हवा का हक़

प्रदूषण में घुटती मायानगरी की सांसें, क्या समंदर की ‘ढाल’ अब नाकाफी हो चली है?

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मुंबई के अंधेरी ईस्ट में रहने वाली 60 वर्षीय एचआर प्रोफेशनल रश्मि देशपांडे को इस साल दिवाली से कुछ दिन पहले ही नाक, आंखों और गले में तेज जलन की शिकायत होने लगी. डॉक्टर के कई चक्कर लगाने और एंटीबायोटिक्स व एंटी-एलर्जिक दवाएं लेने के बावजूद भी उनकी हालत में सुधार नहीं हुआ. आखिरकार डॉक्टर ने उनकी बीमारी की असली वजह प्रदूषण बताई. एक्स-रे में उनके फेफड़ों में धूल जमी हुई पाई गई.

उनके अपार्टमेंट के बाहर की सड़क हाल ही में दो बार खोदी गई थी, जिससे हवा और ज्यादा दूषित हो गई. बीते गुरुवार को यहां का एयर क्वालिटी इंडेक्स 202 तक दर्ज किया गया. मुंबई की भौगोलिक स्थिति समुद्र के किनारे होने से कुछ राहत देती है लेकिन पिछले तीन सालों में बढ़ते कंस्ट्रक्शन और जलवायु परिवर्तन की वजह से यहां की हवा भी बदतर हो गई है. पिछले साल तो कुछ दिनों के लिए मुंबई का प्रदूषण स्तर दिल्ली से भी ज्यादा हो गया था. मौजूदा वक्त में मुंबई दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में 169वें स्थान पर है. यहां के मुख्य प्रदूषक पीएम2.5 और पीएम10 हैं. हेल्थ एक्सपर्ट का कहना है कि प्रदूषण से जुड़ी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं. डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि अगर हालात नहीं सुधरे तो मुंबई को भी दिल्ली जैसी गंभीर स्थिति का सामना करना पड़ सकता है.

न्यूजलॉन्ड्री से बात करते वक्त रश्मि ने कहा, “मैं अक्सर सोचती हूं कि क्या यह माहौल कभी ठीक होगा भी या नहीं.” रश्मि देशपांडे एक महीने में डॉक्टर के क्लिनिक के पांच चक्कर लगाती है. 

उसने आगे कहा, “पिछले कुछ सालों में प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि मुझे डर है कि यह और भी बदतर होता जाएगा. इतने प्रदूषित माहौल के बावजूद, हमारी गेटेड कम्युनिटी के कई पढ़े-लिखे लोग दिवाली पर पटाखे जलाने से पीछे नहीं हटते. हम ऐसे कैसे रहेंगे?”

रश्मि की चिंताएं तमाम मुंबईवासियों की परेशानियों की झलक है. पिछले पांच सालों में शहर में पीएम2.5 के स्तर में 38 प्रतिशत की बढ़त दर्ज की गई है.

पिछले हफ़्ते तक मुंबई में औसत एक्यूआई 191 था, जिसे बेहद असंतोषजनक माना जाता है. बोरीवली ईस्ट में एक्यूआई 301 से 400 के बीच था, जिसे बहुत खराब माना जाता है, और सात इलाकों (देवनार, कांदिवली पश्चिम, मलाड पश्चिम, मझगांव, स्वेरी, कोलाबा में नेवी नगर और वर्ली में सिद्धार्थ नगर) में एक्यूआई 201 से 300 के बीच था, जिसे खराब माना जाता है.

क्या फीकी पड़ रही शहर की प्राकृतिक सुंदरता?

मुंबई का समुद्र किनारे होना पारंपरिक रूप से प्रदूषण से बचाव की एक प्राकृतिक ढाल रहा है. जमीन से उठने वाली हवाएं प्रदूषकों को समंदर की ओर ले जाती हैं, लेकिन इस “प्राकृतिक सफाई के तंत्र” की भी अपनी सीमाएं हैं. हाल के सालों में यहां प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ा है, जो चिंता का विषय है.

भारत की वायु गुणवत्ता पूर्वानुमान प्रणाली सफर (SAFAR) के संस्थापक और परियोजना निदेशक गुफरान बेग ने बताया कि ला नीना नामक एक प्राकृतिक घटना ने प्रदूषण बढ़ाने में भूमिका निभाई.  इसके चलते जलाशय का तापमान कम हो जाता है जिससे सतह की तेज हवाओं और पेनिनसुलर एरिया में हवाओं की गति धीमी हो जाती है. जब ऐसा होता है तो मुंबई को भौगोलिक स्थिति से मिलने वाला प्राकृतिक फायदा खत्म हो जाता है.

