हवा का हक़
FAQs: वायु प्रदूषण और उससे जुड़ी ज़रूरी बातें
हवा का हक़ मुहिम, वायु प्रदूषण और उससे जुड़े कुछ सवालों के जवाब. इस प्रश्नोत्तरी में हम आगे भी सवाल जोड़ते रहेंगे.
सरकार संसद में कहती है कि किसी की ख़ास वायु प्रदूषण से हुई मृत्यु या बीमारी का कोई सबूत नहीं है. क्या आपको फिर भी चिंतित होना चाहिए?
हां. आपको चिंता करना चाहिए. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, अकेले वायु प्रदूषण से सालभर में 70 लाख यानि 7 मिलियन लोगों की असामयिक मौतें होती हैं. इस आंकड़े में परिवेश और घरेलू दोनों तरह के प्रदूषण शामिल हैं. मेडिकल जर्नल लैंसेट के एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि 2019 में कम से कम 16.7 लाख वायु प्रदूषण से संबंधित असामयिक मौतें हुईं- जो वैश्विक स्तर पर ऐसी मौतों की सबसे बड़ी संख्या है.
किसे ज़्यादा खतरा है?
लंबे समय तक खराब हवा के संपर्क में रहने से सभी को नुकसान होता है. हालांकि, गर्भवती महिलाओं, बुजुर्गों, बच्चों और हृदय, मस्तिष्क या श्वसन संबंधी बीमारी वाले रोगियों को ज़हरीली हवा के संपर्क में आने से बचना चाहिए.
सरकार क्या कर सकती है?
समाधान के लिए राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और स्थानीय सहयोग की आवश्यकता होगी. सरकारें उत्सर्जन की निगरानी कर सकती हैं, बेहतर उपाय लागू कर सकती हैं और टिकाऊ उपभोग को बढ़ावा दे सकती हैं.
वायु गुणवत्ता सूचकांक क्या है?
वायु गुणवत्ता सूचकांक यानि AQI बाहरी हवा में विभिन्न प्रदूषकों की मात्रा को मापने का एक उपकरण है. अमेरिका स्थित पर्यावरण संरक्षण एजेंसी द्वारा तैयार किया गया यह सूचकांक पांच प्रमुख वायु प्रदूषकों के स्तर को मापता है. जिसमें ग्राउंड-लेवल ओजोन, पार्टिकुलेट मैटर, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड शामिल हैं. यह खास तौर पर उन लोगों के लिए एक फ़ायदेमंद पैमाना है, जो वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से होने वाली बीमारियों से पीड़ित हैं या उनमें बढ़ोतरी हुई है.
इसे विभिन्न श्रेणियों में कैसे वर्गीकृत किया जाता है?
विभिन्न देशों में विभिन्न एजेंसियां वायु गुणवत्ता को मापने के लिए अलग-अलग पैमाने का उपयोग करती हैं. भारत में, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जैसी एजेंसियां 500-पॉइंट एक्यूआई स्केल का उपयोग करती हैं. जो कुछ इस प्रकार है.
भारत में हर बार सर्दियों की शुरुआत में वायु प्रदूषण क्यों होता है?
वैसे तो पूरे साल ही उत्सर्जन स्तर ख़राब के स्तर पर बना रहता है लेकिन सर्दियों के आते-आते, विशेष रूप से उत्तरी भारत में, यह खतरनाक स्तर तक पहुंच जाता है. दरअसल, सर्दियों के महीने अपने साथ कुछ मौसम संबंधी विशेष परिस्थितियां लेकर आते हैं- जैसे तापमान में बदलाव होना.. जिसके चलते ठंडी हवा ज़मीन के आस-पास बनी रहती है. इसके अलावा हवा चलने की गति कम हो जाती है जी उसमें मौजूद प्रदूषकों को वायुमंडल में ऊपर उठने से रोकती हैं. लिहाज़ा प्रदूषक क्षेत्र विशेष में स्थिर हो जाते हैं और प्रदूषण का कारण बनते हैं.
