहीं अधिक है. इनमें शामिल थे तीन बूथ.
बूथ 208- जिसमें यादव और शाक्य जातियों के ओबीसी मतदाता हैं और जहां 12 फीसदी या यूं कहें कि 105 वोट हटाए गए. बूथ 140 में भी यादव और शाक्य जातियों के मतदाता हैं और यहां 9 फीसदी (68 वोट) हटाए गए. तीसरा बूथ 193, जिसमें मुस्लिम और दलित मतदाता हैं और यहां 9.5 फीसदी (102 वोट) हटाए गए. इनमें से बूथ 208 और बूथ 140 का जिक्र विधायक राठौर की चिट्ठी में किया गया था.
न्यूज़लॉन्ड्री ने इन बूथों के गांवों ददूपुर खुर्द, नगला बल्लभ, किलेदारन, राम प्रसाद गौड़, नगला जलीम, नगला गिरधर, नगला फूलसहाय और नगला कमले में कई दिन बिताए. इन बूथों पर कुल 275 मतदाताओं के नाम मृत्यु, पते में बदलाव या डुप्लीकेट एंट्री का हवाला देकर हटाए गए.
लेकिन हमारे घर-घर जाकर किए सर्वे के दौरान, कम से कम 43 मतदाता जो कुल हटाए गए नामों का 15 प्रतिशत से ज्यादा हैं, ने दावा किया कि उनके नाम गलत तरीके से हटाए गए. इनमें से तीन को मृत दिखाया गया जबकि 40 अन्य का पता बदला हुआ बताया गया. लेकिन वे असल में अभी भी उसी पते पर रह रहे हैं और उनका कहना है कि उन्होंने न तो पते के बदलाव के लिए आवेदन किया और न ही किसी अन्य सूची में शामिल होने के लिए. उन्होंने यह भी कहा कि इस सिलसिले में उन्हें कोई नोटिस नहीं मिला.
2022 के विधानसभा चुनाव रिजल्ट को संदर्भ मानते हुए इन बूथों पर कई पार्टियों के वोट-शेयर का विश्लेषण दिलचस्प है.
मिसाल के लिए, सबसे ज्यादा नाम हटाने की दर बूथ 208 से आई. यहां 12 फीसदी वोट हटाए गए. 2022 के विधानसभा चुनाव में यहां समाजवादी पार्टी को 426 वोट मिले थे जबकि भाजपा को 181, बहुजन समाज पार्टी को 5 और कांग्रेस के खाते में महज 2 वोट आए थे. अन्य चार बूथों पर, जहां नाम हटाने का प्रतिशत 9 फीसदी से ज्यादा था वहां भाजपा को एसपी और बीएसपी के कुल वोटों का एक-तिहाई वोट मिला था. भाजपा को 508 वोट मिले जबकि एसपी को 1,368 और बीएसपी को 386 वोट.
कुल मिलाकर, अलीगंज के उन 53 बूथों पर जहां नाम हटाने की दर सबसे ज्यादा थी भाजपा को समाजवादी पार्टी से 3,798 वोट कम मिले. फिर भी, 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 3,810 वोटों के बेहद कम अंतर से यह सीट अपने पास रखी.
यह जांचने के लिए चुनाव आयोग की एक स्वतंत्र जांच की जरूरत होगी कि क्या ये रुझान उन अन्य बूथों पर भी लागू होते हैं जहां नाम हटाने की दर अधिक थी और क्या ये पैटर्न अन्य चुनावों में भी समान हैं.
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने इन हटाए गए नामों को "राजनीतिक" बताया क्योंकि प्रभावित मतदाताओं में एक खास जातीय संरचना थी. वहीं, एक अन्य पूर्व चुनाव आयुक्त जिन्होंने नाम न बताने की शर्त पर बात की, ने इस मामले को "चौंकाने वाला" कहा.
बीएलओ पर ‘दबाव’
बूथ 139 के बीएलओ योगेंद्र कुमार और बूथ 208 की बीएलओ शिखा यादव ने बताया कि मतदान के दिन उन्हें एहसास हुआ कि “कुछ” मतदाताओं के नाम गलत तरीके से हटाए गए थे. हालांकि, उन्होंने दावा किया कि ऐसे मामले बहुत अधिक नहीं थे. बूथ 140 के बीएलओ ने इस मामले पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया.