पिछले साल ला नीना जैसी कोई घटना नहीं हुई थी बावजूद इसके शहर की आबोहवा प्रदूषित दिखी. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि शहर में कई बड़े निर्माण कार्य हुए, जैसे कोस्टल कॉरिडोर और नई मेट्रो लाइनों का निर्माण, जिसकी वजह से भारी मात्रा में धूलकण हवा में घुल गए. गुफरान बेग के 2020 के रिसर्च में बताया गया कि मुंबई में पीएम 2.5 के सबसे बड़े स्रोत परिवहन से होने वाले उत्सर्जन हैं, जबकि पीएम 10 के लिए मुख्य रूप से हवा में मिली धूल जिम्मेदार है.

इस मामले में बेग ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया, “इस साल, ला नीना के अगले महीने आने की संभावना है. अगर निर्माण कार्यों के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो दिसंबर और जनवरी में हवा की क्वालिटी और खराब हो सकती है. हालांकि, ज्यादातर मेट्रो निर्माण कार्य पूरे हो चुके हैं लेकिन जलवायु परिवर्तन का पहलू अभी भी अनिश्चित है. हमने कभी नहीं सोचा था कि 2022 में ला नीना की वजह से हालात इतने खराब हो सकते हैं. जलवायु परिवर्तन के चलते ऐसे झटके बार-बार आते रहेंगे और हो सकता है कि हमें कुछ और ऐसी घटनाएं देखने को मिलें, जो हमारी लिए मुश्किलें खड़ी कर देगी.”

बेग का कहना है कि केवल दिखावटी उपाय जैसे डस्ट टावर लगाना समस्या का हल नहीं है. विज्ञान को आधार बनाकार हमें कुछ ऐसी योजनाएं लाने की जरूरत है, जो प्रदूषण की जड़ को खत्म करे. 

उन्होंने कहा, “प्रदूषण से निपटने के लिए नियम तो हैं लेकिन इस शहर की समस्या यह है कि नियमों का सही तरीके से पालन नहीं होता. डाटा और आसपास के पर्यावरण की स्थिति पर नियमित रूप से पारदर्शिता होनी चाहिए. जब तक समस्या की पूरी पहचान नहीं होगी, समाधान अधूरा ही रहेगा.”

मुंबई में तापमान में भी काफी उतार-चढ़ाव हो रहा है, दिन गर्म और रातें पहले से ठंडी हो रही हैं, जिससे तापीय व्युत्क्रमण यानि थर्मल इनवर्जन हो रहा है, जिससे कि ठंडी हवा प्रदूषकों को जमीन के पास फंसा लेती है और धुंध की स्थिति पैदा हो रही है. 

निर्माण कार्य में उफान

कोविड-19 के तुरंत बाद, बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) ने उद्योग को बढ़ावा देने के लिए प्रीमियम पेमेंट पर 50 फीसदी छूट की घोषणा की. इसके बाद बिल्डरों ने बड़ी संख्या में नए प्रोजेक्ट्स रजिस्टर करवाए. विशेषज्ञ इसे शहर में निर्माण कार्यों के अचानक बढ़ने के मुख्य कारणों में से एक मानते हैं.

पीडी हिंदुजा नेशनल हॉस्पिटल और मेडिकल रिसर्च सेंटर के कंसल्टेंट रेस्पिरोलॉजिस्ट डॉ. लांसलॉट पिंटो ने कहा, “इस डिस्काउंट योजना ने बहुत बड़े स्तर पर मुंबई में निर्माण कार्य शुरू करा दिया. एक साथ इतने निर्माण कार्य शायद ही इस शहर में कभी हुए होंगे.”

उन्होंने आगे कहा कि एक बार जब शहर का एक्यूआई एक निश्चित स्तर को पार कर जाता है तो क्या ही फर्क पड़ता है कि स्तर 200 है या 300. क्योंकि फेफड़ों में जलन होने के लिए एक्यूआई का 150 पार होना ही काफी है.

डॉ. पिंटो ने कहा कि वे इस समय अपने मरीजों को सलाह दे रहे हैं कि अगर उनके पास विकल्प है तो वे शहर से बाहर चले जाएं.

उन्होंने कहा, “हमने पिछले एक महीने में पहले से सांस संबंधी बीमारियों से जूझ रहे मरीजों की अस्पताल में भर्ती में बढ़ोतरी देखी है. साथ ही, लोगों को वायरल संक्रमण से उबरने में अब ज्यादा समय लग रहा है. मेरा मानना है कि वायरस से हुए नुकसान के बाद फेफड़ों को ठीक होने के लिए साफ हवा चाहिए होती है. लेकिन यह चक्र थमता ही नहीं. आप एक कमरे में एयर प्यूरीफायर लगाकर कितना बच सकते हैं? यह समस्या छोटे स्तर पर नहीं बल्कि बड़े स्तर पर सुलझाने की जरूरत है.”