त्योहारों के मौसम में जलाए जाने वाले पटाखे, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में खेतों में जलाई जाने वाली पराली भी इस समस्या को बढ़ाती है.
पार्टिकुलेट मैटर क्या है? PM2.5 और PM10 क्या हैं?
पार्टिकुलेट मैटर या PM एक ऐसा शब्द है, जिसका इस्तेमाल हवा में मौजूद हानिकारक तत्वों/कणों को दर्शाने के लिए किया जाता है, जैसे कि धुआं और कालिख. ये तत्व औद्योगिक गतिविधियों, वाहनों, थर्मल पावर प्लांट, अपशिष्ट जलाने, आग और धूल जैसे स्रोतों से निकलते हैं.
इन प्रदूषकों के कणों का आकार व्यास में 2.5 माइक्रोन (PM2.5) से कम या 10 माइक्रोन (PM10) से ज़्यादा हो सकता है. अलग-अलग आकार के कण श्वसन तंत्र के अलग-अलग हिस्सों को प्रभावित करते हैं. जबकि 10 माइक्रोन से बड़े कण नाक या गले में फंसकर श्वसन तंत्र को प्रभावित करते हैं. 2.5 माइक्रोन से छोटे कण फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं और फेफड़ों के रोगों का कारण बन सकते हैं.
क्या वायु प्रदूषण को घटाया जा सकता है?
दुनिया भर के कई शहर न केवल वायु प्रदूषण को कम करने में सफल रहे हैं, बल्कि इस पर काबू पाने में भी सफल रहे हैं.
शिकागो विश्वविद्यालय के ऊर्जा प्रदूषण संस्थान द्वारा निर्मित वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक के अनुसार, कभी दुनिया में धूलभरी धुंध (स्मॉग) की राजधानी के रूप में पहचाने जाने वाले बीजिंग ने साल 2013 के मुकाबले वायु प्रदूषण में 50 फीसदी तक की कटौती कर ली है.
सरकार इस समस्या से निपटने के लिए क्या कर रही है?
सरकार ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम सहित कई तरह के कार्यक्रम चलाए हैं. लेकिन ये लक्ष्य से बहुत पीछे हैं.
मैं इसमें योगदान कैसे कर सकता हूं?
प्रदूषित हवा के संपर्क में आने से खुद को रोकने के विकल्प बहुत ही सीमित हैं. लेकिन साथ मिलकर, बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है. इसीलिए हमारी टीम, विषय के विशेषज्ञ और आप, जी हां आप, हम सब मिलकर अपने हक की आवाज उठा सकते हैं. इसीलिए हमने ये ‘हवा का हक़’ मुहिम शुरू की है. हमारी मुहिम का मकसद क्या है और हमने ऐसा क्यों किया. जानने के लिए अभिनंदन सेखरी का ये लेख पढ़िए.
‘हवा का हक़’ मुहिम का हिस्सा मैं कैसे बनूं?
इसके लिए कुछ आसान से तरीके हैं. एक तो आप सूचना का अधिकार के जरिए अपने हक की आवाज उठा सकते हैं. इससे मिले जवाबों को हमें submissions@newslaundry.com पर साझा कर सकते हैं. या फिर आप हमारी मुहिम का हिस्सा बनने के लिए सोशल मीडिया पर हैशटैग #FightToBreathe या #हवा_का_हक़ के साथ अपने नजदीकी निगरानी स्टेशन से वायु गुणवत्ता सूचकांक यानि एक्यूआई के स्नैपशॉट के साथ पोस्ट शेयर कर सकते हैं.
इसके अलावा आप हमारी इस मुहिम में आर्थिक योगदान दे सकते हैं. इसके लिए अपनी पसंद चुनिए और हमें सहयोग कीजिए. इसके अलावा भी कई तरीकों से आप मुहिम से जुड़ सकते हैं. इन तरीकों के बारे में विस्तार से जानने के लिए यह लेख पढ़िए.
यह मुहिम कब तक?
हमारा लक्ष्य फिलहाल इसे सालभर तक चलाए रखने का है. आशा है कि आपका सहयोग बना रहेगा.
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