शिखा यादव ने कहा कि चुनाव के बाद उन्होंने इन मतदाताओं को दोबारा पंजीकृत कराने के लिए आवेदन किया. हालांकि, उनका दावा है कि अलीगंज विधायक के पत्र में शामिल चार बूथों पर नाम हटाने का काम “भारी दबाव” में किया गया था और जिला अधिकारियों ने इसके लिए “देर रात तक बैठकें” आयोजित की थीं.
शिखा ने कहा, “जिला प्रशासन रात के 10 बजे मीटिंग बुलाते थे. इस वक्त पर मीटिंग करना बहुत अजीब है. महिला होने के नाते, मेरे लिए इन बैठकों में शामिल होना बहुत मुश्किल था. इसलिए मुझे अपने पति को साथ ले जाना पड़ता था. हमें धमकी दी गई थी कि अगर हमने भाजपा विधायक की शिकायत पर कार्रवाई नहीं की तो हमारी सैलरी काट ली जाएगी. इस घटना के बाद से मैं बीएलओ की नौकरी छोड़ने का मन बना रही हूं.”
योगेंद्र कुमार ने शिखा की बात से सहमति जताई. उन्होंने कहा, “विधायक के पत्र के बाद जिला प्रशासन ने बहुत तेजी से कार्रवाई की.” बूथ 193 के बीएलओ सचिन गुप्ता व्यस्त कार्यक्रम के कारण हमसे नहीं मिल सके.
मनोज कुमार, बूथ 86 के बीएलओ ने आरोप लगाया कि विधायक राठौर नियमित रूप से वोटरों के नाम हटाने के लिए पत्र भेजते थे. उन्होंने कहा, "हमें अक्सर ऐसे पत्र मिलते हैं जिनमें उन लोगों की सूची होती है जिनके नाम हटाने की मांग की जाती है. अक्सर ऐसा होता है कि इन लिस्ट में गलत नाम शामिल होते हैं.”
बीएलओ योगेंद्र कुमार ने उनकी बात से सहमति जताई. उन्होंने आरोप लगते हुए कहा, “दरअसल, विधायक राठौर ने नाम हटाने का काम अपने एक सहयोगी को सौंप रखा है.”
राठौर ने भी यह बात स्वीकार की कि वह नियमित रूप से ऐसे पत्र भेजते हैं. उन्होंने कहा, "यह इसलिए है क्योंकि जब समाजवादी पार्टी सत्ता में थी तब उन्होंने इन बूथों पर बड़ी संख्या में फर्जी वोटर पंजीकृत कराए थे."
अलीगंज में नाम हटाने के दौरान निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी रहे पूर्व एसडीएम एटा प्रदीप त्रिपाठी ने कहा, "हमने विधायक के पत्र के आधार पर एक समिति बनाई थी. हमने कार्रवाई की, यह सुनिश्चित करने के लिए उचित रिपोर्ट सौंपी गई थी. जब उनसे पूछा गया कि क्या सभी राजनीतिक पार्टियों की शिकायतों के आधार पर ऐसी समितियां बनाई गई थीं तो उन्होंने जवाब में बस ये कहा कि सभी नियमों का पालन किया गया.
एटा के एसडीएम और फर्रुखाबाद के ईआरओ जगमोहन गुप्ता ने नाम हटाने के बारे में कहा, "मैंने पहली सूची प्रकाशित होने के बाद कार्यभार संभाला. इसलिए मुझे जानकारी नहीं है." उन्होंने हमें उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी नवदीप रिनवा से बात करने को कहा. न्यूज़लॉन्ड्री ने इन सभी मामलों का विवरण मुख्य निर्वाचन अधिकारी को सौंप दिया है.
राम प्रसाद गांव में अपने घर पर बैठी 69 वर्षीय नूरजहां यह जानकर हैरान रह गईं कि उन्हें मृत घोषित कर दिया गया था. उन्होंने कहा, "इस बार के चुनाव में मैं कयास लगा रही थी कि मुझे अपना वोटर स्लिप क्यों नहीं मिला"
रहमान अब्दुल्ला खान के तीन बेटों शोहराज खान (45), शोएब खान (47), और मोहम्मद रेहान खान (47) को यह कहकर सूची से हटा दिया गया कि वह पलायन कर चुके हैं.
रहमान ने दस्तावेज में दिए हवाले का खंडन करते हुए कहा, "ये सभी अपने जन्म से इसी घर में रह रहे हैं. हमारे परिवार से तीन वोट हटाना बड़ी बात है. यही वजह थी कि हम इस बार वोट नहीं डाल सके."