स्वास्थ्य समस्याओं में बढ़ोतरी

हाजी अली में रहने वाले 35 वर्षीय डॉक्टर दीपक सोनोन ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया कि दीवाली के दौरान प्रदूषण के कारण बीमार पड़ने के बाद से वह शहर छोड़ने पर विचार कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, “पिछले दो वर्षों में माहौल और खराब हो गया है. इस दीवाली के बाद जब मैंने आसमान की ओर देखा तो इस शहर के भविष्य को लेकर बहुत निराशा महसूस हुई. कोई भी पर्यावरण की परवाह नहीं करता न सरकार, न प्रशासन. इन समस्याओं पर ध्यान देना तो दूर, इन्हें सुलझाने या हवा की गुणवत्ता सुधारने के लिए कोई ठोस कदम भी नहीं उठाए जा रहे हैं.”

उन्होंने अपनी बिमारी के बारे में बताते हुए कहा, “जब मैं बीमार पड़ा तो शुरुआत में मुझे लगा कि यह बैक्टीरियल इंफेक्शन है और मैंने दवाइयां लीं लेकिन कोई असर नहीं हुआ. मैं रोज बाहर जा रहा था और दूषित हवा में सांस ले रहा था. फिर मैंने रोज मास्क पहनना शुरू किया और मेरी हालत में तुरंत सुधार हुआ.” 

डॉक्टर दीपक ने आगे कहा, “एक डॉक्टर होने के नाते मुझे वायु प्रदूषण के फेफड़ों और अन्य अंगों पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों का पता है. फिलहाल, मेरे इलाके में पीएम10 से हवा प्रदूषित है, जो मुख्य रूप से निर्माण कार्य, कृषि और रेगिस्तानी धूल के कारण होता है. हमारे आसपास निर्माण कार्य जारी है. दीवाली के दौरान पीएम 2.5 का स्तर बढ़ा, जिसमें बैक्टीरिया और धूलकण शामिल होते हैं जो खून और अन्य अंगों में घुसकर अलग-अलग बीमारियों का कारण बन सकते हैं.”

शहर के सबसे अधिक प्रभावित इलाकों में से एक गोवंडी है, जो एशिया के सबसे बड़े कूड़ा डंपिंग ग्राउंड्स में से एक है. यहां शहर का इकलौता बायो-मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट और रेडी मिक्स्ड कंक्रीट प्लांट भी है. स्थानीय निवासियों के अनुसार, पहले से ही खराब स्वास्थ्य स्थितियां पिछले कुछ वर्षों में और भी बदतर हो गई हैं. पिछले सप्ताह बीएमसी ने नियमों के उल्लंघन का हवाला देते हुए दो आरएमसी को बंद करने के निर्देश और कारण बताओ नोटिस भेजे हैं.

गोवंडी के निवासी और गोवंडी सिटिजन्स वेलफेयर फोरम के अध्यक्ष फैयाज आलम शेख ने इस साल की शुरुआत में एक आरटीआई दायर की, जिससे पता चला कि मुंबई में अस्थमा से होने वाली हर 100 मौतों में से 9 सिर्फ गोवंडी से होती हैं.

फैयाज कहते हैं, “इस इलाके के लोग वैसे ही सांस संबंधी बीमारियों के प्रति ज्यादा संवेदनशील हैं और यह समस्या पिछले कुछ सालों में और भी बढ़ गई है. यहां के लोग शायद थ्योरी में नहीं जानते कि प्रदूषण क्या है या यह उन पर कैसे असर डाल रहा है लेकिन वे इसके नतीजे जरूर भुगत रहे हैं. मैं हवा में धूल के कण साफ देख सकता हूं खासकर सर्दियों में.”

दहिसर में रहने वाली 23 वर्षीय मनोवैज्ञानिक एलियट ने बताया कि खांसी की दवाई लेना उनके लिए अब रूटीन बन गया है.

एलियट ने अपनी तकलीफ के बारे में बताते हुए कहा,  “मेरी खांसी बढ़ गई है, गले में हमेशा जलन रहती है और जब भी बाहर निकलती हूं, आंखों से पानी आने लगता है. शाम के वक्त सड़कों पर धुंध साफ देखी जा सकती है. यह सोचकर डर लगता है कि भविष्य में क्या होगा, क्योंकि हम सभी को सांस संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाएगा.”

मुंबई के जे.जे. अस्पताल में पल्मोनरी मेडिसिन विभाग की प्रमुख डॉ. प्रीति मेश्राम ने बताया कि पिछले दो सालों में प्रदूषण के कारण अस्पताल आने वाले मरीजों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. उन्होंने कहा, “इन महीनों में हमारा ओपीडी आमतौर पर भरा रहता है.”

डॉ. प्रीति मेश्राम ने कहा, "प्रदूषण के स्तर में निश्चित तौर पर बढ़ोतरी हुई है. इन दिनों नीला आसमान देख पाना मुश्किल हो गया है. वायु प्रदूषण सीधे हमारे फेफड़ों को प्रभावित करता है क्योंकि यह सांस के जरिए अंदर जाता है. हमारे पास ज्यादातर वही मरीज आते हैं जिन्हें पहले से ही फेफड़ों की बीमारियां हैं क्योंकि यह उन्हें ज्यादा गंभीर रूप से प्रभावित करता है." उन्होंने अपने मरीजों को मास्क पहनने, घर में एयर प्यूरीफायर लगाने और एसी की सर्विसिंग कराने की सलाह दी.

उन्होंने आगे कहा "दिल्ली और मुंबई में गाड़ियों से होने वाला प्रदूषण एक जैसा है लेकिन दिल्ली में खेती से जुड़े प्रदूषण की समस्या है और मुंबई में तेजी से चल रहे निर्माण कार्य. अगर हमने अपने निर्माण कार्यों को नियंत्रित नहीं किया तो मुंबई की हालत भी दिल्ली जैसी हो सकती है."

केविन हार्डिंग, 30 वर्षीय ट्रैवल कंसल्टेंट ने बताया कि दीवाली के अगले दिन बीमार पड़ने पर उनके डॉक्टर ने खांसी और सर्दी के लिए एंटीबायोटिक्स लेने की सलाह दी लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ.

"तीन से पांच दिनों तक कोई सुधार नहीं हुआ. मैं फिर से डॉक्टर के पास गया क्योंकि मुझे विदेश यात्रा पर जाना था और मैं तब तक ठीक होना चाहता था. उसी दौरान मेरी खांसी में हरे रंग का कफ आना शुरू हो गया था. डॉक्टर ने प्रदूषण को इसका मुख्य कारण बताया. उन्होंने मुझे एक इंजेक्शन दिया, जिससे मेरी इम्यूनिटी में सुधार हुआ. जब मैं दूसरे देश पहुंचा तो मेरी हालत काफी बेहतर हो गई. लेकिन जब मैं मुंबई लौटा तो मेरी सांस लेने का पैटर्न फिर से बदल गया."

चुनावों के बाद, मुंबई की नगर निगम ने प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाए हैं. शहर भर में 5,000 से अधिक निर्माण स्थलों को अपने दिशा-निर्देशों का पालन सुनिश्चित करने की चेतावनी दी गई है.

शहर के कुछ प्रमुख स्थानों, जैसे बीकेसी, जोगेश्वरी लिंक रोड और दहिसर चेक नाका पर एयर प्यूरीफायर लगाए गए हैं. निर्माण स्थलों के लिए नियम बनाए गए हैं जैसे दिन में चार बार पानी छिड़काव के लिए स्प्रिंकलर सिस्टम लगाना, एक एकड़ से बड़े निर्माण स्थलों के चारों ओर 35 फीट ऊंचे कपड़े या लोहे के कवर लगाना और हर निर्माण स्थल पर सीसीटीवी लगाना.

लेकिन मुंबई में केवल 25 निरंतर वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग स्टेशन हैं जो कि राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के अनुसार 67 स्टेशनों की जरूरत से एक तिहाई से भी कम है.

महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुंबई क्षेत्रीय अधिकारी रवि अंधाले ने माना कि निर्माण कार्य प्रदूषण का एक बड़ा कारण है, लेकिन उन्होंने इसे एक "अस्थायी दौर" बताया.

उन्होंने न्यूजलॉन्ड्री को बताया, "ऐसे किसी भी बदलाव से लोगों को थोड़ी असुविधा होती है लेकिन ये सिर्फ कुछ समय के लिए है, जब तक कि शहर में विकास कार्य,  मेट्रो लाइनों को जोड़ने जैसे काम हो रहे हैं. लेकिन निर्माण कार्य से प्रदूषण के अलावा कई अन्य कारक भी हैं, जैसे मौसम संबंधी परिस्थितियां. मुंबई कभी दिल्ली जैसी नहीं होगी क्योंकि राजधानी लैंडलॉक्ड है और वहां पराली जलाने जैसी समस्याएं हैं, जो मुंबई में नहीं हैं."

उन्होंने यह भी कहा कि शहर में बहुत सी धूल पूर्व की ओर से आती है. "सर्दियों में, हवाएं पूर्व से पश्चिम की ओर चलती हैं. पूर्व में नवी मुंबई जैसे इलाके आते हैं, जहां कई इंडस्ट्री स्थित हैं."

मूल रूप से अंग्रेजी में प्रकाशित ख़बर को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

अनुवाद- चंदन सिंह राजपूत

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