इसी तरह, 55 वर्षीय फकरा बेगम ने भी उनके वोट को घर बदलने के बहाने हटाए जाने पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा, "मैं तीन दशकों से अधिक समय से इस घर में रह रही हूं. घर बदलने का तो सवाल ही नहीं उठता."
39 वर्षीय रानी देवी का नाम भी वोटर लिस्ट से हटा दिया गया जबकि उनके पति सुग्रीव कुमार का नाम अभी भी सूची में है.
ददूपुर खुर्द गांव की जाटव मतदाता 60 वर्षीय राम बेटी ने दावा किया कि 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले उनके परिवार के आठ सदस्यों के नाम वोटर लिस्ट से हटा दिए गए थे. राम बेटी के पास करीब दो एकड़ जमीन है. उन्होंने इस बात से निराशा जताते हुए कहा, "अब मेरे परिवार में केवल तीन पंजीकृत मतदाता बचे हैं. जब हमें मतदान के दिन वोट देने से रोक दिया गया तो हमने दोबारा पंजीकरण की कोशिश ही नहीं की. ऐसा इसलिए क्योंकि क्या फायदा जब चुनाव से पहले नाम फिर से हटा दिए जाएंगे?"
चुनाव आयोग की मार्च में प्रकाशित वोटर लिस्ट पर दूसरी एडिशनल गाइडलाइन के अनुसार, हटाए गए मतदाताओं को अपना नाम वापस सूची में शामिल करने का अवसर दिया जाता है.
हटाने की सूचना देने वाला नोटिस मिलने के बाद मतदाता, जिला मतदाता पंजीकरण केंद्र में जाकर इसे चुनौती दे सकते हैं. ईआरओ को इस पर सुनवाई के बाद निर्णय लेना होता है.
ईआरओ गुप्ता ने मतदाताओं को नोटिस न भेजने के आरोपों को खारिज किया. उन्होंने कहा, "नोटिस भेजे गए थे, लेकिन जब लोग उपस्थित नहीं हुए तो हमने उनके नाम सूची से हटा दिए."
हालांकि, उन्होंने यह माना कि इन नोटिस के साथ एक बड़ी समस्या यह है कि यह अंग्रेजी में भेजे जाते हैं जिसे अधिकांश लोग समझ नहीं पाते. ईआरओ ने कहा "कागजात की भाषा हिंदी होनी चाहिए या राज्य के अनुसार होनी चाहिए. आपको यह सवाल करना चाहिए कि चुनाव आयोग इन्हें अंग्रेजी में क्यों भेज रहा है. यह मामले उनके जांच के अधीन होना चाहिए.”
न्यूज़लॉन्ड्री के सवालों का जवाब देते हुए, भारत के चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी की ओर इशारा किया. सीईओ यूपी नवदीप रिनवा ने कबूल किया कि नोटिस अंग्रेजी में भेजे जाते हैं. जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्हें मतदाताओं से शिकायतें मिली हैं तो उन्होंने कहा, "पूरे भारत में नोटिस भेजने का यही प्रारूप है. गांवों में आमतौर पर, जब लोगों को सरकार से ऐसा कोई नोटिस मिलता है तो वे इसके बारे में पूछताछ करने आते हैं. वो इसके बारे में जानने की कोशिश करते हैं कि जो नोटिस उन्हें मिला है उसमें क्या लिखा है.”
बीएलओ शिखा यादव ने कहा, "कम से कम कुछ घरों में नोटिस भेज दिए गए लेकिन चूंकि वे अंग्रेजी में थे, मतदाता उन्हें समझ नहीं सके और वे अपने नाम हटाने को चुनौती नहीं दे सके."
इस तरह की पड़ताल में महीनों लगते हैं और हम एक छोटी टीम हैं. अगर आपको हमारा काम पसंद है, तो NL सेना को समर्थन दें.
मूल रूप से अंग्रेजी में प्रकाशित इस ख़बर को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
अनुवाद- चंदन सिंह राजपूत
Also Read
-
How Muslims struggle to buy property in Gujarat
-
A flurry of new voters? The curious case of Kamthi, where the Maha BJP chief won
-
क्लाउड सीडिंग से बारिश या भ्रम? जानिए पूरी प्रक्रिया
-
टीवी रेटिंग प्रणाली में बदलाव की तैयारी, सरकार लाई नया प्रस्ताव
-
I&B proposes to amend TV rating rules, invite more players besides BARC